Fairs of Uttarakhand – उत्तराखंड के प्रमुख मेले निम्न प्रकार हैं:
कोटद्वार में स्थित यह मंदिर बजरंगबली का है। 1-7 जनवरी के मध्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
वीर शिरोमणि माधो सिंह भण्डारी के नाम पर इस मेले का आयोजन उनके जन्मस्थल मलेथा में 4-8 जनवरी के मध्य किया जात है।
शहीद नगेंद्र सकलानी के नाम पर इस मेले का आयोजन 11-14 जनवरी को प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।
यह पारम्परिक मेला दो समूहों के बीच गेंद खेलने की परंपरा पर आधारित है। थल नदी यमकेशवर तथा डांडामंडी द्वारीखाल में 14-16 जनवरी को आयोजित होता है।
14-27 जनवरी के मध्य इस मेले का आयोजन उत्तरकाशी में पौराणिक लोकगीतों तथा लोकनृत्यों के साथ बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
बसंत ऋतु के आगमन पर इस मेले का आयोजन टिहरी तथा उतरकशी के जनपदों में 11-17 फरवरी के मध्य मनाया किया जाता है।
ऋषि कणव की तपस्थली होने के कारण 11-12 फरवरी को इस मेले का आयोजन कोटद्वार के निकटतम पौड़ी गढ़वाल में किया जाता है। यह आश्रम पौड़ी में स्थित है।
शिवरात्रि के अवसर पर पर्यटन की दृष्टि से इस मेले का भव्य आयोजन 6 मार्च को पौड़ी में किया जाता है।
देहारादून में स्थित गुरु राय दरबार साहिब में इस मेले का आयोजन माह मार्च में आयोजित किया जाता है।
रुड़की में इस मेले का आयोजन पिरान कलियर में साबिर साहब की प्रसिद्ध दरगाह है। इस स्थल पर लाखों की संख्या में मुस्लिम धर्म के अनुयायियों के साथ विभिन्न धर्मों के लोग भी अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए दुआ करने आता हैं। यह मेला मार्च व अप्रैल के मध्य होता है।
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टिहरी गढ़वाल का यह सपूत प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुआ था। यह वीर सेनानी विक्टोरिया क्रांस विजेता की याद में 8 अप्रैल को इस मेले का आयोजन किया जाता है।
टिहरी गढ़वाल के अंतर्गत यह स्थल धार्मिक व पौराणिक सिद्धपीठ माँ सुरकंडा के नाम से 12-13 अप्रैल को आयोजित होता है।
चकराता के अंतर्गत जौनसार बावर के जनजातीय क्षेत्र में परंपरागत मेले का आयोजन 12-18 अप्रैल के मध्य आयोजित होता है।
माँ कुंजपुरी से संबन्धित पर्यटन विकास मेले का आयोजन 12-13 अप्रैल को कुंजापुरी में आयोजित किया जाता है।
गौतम ऋषि की तपस्थली गौतम कुण्ड चंद्रबनी, देहारादून तथा महर्षि अगस्त्य की तपोभूमि अगस्त्मुनी में भी इस मेले का आयोजन 14 अप्रैल को आयोजित किया जाता है।
उत्तरकाशी में कंडक देवता के नाम से आयोजित इस मेले का आयोजन 16 अप्रैल को किया जाता है।
रुद्रप्रयाग में इस मेले का आयोजन 18-19 व 20 अप्रैल के मध्य किया जाता है।
उत्तराखंड के वन्य जीव अभ्यारण्य – Wildlife Sanctuary of Uttarakhand
वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की याद में इस मेले का आयोजन पौड़ी गढ़वाल में 23 अप्रैल को क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
टिहरी में इस मेले का पाँच दिवसीय आयोजन गुरु मणिकनाथ जी की जात यात्रा का 1-5 मई के मध्य भव्य आयोजन किया जाता है।
