सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) तब होता है, जब सूर्य आंशिक अथवा पूर्ण रूप से चन्द्रमा द्वारा ढक जाता है। सूर्य ग्रहण के ग्रहण शब्द में ही नकारात्मकता झलकती है और इससे एक प्रकार के संकट का आभास होता है। इसका वैज्ञानिक महत्व होने के साथ साथ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार यह एक आध्यात्मिक घटना होती है जिसका संसार के समस्त प्राणियों पर काफी प्रभाव पड़ता है।
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सूर्य ग्रहण क्यों और कैसे लगता है?
भौतिक विज्ञान के अनुसार जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढक जाता है, इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चाँद पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इसी प्रक्रिया के दौरान कभी-कभी चाँद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है। फिर वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी को रोक लेता है इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहते हैं। यह घटना अमावस्या को ही होती है।
सूर्य ग्रहण के प्रकार
सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं:
खंड या आंशिक सूर्य ग्रहण
इस ग्रहण के दौरान चंद्रमा धरती से दूर रहते हुए सूर्य व धरती के बीच में इस प्रकार से आ जाता है जिससे सूर्य का कुछ भाग धरती से दिखाई नहीं देता। यानी चंद्रमा सूर्य के कुछ ही भाग को ढक पाता है। इसे ही आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण
जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आकर सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित दिखाई देता है या फिर यूँ कहें कि सूर्य के किनारों से रोशनी का छल्ला बनता हुआ दिखाई देता है और बीच का भाग पूरी तरह से ढका हुआ। इस स्थिति में सूर्य कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
पूर्ण सूर्य ग्रहण
यह तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। जिससे वह पृथ्वी को अपने छाया क्षेत्र में पूरी तरह से ले लेता है इसके फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश धरती पर नहीं पहुंच पाता और पृथ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसका तात्पर्य है कि चंद्रमा ने सूर्य को पूर्ण रूप से ढ़क लिया है। इस प्रकार के ग्रहण को पूर्ण सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत पान के लिए विवाद शुरू हुआ था और राहु नाम के दैत्य ने देवताओं से छिपकर अमृत का पान कर लिया था। इस घटना को सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया था और उसके इस अपराध को उन्होंने भगवान विष्णु को बता दिया था। तब क्रोध में आकर भगवन विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु पर वार कर दिया था जिससे राहु का सिर और धड़ अलग हो गया लेकिन अमृतपान की वजह से उसकी मृत्यु नहीं हुई।
उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। क्योंकि सूर्य और चंद्रमा के कारण उस दानव की ये दशा हुई थी इसलिए राहु ने सूर्य और चंद्रमा से प्रतिशोध लेने के लिए दोनों पर ग्रहण लगा दिया, जिसे आज हम सब सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के नाम से जानते हैं।
सूर्य ग्रहण पर क्या रखें सावधानियां
ज्योतिषाचार्यों की सलाह के अनुसार:
- ग्रहण काल के समय खाना न खांए न ही कुछ पीयें,
- प्रभु का स्मरण करते हुए पूजा, जप, दान आदि धार्मिक कार्य करें।
- इस समय नवग्रहों का दान करना भी लाभकारी रहेगा।
- जो विद्यार्थी अच्छा परिणाम चाहते हैं वे ग्रहण काल में पढाई शुरु न करें बल्कि ग्रहण के समय से पहले से शुरु कर ग्रहण के दौरान करते रहें तो अच्छा रहेगा।
- घर में बने पूजास्थल को भी ग्रहण के दौरान ढक कर रखें।
- ग्रहण से पहले रात्रि भोज में से खाना न ही बचायें तो अच्छा रहेगा।
- यदि दुध, दही या अन्य तरल पदार्थ बच जांयें तो उनमें तुलसी अथवा कुशा डालकर रखें, इससे ग्रहण का प्रभाव उन पर नहीं पड़ेगा।
- ग्रहण समाप्ति पर पूजा स्थल को साफ कर गंगाजल का छिड़काव करें,
- देव मूर्ति को भी गंगाजल से स्नान करवायें व तदुपरांत भोग लगायें।
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