संधि की परिभाषा, भेद और उदाहरण

दो निर्दिष्ट वर्णों के पास-पास आने के कारण उनके मेल से विकार उत्पन्न होना ही संधि है। दो वर्णों के परस्पर मिलने पर यदि उनमे कोई विकार या परिवर्तन नही आता है तो उसे संधि नही मानकर संयोग माना जाता है। ऐसे ही संधि में वर्णों को अलग करते हुए पदों को अलग-अलग कर देना ही “संधिविच्छेद” कहलाता है।

संधि की परिभाषा

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संधि शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है – मेल या योग या जोड़। संधि शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – सम् + धि, जिसका अर्थ होता है “अच्छी तरह मिलना”। दो वर्णो के परस्पर मेल से उत्पन्न ध्वनि विकार को संधि कहते हैं अर्थात दो वर्णो का परस्पर मेल होने पर यदि उनमे से किसी भी एक वर्ण में कोई परिवर्तन आ जाता है तो उसे संधि कहते हैं।

संधि में शर्तें

संधि में निम्न शर्तें कार्य करती हैं:

  1. विकार
  2. लोप
  3. संयोग
  4. आगम
  5. प्रकृतिभाव

1. विकार: दो वर्णों का परस्पर मेल होने पर जो परिवर्तन होता है उसे विकार कहा जाता है। जैसे:

↬ बाल + इन्दु = बालेन्दु
↬ विद्या + आलय = विद्यालय

2. संयोग: जिस शब्द में दो वर्ण परस्पर ज्यों के त्यों आकर मिल जाते हैं, कोई विकार नहीं होता है तो उसे संयोग कहते हैं। जैसे:

↬ पंक + ज = पंकज
↬ युग + बोध = युगबोध

3. लोप: जहां प्रथम पद के अंतिम वर्ण का लोप करके दोनों पदों को परस्पर मिला देते हैं वहां लोप होता है। जैसे:

↬ राजन् + गृह = राजगृह
↬ मंत्रिन् + मंडल = मंत्रिमंडल

4. आगम: जहां पर दोनों पदों के बीच में किसी अन्य वर्ण का प्रयोग करते हैं तो वह आगम कहलाता है। आगम निम्न स्थितियों में होता है:

नियम 1 – परि उपसर्ग के पश्चात कृ धातु से निर्मित कोई शब्द होता है तो परि के बाद में ‘ष्’ (मूर्धन्य) का आगम हो जाता है। जैसे:

↬ परि + कार = परिष्कार
↬ परि + कृता = परिष्कृता

नियम 2 – यदि सम् उपसर्ग के उपरांत कृ धातु से निर्मित कोई शब्द होता है तो सम् उपसर्ग के बाद ‘स्’ (दन्तय) का आगम हो जाता है। जैसे:

↬ सम् + कार = संस्कार
↬ सम् + कृति = संस्कृति

नियम 3 – यदि प्रथम पद में स्वर हो और उसके उपरांत ‘छ’ हो तो दोनों पदों के बीच में ‘च्’ का आगम होता है। जैसे:

↬ वि + छेद = विच्छेद
↬ आ + छादन = आच्छादन

5. प्रकृतिभाव: जहां संधि-नियम तो लगता हो लेकिन संधि नियम लगाने पर शब्द सही नहीं बने, ऐसी स्थिति में प्रकृतिभाव होता है। जैसे:

↬ सु + अवसर
↬ सु + अम्ब

संधि के भेद

संधि के तीन भेद होते हैं:

  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

स्वर संधि

दो वर्णों के मेल से उत्पन्न ध्वनि विकार को स्वर संधि कहते हैं। स्वर संधि के 5 भेद होते हैं:

  • दीर्घ स्वर संधि
  • गुण स्वर संधि
  • यण स्वर संधि
  • वृद्धि स्वर संधि
  • अयादि स्वर संधि

नोट – संधि-विच्छेद करने तथा संधि पद बनाने के नियम –

नियम 1 –

  • संधि-विच्छेद और संधि पद बनाते समय प्रथम पद के अंतरण के स्वर को बाहर निकालकर दाहिनी और लिख देते हैं बाकी पद को बायीं ओर लिख देते हैं।
  • द्वितीय पद के प्रथम वर्ण को बाहर निकालकर बाई ओर लिख देते हैं तथा बाकी पद को दाहिनी ओर लिख देते हैं।

जैसे देव + आलय = देवालय

नियम 2 – संधि-विच्छेद करते समय संधि पद को दो सार्थक पदों में विभक्त कर देते हैं। इस बात का ध्यान रखना होता है कि विच्छेद किए गए शब्द शुद्ध हो।

