आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। किसी किसी जगह इस एकादशी को पद्मनाभा एकादशी, हरिशयनी एकादशी और आषाढ़ी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास (चौमासे) का आरंभ माना जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी का व्रत करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके सभी पापों का नाश होता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा का विशेष महत्व है।
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देवशयनी एकादशी पूजा विधि
- देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है।
- दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- अगले दिन प्रात: काल उठकर स्नान कर लें।
- अब देवशयनी एकादशी व्रत का संकल्प करें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर पूजन करना चाहिए।
- पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।
- भगवान को ताम्बूल, पुंगीफल अर्पित करने के बाद इस मंत्र द्वारा स्तुति की जानी चाहिए:- ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।’
- देवशयनी एकादशी व्रत की कथा भी सुनें।
- द्वादशी के समय ब्राह्मणों को भोजन कर कराकर उन्हें दान-दक्षिणा दें।
- अब आप स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट रहता था, जिसकी चर्चा तीनों लोक में थी। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। एक बार की बात है जब उनके राज में भयानक अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। यह देख मांधाता चिंतित हो उठें। वह प्रजा की भलाई के लिए आतुर थे, किंतु अकाल से कैसे मुक्ति पाए, इसकी कोई युक्ति उन्हें नहीं सूझ रही थी। इसके बाद राजा मांधाता अपनी सेना के साथ जंगल की ओर चल दिए।
जब वह वन में विचरण कर रहे थे तो भटकते-भटकते अंगिरा ऋषि के आश्रम जा पहुंचें। जहां उन्होंने अंगिरा ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। राजा मांधाता ने कहा- हे ऋषि ! मैं कोई पापकर्म में संलिप्त नहीं हूं। प्रजा की भलाई में हमेशा तत्पर रहता हूं। फिर भी यह कौन सी विपदा आन पड़ी है जो राज्य में भयानक अकाल आ पड़ा। अगर तत्काल को समाधान नहीं निकला तो प्रजा भूख-प्यास से मर जाएगी और इनकी हत्या का पाप मुझ पर लगेगा। आप कृपया इसका समाधान करें।
तब ऋषि अंगिरा ने कहा- हे राजन ! मैं आपकी व्यथा को समझता हूं, लेकिन आपको बताना चाहूंगा कि सतयुग में धर्म कर्म का विशेष महत्व है। अगर आप अधर्मी हो जाते हैं या छोटा सा छोटा पाप करते हैं तो आपको पाप कर्म का दंड जरूर मिलता है। ऐसा हो सकता है कि प्रजा के किसी सदस्य द्वारा कोई पाप कर्म किया जा रहा हो। अगर आप प्रजा की हित चाहते हैं तो हर साल देवशयनी एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के पुण्य प्रताप से आपके राज में जरूर बारिश होगी।
राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और ऋषि अंगिरा के वचनानुसार राजा मांधाता ने देवशयनी एकादशी का व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उनके राज्य में बहुत बारिश हुई। इस बारिश से प्रजा को अकाल से मुक्ति मिली और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
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