बहुत कम लोगों को पता होगा कि भगवान शिव के प्रमुख गणो में से एक नंदी को शिव की घोर तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने पुत्र रूप में पाया था। नंदी बचपन से ही आध्यात्मिक और अपने पिता का आदर करने वाले थे। शिलाद ऋषि ने नंदी को वेदों के साथ साथ नैतिक शिक्षा का भी अच्छा ज्ञान दिया था। शिलाद ऋषि को यह पता चलने पर कि नंदी अल्पायु हैं शिलाद ऋषि काफी चिंतित हो गए। नंदी ने अपने पिता के चेहरे पर चिंता का भाव पढ़ लिया और उनसे इसका कारण पूछा।
उनके पिता ने उन्हें सब कुछ सच सच बता दिया। यह सब सुनकर नंदी हसने लगे और अपने पिता से कहा कि मेरी उम्र की रक्षा वही भगवान शिव करेंगे। नंदी का कहना था कि जो लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं उन्हें कोई तकलीफ छू तक नहीं सकती। इसके बाद नंदी अपने पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर नंदी तप करने चले गए। नंदी तप बहुत कठोर था और ध्यान बहुत मजबूत था। भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। नंदी ने वरदान के रूप में उनसे प्रार्थना की कि वह हर समय उनके साथ रहना चाहते हैं। भगवान शिव ने उन्हें बैल का चेहरा देकर अपना वाहन बना लिया और अपने गणो में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश पर्वत गया। वहां उन्होंने नंदी जी को देखकर उनके स्वरुप की हँसी उड़ाई और उन्हें बन्दर के समान मुख वाला कहा। तब नंदी जी ने क्रोधित होकर रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।
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