महाभारत की लघु कथाएं

महाभारत, एक ऐसा ग्रन्थ जिसमें एक ही वंश के 2 परिवारों के बीच के आपसी द्वेष को दर्शाया गया है, धर्म की स्थापना हेतु अपने ही परिवार के विरुद्ध युद्ध करने में पाण्डु पुत्रों को साखोच तो हुआ परन्तु भगवान् श्री कृष्ण के मार्गदर्शन के पश्चात कुरुक्षेत्र के मैदान में महासंग्राम हो ही गया। महाभारत में ऐसा बहुत से किस्से हैं जिनका वर्णन एक बहुत ही छोटे समय के लिए महाभारत में मिलता है, परन्तु ये छोटे छोटे वृत्तांत महाभारत में अहम् भूमिका रखते हैं। आइये जानते हैं महाभारत के ऐसे ही छोटे छोटे किस्से:

चिड़िया की आँख और अर्जुन

एक बार की बात है, दुर्योधन से गुरु द्रोणाचार्य पर हमेशा अर्जुन का पक्ष लेने का आरोप लगाया, तब द्रोणाचार्य ने दुर्योधन के प्रश्न का जवाब देने के लिए सबसे एक परीक्षा लिया। द्रोणाचार्य ने एक लकड़ी की चिड़िया को एक पेड़ की डाली पर रख दिया। लक्ष्य साधने से पहले द्रोणाचार्य ने सभी से कुछ प्रश्न किये।

सबसे पहले द्रोणाचार्य ने जेष्ठ भाई युधिष्ठिर से प्रश्न किया – युधिष्ठिर तुम्हें पेड़ पर क्या दिखाई दे रहा है?  युधिष्ठिर ने उत्तर दिया – गुरु जी मुझे पेड़ पर वह लकड़ी की चिड़िया, टहनियां,  पत्ते और कुछ अन्य चिड़िया दिख रहे हैं।तभी द्रोणाचार्य जी ने युधिष्ठिर को निशाना लगाने के लिए मना कर दिया। इसी प्रकार द्रोणाचार्य जी ने एक-एक करके सबसे एक ही प्रश्न पूछा कि उन्हें पेड़ पर क्या दिखाई दे रहा है?  परंतु किसी को फिर नजर आता तो किसी को डाली नजर आती या फिर किसी को पास में दूसरा पेड़।

जब द्रोणाचार्य मैं अर्जुन से प्रश्न किया – अर्जुन तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?  तभी अर्जुन ने उत्तर दिया गुरु जी मुझे तो बस चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है, सिर्फ आंख।  गुरुजी खुश हुए और उन्होंने अर्जुन को तीर चलाने के लिए कहा। अर्जुन ने धनुष से निशाना साधा और तीर छोड़ दिया।  तीर सीधा जा कर उस लकड़ी की चिड़िया की आंख में जाकर लगी।

सूर्य पुत्र कर्ण का जन्म

महाभारत कथा में कर्ण की भूमिका बहुत ही अहम है। कर्ण ने यूं तो महभारत का युद्ध दुर्योधन के पक्ष से किया था, पंरतु कर्ण जैसे महान योद्धा की मृत्यु के समय दोनों ही पक्ष उनके शव के समक्ष नतमस्तक थे| कर्ण भी माता कुंती के ही पुत्र थे जो सूर्य भगवान के आशीर्वाद से हुए थे। उस समय कुंती का विवाह पांडू से नहीं हुआ था जिसके कारण माता कुंती को इस बात का भय हुआ कि लोग बच्चे के विषय में क्या पूछेंगे इसलिए उन्होंने करण को एक टोकरी में डाल कर नदी के पानी में बहा दिया। वह शिशु बाद में अधिरथ और राधा को मिला जिन्होंने उन्हें बड़ा किया। कर्ण भीअर्जुन की तरह ही महान धनुर्धर थे। कर्ण ने अपनी मृत्यु को रोकने वाले कवच और कुण्डल भी देवराज को युद्ध के प्रारम्भ से पहले दान कर दिए थे, इसी कारण कर्ण को महान दान वीर के रूप में जाना जाता है।

