एक भारत श्रेष्ठ भारत (ek bharat shreshtha bharat) का उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक एकता की भावना को बढ़ावा देना है। भारत विविधता से भरा एक ऐसा देश जो शुरू से ही वसुधैव कुटुंबकम की प्रथा को निभाता आया है।
भारत के इतिहास को पढ़ने के बाद इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है की मुगलों और ब्रिटिश के अनेकों अत्याचार के बाद भी देश में आज दोनों ही धर्मों को पूरी आज़ादी है। इन सबके बाद भी ऐसा देखने को मिला है की सभी धर्मों को सामान अधिकार देने के बाद भारत स्वयं अपनी संस्कृति का वजूद खोता जा रहा है,
हालांकि आज पश्चिम देशों में भारतीय संस्कृति का अपना ही बोल बाला है। देश का निर्माण विविध भाषाओँ, संस्कृति, धर्मों, अहिंसा एवं न्याय के सिद्धांतों पर हुआ है। सम्पूर्ण देश सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास तथा स्वतंत्रता संग्राम द्वारा एकता के सूत्र में बाँध कर हुआ है।
एक समय था जब भारत में तकनीक का अभाव था, भारत में संस्कृति अपने चरम पर थी आज तकनीकी विकास और समय की कमी ने संस्कृति को बहुत पीही छोड़ दिया है। आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जो गतिशील है, परस्पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, समाज में सभी को सामान अधिकार प्राप्त हैं, सभी को एक ही दृष्टि से देखा जाता है।
साथ ही साथ देश में भेद भाव, जाट पात जैसी कुरीतियां भी समाप्त हो गयी हैं ऐसे में संस्कृति का लुप्त हो जाना ठीक बात नहीं।प्राचीन काल से ही भारत में नागरिकों की आपसी समझ और विश्वास भारत की ताकत की नींव रही हैऔर भारत के सभी नागरिकों को सांस्कृतिक रूप से एकीकृत महसूस करना चाहिए।
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एक भारत श्रेष्ठ भारत एक गतिविधि के रूप में
31 अक्टूबर, 2015 को आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस (सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती) के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा यह घोषणा की गयी की देश में “एक भारत श्रेष्ठ भारत” (Ek Bharat Shreshtha Bharat) के नाम से एक गतिविधि का सञ्चालन किया जायेगा। जिसके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के संप्रदायों के बीच एक निरंतर और संरचित सांस्कृतिक संबंध बनाये जा सके।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने यह सम्बोधित किया कि सांस्कृतिक विविधता हमारे देश की विशेषता है जिसे विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क और पारस्परिकता के माध्यम से मनाया जाना चाहिए ताकि देश भर में समझ की एक सामान्य भावना प्रवाहित हो। इस योजना के अंतर्गत देश में सभी राज्यों को आपस में एक वर्ष के लिए जोड़ेदारी में रहना होगा।
इस दौरान वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों,भाषा, त्योहारों, पर्यटन, साहित्य, भोजन आदि क्षेत्रों में एक दूसरे के साथ जुड़ेंगे। सभी भागीदार राज्य/ केन्द्र शासित प्रदेश आपस में एक दूसरे को सांस्कृतिक रूप से परस्पर सहयोग करेंगे साथ ही साथ एक दूसरे की संस्कृति को ग्रहण भी करेंगे।
