महाराजा अग्रसेन ने क्षत्रिय समाज में जन्म लिया लेकिन बाद में वैश्य धर्म को स्वीकार कर लिया था। ऐसा करने का कारण हम आपको इस आर्टिकल में बताएँगे। इसके अलावा अग्रसेन जयंती का इतिहास और अग्रसेन जी के जन्म, पुत्र और उनके द्वारा समाज में किये गए योगदान को विस्तार में जानेंगे।
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महाराजा अग्रसेन के बारे में (Maharaja Agrasen Biography in Hindi)
राजा वल्लभ सेन के सबसे बड़े पुत्र अग्रसेन थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण और कलयुग के शुरुआत के मध्य आश्विन शुक्ल प्रतिपदा (शारदीय नवरात्रि) के पहले दिन हुआ था। आपको यह पता ही होगा कि द्वापर युग के अंतिम चरण में राम राज्य हुआ करता था। राजा अग्रसेन ने प्रजा के हित में कईं कार्य किये जिस कारण उनका नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गया। महाराजा अग्रसेन की नगरी प्रतापनगर थी। बाद में इन्होंने अग्रोहा नामक नगरी बसाई।
महाराजा अग्रसेन का विवाह नागराज की बेटी माधवी से हुआ था। लेकिन विवाह होने के बावजूद उन्होंने दूसरा विवाह नागवंशी की पुत्री सुंदरावती से किया। दरअसल अग्रसेन जी का पहला विवाह स्वयंवर के जरिए हुआ था। राजा नागराज के यहाँ आयोजित इस स्वयंवर में दूर-दराज से राजा-महाराजाओं के साथ-साथ स्वयं स्वर्ग लोक से इन्द्र देवता भी आए थे, लेकिन राजकुमारी माधवी ने महाराजा अग्रसेन को अपने वर में चुना था।
राजा इन्द्र इसे अपना अपमान मान बैठे और क्रोधित हो उठे। अपनें क्रोध का प्रकोप प्रतापनगर के नगरवासियों को उठाना पड़ा, इन्द्र देव ने प्रतापनगर में बारिश की एक बूँद भी नहीं बरसाई। ऐसी ही मुसीबतें इन्द्रदेव कभी न कभी खड़ी कर ही देते थे, जिस कारण उन्होंने लक्ष्मी देवी की तपस्या की। अग्रसेन जी की तपस्या से प्रसन्न हो कर देवी लक्ष्मी ने दर्शन दिए और उन्हें बताया कि अगर वे कोलपुर के राजा महीरथ (नागवंशी) की पुत्री सुंदरावती से विवाह कर लेंगे तो उन्हें उनकी सभी शक्तियां प्राप्त जो जायेंगी, जिसके चलते इन्द्र देव उनसे आमना-सामना करने से पहले कई बार सोचना पड़ेगा। इसलिए महाराजा अग्रसेन जी ने सुंदरावती से दूसरा विवाह विवाह कर प्रतापनगर को संकट से बचाया।
नाम | महाराजा अग्रसेन |
जन्म | अश्विन शुक्ल प्रतिपदा |
राजकाल | 4250 BC से 637 AD |
पिता | महाराजा श्री वल्लभसेन जी |
माता | महारानी श्रीमती भगवती देवी जी |
पत्नी | महारानी माधवी, महारानी सुन्दरावती |
उत्तराधिकारी | महाराजा श्री विभुसेन जी |
महाराजा अग्रसेन ने वैश्य धर्म क्यों स्वीकार किया?
महाराजा अग्रसेन को अग्रवाल अर्थात वैश्य समाज का जनक कहा जाता है। महाराजा अग्रसेन को मनुष्यों से तो लगाव था ही, साथ ही उनको पशुओं से भी गहरा लगाव था, जिस कारण उन्होंने यज्ञों में पशुओं की आहुति को गलत ठहराया। यही कारण था कि उन्होंने अपना क्षत्रिय धर्म त्याग दिया और वैश्य धर्म की स्थापना की। इस प्रकार उनको अग्रवाल समाज का जन्मदाता माना जाता है।
अग्रसेन जयंती क्यों और कब मनाई जाती है?
महाराजा अग्रसेन के जन्मदिवस के अवसर पर अग्रसेन जयंती मनाई जाती है। महाराजा अग्रसेन का जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में व कलयुग के प्रारंभ में अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था, इसीलिए हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को अग्रसेन जयंती मनाई जाती है। आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नवरात्रि का प्रथम दिन भी होता है, इसलिए इस दिन को काफी शुभ माना जाता है।
अग्रसेन जयंती 2023 (Agrasen Jayanti 2023)
अग्रसेन जयंती 2023 तिथि: | सोमवार, 26 सितम्बर 2023 |
अग्रसेन जयंती कैसे मनाई जाती है?
अग्रसेन जयंती के पंद्रह दिन पहले से ही समारोह शुरू हो जाता है। चूंकि महाराजा अग्रसेन वैश्य समाज (अग्रवाल समाज) के संस्थापक थे, इसलिए अग्रवाल समाज के लोग इस जयंती को धूमधाम से मनाते हैं और इस दिन विधि-विधान से महाराजा अग्रसेन की पूजा करते हैं। कुछ जगहों पर इस दिन भव्य आयोजन भी किए जाते हैं और महारैली निकाली जाती हैं। विभिन्न प्रकार के नाट्य-नाटिका और प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है और पूरा समाज साथ मिलकर इस उत्सव का आनंद लेता है।
महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय सम्मान क्या है?