2-3 मई को इस मेले का आयोजन शहीद केशरी चन्द्र के बलिदान दिवस के रूप में चकराता में आयोजित किया जाता है।
11-15 मई के मध्य आयोजित इस मेले का आयोजन होता है, जिसमें कृषि व जिला उद्योग से संबन्धित कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
गौचर में इस मेले का आयोजन खादी एवं ग्रामोद्योग द्वारा 15-25 मई तक किया जाता है।
जौनपुर (टिहरी) में लोक संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से आयोजित इस मेले को 21-25 मई के मध्य आयोजित किया जाता है।
जौनसार बावर के परंपरागत मेलों मे से एक है। 2-4 जून के मध्य इस मेले का आयोजन किया जाता है।
शहीद भवानी दत्त जोशी (मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित) की याद में इस मेले का आयोजन 6-8 जून को थराली (चमोली) में आयोजित किया जाता है।
उत्तराखंड के राष्ट्रीय उद्यान – National Parks of Uttarakhand
2 से 24 जून के मध्य बद्रि केदार उत्सव का आयोजन हरिद्वार, अगस्त्यमुनी व बद्रीनाथ में आयोजित किया जाता है।
उत्तरकाशी में आयोजित इस मेले का आयोजन 27-28/ जुलाई को उत्तरकाशी के खरसाली नामक स्थल पर आयोजित किया जाता है।
असेड़-सिमली व नारायंबगड़ में इस आयोजन को धार्मिक आस्था के प्रतीक के तौर पर 12-15 अगस्त को किया जाता है।
चकराता-देहरादून में महासू देवता के जागड़ा पर्व को 25-30 अगस्त को जौनसार बावर में धूमधाम से मनाया जाता है।
किमोली – कपीरी में आयोजित इस सांस्कृतिक-पर्यटन मेले का आयोजन 2-4 सितम्बर माह में आयोजित किया जाता है।
हिमालय का महाकुंभ राज जात यात्रा जो प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल में आयोजित होती है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष 2-5 सितम्बर को रूपकुंड महोत्सव आयोजित किया जाता है।
उत्तरकाशी में आयोजित इस मेले का आयोजन 5-10 सितम्बर के मध्य आयोजित होता है।
चमोली में इस मेले का आयोजन 18-25 सितम्बर को हस्तनिर्मित उत्पादों की बिक्री व व्यापारिक दृष्टि से आयोजित किया जाता है।
लैन्सडाउन-पौड़ी में इस उत्सव का आयोजन 27 सितम्बर को आयोजित होता है।
उत्तरकाशी मेला 23 सितम्बर को एक सप्ताह तक धार्मिक दृष्टि से आयोजित किया जाता है।
कालसी के अंतर्गत लखवाड़ में आयोजित इस मेले का आयोजन 21-22 अक्टूबर को किया जाता है।
श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित इस मेले का आयोजन 1-10 नवम्बर तक किया जाता है।
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पर्यटन विभाग द्वारा 10-15 नवम्बर तक इस मेले का आयोजन गढ़वाल की समस्त लोक संस्कृति को प्रदर्शित किया जाता है।
14-20 नवम्बर तक इस मेले का आयोजन गौचर में व्यापारिक, सामाजिक व सांस्कृतिक के लिए विख्यात है।
नैनबाग (टिहरी गढ़वाल) में आयोजित इस मेले का आयोजन 17-20 नवम्बर में आयोजित होता है।
26 नवम्बर को टिहरी में इस मेले का आयोजन किया जाता।
उखीमठ (रुद्रप्रयाग) में इस मेले का आयोजन 20-25 नवम्बर में आयोजित होता है।
चमोली मे आयोजित इस मेले का आयोजन 15-25 दिसम्बर को लोकगीतों व लोकनृत्य के साथ आयोजित किया जाता है।