प्रधानमंत्री द्वारा घोषित एक भारत श्रेष्ठ भारत (ek bharat shreshtha bharat) गतिविधि के अनुसार भारत में सभी राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों को एक पूरे वर्ष के लिए जोड़ो में निर्धारित किया गया हैं। साथ में जोड़े गए राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश एक दूसरे के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करेंगे जो विभिन्न गतिविधियों को पूरे वर्ष भर करेंगे जिसमें सांस्कृतिक गतिविधियां महत्वपूर्ण है।
प्रत्येक जोड़े के लिए एक गतिविधि कैलेंडर राज्य सरकार आपसी परामर्श के माध्यम से तैयार किया जाएगा, जिससे आपसी जुड़ाव की एक साल की लंबी प्रक्रिया का मार्ग निर्धारित होगा। सांस्कृतिक स्तर पर राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के प्रत्येक जोड़े की आबादी के विभिन्न क्षेत्रों के बीच इस तरह की बातचीत सांस्कृतिक एकता को बढ़ाएगी, आपसी संबंध बनाएगी जिससे राष्ट्र एकता की भावना में समृधि हासिल होगी।
Official Website: https://ekbharat.gov.in/Home
एक भारत श्रेष्ठ भारत का उद्देश्य
सरकार द्वारा संचालित इस एक भारत श्रेष्ठ भारत अभियान का प्रमुख उद्देश्य सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के बीच सांस्कृतिक एवं भावनात्मक संपर्कों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देना है। यह राष्ट्र एकता का एक महत्वपूर्ण कारक बनेगा। यह अभियान देश की विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं को उजागर करने में मदद करेगा, साथ ही साथ देश की लुप्त होती संस्कृति भी निखारी जा सकेगी।
जैसा हम देश सकते हैं आज के समय में तकनीकी उपयोग के कारण जीवन को सरल हो गया है, परन्तु समाज में एक दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा ने मानव जीवन को इतना व्यस्त कर दिया है, की हमें स्वयं अपनी संस्कृति को अपनाने में समय लग रहा है। पाश्चात्य संस्कृति में हम जीवन को बहुत आसानी से और कम समय में ढाल लेते हैं यही कारण है की आज स्वयं हमारे ही देश में हमरी संस्कृति लुप्त होती जा रही हैं।
एक भारत श्रेष्ठ भारत की आवश्यकता क्यों पड़ी?
देश की संस्कृति इस बात को पुष्ट करती है कि यहाँ के महान शासकों ने सदा ही सवधर्म समभाव की नीति को अपनाया है। देश के संविधान में हर धर्म व सम्प्रदाय को समान आदर दिया गया है। प्राचीन काल में जितने भी देश के महान शासक हुए सभी ने भटीय संस्कृति का अनुसरण किया है। भारतवर्ष की इस आदर्श परम्परा का पालन राजतन्त्र ने भी किया था और आज लोकतन्त्र भी कर रहा है।
आज पूरा देश जिस सांस्कृतिक दौर से गुजर रहा है उसमें संस्कृति की कोई चाप नहीं दिखाई देती। देश पाश्चात्य संस्कृति की ओर झुकता चला जा रहा है। दिन-प्रतिदिन सांस्कृतिक मूल्य एवं आदर्श नष्ट ही होते जा रहे हैं। देश भर में संस्कृति के नाम पर हज़ारों संस्थाओं का गठन हुआ, परन्तु अपनी ही संस्कृति को बचने के लिए संस्थाओं के गठन की आवश्यकता क्यों ?
