कारक की परिभाषा, भेद, चिन्ह, उदाहरण सहित इस प्रकार हैं:
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कारक किसे कहते हैं
कारक शब्द कृ धातु से निर्मित है, जिसका अर्थ होता है “करना”। अर्थात ऐसे संज्ञा व सर्वनाम के शब्द जो क्रिया के साथ सम्बन्ध बताते हैं, उन्हें कारक कहा जाता है। कारक निम्न हैं:
कारक | चिन्ह | विभक्ति |
---|---|---|
कर्त्ता कारक | ने | प्रथमा |
कर्म कारक | को | द्वितीया |
करण कारक | से, के द्वारा | तृतीया |
सम्प्रदान कारक | के लिए | चतुर्थी |
अपादान कारक | से (पृथक होने के लिए) | पंचमी |
सम्बन्ध कारक | का, के, की | षष्ठी |
अधिकरण कारक | में, पर | सप्तमी |
सम्बोधन कारक | हे! अरे! | सम्बोधन |
उदाहरण:
हे बच्चों ! राम ने रावण को बाण से सीता के लिए अयोध्या से रावण की लंका में मारा।
कारक के भेद
नोट: सम्बन्ध एवं संबोधन का क्रिया के साथ प्रत्यक्षतः कोई सम्बन्ध नहीं होता है। अतः इन दोनों को मूल कारकों में नहीं गिना जता है परन्तु कारक के समान व्यवहार होने से इन दोनों को भी कारक के अंतर्गत ही पढ़ लिया जाता है।
1. कर्त्ता कारक:
वाक्य में जो कार्य करने वाला होता है अर्थात काम करने वाला कर्त्ता होता है। कर्त्ता कारक के योग में “ने” विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
- राम ने रावण को मारा।
- सीता ने गाना गाया।
- मोहन पुस्तक पढ़ता है।
- वे घूमने गये।
कर्त्ता कारक के लिए वाक्य में निम्न स्थितियां प्राप्त हो सकती हैं:
- बिना परसर्ग के कर्त्ता का प्रयोग –
राम पुस्तक पढता है।
पूजा पूजा कर रही है। - “ने” परसर्ग के साथ –
राम ने पुस्तक पढ़ी।
संतोष ने गीत गाया। - “को” परसर्ग के साथ –
राम को पुस्तक पढनी है।
संतोष को घर जाना है। - “से” परसर्ग के साथ –
राम से पुस्तक नहीं पढ़ी गयी।
यशोदा से दौड़ा नहीं गया। - “के द्वारा” परसर्ग के साथ –
राम के द्वारा सांप मारा गया।
सुमन के द्वारा खाना बनाया गया।
नोट: भूतकाल के वाक्यों में ही कर्त्ता के साथ “ने” विभक्ति दिखाई देती है। लेकिन वर्तमान व भविष्यकाल तथा अकर्मक क्रिया के वाक्यों में कर्त्ता के साथ “ने” विभक्ति छिपी होती है।
2. कर्म कारक:
“कर्तुरीप्सिप्तमम् कर्म” अर्थात कर्त्ता जिसको बहुत अधिक चाहता है अर्थात कर्त्ता को जो फल मिलता है उसमें कर्म कारक होता है। कर्म के योग में “को” विभक्ति होती है।
उदाहरण:
- राम ने रावण को मारा।
- सीता ने गाना गाया।
- मोहन पुस्तक पढता है।
- मोर सापों को खा रहा है।
- नारद जी केले खा रहे हैं।
- बिना परसर्ग के –
मुकेश पुस्तक पढ़ता है।
जोया ने गीत गाया। - “को” परसर्ग के साथ –
रोहित ने मोहित को मारा।
उसने तुम्हारे पत्र को पढ़ा था। - “के” परसर्ग का प्रयोग – यदि किसी वाक्य में दोनों ओर/चारों ओर/की ओर/समीप/निकट इत्यादि शब्दों का प्रयोग हो रहा हो तो वहां उनसे ठीक पहले लिखे हुए शब्द में कर्म कारक माना जाता है –
गाँव के दोनों ओर राजमार्ग है।
विद्यालय के चारों ओर वृक्ष हैं।
नगर के समीप बगीचा है।
पुलिस को देखकर चोर जंगल की ओर भाग गया।
3. करण कारक:
“साधाकतम् करणम्” अर्थात कर्त्ता कार्य करने के लिए जिस साधन/माध्यम को अपनाता है, उस साधन/माध्यम में करण कारक होता है। करण के योग में “से”, “के द्वारा” विभक्ति का प्रयोग होता है।
