अर्जुन और उलूपी का मिलन और उनका पुत्र इरावन

यह तो हम सभी जानते हैं की पाँचों पांडवों की पत्नी सिर्फ द्रौपदी ही नहीं थी, अपितु उन ससभी की और भी बहुत की रानियां थी, जिनमें से एक अभिमन्यु माता सुभद्रा से हम भली भाँती परिचित है, आइये आज बात करते हैं इरावन एवं उनकी माता उलूपी की:

अर्जुन की चौथी पत्नी का नाम जलपरी नागकन्या उलूपी था। उन्हीं ने अर्जुन को जल में हानि रहित रहने का वरदान दिया था। महाभारत युद्ध में अपने गुरु भीष्म पितामह को मारने के बाद ब्रह्मा-पुत्र से शापित होने के बाद उलूपी ने ही अर्जुन को शापमुक्त भी किया था|अपने सौतेले पुत्र बभ्रुवाहन के हाथों मारे जाने पर उलूपी ने ही अर्जुन को पुनर्जीवित भी कर दिया था।अर्जुन से उलूपी ने इरावन नामक पुत्र को जन्म दिया।

अर्जुन और उलूपी के मिलन की कहानी:

कहा जाता है कि द्रौपदी, जो पांचों पांडवों की पत्नी थीं, एक-एक साल के समय-अंतराल के लिए हर पांडव के साथ रहती थी। उस समय किसी दूसरे पांडव को द्रौपदी के आवास में घुसने की अनुमति नहीं थी। इस नियम को तोड़ने वाले को एक साल तक देश से बाहर रहने का दंड था।अर्जुन और द्रौपदी की 1 वर्ष की अवधि अभी-अभी समाप्त हुई थी और द्रौपदी-युधिष्ठिर के साथ का एक वर्ष का समय शुरू हुआ था। अर्जुन भूलवश द्रौपदी के आवास पर ही अपना तीर-धनुष भूल आए। पर किसी दुष्ट से ब्राह्मण के पशुओं की रक्षा के लिए लिए उन्हें उसी समय इसकी जरूरत पड़ी अत: क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए तीर-धनुष लेने के लिए नियम तोड़ते हुए वह द्रौपदी के निवास में घुस गए। बाद में इसके दंडस्वरूप वे 1 साल के लिए राज्य से बाहर चले गए। इसी एक साल के वनवास के दौरान अर्जुन की मुलाकात उलूपी से हुई और वह अर्जुन पर मोहित हो गईं। ऐसे में वह उन्हें खींचकर अपने नागलोक में ले गई और उसके अनुरोध करने पर अर्जुन को उससे विवाह करना पड़ा। सूर्योदय होने पर उलूपी के साथ अर्जुन नागलोक से ऊपर को उठे और फिर से हरिद्वार  में गंगा के तट पर आ पहुंचे। उलूपी उन्‍हे वहां छोड़कर पुन: अपने घर को लौट गई। जाते समय उसने अर्जुन को यह वर दिया कि आप जल में सर्वत्र अजेय होंगे और सभी जलचर आपके वश में रहेंगे।

अर्जुन और नागकन्या उलूपी के मिलन से अर्जुन को एक वीरवार पुत्र मिला जिसका नाम इरावान रखा गया।इरावान सदा मातृकुल में रहा। वह नागलोक में ही माता उलूपी द्वारा पाल-पोसकर बड़ा किया गया और सब प्रकार से वहीं उसकी रक्षा की गयी थी। इरावान भी अपने पिता अर्जुन की भांति रूपवान, बलवान, गुणवान और सत्य पराक्रमी था।

अर्जुन पुत्र iraavan की महाभारत में भूमिका:

महाभारत के युद्ध के सातवें दिन अर्जुन और उलूपी के पुत्र इरावान का अवंती के राजकुमार विंद और अनुविंद से अत्यंत भयंकर युद्ध हुआ। इरावान ने दोनों भाइयों से एक साथ युद्ध करते हुए अपने पराक्रम से दोनों को पराजित कर दिया और फिर कौरव सेना का संहार आरंभ कर दिया।आठवें दिन जबशकुनि और कृतवर्मा ने पांडवों की सेना पर आक्रमण किया, तब अनेक सुंदर घोड़े और बहुत बड़ी सेना द्वारा सब ओर से घिरे हुए शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन के बलवान पुत्र इरावान ने हर्ष में भरकर रणभूमि में कौरवों की सेना पर आक्रमण कर प्रत्युत्तर दिया। तब शकुनि के छहों पुत्रों ने इरावान को चारों ओर घेर लिया। इरावान ने अकेले ही लंबे समय तक इन छहों से वीरतापूर्वक युद्ध कर उन सबका वध कर डाला। यह देख दुर्योधन भयभीत हो उठा और वह भागा हुआ राक्षस ऋष्यश्रृंग के पुत्र अलम्बुष के पास गया, जो पूर्वकाल में किए गए बकासुर वध के कारण भीमसेन का शत्रु बन बैठा था। ऐसे में अल्बुष ने iravan से युद्ध किया। इरावान और अलम्बुष का अनेक प्रकार से माया-युद्ध हुआ। उस दुरात्मा राक्षस की माया देखकर क्रोध में भरे हुए इरावान ने भी माया का प्रयोग आरंभ किया।अलम्बुष राक्षस का जो जो अंग कटता, वह पुनः नए सिरे से उत्पन्न हो जाता था। युद्धस्थल में अपने शत्रु को प्रबल हुआ देख उस राक्षस ने अत्यंत भयंकर एवं विशाल रूप धारण करके अर्जुन के वीर एवं यशस्वी पुत्र इरावान को बंदी बनाने का प्रयत्न आरंभ किया।

उसी समय नागकन्या पुत्र इरावान के मातृकुल के नागों का समूह उसकी सहायता के लिए वहां आ पहुंचा। रणभूमि में बहुतेरे नागों से घिरे हुए इरावान ने विशाल शरीर वाले शेषनाग की भांति बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया। तब उसने बहुत से नागों द्वारा राक्षस को आच्छादित कर दिया। तब उस राक्षसराज अलम्बुष ने कुछ सोच-विचार कर गरूड़ का रूप धारण कर लिया और समस्त नागों को भक्षण करना आरंभ किया। जब उस राक्षस ने इरावान के मातृकुल के सब नागों को भक्षण कर लिया, तब मोहित हुए इरावान को तलवार से मार डाला। इरावान के कमल और चंद्रमा के समान कांतिमान तथा कुंडल एवं मुकुट से मंडित मस्तक को काटकर राक्षस ने धरती पर गिरा दिया।इरावान को युद्धभूमि में मारा गया देख भीमसेन का पुत्र राक्षस घटोत्कच बड़े जोर से सिंहनाद करने लगा। घटोत्कच और भीमसेन ने भयानक युद्ध किया और क्रुद्ध भीमसेन ने उसी दिन धृतराष्ट्र के नौ पुत्रों का वध कर इरावान की मृत्यु का प्रतिशोध ले लिया।

इस बात में कोई आश्चर्य नहीं की महाभारत में न सिर्फ पांडवों ने अभी पांचों पांडवों के पुत्रों ने भी विशेष भूमिका निभाई थी, जहाँ अभिमन्यु निहत्थे एवं अकेले ही चक्रव्यूह को भेद कर युधिष्ठिर की प्राण रक्षा में सफल रहा, वहीँ इरावन ने भी कई दिनों तक युद्ध कर जीत पांडवों के पक्ष में सुनिश्चित कर दी। इसी प्रकार घटोत्कच्छ ने भी कोयराव सेना में हाहाकार मचा दिया था। महाभारत के युद्ध में अनेकों योद्धा धर्म की रक्षा के लिए अल्पायु में ही शहीद हो गए थे। 

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