महान धनुर्धर एकलव्य की गुरु दक्षिणा

एकलव्य एक आदिवासि बालक था जो गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखना चाहता था। परन्तु एकलव्य छोटी जाती होने के कारण गुरु द्रोणाचार्य ने तीरंदाजी सिखाने से मना कर दिया।  एकलव्य किसी भी प्रकार से धनुर्विद्या सीखना चाहता था इसलिए उसने द्रोणाचार्य की प्रेरणा के रूप में एक मिटटी की मूर्ति स्थापित की और दूर से गुरु द्रोणाचार्य को देख कर धनुर्विद्या का प्रयास करने लगा।बाद में एकलव्य,अर्जुन से भी बेहतरीन तीरंदाज बन गए। जब गुरु द्रोणाचार्य को इसके विषय में पता चला तो उन्होंने गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य का अंगूठा काटने को कहा। एकलव्य इतना महान था की यह जानते हुए भी की अंगूठा काटने पर वह जीवन में और धनुष का उपयोग नहीं कर पायेगा उसने अपने अंगूठे को गुरु दक्षिणा के रूप में काट दिया| एकलव्य के सामान गुरु दक्षिणा देने वाला शिष्य, इतिहास में कहीं भी नहीं मिलता।

द्रौपदी विवाह की कहानी

द्रुपद अपनी बेटी द्रौपदी का विवाह अर्जुन से करवाना चाहते थे परंतु जब उन्हें पता चला की वारणावत में पांचों पांडवों की मृत्यु हो गई है तो उन्होंने द्रोपदी को दूसरे पति का चुनाव करने के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। स्वयंवर की शर्त के अनुसार एक बर्तन में एक मछली को छोड़ दिया गया था और शर्तानुसार मछली के प्रतिबिम्ब में उस मछली को देख कर उसकी आँख पर निशाना लगाना था। प्रतियोगिता में बहुत बड़े-बड़े राजा महाराज आए थे परंतु सभी इस कार्य में असफल रहे। जब कर्ण ने कोशिश करना चाहा तो द्रोपदी ने कोशिश करने से पहले ही से कर्ण से विवाह करने से इंकार कर दिया और कहा मैं एक सारथी के पुत्र से विवाह नहीं करूंगी।तभी पांचो पांडव ब्राह्मण के रूप में वहां पहुंचे और अर्जुन ने प्रतिबिंब में देखते हुए मछली को तीर से मारा और प्रतियोगिता को जीत लिया। उसके बाद द्रौपदी का विवाह अर्जुन से हो गया।  जब वह पांचो पांडव घर अपनी माता कुंती के पास पहुंचे तो उन्होंने कहां की अर्जुन  को एक प्रतियोगिता में एक फल की प्राप्ति हुई है। यह सुनकर कुंती ने उत्तर दिया जो भी फल है सभी भाई समान भागों में बांट लो। ऐसा होने के कारण ही द्रौपदी पाँचों पांडवों की पुत्री हुयी और पांचाली कहलायी।

