गर्ग संहिता की कथा के अनुसार मंथरा पूर्व जन्म में दैत्य विरोचन की पुत्री थी। दैत्य विरोचन बहुत बढ़ा दानी था। उसने दान में इंद्र को अपना सर दे दिया था। जब इंद्र के छल के कारण विरोचन मारा गया तो उसकी पुत्री मंथरा को बहुत दुःख हुआ। जिसके बाद दैत्य भी निराश्रित हो गए। वह मंथरा की शरण में गए। मंथरा ने उनको रक्षा का आश्वासन दिया। फिर दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण किया तो मंथरा ने नागपाश में देवताओं को बाँध दिया। इंद्र किसी प्रकार से बच गए और वह भगवान विष्णु की शरण में चले गए।
भगवान विष्णु ने इंद्र को एक शक्ति दी जिसका प्रयोग उसने मंथरा पर किया। उस शक्ति के प्रभाव से सभी देवता नागपाश से मुक्त हो गए और मंथरा मूर्छित होकर जमीन पर गिर गयी। उस शक्ति के प्रभाव से मंथरा के अंग कूबड़ हो गए। जब वह अपने राज्य में गयी तो मंथरा को कुरूप देखकर राज्य की प्रजा उससे घृणा करने लगी। दैत्य और असुर भी उसका अपमान करने लगे। इस कारण से मंथरा को बहुत दुःख हुआ। वह मन ही मन भगवान विष्णु से नफरत करने लगी और उन असुरों से भी जो उससे घृणा करते थे। इस दशा में उसकी मृत्यु हो गयी।
दूसरे जन्म में वह कैकयी की दाशी बनी। परन्तु इस जन्म में भी वह कूबड़ी ही हुई। इस जन्म में भी वह अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण उसके मन में भगवान विष्णु के लिए शत्रुता थी और वह असुरों से भी नफरत करती थी। इसी कारण से उसके द्वारा ऐसा कार्य किया गया कि राम जो कि भगवान विष्णु के अवतार थे उन्हें वनवास हुआ और वनवास के दौरान उन्होंने असुरों व राक्षसों का नाश किया। इस तरह मंथरा ने उन असुरों से भी बदला ले लिया जिन्होंने उसका अपमान किया था और भगवान विष्णु से भी शत्रुता निभायी जिनकी वजह से उसकी ये दशा हुई थी।
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