उदाहरण:
- मोहन कलम से लिखता है।
- गीता हवाई जहाज से लन्दन जाती है।
- रमेश साइकिल से घूमने जाता है। (के द्वारा)
- राधा चाकू से फल काटती है।
स्थितियां:
- “से” परसर्ग –
मैं गाड़ी से आया।
आदर्श गेंद से खेल रहा है। - “के द्वारा” परसर्ग –
राम ने बाण के द्वारा रावण को मारा।
लाठी के द्वारा सांप मारा गया। - “के साथ” परसर्ग – यदि किसी वाक्य में “के साथ” शब्द का प्रयोग हो रहा हो तो वहां उससे ठीक पहले लिखे हुए शब्द में करण कारक माना जाता है। इस प्रकार के शब्द को अप्रधान कर्त्ता के नाम से भी पुकारा जाता है।
बच्चे पिताजी के साथ मेला देखने गये हैं।
राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन गये। - बिना परसर्ग के करण कारक –
अब आपको मैच का आँखों देखा हाल सुनाया जायेगा।
हमें केवल कानों सुनी बात पर ही विश्वास करना चाहिए।
विशेष नियम: यदि शरीर के किसी अंग विशेष में कोई विकार अथवा दोष पाया जाता है तो उस विकृत अंग में करण कारक माना जाता है।
रोहित आँख से काना, मुंह से गूंगा, कानों से बहरा, सिर से गंजा, हाथ से लूला, पैर से लंगड़ा तथा पीठ से कूबड़ा है परन्तु दिमाग से बहुत तेज़ है।
उपरोक्त समस्त रेखांकित पदों में करण कारक है।
4. सम्प्रदान कारक:
जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जा रहा हो, बदले में कुछ भी लेने की भावना नहीं हो अर्थात जब किसी को कुछ दी जाती है अर्थात जिसको वस्तु दी गयी है उसमें सम्प्रदान कारक होता है। जब कोई वस्तु अच्छी लगे अर्थात अच्छे लगने के अर्थ में भी सम्प्रदान कारक होता है। सम्प्रदान कारक के योग में “के लिए” विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
- भारत ने नेपाल को आर्थिक सहायता दी।
- सेठ जी ने गरीबों को कम्बल बाटें।
- गीता बच्चों के लिए फल लाती है।
- राधा बहिन के लिए साड़ी लाती है।
अपवाद:
- यदि देने में दान की भावना नहीं हो अर्थात ऐसा लगे कि दी जा रही वस्तु पुनः दाता के पास आ जाएगी तो वहां जिसको दिया जाता है उस शब्द में सम्बन्ध या कर्म कारक माना जाता है।
मोहन धोबी को कपड़े देता है।
- यदि किसी वाक्य में देने में अशिष्टता का भाव प्रकट हो रहा हो तो वहां जिसे दिया जाता है उस शब्द में करण कारक माना जाता है।
कामुक दासी को धन देता है।
विशेष नियम:
- यदि किसी वाक्य में “अच्छा लगना” क्रिया का प्रयोग हो रहा हो तो वहां जिसको अच्छा लगता है उस शब्द में सम्प्रदान कारक माना जाता है –
बालक गणेश को लड्डू अच्छे लगते हैं।
कृष्ण को मक्खन अच्छा लगता है।
खिलाड़ी को जीतना पसंद है।
- यदि किसी वाक्य में क्रोध करना, द्रोह करना, ईर्ष्या करना, जलना इत्यादि क्रियाओं का प्रयोग हो रहा हो तो जिस पर क्रोध किया जाता है उस शब्द में सम्प्रदान कारक माना जाता है।
पिता पुत्र पर क्रोध करता है।
मोहन रोहित से द्रोह करता है।
मीरा राहुल से जलती है।
- यदि किसी वाक्य में “के निमित्त”, “के हेतु”, “के लिए”, “के वास्ते” इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जा रहा हो तो वहां इनसे ठीक पहले प्रयुक्त शब्द में सम्प्रदान कारक माना जाता है।