संस्कृति एक ऐसा विशिष्ट एह्साह है, जिसमें मानव के साथ साथ ईश्वर को भी शरण मिलती है।हमारी संस्कृति का सात्विक प्राचीन रूप नष्ट होता जा रहा है और एक अलग ही पश्चिमी सभ्यता का रूप हम अपनी संस्कृति में घोलते जा रहे हैं।
भारतीय संस्कृति के प्रमुख माप दंड
अनाज
जैसा की हम सब जानते हैं भारत देश प्राचीनकाल से ही कृषि प्रधान देश रहा है। देश में कृषि के नाम पर कुछ समय पहले तक देश का क बहुत बड़ा हिस्सा था, लेकिन अब वह ज़मीन कृषि की न होकर औद्योकिन उपयोग की जगह है।देश में विदेशी पौधों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और भारतीय पेड़-पौधे लुप्त होते जा रहे हैं। अनाज में भिन्न भिन्न प्रकार के प्रयोग कर मूल अनाज को लगभग लुप्त ही कर दिया गया है।
परंपरागत खेती को छोड़कर आधुनिक खेती को अपनाया जा रहा है जिसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। देश में किसानों की दयनीय दशा से सभी भली भाँती परिचित हैं। इस बात को कृषि वैज्ञानिक बहुत अच्छे से जानते हैं कि किसी भूमि को उपजाऊ बनने में कितना वक्त लगता है लेकिन उस पर बहुमंजिला इमारत बनाने में कोई वक़्त नहीं लगता।
भारतीय नृत्य एवं संगीत
देश के सांस्कृतिक नृत्य एवं संगीत का बोलबाला को सम्पूर्ण विश्व में है। प्राचीन वेदों एवं शर्म ग्रंथों में अनेकों प्रकार के संगीत एवं नृत्य कलाओं का समावेश मिलता है। हमारी संस्कृति के अनुसार को संगीत एवं प्रकाश से ही इस संसार की उत्पत्ति हुयी है। संगीत को मॉक्श प्राप्त करने का जरिया भी बताया गया है।
संगीत को दो श्रेणी में विभाजित किया गया है , शास्त्रीय संगीत एवं लोक संगीत।प्राचीन भारतीय नृत्य शैली से ही दुनियाभर की नृत्य शैलियां विकसित हुई हैं।भारतीय नृत्य को ध्यान का एक माध्यम माना गया है साथ ही साथ योग को भी इससे जोड़ा गया है।
शिव – पार्वती, कृष्ण राधा के नृत्य का वर्णन तो हमें पुराणों में भी मिलता है। भारतीय इतिहास के अनुसार कई तरह की नृत्य शैलियां भारत में विकसित हुईं जैसे भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, बीहू, ओडिशी, कत्थक, कथकली, यक्षगान, कृष्णअट्टम, मणिपुरी, मोहिनी अट्टम आदि।
इन सबके अतिरिक्त भी भारत में कई लोक संस्कृति और आदिवासियों के क्षेत्र में अद्भुत नृत्य देखने को मिलता है जिसमें से राजस्थान के मशहूर कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को की नृत्य सूची में शामिल किया गया है।
सांस्कृतिक कला
कलाओं का भारतीय संस्कृति में एक अद्भुद योगदान है, कढ़ाई, मेहंदी कला,वास्तुकला, मूर्तिकला, स्तकारी, तरकशी कला, चित्रकला, काश्तकारी, बुनाई, मिट्टी के बर्तन बनाना, मीनाकारी, धातुशिल्प, फड़ चित्रांकन, बांस की टोकरियां, चटाई आदि बनाना, रंगाई, द मथैथरणा, मांडना, भित्तिचित्रण, पॉटरी, काष्ठकला आदि अनेक कलाओं का जन्म और विकास भारत में हुआ।
नगर आदि भारतीय स्थापत्य और वास्तुकला के अनुसार बनाए जाएं तो उनमें सुंदरता और शान्ति की एक मोहक छवि देखने को मिलती है।अजंता-एलोरा के मंदिर हो या दक्षिण भारत के मंदिर हों, उन्हें देखकर पलकें झपकाने का मन नहीं करता। आज दुनियाभर में धर्म के प्रार्थना स्थल भारतीय शैली में ही बनते हैं। मिस्र के पिरामिडों के बाद हिन्दू मंदिरों को देखना सबसे अद्भुत माना जाता रहा है।
