यह प्रश्न उठता है कि समुद्र पर रामसेतु को बनाने में वानरों को कितना समय लगा था? वाल्मीकि रामायण के अनुसार समुद्र में रामसेतु बनाने में वानरों को कुल 5 दिन का समय लगा था। पहले दिन वानरों ने 14 योजन की दूरी तय की थी, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन सेतु का निर्माण किया गया था। कुल मिलाकर यह पुल 100 योजन लम्बा व 10 योजन चौड़ा था। एक योजन लगभग 13 किमी के बराबर होता हैं।
रामसेतु किसने और क्यों तोड़ा?
रामायण के अनुसार जब रावण माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया था। तब समुद्र से लंका तक पहुँचने के लिए रामसेतु का निर्माण किया गया। ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि जिस रामसेतु को भगवान राम के आदेश पर बनाया गया था उसका एक हिस्सा स्वयं राम ने ही तोड़ दिया था। हांलाकि ये घटना तब की है जब श्री राम विभीषण से मिलने दुबारा लंका गए थे। पद्म पुराण में इस घटना से जुड़े साक्ष मिलते हैं। जिनके अनुसार वनवास से लौटने के बाद भगवान राम को अयोध्या का राजा घोषित किया गया और वे अपने राज पाठ के कार्यों में व्यस्त हो गए।
एक दिन भगवान श्री राम को अचानक विभीषण का विचार आया कि बहुत समय बीत गया और विभीषण का कोई समाचार नहीं मिला। श्री राम ने भरत से इस बारे में बात की और भरत भी श्रीराम के साथ लंका चलने को तैयार हो गए। अयोध्या की रक्षा का भार लक्ष्मण को सौंपकर राम और भरत पुष्पक विमान पर लंका को निकले। तब रास्ते में किसकिन्धानगरी आयी। राम और भरत ने सोचा थोड़ी देर यहाँ रूककर सुग्रीव और अन्य वानरों से भी मिल लिया जाय। जब सुग्रीव को पता चला श्रीराम और भरत विभीषण से मिलने लंका जा रहे हैं तो वो भी उनके साथ निकल गए।
लंका पहुंचने पर श्रीराम, भरत और सुग्रीव से मिलकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए। इन्ही दिनों विभीषण ने श्रीराम से कहा कि अगर मानव इस सेतु के मार्ग से आकर यहां आक्रमण करेंगे तो मई लंका की रक्षा किस प्रकार करूँगा? इसी बात से अपने भकत की रक्षा के लिए अयोध्या लौटते समय श्री राम ने तीर से इस सेतु के दो तिकडे कर लिए। इस प्रकार श्रीराम ने रामसेतु को स्वयं अपने हाथों से नष्ट कर दिया।