भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य एवं उनके कलाकार – Indian classical dance and Artists

Indian classical dance and Artists – भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य एवं उनके कलाकार निम्नलिखित हैं:

भरत नाट्यम

  • भारत के प्रसिद्ध नृत्यों में से एक है, भरत नाट्यम का संबंध दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य से है।
  • यह नाम “भरत” शब्द से लिया गया है, इसका संबंध नृत्य शास्त्र से है।
  • भरत नाट्यम में नृत्यत के तीन मूलभूत तत्वों को कुशलतापूर्वक शामिल किया गया है। ये हैं भाव अथवा मन:स्थिति, राग अथवा संगीत और स्वरमार्धुय और ताल अथवा काल समंजन।
  • भरत नाट्यम की तकनीक में, हाथ, पैर, मुख, व शरीर संचालन के समन्वमयन के 64 सिद्धांत हैं, जिनका निष्पादन नृत्य पाठ्यक्रम के साथ किया जाता है।

भरत नाट्यम के प्रमुख कलाकार:-

रूकमाणी देवी, स्वतप्न‍ सुंदरी, वैजंतीमाला, सोनल मान सिंह, मृणालिनी साराबाई, यामिनी कृष्णममूर्ति

कथकली

  • वर्तमान समय का कथकली एक नृत्या नाटिका की परम्पयरा है जो केरल के नाट्य कर्म की उच्च, विशिष्ट् शैली की परम्परा के साथ शताब्दियों पहले विकसित हुआ था, विशेष रूप से कुडियाट्टम।
  • पारम्परिक रीति रिवाज जैसे थेयाम, मुडियाट्टम और केरल की मार्शल कलाएं नृत्य को वर्तमान स्वरूप में लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • कथकली का अर्थ है एक कथा का नाटक या एक नृत्य नाटिका। कथा का अर्थ है कहानी,
  • यहां अभिनेता रामायण और महाभारत के महाग्रंथों और पुराणों से लिए गए चरित्रों को अभिनय करते हैं।
  • यह अत्यंत रंग बिरंगा नृत्य है।
  • इसके नर्तक उभरे हुए परिधानों, फूलदार दुपट्टों, आभूषणों और मुकुट से सजे होते हैं।

कथकली के प्रमुख कलाकार:-

वल्लातोल रामायण, शांता राव, उदयशंकर, कृष्णरन कूट्टी, मृणालिनी साराभाई, रामगोपाल कृष्णा नायर

ओड़िसी

  • ओड़िसी को पुरातात्विक साक्ष्योंर के आधार पर सबसे पुराने जीवित नृत्य रूपों में से एक माना जाता है।
  • ओड़िसी का जन्म मंदिर में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य से हुआ था।
  • ओड़िसी नृत्य् का उल्लेंख शिला लेखों में मिलता है,
  • इसे ब्रह्मेश्वतर मंदिर के शिला लेखों में दर्शाया गया है
  • साथ ही कोणार्क के सूर्य मंदिर के केन्द्रीय कक्ष में इसका उल्लेख मिलता है।
  • वर्ष 1950 में इस पूरे नृत्य रूप को एक नया रूप दिया गया।

ओड़िसी के प्रमुख कलाकार:-

प्रियबंदा मोहंती , माधवी मुद्गल , मिनाती दास ,रंजना डेनियल्स, सोनल मानसिंह कालीचरण पटनायक

मणिपुरी

  • पूर्वोत्तर के मणिपुर क्षेत्र से आया शास्त्रीय नृत्य मणिपुरी नृत्य है।
  • मणिपुरी नृत्य भारत के अन्य नृत्यत रूपों से भिन्नी है।
  • यह नृत्य रूप 18वीं शताब्दी में वैष्णयव सम्प्रदाय के साथ विकसित हुआ जो इसके शुरूआती रीति रिवाज और जादुई नृत्य रूपों में से बना है।
  • विष्णु पुराण, भागवत पुराण तथा गीतगोविन्द की रचनाओं से आई विषयवस्तुएँ इसमें प्रमुख रूप से उपयोग की जाती हैं।

मणिपुरी के प्रमुख कलाकार:-

राजा रेड्डी, चिंता कृष्णपमूर्ति यामिनी कृष्ण मूर्ति, राधा रेड्डी, स्वुप्न, सुंदरी