भाषा
देश में जितने राज्य उतनी भाषाएं, और उससे भी अधिक बोलियां। यह बहुत आसानी से देखा जा सकता है की, वर्तमान समय में यह प्रचलन बढ़ने लगा है – स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, शॉपिंग मॉल या पार्टी आदि में अंग्रेजी बोली जाये और यही चलता रहा तो आने वाले समय में हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगाली आदि भाषाएं घरों में सिमटकर रह जाएंगी।
शिक्षा की अगर बात की जाये तो स्कूल और कॉलेज में अब हिन्दी को बस प्राथमिक स्तर पर ही पढ़ाया जाता है। देश में अधिकतर स्कूल इंग्लिश मीडियम हैं। अब ‘पाठशाला’ या ‘विद्यालय’ शब्द का प्रचलन नहीं रहा।
वेश भूषा
देश की परंपरागत पोशाक पहनने का प्रचलन सिर्फ शादी-विवाह तक ही सीमित रह गया है। त्योहारों में भी अब कम ही देखने को मिलता है कि किसी ने परंपरागत पहनावा पहना है, हालांकि पिछले कुछ समय से यह देखने को मिला है की नगरों में परम्परागत पहनावे को फिर एक नयी पहचान मिली है। धोती-कुर्ता, पगड़ी तो अब कोई नहीं पहनता, कुछ लोगों को कुरता पायजामा पहने देखा जा सकता है।
खाड़ी का चलन को गांधीकाल के बाद ही समाप्त हो गया था।सूती की विशेषता आज भी वो ही है जो प्राचीन काल में थी। विशेष खड़ाऊ तो अब विलुत हो ही चुकी है। महिलाओं के पहनावे की बात की जाए तो उसमें साड़ी, सलवार कुर्ती, चोली और ब्लाउज, घाघरा, लहंगा, गरारा, ओढ़नी आदि हैं। महिलाओं का पहनावा बहुत तेजी से बदलता है।
धर्म ग्रंथ
संस्कृति के अनुसार यदि हम धार्मिक ग्रंथों को छोड़ भी दें तो ऐसी बहुत-सी किताबें या ग्रंथ हैं, जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अंग हैं। भारत में अध्यात्म और रहस्यमयी ज्ञान की खोज प्राचीन काल से ही हो रही है , जिसका आरम्भ ऋग्वेद काल माना जाता है, जिसके चलते यहां ऐसे कवी,संत,दार्शनिक और लेखक हुए हैं जिनकी रचनाओं ने सम्पूर्ण संसार को एक अचम्भे में डाल दिया।
उन्होंने जो भी लिखा वो न सिर्फ अमर हुआ अपितु सत्य भी हुआ। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण लिखी गयी और वेद व्यास द्वारा महाभारत तो होने से पहले ही लिख ली गयी थी।
हमारी संस्कृतक किताबों को दूसरी और 12वीं शताब्दी के बीच अरब, यूनान, रोम और चीन ले जाया गया, दूसरी भाषाओँ में रूपांतरण किया गया और फिर उसे दुनिया के सामने नए स्वरुप में प्रस्तुत कर दिया गया।
संस्कृत महाकाव्य में नैषधीय चरित, किरातार्जुनीयम, हर्षचरित, महाभारत, रघुवंश, बुद्धचरित, कुमारसम्भवम्, शिशुपाल वध, रामायण, पद्मगुप्त, भट्टिकाव्य। अपभ्रंश महाकाव्य में नागकुमार चरित, यशोधरा चरित, रावण वही, लीलाबई,उसाणिरुद्म, कंस वही, पद्मचरित, रिट्थणेमिचरिउ,सिरिचिन्हकव्वं।
हिन्दी महाकाव्य में रामचरित मानस, कृष्णायन, कामायनी, उर्वशी, रामचंद्रिका, पृथ्वीराज रासो, पद्मावत, साकेत, प्रियप्रवास, उर्मिला, तारक वध और तमिल महाकाव्य में वलयपति, तोल्काप्पियम,जीवक चिन्तामणि, मणिमेखलै शिलप्पादिकारम, कुण्डलकेशी, आदि महान ग्रंथ लिखे गए।