जैसे – विद्या + आलय = विद्यालय

दीर्घ स्वर संधि-

हृस्व या दीर्घ स्वर के उपरांत कोई हृस्व या दीर्घ स्वर होने पर दीर्घादेश हो जाता है।

नियम –

  • अ + अ = आ
  • इ + इ = ई
  • उ + उ = ऊ
  • आ + आ = आ
  • ई + ई = ई
  • ऊ + ऊ = ऊ
  • अ + आ = आ
  • ई + इ = ई
  • ऊ + उ = ऊ
  • आ + अ = आ
  • इ + ई = ई
  • ऊ + उ = ऊ

उदाहरण-

↬ कार्य + आलय = कार्यालय
↬ वधू + उत्सव = वधूत्सव
↬ भू + उपरि = भूपरि
↬ कवि + इन्द्र = कवीन्द्र

गुण संधि-

नियम 1 – यदि अ या आ के बाद इ या ई आये तो दोनों मिलकर ए हो जाता है। (अ,आ + इ,ई = ए)

उदाहरण:

↬ सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
↬ महा + इन्द्र = महेन्द्र

नियम 2 – यदि अ या आ के बाद उ या ऊ आये तो दोनों मिलकर ‘ओ’ हो जाते हैं। (अ,आ + उ,ऊ = ओ)

उदाहरण:

↬ महा + उदय = महोदय
↬ सूर्य + उदय = सूर्योदय

नियम 3 – यदि अ या आ के बाद ऋ आये तो दोनों मिलकर अर् हो जाते हैं। (अ,आ + ऋ = अर्)

उदाहरण:

↬ वसंत + ऋतु = वसंतर्तु
↬ ग्रीष्म + ऋतु = ग्रीष्मर्तु

नियम 4 – यदि अ या आ के बाद ऌ आये तो दोनों मिलकर अल् हो जाते हैं। (अ,आ + ऌ = अल्)

उदाहरण:

↬ तव + ऌकार = तवल्कार

अपवाद- प्रौढ़ = प्र + ऊढ़; अक्षौहिणी = अक्ष + ऊहिणी;

वृद्धि संधि-

नियम 1 – यदि अ,आ के बाद ए,ऐ आये तो दोनों मिलकर ऐ हो जाता है। (अ,आ + ए,ऐ = ऐ)

उदाहरण:

↬ सदा + एव = सदैव

नियम 2 – यदि अ,आ के बाद ओ,औ ए तो दोनों मिलकर औ हो जाता है। (अ,आ + ओ,औ = औ)

उदाहरण:

↬ वन + औषधि = वनौषधि

अपवाद- दन्त + ओष्ठ

यण संधि-

नियम 1 – यदि इ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो इ के स्थान पर ‘य्’ हो जाता है। (इ + भिन्न स्वर = य्)

उदाहरण:

↬ प्रति + एक = प्रत्येक

नियम 2 – यदि उ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो उ के स्थान पर ‘व्’ हो जाता है। (उ + भिन्न स्वर = व्)

उदाहरण:

↬ गुरु + आज्ञा = गर्वाज्ञा

नियम 3 – यदि ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो ऋ के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है। (ऋ + भिन्न स्वर = र्)

उदाहरण:

↬ पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

नियम 4 – यदि ऌ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो ऌ के स्थान पर ‘ल्’ हो जाता है। (ऌ + भिन्न स्वर = ल्)

उदाहरण:

↬ ऌ + आकृति = लाकृति

अयादि संधि-

नियम 1 – यदि ए के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो ए के स्थान पर ‘अय्’ हो जाता है। (ए + भिन्न स्वर = अय्)

उदाहरण:

↬ चे + अन = चयन

नियम 2 – यदि ऐ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो ऐ के स्थान पर ‘आय्’ हो जाता है। (ऐ + भिन्न स्वर = आय्)

उदाहरण:

↬ नै + अक = नायक

नियम 3 – ओ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो ओ के स्थान पर ‘अव्’ हो जाता है। (ओ + भिन्न स्वर = अव्)

उदाहरण:

↬ भो + अन = भवन

नियम 4 – यदि औ के बाद कोई भिन्न स्वर आये तो औ के स्थान पर ‘आव्’ हो जाता है। (औ + भिन्न स्वर = आव्)

उदाहरण:

