Tribes of Rajasthan – राजस्थान की जनजातियां निम्नलिखित हैं:
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मीणा जनजाति
राजस्थान की सबसे बड़ी जनजाति मीणा जनजाति है जो मुख्य रूप से उदयपुर, दौसा ,करौली, सवाई माधोपुर एवं उदयपुर जिले में निवास करती है यह नगरी क्षेत्रों में रहने वाली सबसे बड़ी जनजाति है
- मीणा जाति ने पूर्व में आमेर में शासन किया आमेर के नए राजा का राजतिलक भी नांगल राजा वतान (दौसा) के मीणा जाति के सरदार द्वारा किया जाता था
- जयपुर से आगरा तक वितरित काली को पर्वत श्रंखला को कर्नल टॉड ने मीणाओं का मूल स्थान बताया है
- मुनि मगन सागर जी ने अपने ग्रंथ मीणा पुराण में मीणा जाति को भगवान मेनका वंशज बताया है इस जनजाति का गण चिन्ह मछली है
- भूरिया बाबा इस जनजाति के इष्ट देव है सिरोही जिले में पोसालिया गांव के पास स्थित गोमतेश्वर मीणा जाति का प्रमुख आस्था केंद्र है इस जाति के मृतक के श्राद्ध को पानी देना कहा जाता है पूर्वी राजस्थान में रस्म दिवाली के पर्व पर संपन्न की जाती है
- इस जनजाति में बहन के पति को विशेष सम्मान दिए जाने की परंपरा है
- मीणा जनजाति को 24 भागों में बांटा गया है एवं गोत्रों की संख्या 5200 है
- इस जनजाति में 2 वर्ग होते हैं 1 . चौकीदार 2. जमीदार
- मीणा जनजाति का मुख्य व्यवसाय खेती है मोहनी मांडणा परंपरा का संबंध किस जनजाति से है
- इस जाति में नाता प्रथा विद्यमान है इस जनजाति का मुखिया पटेल होता है
- वर्तमान में मीणा जनजाति राज्य की सर्वाधिक शिक्षित जनजाति है
भील जनजाति
भील राजस्थान की सर्वाधिक प्राचीन जनजाति है जनजाति भीलवाड़ा ,उदयपुर, सिरोही डुंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ जिले में निवास कर रही है
- ब्रिटिश विद्वान दोनों ने अपने ग्रंथ वाइल्डट्रेल्स ऑफ इंडिया में मारवाड़ को भीलो का आदमी स्थान बताया है कर्नल टॉड भीलो को वनपुत्र कहां है
- भील शब्द को द्रविड़ भाषा के बिल का अपभ्रंश माना जाता है जिसका अर्थ तीर कमान होता है
- इस जाति के घर को टापरा एवं छोटे गांव को फला कहते हैं
- बड़े गांव को पाल कहते हैं एवं पाल के मुखिया को गमेती कहा जाता है बिलों के आयताकार घर को कू कहा जाता है
- भीलो द्वारा पहने जाने वाली तंग धोती ढेपवाड़ा कहलाती है
- यह लोग झूमिंग कृषि से अपना जीवन यापन करते हैं झूमिंग कृषि के दो प्रकार होती हैं 1 मैदानी भागों में वनों को जलाकर की जाने वाली कृषि दजिया कहलाती है 2 पहाड़ी भागों में भी लो द्वारा बनो को जलाकर की जाने वाली खेती की चिमाता कहलाती है
- भीलो के गोत्र अटक कहलाते हैं इस जाति में मृत्यु भोज को कट्टा कहा जाता है भराड़ी इनकी भित्ति चित्रण लोक देवी है
- बिल्कुल का देवता टोटम कहलाता है
- चीरा बावसी प्रथा इस जाति में पाई जाती है इसे सिरा चौकली भी कहते हैं
गरासिया जनजाति
जनसंख्या के अनुसार यह जनजाति राज्य में तीसरे स्थान पर है यह जाति मुख्य रूप से सिरोही ,पाली ,उदयपुर ,डूंगरपुर, बांसवाड़ा जिले में पाई जाती है
- गरासिया जनजाति लोक कथाओं में स्वयं को अयोध्या निवासी बा भगवान रामचंद्र का वंशज मानती है
- ताड़ना विवाह (फेरे नहीं होते हैं दापा अर्थात कन्या मूल्य वर पक्ष द्वारा चुकाया जाता है)का संबंध गरासिया जनजाति से है