मोहिनी अट्टम

  • मोहिनीअट्टम केरल की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला अर्ध शास्त्री्य नृत्य है जो कथकली से अधिक पुराना माना जाता है।
  • मोहिनीअटट्म का प्रथम संदर्भ माजामंगलम नारायण नब्बूजदिरी द्वारा संकल्पित व्यवहार माला में पाया जाता है जो 16वीं शताब्दी में रचा गया।
  • 19वीं शताब्दीन स्वाति तिरुनाल, पूर्व त्रावण कोर के राजा थे, जिन्होंने इस कला रूप को प्रोत्सा‍हन और स्थिरीकरण देने के लिए काफी प्रयास किए।

मोहिनी अट्टम के प्रमुख कलाकार:-

श्री देवी, राशिनी देवी, कनक रेले, कला देवी, तारा निडुगाड़ी, भारती शिवाजी

कुचिपुड़ी

  • कुचीपुडी आंध्र प्रदेश की एक स्वददेशी नृत्य शैली है जिसने इसी नाम के गांव में जन्म़ लिया और पनपी,
  • इसका मूल नाम कुचेलापुरी या कुचेलापुरम था, जो कृष्णाा जिले का एक कस्बा है।
  • परम्परा के अनुसार कुचीपुडी नृत्य मूलत: केवल पुरुषों द्वारा किया जाता था और वह भी केवल ब्राह्मण समुदाय के पुरुषों द्वारा।
  • कुचीपुडी के पंद्रह ब्राह्मण परिवारों ने पांच शताब्दियों से अधिक समय तक परम्परा को आगे बढ़ाया है।

कुचिपुड़ी के प्रमुख कलाकार:-

डॉ॰ वेमापति चिन्नाक सत्यपम, वेदांतम लक्ष्मीु नारायण, चिंता कृष्णाय मूर्ति, ता‍देपल्लीो पेराया

कथक

  • कथक उत्तर भारत का नृत्य है।
  • कथक शब्द- का जन्म कथा से हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है कहानी कहना।
  • कथक का नृत्य रूप 100 से अधिक घुंघरु‍ओं को पैरों में बांध कर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्कर द्वारा पहचाना जाता है और हिन्दुृ धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और उर्दू कविता से ली गई विषयवस्तुओं का नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
  • कथक का जन्म उत्तर में हुआ किन्तु पर्शियन और मुस्लिम प्रभाव से यह मंदिर की रीति से दरबारी मनोरंजन तक पहुंच गया।

कथक के प्रमुख कलाकार:-

गोपीकृष्ण, दमयंती जोशी, नारायण प्रसाद, महाराज, ल्छुभारत महाराज, अच्छ,न महाराज, सितारा देवी

सत्रिया/सत्त्रिया नृत्य (असम)

  • सत्रिया/सत्त्रिया असम का नृत्य है।
  • “सत्रीया नृत्य” में सत्तर शब्द – सत्र से लिया गया है जिसका अर्थ -मठ और नृत्य का अर्थ है-तरीका।
  • असम के 15वीं सदी के महान वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव ने मठों में ‘अंकीया नाट’ के सह-प्रदर्शन हेतु सत्रिया नृत्य विकसित किया।
  • असम के वैष्णव मठ में यह नृत्य अभी तक जीवित है।
  • इसमे भगवान कृष्ण के जीवन पर आधारित संगीत, नृत्य व नाटक द्वारा लीलाएं की जाती हैं।
  • सत्रीया नृत्य जप, कथा, नृत्य व संवाद का समन्वय है।
  • इस नृत्य शैली को संगीत नाटक अकादमी द्वारा 15 नवम्बर 2000 को अपने शास्त्रीय नृत्य की सूचि में शामिल किया जिससे शास्त्रीय नृत्यों की संख्या बढ़कर आठ हो गई है।

कुटियाट्टम

  • कटियाट्टम केरल के शास्त्रीय रंग मंच का अद्वितीय रूप है जो अत्यंत मनमोहक है।
  • यह‍ 2000 वर्ष पहले के समय से किया जाता था और यह संस्कृत के नाटकों का अभिनय है और यह भारत का सबसे पुराना रंग मंच है।
  • राजा कुल शेखर वर्मन ने 10वीं शताब्दी में कुटियाट्टम में सुधार किया और रूप संस्कृत में प्रदर्शन की परम्परा को जारी रखे हुए है।
  • प्राकृत भाषा और मलयालम अपने प्राचीन रूपों में इस माध्यम को जीवित रखे हैं।

कुटियाट्टम के प्रमुख कलाकार:-

हर्ष, महेन्द्र , विक्रम पल्लकव, कुल शेखर

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