द्रौपदी चीर हरण की कहानी

कौरव की ओर से शकुनी मामा के चाल के कारण पांडवों ने अपना सबकुछ पासों के खेल में खो दिया। अपने राज्य को किसी भी तरह वापस पाने के लिए युधिष्ठिर ने अंत में अपने सभी भाइयों समेत द्रौपदी तक को दाव पर लगा दिया और वह द्रौपदी को भी पासों के खेल में हार गए। जब द्रौपदी को भी पांडव हस्तिनापुर में पासों के खेल में हार गये तब दुर्योधन ने छोटे भाई दुशासन को रानी द्रौपदी को दरबार में लाने के लिए कहा। तभी दुशासन द्रौपदी के पास गया और उनके बालों को पकड़कर खींचते हुए दरबार में लेकर आया। सभी कौरवों ने मिलकर द्रौपदी का बहुत अपमान किया।दुर्योधन ने उसके बाद अपने भाई को भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण अर्थात निर्वस्त्र करने को कहा।  दुशासन ने बिना किसी लज्जा के द्रौपदी के वस्त्र को खींचना शुरू किया परन्तु भगवान् श्री कृष्ण की कृपा से दुशासन कपडे खींचते-खींचते थक गया परन्तु वह रानी द्रौपदी का चिर हरण ना कर पाया। ऐसा माना जाता है एक बार श्री कृष्ण के हाथ से रक्त धरा बहने पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक छोटा श्री कृष्ण के हाथों में बाँधकर रक्त के प्रवाह को रोका था, उसी दिन श्री कृष्ण ने द्रौपदी को उसकी रक्षा का वचन दिया था और उसी वचन को उन्होंने हस्तिनापुर की सभा द्रौपदी के स्त्रीत्व की रक्षा कर पूरा किया।

हिडिंबा और भीम

हिडिंबा एक  आदमखोर  रक्षासनी थी जिसने पांडवों को मार डालने की कोशिश की थी परंतु भीम ने उसे परास्त कर दिया। बाद में भीम ने हिडिंबा की बहन हिडिंबी से विवाह किया था जिससे उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम था घटोत्कच जिसने महाभारत के युद्ध में अपनी अच्छी भूमिका निभाई थी। महाभारत के युद्ध में घटोत्कच ने कौरव सेना के बीच हाहाकार मचा दिया था, जिससे परेशान होकर कर्ण ने दिव्यास्त्र का प्रयोग घटोत्कच पर कर उसे युद्धभूमि में पराजित कर दिया।

भीष्म पितामह के पांच बाण

महाभारत का युद्ध चल रहा था और भीष्म पितामह कौरवों की ओर से लड़ रहे थे। तभी दुर्योधन उनके पास आया और उसने अपने हारते हुए सेना का बखान करते हुए कहा – की आप अपनी पूरी ताकत से युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। यह सुनकर भीष्म पितामह का बहुत ही बुरा और गुस्सा आया और उन्होंने उसी समय 5 सोने के तीर निकालें और कुछ मंत्र पढ़ते हुए दुर्योधन से कहा की इन 5 तीरों की मदद से कल सुबह मैं पांडवों को खत्म कर दूँगा। परंतु भीष्म पितामह की बातों  पर दुर्योधन को भरोसा नहीं हुआ और उसने वह पांच तीर अपने पास रख लिए।जब श्रीकृष्ण को इसके विषय में पता चला तो श्री कृष्ण में अर्जुन को बुलाया और कहा कि तुम दुर्योधन के पास जाकर वह पांच तीर मांग लो जो तुम्हारे विनाश का कारण बन सकते हैं।  वह दिन याद करो जब तुमने दुर्योधन को गंधर्व से बचाया था उसके बदले दुर्योधन ने तुम्हें कहा था कि कोई भी चीज जान बचाने के लिए मांग लो अब वह समय आ गया है की तुम वह  इन 5 तीरों को मांग लो।अर्जुन गए और उन्होंने को उसके वचन की याद दिलाते हुए वह तीर मांगे । एक क्षत्रिय होने के नाते दुर्योधन को  वह 5 तीर अर्जुन को देने पड़े।

