Major Fairs in Bihar- बिहार के प्रमुख मेले निम्न प्रकार हैं:
बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज से लेकर देवघर (झारखण्ड) तक 105 किमी लम्बे क्षेत्र में श्रावणी मेले का आयोजन होता है। देवघर का प्रसिद्द रावणेश्वर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग द्वादस ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसे कामना लिंग भी कहा जाता है।
सोनपुर में प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में यह मेला 1850 से निरन्तर लगता आ रहा है। यह मेला ग्रामीण एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विश्व का और पशुधन की दृष्टि से एशिया का सबसे बड़ा मेला है। धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित ‘हरिहर क्षेत्र’ तथा ‘गज-ग्राह’ की लीला इसी क्षेत्र से संबंधित है।
गया में प्रत्येक वर्ष भाद्रपद पूर्णिया से आश्विन माह की अमावस्या तक आयोजित इस धार्मिक मेले में हिन्दू धर्म के लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध कार्य करके उनकी मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
बक्सर जिले के ब्रह्मपुर नामक गाँव में शिवरात्रि और वैशाख महीने की बदी एकादशी के दिन इस मेले का आयोजन किया जाता है। वर्ष में दो बार लगने वाला यह मेला भी बड़ा पशु मेला है।
नवादा जिले में काकोलत नामक स्थान पर प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर इस धार्मिक मेले का आयोजन छह दिनों तक किया जाता है।
जैन धर्मावलंबियों का यह मेला महावीर की जन्मस्थली वैशाली में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को आयोजित होता है।
मकर संक्रांति से एक माह पूर्व (14 दिसंबर से 14 जनवरी ) तक हिन्दू समाज कोई मांगलिक कार्य नहीं करता है। इस अवसर पर राजगीर में एक भव्य मेला लगता है।
सीता जी को जन्मस्थली सीतामढ़ी में उनके जन्म दिवस पर एक विशाल मेले का आयोजन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को होता है।
यह मेला कृषि क्षेत्र के विकास के लिए भागलपुर जिले के सबौर कृषि विश्वविद्यालय में लगाया जाता है।
मुजफ्फरपुर में प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के पर्व पर यह मेला 15 दिन तक आयोजित होता है।
बिहार की प्रमुख जनजातियां – Major Tribes in Bihar
कटिहार जिले के कदवा प्रखंड में कल्याणी नामक स्थल पर मीलों तक फैली झील के किनारे प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर यह मेला लगता है।
सभागाछी (मधुबनी जिला) में प्रत्येक वर्ष जेठ-आषाढ़ माह में आयोजित इस मेले में अविवाहित वयस्क युवकों को विवाह हेतु प्रदर्शित किया जाता है। विवाह योग्य कन्याओं के अभिभावक वहीं विवाह संबंधी निर्णय लेते हैं। यह मेला विश्व में अपने अद्भुत रूप के लिए प्रसिद्ध है।
यह ऐतिहासिक मेला 1881 ई० से चलता आ रहा है, जो पूर्व में भव्य चौतवारनी मेले के नाम से प्रसिद्द था।
बेतिया में प्रत्येक वर्ष दशहरा पर लगभग 15-20 दिन तक आयोजित इस पशु मेले में पशुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है।
फारबिसगंज में प्रत्येक वर्ष अक्टूबर/नवम्बर माह में आयोजित इस 15 दिवसीय धार्मिक मेले में काली देवी की पूजा की जाती है।
कटिहार के समीप कोसी नदी पर प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा पर आयोजित इस धार्मिक मेले में लकड़ी के समान का क्रय-विक्रय भी किया जाता है।
प्रत्येक वर्ष दिसंबर माह में पूर्णिया जिले के ‘गुलाबबाग़’ में इस 15 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।
नरकटियागंज-भीखनाठोरी मुख्य मार्ग पर स्थित सुभद्रा (सहोदरा) मंदिर पर स्थित ‘शक्तिपीठ’ में प्रत्येक वर्ष चैत्र माह में रामनवमी के अवसर पर यह धार्मिक मेला आयोजित किया जाता है।
बरौनी जंक्शन से लगभग 8 किमी. दूर दक्षिण-पूर्व में राजेन्द्र पुल के समीप प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में सूर्य के उत्तरायण होने पर धार्मिक मेला आयोजित किया जाता है।
बांका जिले के मुख्यालय से 18 किमी. दूर बौंसी नामक स्थान पर स्थित मंदार पहाड़ी पर प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर 15 दिन का मेला लगता है। इसे बौसी मेला भी कहते हैं। माना जाता है कि दैवासुर संग्राम के समय देवासुरों के द्वारा होने वाले सागर मंथन के समय इसी मंदार पर्वत को मंथन दंड बनाया गया था। मंदार पर्वत से ही देव दानवों ने रल प्राप्त किए थे।
बिहार के लोकनृत्य – Bihar Folk Dance
नवादा जिले के सीतामढ़ी में अग्रहायण पूर्णिमा के अवसर पर बहुत बड़ा ग्रामीण मेला लगता है। मान्यता है कि सीता वनवास के समय लव-कुश का वहां जन्म हुआ था, जिसके कारण महिलाएं वहां के गुफानुमा मंदिर में संतान प्राप्ति के लिए विदेहनदिनी से मन्नत मांगती हैं और संतान प्राप्ति के बाद मंदिर के पास एक चट्टान पर बने कठौतनुमा गड्ढे में वे ‘गड़तर’ (कपड़े का एक टुकड़ा) चढ़ाती है। दंत कथा है कि सीतामढ़ी के पास वारत नामक गांव के टाल में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। यह गांव और टाल तिलैया यानी तमसा नदी के तट पर है।
सहसराम से 6 कि.मी. दक्षिण में कैमूर पर्वत श्रृंखला पर झांझरकुंड और धुआं कुंड के बीच में लगभग एक दर्जन छोटे-बड़े झरने हैं। इसी स्थान पर सहसराम सिख (अंगरेहरी) समुदाय के लोग इस महोत्सव का आयोजन करते हैं। इसका आयोजन बरसात के मौसम में विशेषकर शनिवार और रविवार (दो दिन) को किया जाता है। इसमें भाग लेने के लिए औरंगाबाद, आरा, पटना और कोलकाता तक से लोग आते हैं।
पटना में प्रत्येक वर्ष नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में आयोजित इस पुस्तक मेले में देश भर के प्रमुख प्रकाशक अपनी पुस्तकों का प्रदर्शन करते हैं।
मकर संक्रांति के दिन मंदार पर्वत की तलहटी में स्थित तालाब का अत्यंत धार्मिक महत्त्व है। यहां लोग मकर संक्रांति के दिन स्नान करते हैं और भगवान् मधुसूदन की पूजा-अर्चना करते हैं।
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