छत्तीसगढ़ में मुख्यतः 5 प्रकार की मिट्टी पाई जाती है:
- लाल और पीली मिट्टी
- लाल-रेतीली मिट्टी
- लाल-दोमट मिट्टी
- काली मिट्टी
- लैटेराइट मिट्टी
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लाल-पीली मिट्टी
- राज्य के लगभग 55% भाग पर इस प्रकार की मिट्टी का विस्तार है।
- यह छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक भू-भाग में पाई जाने वाली मिट्टी है।
- लाल-पीली मिट्टी का निर्माण मुख्यतः गोंडवाना चट्टानों से हुआ है।
- इसमें पी-एच. मान 5.5% से 8.5% तक होता है।
- इसमें धान, ज्वार, बाजारा, एवं दालों की खेती की जा सकती है।
- इस मिट्टी में नाइट्रोजन एवं जीवांश की कमी तथा लौह ऑक्साइड की अधिकता होती है।
- फेरिक ऑक्साइड के जलयोजन के कारण इस मिट्टी का रंग पीला होता है।
- यह मिट्टी अधिक उपजाऊ नहीं होती है।
- प्रदेश में इस मिट्टी का विस्तार बिलासपुर, रायपुर दुर्ग, धमतरी, बालोद, कवर्धा एवं कोरबा जिला में पाया जाता है।
लाल रेतीली मिट्टी
- छत्तीसगढ़ में लाल रेतीली मिट्टी का क्षेत्र के अनुसार विस्तार दूसरे क्रम में है, जो प्रदेश के लगभग 30% क्षेत्र में मिलती है।
- इस मिट्टी के रवे महीन एवं रेतीले होते है।
- इसकी उर्वरता कम होती है।
- रेत की अधिकता के कारण इस मिट्टी में जल रोकने की क्षमता कम होती है।
- इस मिट्टी में मोटे अनाज जैसे- कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, आलू आदि की खेती की जा सकती है।
- आयरन ऑक्साइड के कणों की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग लाल होता है।
- इस मिट्टी की प्रकृति अम्लीय होती है।
- प्रदेश में इस. मिट्टी का विस्तार, राजनांदगांव, दुर्ग कांकेर एवं बस्तर जिलों में पाया जाता हैं।
लाल दोमट मिट्टी
- यह मिट्टी राज्य के लगभग 10 प्रतिशत भाग में पाई जाती है।
- क्ले युक्त इस मिट्टी में लौह युक्त शैलों का अंश अधिक होने से इनका रंग ईंठ के समान लाल होता है।
- इसका पी-एच. मान 6.6% तक होता है।
- इस मिट्टी में आर्द्रता ग्रहण करने की शक्ति बहुत कम होने के कारण सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
- यह मिट्टी धान एवं मोटे अनाजों की खेती के लिए उपयुक्त है।
- प्रदेश में लाल- दोमट मिट्टी का विस्तार दंतेवाड़ा एवं कोटा तहसीलों में पाया जाता है।
काली मिट्टी
- यह मिट्टी बेसाल्ट नाम आग्नेय चट्टान के क्षरण से बनती है।
- लोहा तथा जीवांश की उपस्थिति के कारण मिट्टी का रंग काला होता है।
- इस मिट्टी में जल संग्रहण की क्षमता अधिक होने से सिंचाई की कम आवश्यकता होती है।
- इसका पी-एच मान 7% से 8% के बीच होता है।
- छत्तीसगढ़ में काली मिट्टी को कन्हारी मिट्टी कहते हैं।
- यह गेहूं, चना, तिलहन, दाल, कपास, सोयाबीन, आदि फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
- प्रदेश मे इस मिट्टी का विस्तार महासमुन्द, पंडरिया, राजिम, रायपुर , कवर्धा , मुगेली , एवं कुरुद तहसील पे पाया जाता हैं।
लैटेराइट मिट्टी
- इसे स्थानीय भाषा में ‘भाठा’ कहते हैं।
- मानसूनी जलवायु इसकी उत्पत्ति का प्रमुख कारण है।
- साल के कुछ महीने बारी-बारी से नम और शुष्क रहतें हैं जिसके कारण शैलें टूटती-फूटती रहती हैं और लैटेराइट मिट्टी का निर्माण होता है।
- इसमें कंकड़ की अधिकता रहती है।
- इसकी जल ग्रहण क्षमता बहुत कम होती है।
- अनुपजाउ होने के कारण कृषि की दृष्टि से यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होती फिर भी इसमें मोटे अनाज, ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, आलू, तिलहन आदि की खेती की जा सकती है।
- इसमें एलुमिनियम एवं आयरन ऑक्साइड उपस्थित होता है।
यह भी देखें: छत्तीसगढ़ राज्य के प्रतीक चिन्ह