हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) के बारे में जानने से पहले आइये जानते हैं कि व्याकरण क्या होती है? क्योंकि व्याकरण एक ऐसी विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा को शुद्ध तरीके से बोलना, पढ़ना और लिखना आता है।
किसी भी विकसित भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं और भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम व्याकरण के अन्तर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिसे भाषा विज्ञान कहते हैं।
भाषा विज्ञान के तीन महत्वपूर्ण भाग होते हैं:
- वर्ण विभाग- इसमें अक्षरों या वर्णों से संबन्धित नियमों का ज्ञान होता है।
- शब्द विभाग- इसमें शब्दों के भेद आदि बताए जाते हैं।
- वाक्य विभाग- इसमें वाक्य रचना के नियमों का वर्णन होता है।
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हिंदी वर्णमाला में वर्ण किसे कहते हैं? (Hindi Varnamala me Varna)
“वृ” धातु से वर्ण शब्द बना है, जिसका अर्थ होता है “वरन करना या चुनना”। हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि। वर्ण भाषा की सबसे लघुत्तम इकाई है।
हिंदी वर्णमाला किसे कहते हैं? (Hindi Varnamala kise kahate hain)
किसी भाषा के वर्णों (ध्वनि चिन्हों) के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं या वर्णों के क्रमबद्ध रूप को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। आमतौर पर हिंदी वर्णमाला में कुल 52 अक्षर होते हैं। अक्षर और वर्ण प्रायः समान अर्थ में प्रयोग कर लिए जाते हैं जबकि दोनों में पर्याप्त अंतर है।
हिंदी वर्णमाला के 52 अक्षर में 11 स्वर, 33 व्यंजन, 2 अयोगवाह और 4 संयुक्त वर्ण हैं। संयुक्त वर्णो की संख्या 6 है जिनमें से हिंदी में 4 संयुक्त वर्णों का प्रयोग होता है। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं:
- स्वर
- व्यंजन
हिंदी वर्णमाला चार्ट (Hindi Varnamala Chart)
हिंदी वर्णमाला चार्ट (Hindi Varnamala Chart) में स्वर और व्यंजन इस प्रकार हैं:
हिंदी वर्णमाला में स्वर (Hindi Varnamala me Swar)
स्वर की परिभाषा 1: वे वर्ण जो स्वतंत्र अवस्था में विद्यमान रहते हैं और दूसरे वर्णो की सहायता नहीं लेते हैं, स्वर कहलाते हैं।
स्वर की परिभाषा 2: जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है अर्थात जिन वर्णों के उच्चारण के समय किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं पड़ती है और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं उन्हें स्वर कहते हैं।
स्वर की परिभाषा 3: साँस जिन वर्णों का उच्चारण करते समय कंठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती हैं, उन्हें स्वर कहा जाता है।
उच्चारण के आधार पर स्वर:
अ, आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ
अनुस्वार: अं ; विसर्ग: अ:
नोट: अनुस्वार एवं विसर्ग को अयोगवाह भी कहते हैं।
लेखन के आधार पर स्वर:
अ, आ, इ , ई , उ , ऊ , ऋ, ए , ऐ , ओ , औ , अं , अ:
अ
आ
इ
ई
उ
ऊ
ऋ
ए
ऐ
ओ
औ
अं
अ:
उच्चारण समय के आधार पर स्वर के भेद
उच्चारण समय के आधार पर स्वर के तीन भेद किए गए हैं:
1. ह्रस्व स्वर – जिस स्वर के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है अर्थात कम से कम समय लगता है, उसको हृस्व स्वर कहते हैं। ये संख्या में पाँच हैं— अ, इ, उ, ॠ तथा लृ। इनको मूल स्वर भी कहा जाता है।
2. दीर्घ स्वर – जिस स्वर के उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगता है या ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है, उसको दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में आठ हैं- आ, ई, ऊ, ऋॄ, ए, ऐ, ओ तथा औ। जिनमे से ए, ऐ, ओ तथा औ को संयुक्त वर्ण (स्व र) भी कहते हैं क्योंकि ये दो स्वरों के मेल से बने हैं।
Note- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।
3. प्लुत स्वर – जिस स्वर के उच्चारण में तीन या उससे अधिक मात्राओं का समय लगता है या ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है अर्थात दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है, उसको प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है, तब सम्बोधन पद के अन्तिम वर्ण को तीन मात्रा का समय लगाकर बोलते हैं, उसे ही प्लुत स्वर कहते हैं। लिपि में प्लुत स्वर को ‘३’ की संख्या से दिखाया जाता हैं, उदाहरण के लिए: एहि कृष्ण३ अत्र गौश्चरति।
ये सभी ह्रस्व, दीर्घ एवं प्लुत स्वर वर्ण अनुनासिक एवं निरनुनासिक भेद से द्विविध हैं।
अनुनासिक: जिस स्वर के उच्चारण में मुख के साथ नासिका की भी सहायता ली जाती है, उसे अनुनासिक स्वर कहते हैं। जैसे— अँ….एँ इत्यादि समस्त स्वर वर्ण।
निरनुनासिक: जो स्वर केवल मुख से उच्चारित होता है, वह निरनुनासिक है। जैसे— अ, आ, इ, ई…..