जौनसार बावर महोत्सव 29-30 दिसम्बर को लोकसंस्कृति के प्रचार-प्रसार पर आधारित है।
वागेश्वर में एतिहासिक, धार्मिक व पारंपरिक दृष्टि से आयोजित इस मेले का आयोजन जनवरी मास में मकर सक्रांति के दिन आयोजित होता है।
अल्मोड़ा में माह फरवरी मे आयोजन तीन दिवसीय समारोह माह फरवरी में आयोजित किया जाता है।
गंगोलीहाट-पिथौरागढ़ में शिव रात्री को इस मेले का आयोजन किया जाता है।
चंपावत में इस धार्मिक मेला का आयोजन शक्तिपीठ में होली के बाद आयोजित किया जाता है।
उत्तराखंड के वन – Forests of Uttarakhand
काशीपुर में इस मेले का आयोजन 10-11 अप्रैल को आयोजित किया जाता है।
पिथौरागढ़ में इस मेले का आयोजन थल नामक स्थान पर एतिहासिक तौर पर 12-15 अप्रैल को आयोजित किया जाता है।
अल्मोड़ा का प्रसिद्ध एतिहासिक मेला जिसका आयोजन 13-16 अप्रैल को आयोजित किया जाता है।
इस मेले का आयोजन सांस्कृतिक दलों द्वारा प्रस्तुतियाँ दी जाती है। 5-25 मई तक इस मेले का आयोजन बढ़-चढ़कर किया जाता है।
पिथौरागढ़ में इस मेले का आयोजन 1-5 जून के मध्य आयोजित होता है।
अल्मोड़ा जिले में इस मेले का आयोजन 18-22 जुलाई के मध्य आयोजित किया जाता है।
चंपावत में आयोजित इस मेले का आयोजन 20-25 जुलाई को आयोजित किया जाता है।
25-30 जुलाई को इस मेले का आयोजन किया जाता है।
यह महोत्सव वनरावत (राजि) जनजाति द्वारा आयोजित जुलाई व अगस्त माह में किया जाता है।
उत्तराखंड की प्रसिद्ध शक्तिपीठ माँ बाराही धाम, देवीधुरा चंपावत में आयोजित होता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण रींगाल की छनतोलीको ढाल के रूप में प्रयोग करके एक दूसरे पर पत्थर फेंककर पाषाण युद्ध कराते हैं। कहा जाता है कि इस युद्ध में बराबर रक्त बह जाने पर ही देवी प्रसन्न होती है।
उत्तराखंड के प्रमुख ताल/झीलें – Lakes of Uttarakhand
1857 में क्रांति की भूमि रही साल्ट में प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को शहीद दिवस मनाया जाता है।
पिथौरागढ़ में इस मेले का आयोजन 16 सितम्बर को आयोजित होता है।
इस मेले का आयोजन चंपावत में इस मेले का आयोजन 16-18 सितम्बर को आयोजित किया जाता है।
अल्मोड़ा, नैनीताल व वागेश्वर में आयोजित इस मेले का आयोजन 18-25 सितम्बर को पूरी धूमधाम से आयोजित किया जाता है।
राज्य की विलुप्त होती संस्कृति व उधमिता के प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से 15-20 अक्तूबर को इस मेले का आयोजन सतौली-नैनीताल में किया जाता है।
अल्मोड़ा में इस मेले का आयोजन 4-10 नवम्बर तक बदरी-केदार उत्सव के तौर पर आयोजित किया जाता है।
चंपावत में इस मेले का आयोजन दिवाली के अवसर पर 9-10 नवम्बर के मध्य आयोजित किया जाता है।
रुद्रपुर में इस मेले का आयोजन नवम्बर को कुमाऊँ के चंद राजाओं के समय में एतिहासिक एवं पौराणिक महत्व की दृष्टि से आयोजित किया जाता है।
पिथौरागढ़ में 30 नवम्बर से 4 दिसम्बर तक इस मेले का आयोजन किया जाता है।
रुद्रपुर में इस मेले का आयोजन शहीद उधमसिंह जी की स्मृति में 24-27 दिसम्बर को आयोजित होता है।
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