- पेहराव ना विवाह में ब्राह्मण की अनुपस्थिति में फेरे लिए जाते हैं
- इस जाति में हिंदुओं की तरह मोर बंदिया विवाह होते हैं
- गरासिया जाति का सबसे बड़ा मेला चैत्र शुक्ला तृतीया को सिरोही के समीप सियावा में लगने वाला मन खारो मिला है
- इस जनजाति में आखातीज को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है
- गरासिया जनजाति में कृषि का सामूहिक रूप से हारी भावरी कहलाता है
- इस जनजाति में मृतक व्यक्ति के स्मारक को हुरे /मोरी कहा जाता है
सहरिया जनजाति
यह जनजाति सर्वाधिक 12 जिले के शाहबाद एवं किशनगंज पंचायत में पाई जाती है
- राज्य की सहरिया जनजाति का 99.47% भाग 12 जिले में निवास करता है
- सहरिया जनजाति की उत्पत्ति प्रेशियन शब्द सेहर से हुई है
- राज्य की यह एकमात्र जनजाति है जिसे भारत सरकार द्वारा सर्वाधिक पिछड़ी जनजाति होने के कारण आदिम जनजाति का दर्जा दिया गया है
- 12 जिले का सीताबाड़ी इस जनजाति का प्रमुख स्थान है सीताबाड़ी मेले को इस जनजाति का कुंभ कहा जाता है
- चौरसिया सहरिया जनजाति की सबसे बड़ी पंचायत होती है
- यह जनजाति बाल्मीकि को अपना आदि गुरु मानती है
- सहरिया परिवार की कुलदेवी कोडीया देवी है
- धारी संस्कार का संबंध सहरिया जनजाति से है इस जनजाति में मृतक का श्राद्ध करने की परंपरा नहीं है
डामोर जनजाति
यह जनजाति सर्वाधिक डूंगरपुर जिले की सीमलवाड़ा पंचायत समिति में निवास करती है राज्य में कुल डामोर ओं का 70.88% भाग डूंगरपुर जिले में निवास करता है
- डामोर जनजाति की जाति पंचायत का मुखिया मुखी कहलाता है
- इस जाति के पुरुष भी महिलाओं की तरह गहने पहनते हैं
- डामोर जनजाति का सर्वर प्रमुख मेला गुजरात के पंचमहल में आयोजित होने वाला झेलाबावसी का मेला है
- इसके अलावा डूंगरपुर में भी इस जनजाति का ग्यारसी का रेवाड़ी मेला भरता है
कंजर जनजाति
राजकीय जनजाति घुमंतू जाति अपराध वृत्ति हेतु प्रसिद्ध है
- मोर का मांस इस जनजाति को सर्वाधिक लोकप्रिय है
- कंजरो की कुलदेवी रक्तदन टी माता का मंदिर बूंदी के संतूर में स्थित है
- इस जनजाति में सच्चाई उगलवाने हेतु हाकम राजा का प्याला पी कर कसम खाने की परंपरा है
- इस जनजाति में मरते समय मृतक के मुंह में शराब डालने की प्रथा है
कथोडी जनजाति
यह जनजाति मुख्य रूप से उदयपुर जिले के झाडोल, कोटडा, सराणा पंचायत में निवास करती है
- इस जनजाति का मूल निवास स्थान महाराष्ट्र है इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय खैर वृक्ष से कत्था तैयार करना है
- जनजाति को शराब अति प्रिय है इस जनजाति की महिलाएं भी पुरुषों के साथ शराब पीती हैं
- इस जनजाति की महिलाएं मराठी अंदाज में साड़ी पहनती है जिसे फड़का कहा जाता है
सांसी जनजाति
यह जनजाति भरतपुर जिले में मुख्य रूप से पाई जाती है इस जनजाति की उत्पत्ति सांस मल नामक व्यक्ति से मानी गई है
- सांसी जनजाति के दो भाग वीजा एवं माला है
- इस जनजाति को सांड व लोमड़ी का मांस सर्वाधिक प्रिय है
- सांसी जनजाति में विवाह के अवसर पर युवती द्वारा दी जाने वाली चारित्रिक पवित्रता की परीक्षा को कुड्की की रस्म कहा जाता है