ओष्ठाकृति के आधार पर स्वर के भेद
वृत्ताकार स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में होठों का आधार गोल हो जाता है, उन्हें वृत्ताकार स्वर कहते हैं। जैसे – उ, ऊ, ओ, औ।
अवृत्ताकार स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ गोल न होकर अन्य आकार में खुलें उन्हें अवृत्ताकार स्वर कहते हैं। जैसे – अ, आ, इ, ई, ऋॄ, ए, ऐ
मुखाकृति के आधार पर स्वर के भेद
1. संवृत्त स्वर – इ, ई, ऋॄ, उ, ऊ (जिनके उच्चारण में मुंह कम से कम खुले)
2. विवृत्त स्वर – आ (जिनके उच्चारण में मुंह ज्यादा खुलता हो)
3. अर्द्ध संवृत्त स्वर – अ, ए, ओ
4. अर्द्ध विवृत्त स्वर – ऐ, औ
जिह्वा के आधार पर स्वर के भेद
1. अग्र स्वर – इ, ई, ऋॄ, ए, ऐ
2. मध्य स्वर – अ
3. पश्च स्वर – आ, उ, ऊ, ओ, औ
नोट: वैसे तो स्वरों की कुल संख्या 11 होती है लेकिन हिंदी भाषा के कुछ विद्वानों का मानना है की “ऋ” स्वर नहीं बल्कि व्यंजन होता है। ऐसे में स्वरों की संख्या 10 रह जाती है। यदि विकल्प में 11 हो तो 11 ही सही माना जायेगा।
हिंदी वर्णमाला में व्यंजन (Hindi Varnamala me Vyanjan)
परिभाषा 1: जिन वर्णों का पूर्ण उच्चारण करने के लिए स्वरों की आवश्यकता पड़ती है अर्थात जिन वर्णों का उच्चारण स्वर वर्णों की सहायता के बिना नहीं किया जा सकता, उन्हें व्यञ्जन या हल् कहते हैं।
परिभाषा 2: जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय श्वास मुख के किसी स्थान विशेष (तालु, मूर्धा, ओष्ठ या दांत) आदि का स्पर्श करते हुए निकले उन्हें व्यंजन कहते हैं।
परिभाषा 3: वे वर्ण जो स्वतंत्र नहीं होते हैं, व्यंजन कहलाते हैं।
परंपरागत रूप से व्यंजनों की संख्या 33 मानी जाती है। स्वर रहित व्यञ्जन को लिखने के लिए वर्ण के नीचे हल् चिह्न लगाया जाता है।
उदाहरण —
कु = क् ख् ग् घ् ङ् (क वर्ग)
चु = च् छ् ज् झ् ञ् (च वर्ग)
टु = ट् ठ् ड् ढ् ण् (ट वर्ग)
तु = त् थ् द् ध् न् (त वर्ग)
पु = प् फ् ब् भ् म् (प वर्ग)
क
ख
ग
घ
ङ
च
छ
ज
झ
ञ
ट
ठ
ड
ढ
ण
त
थ
द
ध
न
प
फ
ब
भ
म
य
र
ल
व
श
ष
स
ह
क्ष
त्र
ज्ञ
व्यंजन के भेद
व्यंजन के भेद निम्नलिखित हैं:
स्पर्श
इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है जैसे: क वर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्; च वर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्; ट वर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्); त वर्ग- त् थ् द् ध् न्; प वर्ग- प् फ् ब् भ् म्
इनके उच्चारण के समय जिह्वा मुख के विभिन्न स्थानों का स्पर्श करती है। प्रत्येक वर्ग के अन्तिम वर्ण— ङ्, ञ्, ण्, न् और म् को अनुनासिक भी कहा जाता है, क्योंकि इनका उच्चारण मुख के साथ नासिका से भी होता है।
अंतःस्थ
ये निम्नलिखित चार हैं: य् र् ल् व्; इन्हें अर्धस्वर भी कहा जाता है।
ऊष्म
वे वर्ण जो घर्षण के साथ उच्चरित होते हैं, ऊष्म या संघर्षी व्यंजन कहलाते हैं। ये निम्नलिखित चार हैं- श् ष् स् ह्
संयुक्त
वे वर्ण जो दो वर्णों के मेल से बनते हैं, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।
क्ष = क्+ष्+अ (क्+ष)
त्र = त्+र्+अ (त्+र)
ज्ञ = ज्+ञ्+अ (ज्+ञ)
श्र = श्+र्+अ (श्+र)
उत्क्षिप्त
उत्क्षिप्त का अर्थ होता है “फैलना”। जिन व्यंजनों का प्रयोग एक झटके के साथ होता हो, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं। जैसे: ड़, ढ़
लुण्ठित/प्रकम्पी
जिस वर्ण के उच्चारण में जिह्वा नीचे की ओर लुढ़कती है, उसे लुण्ठित/प्रकम्पी व्यंजन कहते हैं। जैसे – ‘र’
पार्श्विक/वर्त्स्य – ‘ल’
स्वर तंत्री के कंपन के आधार पर व्यंजन का वर्गीकरण
गले की स्वर तंत्री जब वायु के वेग से कांपकर बजने लगती है तब इन स्वर तंत्रियों में होने वाली कंपन, नाद या गूँज के आधार पर व्यंजनों के दो भेद किये जाते हैं:
सघोष: जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वर तंत्रियों में कंपन पैदा होती है उन्हें सघोष व्यंजन कहते हैं।
