आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी पितृ पक्ष में पड़ती है। मान्यताओं के अनुसार, पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि इंदिरा एकादशी का व्रत रखना और व्रत कथा सुनना तथा भगवान विष्णु की पूजा करना पुण्यकारी होता है। इंदिरा एकादशी का व्रत अगले दिन यानी द्वादशी तिथि में पारण मुहूर्त में खोला जाता है। एकादशी के दिन झूठ बोलने से बचना चाहिए और गुस्सा नहीं करना चाहिए और वाद-विवाद से दूर रहना चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा राज्य करता था। महिष्मति राज्य में जनता को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं था। प्रजा सुखपूर्वक रहती थी। राजा इंद्रसेन पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन नारद जी इंद्रसेन के दरबार में उपस्थित हुए और राजा को पिता का सदेंश सुनाया। नारद जी ने राजा को बताया कि पिछले जन्म में तुम्हारे पिता का एकादशी का व्रत खंडित हो गया था इसके परिणामस्वरूप उन्हें यमलोक में यातनाएं सहनी पड़ रही हैं। इसलिए हे राजन! आपके पिता ने मुझे आपके पास भेजा है, ताकि मैं आपको यह बता सकूं और आप उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए कार्य कर सकें।
राजा इंद्रसेन ने देवर्षि नारद जी से पूछा कि वह किस तरह अपने पिता को यम यातनाओं से बचाकर मोक्ष दिलवा सकते हैं। नारद जी ने राजा को उपाय बताते हुए कहा कि यदि वह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत रखें तो उनके पिता को स्वर्ग की प्राप्ति होगी।
राजा ने नारद जी से इंदिरा एकादशी के व्रत के बारे में विस्तार से जानकारी देने का आग्रह किया। इस पर नारद जी ने कहा कि एकादशी तिथि से पूर्व दशमी को विधि विधान से पितरों का श्राद्ध करें और एकादशी की तिथि को व्रत रखें और द्वादशी के दिन भगवान की पूजा के बाद दान आदि का कार्य करने के बाद व्रत का पारण करें।
नारद जी ने इंद्रसेन से कहा कि इस तरह से व्रत करने से पिता को स्वर्ग प्राप्त होगा। राजा इंद्रसेन ने नारद के बताए हुए नियमों के अनुसार ही व्रत किया। एकादशी का व्रत रखने के कारण उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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