पुराणों में वर्णित कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) धन प्राप्ति और धन संचय के लिए चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं। श्री कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) के रचनाकार आदि शंकराचार्य हैं। माता लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए जिस भी यंत्र का प्रयोग किया जाता हैं, उनमें कनकधारा यंत्र तथा स्तोत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली, कल्याणकारी एवं शीघ्र ही फल प्रदान करने वाला है।
कनक धारा स्वयं सिद्ध यंत्र है इसलिए इस यंत्र की विशेषता भी यही है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की मांग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है। यह यंत्र केवल मानसिक या वाचिक पाठ करने मात्र से ही फल प्रदान करने में समर्थ है।
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कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित (Kanakadhara Stotram in Hindi & English)
ॐ अङ्गं हरै ( हरेः) पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाऽगनेव मुकुलाभरणं तमालं |
अंगीकृताऽखिलविभूतिरपाँगलीलामाँगल्यदाऽस्तु मम् मङ्गलदेवतायाः || १ ||
जैसे भ्रमरी अर्धविकसित पुष्पों से अलङ्कृत तमालवृक्ष का आश्रय ग्रहण करती है,वैसे ही भगवान् श्रीहरि के रोमाँच से शोभायमान माँ लक्ष्मीजी कटाक्षलीला, श्रीअङ्गों पर अनवरत पड़ती रहती है,जिसमे समस्त ऐश्वर्य,धन,संपत्ति का निवास है,
वो समस्त मंगलो की अधिष्ठात्री माँ लक्ष्मीजी की कटाक्षलीला मेरे लिये मङ्गलकारी हो।
To the Hari who wears supreme happiness as Ornament, The Goddess Lakshmi is attracted, Like the black bees getting attracted, To the unopened buds of black Tamala tree, Let her who is the Goddess of all good things, Grant me a glance that will bring prosperity.
मुग्धा मुहुर्विदधी वदने मुरारेः प्रेमत्रपा प्रणिहितानि गताऽगतानि |
मलार्दशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा में श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः || २ ||
जिस प्रकार भ्रमरी कमल पर आती-जाती रहती है,(मंडराती रहती है), वैसे ही भगवान् मुरारी के मुखकमल की और प्रेम सहित जाकर और लज्जा से वापिस आकर समुद्रतनया लक्ष्मी की मनोहर मुख दृष्टिमाला मुझे खूब धन-संपत्ति प्रदान करे।
Again and again return ,those glances, Filled with hesitation and love, Of her who is born to the ocean of milk, To the face of Murari, Like the honey bees to the pretty blue lotus, And let those glances shower me with wealth.
विश्वामरेन्द्र पदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोपि |
ईषन्निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्धंमिन्दीवरोदर सहोदरमिन्दीरायाः || ३ ||
जो देवताओ के स्वामी इंद्र को भी सबकुछ देने में समर्थ है,मुर नामके दैत्य के शत्रु भगवान् विष्णु को भी आप अत्यंत प्रिय हो,नीलकमल जिसका सहोदर है अर्थात भाई है,ऐसी लक्ष्मी अर्ध खुले हुए नेत्रों की दृश्टि किंचित क्षण के लिए मुझ पर डाले (पड़े).
Capable of making one as king of Devas in this world, Her side long glance of a moment, Made Indra regain his kingdom, And is making Him who killed Madhu supremely happy. And let her with her blue lotus eyes glance me a little.
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदामुकुन्दमानन्द कंदमनिमेषमनंगतन्त्रं |
आकेकर स्थित कनीतिकपद्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्ग शयाङ्गनायाः || ४ ||
जिसकी पुतली एवं भौहे काम के वशीभूत हो अर्धविकसित एकटक आँखों से देखनेवाले आनंदकंद सत्चिदानन्द मुकुंद भगवान् को अपने निकट पाकर किन्छित तिरछी हो जाती हो,ऐसे शेषपर शयन करनेवाले भगवान् नारायण की अर्द्धांगिनी श्रीमहालक्ष्मीजी के नेत्र हमें धन-संपत्ति प्रदान करे.