↬ धौ + अक = धावक

व्यंजन संधि

परिभाषा: जब व्यंजन से व्यंजन का या व्यंजन से स्वर का या स्वर से व्यंजन का परस्पर मेल हो और उसमे ध्वनि विकार उत्पन्न हो तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं।

  • व्यंजन + व्यंजन (वाक् + जाल = वाग्जाल)
  • व्यंजन + स्वर (जगत् + ईश = जगदीश)
  • स्वर + व्यंजन (आ + छादन = आच्छादन)

नियम 1 – यदि किसी अघोष व्यंजन के बाद कोई घोष व्यंजन आये तो अघोष व्यंजन के स्थान पर घोष व्यंजन हो जाता है अर्थात वर्ग के प्रथम/द्वितीय वर्ण के बाद किसी भी वर्ग का तीसरा,चौथा,पांचवा वर्ण / य,र,ल,व / स्वर आये तो प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है।

उदाहरण:

↬ उद्यत = उत् + यत
↬ सदानन्द = सत् + आनन्द

नियम 2 – यदि वर्ग के प्रथम अक्षर के बाद किसी भी वर्ग का पांचवा वर्ण आये तो प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग के पांचवे वर्ण में परिवर्तित हो जाता है।

उदाहरण:

↬ जगत् + नाथ = जगन्नाथ

नियम 3 – यदि हृस्व स्वर (अ,इ,उ,ऋ) के बाद छ आये तो दोनों के बीच में ‘त्’ आता है लेकिन त् के स्थान पर ‘च्’ का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:

↬ सन्धि + छेद = सन्धिच्छेद

नियम 4 –

  • यदि त् या द् के बाद च या छ आये तो त् या द् के स्थान पर च् हो जाता है।
  • यदि त् या द् के बाद ज या झ आये तो त् या द् के स्थान पर ज् हो जाता है।
  • यदि त् या द् के बाद ट या ठ आये तो त् या द् के स्थान पर ट् हो जाता है।
  • यदि त् या द् के बाद ड या ढ आये तो त् या द् के स्थान पर ड् हो जाता है।
  • यदि त् या द् के बाद ल आये तो त् या द् के स्थान पर ल् हो जाता है।

उदाहरण:

↬ उत् + चारण = उच्चारण
↬ सत् + जन = सज्जन

नियम 5 – यदि त् के बाद श ए तो त् का च् और श का छ् हो जाता है।

उदाहरण:

↬ तत् + शिव = तच्छिव

नियम 6 – यदि त् के बाद ह आये तो त् का द् और ह का ध हो जाता है।

उदाहरण:

↬ पत् + हति = पद्धति

नियम 7 – यदि म् के बाद अन्तस्थ (य,र,ल,व) / उष्म (श,ष,स,ह) व्यंजन ए तो म् का अनुस्वार हो जाता है।

उदाहरण:

↬ सम् + वाद = संवाद

नियम 8 – यदि ष् के बाद त, थ, न आये तो त, थ, न के स्थान पर ट, ठ, ण हो जाता है।

उदाहरण:

↬ कृष + न = कृष्ण

नियम 9 – यदि इ, उ, ए के बाद दंतव्य ‘स’ आये तो स, ष में परिवर्तित हो जाता है।

उदाहरण:

↬ नि + साद = निषाद

विसर्ग संधि

परिभाषा: जहां विसर्ग के बाद स्वर/व्यंजन आये वहां विसर्ग संधि होती है।

नियम 1 – यदि विसर्ग से पहले अ हो और विसर्ग के बाद कोई घोष वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान पर ओ हो जाता है।

उदाहरण:

↬ यशः + दा = यशोदा

नियम 2 – यदि विसर्ग से पहले अ हो एवं बाद में भी अ हो तो विसर्ग के स्थान पर ओ हो जाता है और बाद वाले अ का लोप हो जाता है।

उदाहरण:

↬ मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

नियम 3 – यदि विसर्ग से पहले इ,उ हो तथा विसर्ग के बाद च, छ, श हो तो विसर्ग के स्थान पर श् हो जाता है।

उदाहरण:

↬ निः + चल = निश्चल

नियम 4 – यदि विसर्ग से पहले इ,उ तथा बाद में त, थ, स हो तो विसर्ग के स्थान पर स् हो जाता है।

उदाहरण:

↬ दु: + साहस = दुस्साहस

नियम 5 – यदि विसर्ग से पहले अ, ओ तथा बाद में क, त, प हो तो विसर्ग के स्थान पर स् हो जाता है।

उदाहरण:

↬ नमः + कार = नमस्कार

यह भी देखें: हिंदी वर्णमाला: परिभाषा, भेद और उदाहरण