मोक्षदा एकादशी पूजा विधि, व्रत कथा

मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि यह व्रत करने से व्रती के साथ साथ उसके पितरों के लिए भी मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। इस दिन सच्‍चे मन से पूजा-आराधना करने से व्‍यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है और उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। मोक्षदा एकादशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण के मुख से श्रीमदभगवद् गीता का जन्म हुआ था, इसीलिए मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती भी मनाई जाती है।

मोक्षदा एकादशी पूजा विधि

  • दशमी तिथि की संध्या से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए
  • एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
  • स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ कपड़े पहने
  • पूजन स्थल की सफाई करें और गंगाजल छिड़कें। 
  • एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु की प्रतिमा को विराजित करें
  • इसके बाद भगवान की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं। 
  • उन्हें वस्त्र अर्पित करें और रोली और अक्षत से तिलक कर फूलों से भगवान का श्रृंगार करें। 
  • भगवान को फल और मेवे का भोग लगाएं। 
  • इस दिन सबसे पहले भगवान गणेश की आरती करें। इसके बाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आरती करें।
  • भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते अवश्य अर्पित करें।
  • गीता का सम्पूर्ण पाठ या अध्याय 11 का पाठ करें
  • व्रत के दौरान मन शांत रखें और क्रोध न करें।
  • शाम के समय दीपक जलाकर भजन-कीर्तन करें।
  • द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें
  • अब खुद भोजन कर व्रत का पारण करें।

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

mokshda ekadashi

पौराणिक कथा के अनुसार, चंपा नगरी में चारों वेदों के ज्ञाता राजा वैखानस राज करते थे। वे बहुत ही प्रतापी और धार्मिक थे। राजा वैखानस को अपना राज्य बेहद प्रिय था। उनकी प्रजा भी खुशहाल थी। लेकिन एक दिन राजा को बहुत बुरा सपना आया और उन्होंने सपने में देखा कि उनके पिता नरक में पड़े हैं और नरक की यातनाएं झेल रहे हैं। अपने पिता की यह दशा देखकर राजा व्याकुल हो उठा। उन्होंने सपने के बारे में पत्नी को बताया। इस पर पत्नी ने राजा को आश्रम जाने की सलाह दी।

राजा आश्रम गए और वहां पर्वत मुनि को राजा ने बहुत ही दुखी मन से अपने सपने के बारे में बताया। इस पर पर्वत मुनि राजा के सिर पर हाथ रखकर कहा कि तुम्हारे पिता को उनके कर्मों का फल मिल रहा है, उन्होंने तुम्हारी माता को तुम्हारी सौतेली माता के कारण बहुत यातनाएं दीं, इसी कारण वे पाप के भागी बने और अब नरक भोग रहे हैं।

राजा ने पर्वत मुनि से इस समस्या का हल पूछा। इस पर मुनि ने कहा कि अब तुम मोक्षदा एकादशी का व्रत करो और उसका फल अपने पिता को अर्पण कर दो, तो उनकी मुक्ति हो सकती है। राजा ने विधि पूर्वक मोक्षदा एकादशी का व्रत किया, तथा ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा और वस्त्र आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया। और व्रत का पुण्य अपने पिता को अर्पण कर दिया। व्रत के प्रभाव से राजा के सभी कष्ट दूर हो गए और उनके पिता को नरक से मुक्ति मिल गई और मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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