With half closed eyes stares she on Mukunda, Filled with happiness , shyness and the science of love, On the ecstasy filled face with closed eyes of her Lord, And let her , who is the wife of Him who sleeps on the snake, Shower me with wealth.
बाह्यन्तरे मुरजितः(मधुजितः) श्रुतकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति |
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु में कमलालयायाः || ५ ||
भगवान् मधुसूदन के कौस्तुभमणि से विभूषित वक्षःस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली की तरह जो सुशोभित है, उन भगवान् के चित्त में काम संचारिणी,कमल निवासिनी लक्ष्मीजी कृपाकटाक्ष मेरा भी सदासर्वदा मंगल करे.
He who has won over Madhu, Wears the Kousthuba as ornament, And also the garland of glances, of blue Indraneela, Filled with love to protect and grant wishes to Him, Of her who lives on the lotus, And let those also fall on me, And grant me all that is good..
कालाम्बुदालि ललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव |
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि में दिशतु भार्गवनंदनायाः || ६ ||
जिस तरह से बिजली चमकती है,उसी प्रकार मधु-कैटभ के शत्रु भगवान विष्णु के काली मेघपंक्ति की तरह सुमनोहर वक्षःस्थल पर आप एक विद्युत के समान देदीप्यमान होती हो,जो समस्त लोको की माता है,भार्गवापुत्र भगवती महालक्ष्मीजी पूजनीय है वो मुझे कल्याण प्रदान करे.
Like the streak of lightning in black dark cloud, She is shining on the dark , broad chest, Of He who killed Kaidaba, And let the eyes of the great mother of all universe, Who is the daughter of Sage Bharghava, Fallon me lightly and bring me prosperity.
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत प्रभावान्मांगल्यभाजि मधुमाथिनी मन्मथेन |
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः || ७ ||
समुद्रतनया(समुद्र की पुत्री) लक्ष्मी की वह मन्दालस,मन्थर,अर्धोन्मीलित दृष्टि के प्रभावमात्र से कामदेव ने भगवान् मधुसूदन के ह्रदय में स्थान प्राप्त किया था,वही दृष्टि मेरे ऊपर भी पड़े.
The God of love could only reach , The killer of Madhu, Through the power of her kind glances, Loaded with love and blessing And let that side glance , Which is auspicious and indolent, Fall on me.
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशो विषण्णे |
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः || ८ ||
भगवान् श्रीहरि की प्रेमिका का नेत्र रूपी मेघ,दयारूपी वायु से प्रेरित होकर दुष्कर्म रूपी धाम को दीर्घकाल के लिए दूर कर,मुझ दुखी सदृश चातक पर धन रूपी जलधारा की वर्षा करे.
Please send your mercy which is like wind, And shower the rain of wealth on this parched land,, And quench the thirst of this little chataka bird, And likewise ,drive away afar my load of sins, Oh, darling of Narayana, By the glance from your cloud like dark eyes.
इष्टाविषिश्टमतयोऽपि यया दयार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते |
दृष्टिः प्रहष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः || ९ ||
मतिहीन मनुष्य भी जिसके स्मरण मात्र से ही स्वर्ग को प्राप्त कर लेता है,उन्ही कमलासना कमला लक्ष्मीजी के विकसित कमल गर्भ के सदृश कांतिमयी दृष्टि मुझे मनोभिलषित पुष्टि,संतान आदि की वृद्धि प्रदान करे |
To her devotees and those who are great, Grants she a place in heaven which is difficult to attain, Just by a glance of her compassion filled eyes, Let her sparkling eyes which are like the fully opened lotus, Fall on me and grant me all my desires.
गीर्देवतेति गरुड़ध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति |
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै || १० ||
जो माँ भगवती श्री सृष्टिक्रीड़ा में अवसर अनुसार वाग्देवता के रूप में बिराजमान होती है,पालनक्रीड़ा के समय लक्ष्मीके रूप में विष्णुकी पत्नी के बिराजमान होती है,प्रलयक्रीड़ा के समय शाकम्भरी भगवान् शंकर की पत्नी के रूप में विद्यमान होती है,उन त्रिलोक के एकमात्र गुरु पालनहार विष्णु की नित्य यौन प्रेमिका भगवती लक्ष्मीको मेरा सम्पूर्ण नमस्कार है |
She is the goddess of Knowledge, She is the darling of Him who has Garuda as flag, She is the power that causes of death at time of deluge, And she is the wife of Him who has the crescent, And she does the creation , upkeep and destruction at various times, And my salutations to this lady who is worshipped by all the three worlds.
