षटतिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। आज के दिन तिल का प्रयोग 6 प्रकार से करने पर पापों का नाश होता है और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। तिल के 6 प्रयोग के कारण ही इसे षटतिला एकादशी नाम दिया गया है। पद्म पुराण में बताया गया है कि जो भी भक्त षटतिला एकादशी के दिन उपवास करते हैं, साथ ही दान, तर्पण और विधि-विधान से पूजा करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पापों का अंत होता है।
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षटतिला एकादशी पूजा विधि
- षट्तिला एकादशी व्रत उपवास दशमी के दिन ही शुरू हो जाता है।
- दशमी के दिन गाय के गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बना लें।
- नारदपुराण के अनुसार, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प करना चाहिए,
- अब भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- इसके बाद गंगाजल में तिल मिलाकर तस्वीर पर छीटें दें
- धूप-दीप कर घर में घट स्थापना करें।
- फिर विष्णु सहस्नाम का पाठ करें और उनकी आरती उतारें।
- इस दिन भगवान को तिल का भोग लगाएं।
- साथ ही तिलयुक्त फलाहार खिलाएं।
- इस दिन दान का भी विशेष महत्व है इसलिए तिल का दान करें।
- माना जाता है कि माघ मास में जितना तिल का दान करेंगे उतने हजारों साल तक स्वर्ग में रहने का अवसर प्राप्त होगा।
- एकादशी की रात में भगवान विष्णु का के नामों का कीर्तन करें। साथ ही तिल मिला हुआ गोबर से बने उपलों से हवन करें।
- हवन के वक्त ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का प्रयोग करें।
षटतिला एकादशी व्रत कथा
एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे। वहाँ उन्होंने भगवान विष्णु से ‘षटतिला एकादशी’ की कथा और उसके महत्त्व के बारे में पूछा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि- ‘प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मुझ में बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी आराधना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर शुद्ध हो गया, परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी। अत: मैंने सोचा कि यह स्त्री वैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी। अत: मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा लेने गया।
ब्राह्मण की पत्नी से जब मैंने भिक्षा की याचना की, तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ दिनों पश्चात् वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई। यहाँ उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। ख़ाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली कि- “मैं तो धर्मपरायण हूँ, फिर मुझे ख़ाली कुटिया क्यों मिली?” तब मैंने उसे बताया कि यह अन्न दान नहीं करने और मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं, तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको ‘षटतिला एकादशी’ के व्रत का विधान न बताएं। स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था, उस विधि से ‘षटतिला एकादशी’ का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न-धन से भर गई। इसलिए हे नारद! इस बात को सत्य मानों कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है, उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।
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