जैसे: ग, घ, ड, ज, झ, ञ
अघोष: जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वर तंत्रियों में गूँज उत्पन्न नहीं होती है उन्हें अघोष व्यंजन कहते हैं।
जैसे: क, ख, च, छ, ट, ठ
अनुस्वार
इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका उच्चारण नासिका मात्र से होता है। इसका चिन्ह (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।
विसर्ग
इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न (:) है। जैसे-अतः, प्रातः
चंद्रबिंदु
जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है। यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख। हिन्दी वर्णमाला में ११ स्वर तथा ३३ व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या ४८ हो जाती है।
हलंत
जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे-विद्यां।
हिंदी वर्णमाला में वर्णों के उच्चारण-स्थान (Hindi Varnamala: Pronunciation of Letters)
मुख के जिस भाग से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं।
उच्चारण स्थान तालिका:
स्थान | स्वर | व्यंजन | ||
स्पर्श | अंतःस्थ | ऊष्म | ||
कंठ | अ, आ | क् ख् ग् घ् ङ् | य् | ह् |
तालु | इ, ई | च् छ् ज् झ् ञ् | र् | श् |
मूर्धा | ऋ, ऋृ | ट् ठ् ड् ढ् ण् | ल् | ष् |
दन्त | लृ | त् थ् द् ध् न् | स् | |
ओष्ठ | उ, ऊ | प् फ् ब् भ् म् | ||
नासिका | अनुनासिक स्वर | ङ् ञ् ण् न् म् | ||
कंठतालु | ए, ऐ | व् | ||
कंठोष्ठ | ओ, औ |
हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन सहित (Hindi Varnamala: Swar-Vyanjan)
स्वर
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः
स्वर की मात्राएँ: अ, आ ( ा), इ ( ि), ई ( ी), उ (ु), ऊ (ू), ऋ (ृ), ए (े), ऐ (ै), ओ (ो), औ (ौ)
अनुस्वर: अं (ं)
विसर्ग: अः (ाः)
व्यंजन
क, ख, ग, घ, ङ
च, छ, ज, झ, ञ
ट, ठ, ड, ढ, ण
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, भ, म
य, र, ल, व
श, ष, स, ह
क्ष, त्र, ज्ञ
हिंदी वर्णमाला से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
हिंदी वर्णमाला के 52 अक्षर कौन कौन से हैं?
हिंदी वर्णमाला के 52 वर्णो में 11 स्वर, 33 व्यंजन, 2 अयोगवाह और 4 संयुक्त वर्ण हैं। हिंदी वर्णमाला के 52 अक्षर में – स्वर: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, ऋ और व्यंजन:
क, ख, ग, घ, ड़, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र, ड़ ढ़
हिंदी की वर्णमाला में कितने वर्ण होते हैं?
हिन्दी की वर्णमाला में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण होते हैं। इनमें 10 स्वर और 35 व्यंजन होते हैं। लेखन के आधार पर 52 वर्ण होते हैं, जिनमें 13 स्वर, 35 व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं।
13 हिंदी स्वर क्या हैं?
हिंदी वर्णमाला में लेखन के आधार पर 13 हिंदी स्वर इस प्रकार हैं: अ, आ, इ , ई , उ , ऊ , ऋ, ए , ऐ , ओ , औ , अं , अ:
हिंदी वर्णमाला के जनक कौन है?
चूंकि संस्कृत को प्राचीन भाषा का दर्जा प्राप्त है, जिसको देववाणी भी कहा जाता है। और हिंदी के वर्णों की उत्पत्ति संस्कृत से ही हुई है। हिन्दी भाषा के बारे में यह प्रामाणित है कि इनका कोइ लेखक नहीं है, अपितु इनकी उत्पत्ति एक ओमकार से हुई है।
अग्र स्वर क्या होते हैं?
जिन स्वरों के उच्चारण में जिहूवा का अग्र भाग सक्रिय होता है, उन्हें अग्रस्वर कहते हैं। जैसे – ई, ए, ऐ, अ, इ
पश्व स्वर क्या होते हैं?
जिन स्वरों के उच्चारण में जिहूवा का पश्च भाग सक्रिय होता है उन्हें पश्च स्वर कहते हैं। जैसे – आ, उ, ऊ, ओ, औं
संवृत स्वर क्या होते हैं?
संवृत शब्द का अर्थ होता है-कम खुलना; जिन स्वरों के उच्चारण में मुख कम खुलता है, उन्हें संवृत्त स्वर कहते हैं। जैसे – ई, ऊ
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