हम पढ़ने के लिए निमित्त यहाँ आते हैं।
धन के वास्तु/के हेतु सभी प्रयासरत हैं।
5. अपादान कारक:
- कोई व्यक्ति, वस्तु किसी स्थान से अलग हो रही है तो जिस स्थान से अलग हो रही है उस स्थान में अपादान कारक होता है।
- जिससे डर या भय लगता है,
- जिससे तुलना की जाती है,
- जिससे लज्जाया या शर्माया जाता है,
- जिससे प्रेम, घृणा, ईर्ष्या,द्वेष आदि किया जाता है,
- जिससे शिक्षा या संस्कार लिए जाते हैं,
- जिस तिथि, दिन, दिनांक तथा वर्ष से कार्य आरम्भ हो रहा हो।
(इन सभी के योग में अपादान कारक का प्रयोग किया जाता है)
उदाहरण:
- मोहन कुत्ते से डरता है।
- गंगा हिमालय से निकलती है।
- राधा जयपुर से अजमेर गयी।
- गीता छत से कूद गयी।
- बच्चे अपरिचितों से शर्माते हैं।
- राधा कुत्ते से प्रेम करती है।
- गीता राधा से ईर्ष्या करती है।
- पेड़ से पत्ता गिरा।
- गीता राधा से बुद्धिमान है।
- गीता ससुर से लजाती है।
- 26 दिसंबर 2015 से क्रिकेट मैच आरम्भ होंगे।
- अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखी।
- बच्चे माता-पिता से संस्कार सीखते हैं।
6. सम्बन्ध कारक:
वाक्य में जब एक संज्ञा या सर्वनाम शब्द का वाक्य के दूसरे संज्ञा या सर्वनाम शब्द के साथ सम्बन्ध का बोध कराया जाता है, वहां सम्बन्ध कारक का प्रयोग किया जाता है। सम्बन्ध कारक के योग में “का”, “के”, “की” विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
- राजा दशरथ राम के पिता थे।
- यशोदा कृष्ण की माता थी।
- यह पुस्तक मेरी है।
- यह मेरा भाई है।
7. अधिकरण कारक:
आधारोअधिकरण जब कर्त्ता किसी आधार को मानकर या अपनाकर कार्य करता है, तो उस आधार में अधिकरण कारक होता है। अधिकरण कारक के योग में “में”, “पर” विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसके दो भेद होते हैं:
- कालाधिकरण
- स्थानाधिकरण
उदाहरण:
- गीता छत पर बैठी है।
- पक्षी आकाश में उड़ते हैं।
- रमेश घोड़े पर बैठा है।
- सीता दिन में नहीं सोती है।
- मीरा पलंग पर सो रही है।
- मेंढक कुएं में टर्रा रहे हैं।
- मोहन रात में खाना नहीं खाता है।
विशेष नियम:
- यदि किसी वाक्य में स्नेह/प्रेम/अनुराग आदि शब्दों का प्रयोग हो रहा हो तो वहां जिससे स्नेह किया जाता है उस शब्द में अधिकरण कारक माना जाता है।
पिता पुत्री से स्नेह करता है।
राम रमा पर आसक्त है।
वह बच्चों से प्रेम करता है।
- यदि किसी वाक्य में अनेक पदार्थों में से किसी एक पदार्थ के श्रेष्ठता या हीनता प्रकट की जाती है तो वहां समेकित पदार्थवाचक शब्द में अधिकरण कारक माना जाता है। इस प्रकार के शब्दों में विकल्प से अधिकरण के स्थान पर सम्बन्ध कारक भी माना जाता है।
बालकों में रोहित सबसे होशियार है।
बालिकाओं में सुहानी सबसे कमजोर है।
8. संबोधन कारक:
जब किसी को संबोधित किया जाये अर्थात पुकारा जाय तो वहां संबोधन कारक होता है। संबोधन कारक के लिए “हे!”, “अरे!”, “अजी”, “हे भगवान्!”, “वाह” आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण:
- अरे! आप को इधर आना है।
- अजी! आज घूमने नहीं गये।
- हे भगवान्! मैं पास हो जाऊ।
- अरे! कल तुम नहीं आये।
यह भी देखें
संज्ञा की परिभाषा, भेद और उदाहरण