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्णवायै |
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै || ११ ||
हे माँ लक्ष्मी, शुभकर्मफलप्रदायिनी रतिस्वरुप मै आपको प्रणाम करता हु | रमणीय गुणों के समुद्र स्वरूपा रति के रूप में आपको प्रणाम है | शतपत्र वाले अर्थात सौ पत्रोंवाले कमलकुञ्ज में निवास करनेवाली शक्तिरूपा माँ रमा को नमस्कार है | पुरुषोत्तम की प्रेयसी को मेरा नमस्कार है |
Salutations to you as Vedas which give rise to good actions, Salutation to you as Rathi for giving the most beautiful qualities, Salutation to you as Shakthi,who lives in the hundred petalled lotus, And salutations to you who is Goddess of plenty, And is the consort of Purushottama.
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै |
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै || १२ ||
कमल समान मुखवाली लक्ष्मी को नमस्कार है | क्षीरसमुद्र में उत्पन्न होने वाली समुद्रतनया रमा को नमस्कार है | चंद्र और अमृत की बहन को नमस्कार है | भगवान् नारायण की प्रेयसी को नमस्कार है |
Salutations to her who is as pretty. As the lotus in full bloom, Salutations to her who is born from ocean of milk, Salutations to the sister of nectar and the moon, Salutations to the consort of Narayana.
नमोऽस्तु हेमाम्बुज पीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डल नयिकायै |
नमोऽस्तु देवादि दयापरायै नमोऽस्तु शारङ्गयुध वल्लभायै || १३ ||
सोने के कमलासन पर बैठनेवाली,भूमण्डल नायिका,देवताओ पर दयाकरनेवाली,शार्ङ्घायुध विष्णु की वल्लभा शक्ति को नमस्कार है |
Salutations to her who has the golden lotus as seat, Salutations to her who is the leader of the universe, Salutations to her who showers mercy on devas, And salutations to the consort of Him who has the bow called Saranga.
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि संस्थितायै |
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै || १४ ||
भगवान् विष्णु के वक्षःस्थल में निवास करनेवाली देवी,कमल के आसनवाली, दामोदर प्रिय लक्ष्मी,आपको मेरा नमस्कार है |
Salutations to her who is daughter of Bhrigu[19], Salutations to her lives on the holy chest of Vishnu, Salutations to Goddess Lakshmi who lives in a lotus, And saluations to her who is the consort of Damodhara.
नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै || १५ ||
भगवान् विष्णु की कान्ता,कमल के जैसे नेत्रोंवाली,त्रैलोक्य को उत्पन्न करनेवाली,देवताओ के द्वारा पूजित, नन्दात्मज की वल्लभा ऐसी श्रीलक्ष्मीजी को मेरा नमस्कार है |
Salutations to her who is light living in Lotus flower, Salutations to her who is the earth and also mother of earth, Salutations to her who is worshipped by Devas, And salutations to her who is the consort of the son of Nanda.
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनंदनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि |
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानी मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये || १६ ||
हे कमलाक्षी (कमल के जैसे आँखोंवाली),आपके चरणों में की हुई स्तुति प्रार्थना ऐश्वर्यदायिनी और समस्त इन्द्रियों को आनंदकारिणी है,सभी सुखो को देनेवाली (साम्राज्यादायिनी),सभी पापो को नष्ट करनेवाली, हे पाप हिन् आप मुझे अपने चरणों की वंदना करने का अवसर सदा प्रदान करे |
Giver of wealth, giver of pleasures to all senses, Giver of the right to rule kingdoms, She who has lotus like eyes, She to whom Salutations remove all miseries fast, And my mother to you are my salutations.