द्रोणाचार्य और धर्मराज युधिष्टिर

महाभारत में द्रोणाचार्य की मृत्यु की यह रोमांचक कथा है। द्रोणाचार्य एक महान गुरु थे जिनकी मृत्यु तब तक संभव नहीं था जब तक की वह अपने हथियार ना दाल दें। उनको हथियार डलवाने के लिए श्री कृष्ण एवं पांडवों ने एक योजना बनाई। उस समय युद्ध में एक हाथी अश्वथामा का वध भीम ने किया था और श्री कृष्ण जी को पता था की द्रोणाचार्य को अपने पुत्र अश्वथामा से बहुत प्रेम था।उनके योजना के अनुसार वह युधिष्टिर की मदद से गुरु द्रोणाचार्य को यह बताना चाहते थे कि उनका पुत्र अश्वथामा का वध भीम ने कर दिया है। योजना के अनुसार क्योंकि युधिष्टिर ने कभी भी जीवन में असत्य नहीं कहा था उनकी बातों का द्रोणाचार्य ने विश्वास किया और हथियार त्याग दिए और ध्यान में बैठ गए। उसी समय द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य पर प्रहार कर के उनका वध कर डाला। इस छल के परिणाम स्वरुप युद्ध समाप्ति के बाद अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पाँचों पुत्रों समेत, धृष्टद्युम्न की भी हत्या कर दी थी|

गीता का सार

यह बात तो सत्य है की महाभारत की सबसे मुख्य कहानी गीता सार है जो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध क्षेत्र के मध्य में सुनाया था। भले ही अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करने के लिए श्री कृष्ण ने गीता के उपदेश दिए परन्तु असली में जीवन के हर एक प्रश्न का उत्तर है “श्री मद्भागवत गीता”।जो व्यक्ति आज भी गीता के हर एक चीज को पढ़ ले वह जीवन में हर प्रश्न का उत्तर दे सकता है। गीता मनुष्य को यह सीख देता है की भगवान् पर सबकुछ छोड़े बिना हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए यह संसार की रित है। गीता के उपदेश में श्री कृष्ण ने कर्म की प्रधानता को महत्व बताया है, बताया है की इंसान के हाथ में मात्रा कर्म करना ही है उसके फल का निश्चय भगवान् के हाथों में है।

अभिमन्यु और चक्रव्यूह

अभिमन्यु धनुर्धारी अर्जुन के पुत्र और भगवान श्री कृष्ण के भतीजे थे। महाभारत के अनुसार जब अभिमन्यु अपनी माता की कोख में थे तभी उन्होंने अपने पिता अर्जुन से चक्रव्यू को तोड़ना सीख लिया था। अभिमन्यु चंद्र देव के पुत्र का अवतार थे। अभिमन्यु बहुत ही शक्तिशाली और निडर योद्धा था।अभिमन्यु ने 12 दिन तक लगातार  निडरता से युद्ध किया और 13 दिन द्रोणाचार्य द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह को अभिमन्यु ने तोड़ दिया और कौरवों की सेना को ध्वंस कर दिया। परंतु अपनी मां के पेट में रहते समय अभिमन्यु ने यह तो सुना था कि चक्रव्यूह को तोड़ा कैसे जाता है परंतु उसे यह नहीं पता था चक्रव्यूह से निकलते कैसे हैं इसीलिए अंत में कौरवों ने चक्रव्यूह के अंदर अभिमन्यु को घेर कर समाप्त कर दिया।

सारथि संजय एवं श्री कृष्ण विराट रूप

श्री कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया गया था| वहीँ पर श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन दिए थे, उस विराट रूप के दर्शन मैदान में उपस्थित किसी और योद्धा को नहीं हुए थे, परन्तु हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र के महल में बैठे सारथि संजय को महर्षि वेद व्यास द्वारा दिव्या दृष्टि प्राप्त थी, उसी दृष्टि के फलस्वरूप संजय ने श्री कृष्ण के विराट स्वरुप के दर्शन किये थे| यह दृष्टि वेद व्यास महाराज धृतराष्ट्र को देना चाहते थे, जिससे वे युद्ध को स्वयं अपने महल में बैठ कर देख सकें| परन्तु धृतराष्ट्र ने यह दृष्टि संजय के मांग ली,और इसी के फलस्वरूप संजय कुरुक्षेत्र में होने  वाली  हर  घटना  का वृत्तांत महाराज  को सुनाया करते थे, साथ ही साथ संजय को श्री नारायण  के उस रूप के भी दर्शन हो गए , जिसके लिए साधारण  मनुष्य  को वर्षों  तक साधना करनी पड़ती है|

यह भी देखें: महाभारत