24 सितंबर 1976 में भारत सरकार द्वारा 25 पैसे का डाक टिकट महाराजा अग्रसेन के नाम पर जारी किया गया। सामाजिक सद्भाव एवं सामाजिक समरसता, श्रेष्ठतम उपलब्धियों व योगदान के लिए सम्मानित करने के उद्देश्य से महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय सम्मान स्थापित किया गया है। सम्मान के अंतर्गत पुरस्कार के रूप में 2.00 लाख की सम्मान निधि प्रशस्ति एवं सम्मान पटिका प्रदान की जाती है।
अग्रोहा धाम की स्थापना कैसे हुई?
समृद्धि की इच्छा लेकर अग्रसेन ने तपस्या में अपना मन लगाया। जिसके बाद माता लक्ष्मी ने उन्हें दर्शन दिये और उन्होंने अग्रसेन को एक नवीन विचारधारा के साथ वैश्य जाति बनाने व एक नया राज्य रचने की प्रेरणा दी। जिसके बाद राजा अग्रसेन और रानी माधवी ने पूरे देश की यात्रा की और अपनी समझ के अनुसार अग्रोहा राज्य की स्थापना की। यह स्थान आज हरियाणा प्रदेश के अंतर्गत आता हैं। यहाँ लक्ष्मी माता का भव्य मंदिर हैं।
महाराजा अग्रसेन के गोत्र
महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्र थे। उन 18 पुत्रों को यज्ञ का संकल्प दिया गया जिन्हें 18 ऋषियों ने पूरा करवाया। इन ऋषियों के आधार पर गौत्र की उत्त्पत्ति हुई जिसने भव्य 18 गोत्र वाले अग्रवाल समाज का निर्माण किया।
क्रमांक | गोत्र | मूल गोत्र | ऋषि | वेद | भगवान | सूत्र |
1. | बंसल | वत्स्य | विशिष्ट/वत्स | सामवेद | विर्भन | गोभिल |
2. | भंडल | धौम्या | भरद्वाज | यजुर्वेद | वासुदेव | कात्यानी |
3. | गर्ग/गर्गेया | गर्गास्य | गर्गाचार्य/ | यजुर्वेद | पुष्पादेव | कात्यानी |
4. | गोयन/गंगल | गौतन | पुरोहित/गौतम | यजुर्वेद | गोधर | कात्यानी |
5. | कंसल | कौशिक | कौशिक | यजुर्वेद | मनिपाल | कात्यानी |
6. | मधुकुल/मुद्रल | मुद्रल | आश्वलायन/मुद्गल | ऋग्वेद/यजुर्वेद | माधवसेन | अस्ल्यायीं |
7. | मित्तल | मैत्रेय | म्रदुगल/मंडव्य | ऋग्वेद/यजुर्वेद | मंत्रपति | कात्यानी |
8. | सिंघल | शंदल्या | श्रंगी/शंदिला | सामदेव | सिंधुपति | गोभिल |
9. | तिंगल/तुन्घल | तांडव | शंदिलिया/तंघ | यजुर्वेद | त्म्बोल्कारना | कात्यानी |
10. | एरोन/एरन | और्वा | अत्री/और्वा | यजुर्वेद | इन्द्रमल | कात्यानी |
11. | बिंदल/विन्दल | विशिस्थ | यावासा/वशिष्ठ | यजुर्वेद | व्रन्देव | कात्यानी |
12. | धारण/डेरन | धन्यास | भेकार/घुम्या | यजुर्वेद | धवंदेव | कात्यानी |
13. | गोयल/गोएल/गोयंका | गोमिल | गोतम/गोभिल | यजुर्वेद | गेंदमल | कात्यानी |
14. | जिंदल | जेमिनो | ब्रहस्पति/जैमिनी | यजुर्वेद | जैत्रसंघ | कात्यानी |
15. | कुछल/कुच्चल | कश्यप | कुश/कश्यप | सामवेद | करानचंद | कोमाल |
16. | मंगल | मांडव | म्रुदगल/मंडव्य | ऋग्वेद/यजुर्वेद | अमृतसेन | असुसी |
17. | नंगल/नागल | नागेंद | कौदल्या/नागेन्द्र | सामवेद | नर्सेव | अस्लायीं |
18. | तायल | तैतिरेय | साकाल/तैतिरैय | यजुर्वेद | ताराचंद | कात्यानी |
महाराजा अग्रसेन का अंतिम समय
महाराजा अग्रसेन ने लगभग 108 वर्षों तक राज किया। अपनी जिंदगी के आखिरी पल में महाराजा अग्रसेन ने अपने ज्येष्ट पुत्र विभू को सारी जिम्मेदारी सौंप दी और स्वयं वन को चले गये। इन्हें न्यायप्रियता, दयालुता, कर्मठ तथा क्रियाशीलता के कारण इतिहास के पन्नो में एक भगवान के तुल्य स्थान दिया गया है।
निष्कर्ष
5000 साल पहले महाराजा अग्रसेन द्वारा प्रतिपादित समानता और समाजवाद के विचारों को भारत के वर्तमान संविधान में भी अंकित किया गया है। महाराजा अग्रसेन ऐसे आदर्श पुरुष है जिनकी शिक्षाएं, कार्यकलाप, उनके समय का सामाजिक परिवेश और जनहितैषी शासन व्यवस्था आज भी प्रासंगिक और जन-जन को प्रेरणा देने वाली है।
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