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थसम्पदः |
सन्तनोति वचनाङ्गमानसैस्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे || १७ ||
जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना सेवक के लिए समस्त मनोरथ और धन-संपत्ति का विस्तार करती है उस मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मीको,में मन,वचन और शरीर से भजन करता हूँ|
He who worships your sidelong glances, Is blessed by all known wealth and prosperity, And so my salutations by word, thought and deed, To the queen of the heart of my Lord Murari
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे |
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यं || १८ ||
हे भगवती नारायण की पत्नी | आप कमलकुञ्ज में रहनेवाली है,आप के चरण कमल में नीलकमल शोभायमान है | आप श्वेत वस्त्र तथा गंध,माला आदि से सुशोभित है,आपकी छवि अतिसुन्दर है,रमणीय है,अद्वितीय है,हे त्रिभुवन को वैभव प्रदान करनेवाली | आप मेरे ऊपर भी प्रसन्न होइये |
She who sits on the Lotus, She who has lotus in her hands, She who is dressed in dazzling white, She who shines in garlands and sandal paste, The Goddess who is the consort of Hari, She who gladdens the mind, And she who confers prosperity on the three worlds, Be pleased to show compassion to me.
दिग्धस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुतांगीं |
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेषलोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीं || १९ ||
महानुभावो द्वारा (दिग्गजजनो के द्वारा पूजित) कनककुम्भ से मुख से पतित,आकाशगंगा के स्वच्छ मनोहर जल से जिस भगवान के श्रीअङ्ग का अभिषेक होता है,उस समस्त लोको के अधीश्वर भगवान् विष्णु की पत्नी,समुद्रतनया(क्षीरसागर पुत्री),जगन्माता भगवती लक्ष्मी को में प्रातःकाल नमस्कार करता हूँ|
Those eight elephants from all the diverse directions, Pour from out from golden vessels, The water from the Ganga which flows in heaven, For your holy purifying bath, And my salutations in the morn to you , Who is the mother of all worlds, Who is the house wife of the Lord of the worlds, And who is the daughter of the ocean which gave nectar
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वां करुणापूरतरङ्गीतैरपारङ्गैः |
अवलोकयमांकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः || २० ||
हे कमलनयन भगवान् विष्णु की प्रिया लक्ष्मीजी | मेँ दीनहीन मनुष्यो का अग्रगण्य हु ,इसलिए आपकी कृपा का स्वभावसिद्ध पात्र हू | आप छलकती हुई करुणा के बाढ़ की तरल-तरंगो के सदृश कटाक्षों के द्वारा मेरी दिशाओ में भी थोड़ा अवलोकन कीजिये |
She who is the Lotus, She who is the consort, Of the Lord with Lotus like eyes, She who has glances filled with mercy, Please turn your glance on me, Who is the poorest among the poor, And first make me the vessel , To receive your pity and compassion.
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमां |
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभाजिनो(भागिनो) भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः || २१ ||
जो मनुष्य या साधक इन स्तोत्रों के द्वारा नित्य वेदत्रयी स्वरूपा,भगवती रमा(लक्ष्मीजी का एक नाम) के स्तोत्र पाठ करते है | वो मनुष्य इस पृथ्वी पर सौभाग्यशाली होते है,और विद्वान लोग भी उनके भाव को जाने के लिए उच्छुक रहते है |
He who recites these prayers daily, On her who is personification of Vedas, On her who is the mother of the three worlds, On her who is Goddess Rema, Will be blessed without doubt, With all good graceful qualities, With all the great fortunes that one can get, And would live in the world, With great recognition from even the learned.
ॐ सुवर्णधारास्तोत्रं यच्छंकराचार्य निर्मितं |
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स कुबेरसमो भवेत || २२ ||
यह उत्तम स्तोत्र जो आद्यगुरु शंकराचार्य विरचित स्तोत्र का (कनकधारा) का पाठ तीनो कालो में (प्रातःकाल-मध्याह्नकाल-सायंकाल) करता है वो मनुष्य या साधक कुबेर के समान धनवान हो जाता है |
|| इति श्रीमद्द शंकराचार्य विरचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्णं ||
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