इसके अलावा हितोपदेश, कथासरित्सागर, पंचतंत्र, जातक कथाएं, अभिज्ञानशाकुन्तलम्, सिंहासन बत्तीसी, तेनालीराम की कहानियां, शुकसप्तति,नंदी नाड़ी ज्योतिष विज्ञान, परमाणु शास्त्र, शुल्ब सूत्र, श्रौतसूत्र, कामसूत्र, संस्कृत सुभाषित, नाट्य शास्त्र, पंच पक्षी विज्ञान, अंगूठा विज्ञान, हस्तरेखा ज्योतिष, प्रश्न कुंडली विज्ञान, सिद्धांतशिरोमणि, अष्टाध्यायी, त्रिपिटक, अगस्त्य संहिता, जिन सूत्र, समयसार, लीलावती, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, च्यवन संहिता, शरीर शास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरण शास्त्र, औषधि शास्त्र, रस रत्नाकर, रसेन्द्र मंगल, कक्षपुटतंत्र, आरोग्य मंजरी, योग सार, योगाष्टक, करण कुतूहल, चाणक्य का नीति एवं अर्थशास्त्र आदि किताबें संस्कृति को चार चाँद लगाती हैं।
8वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य लिखे गए ग्रंथ इनमें से प्रमुख हैं- गोविंद भगवत्पाद की रस हृदयतंत्र एवं रसार्णव, वाग्भट्ट की अष्टांग हृदय, सोमदेव की रसार्णवकल्प एवं रसेंद्र चूणामणि तथा गोपालभट्ट की रसेंद्रसार संग्रह आदि की भी जानकारी होना चाहिए। भारत की प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पुस्तकों में- रसप्रकाश सुधाकर, रसेंद्रकल्पद्रुम, रसप्रदीप, रसकल्प, रसरत्नसमुच्चय, रसजलनिधि तथा रसमंगल आदि हैं।
अश्वघोष, बाणभट्ट, भारवि, माघ, श्रीहर्ष, शूद्रकभास, भवभूति और विशाखदत्त की पुस्तक और प्रसिद्ध तिलिस्म उपन्यास चन्द्रकांता की चर्चा होना चाहिए। विस्तृत पुस्तकों में उपनिषद की कहानियां, विमान शास्त्र, लाल किताब, अष्टाध्यायी, योगसूत्र, कामशास्त्र या सूत्र, विज्ञान भैरव तंत्र, सामुद्रिक शास्त्र, ‘रस रत्नाकर’ और ‘रसेन्द्र मंगल’, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, चाणक्य नीति, विदुर नीति, वैशाली की नगरवधू, वयंरक्षाम्, युगांधर, मृत्युंजय आदि किताबें घर में होना चाहिए। बच्चों की पुस्तकों में पंचतंत्र, तेनालीराम की कहानियां, हितोपदेश, जातक कथाएं, बेताल या बेताल पच्चीसी, कथासरित्सागर, सिंहासन बत्तीसी, शुकसप्तति और बाल कहानी संग्रह को घर में रखना चाहिए। इन्हीं पुस्तकों के माध्यम से संस्कृति का पूरा ज्ञान मिल पायेगा।
सरकार द्वारा संस्कृति को बचाये जाने के लिए किया जाने वाला प्रयास सराहनीय अवश्य है परन्तु देश की जनता के लिए एक आइना भी जिससे हमें एहसास हो सके की हम कितनी अनमोल धरोहर को खो देने के रास्ते पर हैं ।
इसलिए सरकार द्वारा किये गए इस एक भारत श्रेष्ठ भारत (ek bharat shreshtha bharat) प्रयास में हमारा यह कर्तव्य बनता की हम भी अपना पूरा प्रयास करें अन्यथा संसार से एक ऐसी संस्कृति विलुप्त हो जाएगी जिसने सभी धर्मों को समान सम्मान दिया, सभी बोलियों एवं भाषाओँ को एक सा अधिकार दिया।
पुरुषों के सामान ही महिलाओं को भी अधिकार दिया गया, साथ ही साथ हर मानव से लेकर जीव जंतुओं को भी उनके हिस्से का सम्मान दिया। रामायण में वानर सेना इस एक अद्भुद उदाहरन है। जिस संस्कृति को आज पूरा देश नमन करता है उसे बचाये रखना हमारा ही कर्तव्य है।
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