श्री राम के भाई, इनके माता पिता, पत्नी एवं पुत्रो के बारे में सबको ज्ञात है किन्तु भगवान राम की एक बहन भी थी जिनके बारे में बहुत कम लोगो को ही पता है। श्री राम की बहन का नाम शांता था। शांता के बारे में इतिहास में बहुत ही कम उल्लेख मिलता है। शांता के बारे में इतिहास में बहुत ही कम उल्लेख मिलता है। हांलाकि उनके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं।
पहली कथा:
अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थी जिनमे से कौशल्या के पुत्र श्री राम थे। किन्तु प्राचीन कथाओं के अनुसार श्री राम के जन्म से पहले राजा दशरथ और कौशल्या की एक पुत्री भी थी जिसका नाम शांता था। शांता बेहद होनहार और बुद्धिमान कन्या थी। एक बार कौशल्या की बहन रानी वर्षिणी और उनके पति रोमपद अयोध्या आये। अयोध्या में शांता को देखकर अनायास ही वर्षिणी के मुख से निकल गया कि अगर उनके वहाँ कोई संतान हो तो वह शांता की तरह हो अन्यथा ना हो। वर्षिणी की इस बात को सुनकर राजा दशरथ ने शांता को उन्हें गोद दे दिया। जिसके बाद शांता अंगदेश की राजकुमारी बन गयी।
एक बार एक ब्राह्मण अंगदेश पहुंचा और उसने रोमपद से भिक्षा माँगी। लेकिन राजा रोमपद राजकुमारी शांता के साथ बातचीत में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने उस ब्राह्मण को नजरअंदाज कर दिया। उस ब्राह्मण को राजा रोमपद के द्वार से खाली हाथ जाना पड़ा। इस बात से देवता इंद्र इतने नाराज हुए कि उन्होंने अंगदेश में उस साल बारिश नहीं होने दी। अंगदेश में सूखा पड़ गया। इस समस्या से निपटने के लिए राजा रोमपद ऋषि श्रृंग के पास पहुंचे और उनके कहने पर एक यज्ञ का आयोजन किया गया। जिसके बाद अंगदेश फिर से हरा भरा हो गया। राजा रोमपद ऋषि श्रृंग से इतने खुश हुए कि उन्होंने अपनी पुत्री शांता का विवाह उनसे करा दिया। इसके बाद शांता ऋषि श्रृंग के साथ उनके आश्रम में ही रहने लगी।
दूसरी कथा:
बात उस समय की है जब राजा दशरथ और कौशल्या का विवाह भी नहीं हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि रावण को पहले ही पता चल चुका था कि अयोध्या के राजा दशरथ और कौशल्या की संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। इसलिए रावण ने कौशल्या को पहले ही मारने की योजना बनाई। उसने कौशल्या को एक संदूक में बंद किया और नदी में बहा दिया। वही से राजा दशरथ शिकार के लिए जा रहे थे। उन्होंने कौशल्या को बचाया और उस समय नारद जी ने उनका गन्धर्व विवाह कराया था।
उनके विवाह के बाद उनके यहां एक कन्या ने जन्म लिया जिसका नाम शांता था। किन्तु वो दिव्यांगना थी। राजा दशरथ ने उसका कई बार इलाज़ कराया पर कोई लाभ नहीं हुआ। जब कई ऋषि मुनियों से सलाह की गयी तो उन्हें पता चला कि कौशल्या और राजा दशरथ का गोत्र एक है इसीलिए उन्हें इन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें यह भी सलाह दी गयी कि अगर इस कन्या के माता पिता को बदल दिया जाय तो यह कन्या ठीक हो जाएगी। यही कारण था कि राजा दशरथ ने शांता को रोमपद और वर्षिणी को गोद दे दिया था।
तीसरी कथा:
कई अन्य कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने शांता को इसलिए त्यागा क्योकि यह पुत्री थी और कुल आगे नहीं बढ़ा सकती थी, ना ही राज्य को संभाल सकती थी। इतिहास में कहीं कहीं तो राजा दशरथ और कौशल्या की दो पुत्रियों के भी संकेत मिलते हैं। शांता को गोद दे दिए जाने के बाद दशरथ की कोई भी संतान नहीं थी। संतान के लिए राजा दशरथ ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाया, जिसके बाद उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई।
पुत्र होने पर भी माँ कौशल्या अपने दिल से अपनी पुत्री का वियोग नहीं भुला पा रही थी और शांता की वजह से राजा दशरथ और कौशल्या में भी मतभेद रहते थे। जब भगवान् राम बड़े हुए तो उन्हें अपनी बहन शांता के बारे में पता चला और उन्होंने अपनी बहन और कौशल्या माँ को मिलवाया। यह भी मन जाता है कि राजा दशरथ ने जो पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाया था वो शांता के पति ऋषि श्रृंग ने ही करवाया था।
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