छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियां (Tribes of Chhattisgarh) निम्नलिखित हैं:
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गोंड जनजाति
- जनसंख्या की दृष्टि से ये राज्य की सबसे बड़ी जनजाति है.
- ये बस्तर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोंडागांव, कांकेर, सुकमा,जांजगीर-चंपा और दुर्ग जिले में पाये जाते हैं.
- गोंड तथा उसकी उपजातियां स्वयं की पहचान ‘कोया’ या ‘कोयतोर शब्दों से करती है जिसका अर्थ ‘ मनुष्य’ या ‘पर्वतवासी मनुष्य’ है.
- आजादी के पूर्व छत्तीसगढ़ राज्य के अंतर्गत आने वाली 14 रियासतों में 4 रियासत क्रमशः कवर्धा, रायगढ़, सारंगढ एवं शक्ति गोंड रियासत थीं.
बैगा
- बैगा का अर्थ होता है पुराहित. यह गोंडों के परंपरागत पुरोहित हैं.
- इन्हें विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है.
- बैगा जनजाति की उपजातियों में ‘नरोतिया’, ‘भरोतिया’, ‘रायमैना’, ‘कंठमैना’ और ‘रेमैना’ आदि प्रमुख हैं.
- बैगा लोगों में संयुक्त परिवार की प्रथा पायी जाती है. इनमें मुकद्दम गाँव का मुखिया होता है.
- इन्हें वनौषधियों का अच्छा ज्ञान है. इस जाति के लोग झाड़-फूँक और अंध विश्वास जैसी परम्पराओं में विश्वास करते हैं.
- इन्हें गोदना बहुत प्रिय है.
- इस जाति का मुख्य व्यवसाय झूम खेती एवं शिकार करना है.
- इस जाति के लोग शेर को अपना अनुज मानते हैं.
- इनमें सेवा विवाह की ‘लामझेना’, ‘लामिया’ और ‘लमसेना’ प्रथा प्रचलित हैं.
- बैगा जनजाति के लोग पीतल, तांबे और एल्यूमीनियम के आभूषण पहनते हैं.
- इस जाति में ददरिया प्रेम पर आधारित नृत्य दशहरे पर एवं परधौनी लोक नृत्य विवाह के अवसर पर होता है.
- बैगा जनजाति मंडला जिले के चाड़ा के घने जंगलों में निवास करने वाली जनजाति है.
- इस जनजाति के प्रमुख नृत्यों में बैगानी करमा, दशहरा या बिलमा तथा परधौनी नृत्य है. इसके अलावा विभिन्न अवसरों पर घोड़ा पैठाई, बैगा झरपट तथा रीना और फाग नृत्य भी करते हैं. बैगा करधौनी नृत्य विवाह के अवसर पर बारात की अगवानी के समय किया जाता है, इसी अवसर पर लड़के वालों की ओर से आंगन में हाथी बनकर नचाया जाता है. बैगा फाग होली के अवसर पर किया जाता है. इस नृत्य में मुखौटे का प्रयोग भी होता है.
उरांव जनजाति
- ये रायगढ़, जशपुर, सरगुजा और बिलासपुर जिलों में रहते हैं.
- इनके नाम पशुओं, पक्षियों, मछली,पौधों तथा वृक्षों के नाम पर रखे जाते हैं.
- इनमे लड़के लड़कियां विवाह से पूर्व स्वच्छन्द रहते है. इनमे विवाह से पूर्व यौन संबंधों पर आपत्ति नही की जाती है.
- इनमे तलाक,विधवा एवं बहु विवाह का भी प्रचलन है.
- उरांव के प्रमुख देवता धर्मेश हैं, जो सूर्य देवता का ही रूप है.
- पुरुष घोती और स्त्रियां साड़ी पहनती हैं. पीतल के आभूषण और मोतियों की माला बहुत लोकप्रिय है.
- गांव का प्रमुख मांझी होता है. अनेक गांवों से मिलकर परहा बनता है जिसका प्रमुख परहा राजा गांवों के विवादों में फैसला करता है.
- बड़ी संख्या में इन्होाने इसाई धर्म ग्रहण कर लिया है.
- प्रमुख उत्सव सरहुल और कतिहारी हैं. सरहुल, साल के वृक्ष के फूलने पर आयेजित होता है.
- धान बुवाई के समय यह कर्मा नृत्य करते हैं.
- इनकी बोली कुरुख है.
- इनमें शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा है और इस समुदाय के काफी लोग उच्च शासकीय पदों पर हैं.
कोरबा जनजाति
- ये कोरबा, बिलासपुर, सरगुजा, सूरजपुर एवं रायगढ़ जिले के पूर्वी भाग में निवास करते हैं.
- इनकी उपजाति में दिहाड़ी एवं पहाड़ी कोरबा प्रमुख हैं. दिहाड़ी कोरबा कृषि कार्य करते है. इस कारण इन्हें किसान कोरबा भी कहा जाता है.
- पहाड़ी कोरबा को बेनबरिया भी कहा जाता है.
- कोरबा जनजाति की अपनी पंचायत होती है, जिसे मैयारी कहते हैं.
- कोरबा जनजाति का मुख्य त्योहार करमा होता है.
- पहाड़ी कोरबा को विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है.
- पुरुष कमीज, बंडी और धोती पहनते हैं, महिलाएं सफेद साड़ी पहनती हैं.
- चावल की बनी हंडि़या शराब इन्हें बहुत प्रिय है.
- यह मानते हें कि हल चलाने से धरती को कष्टत होता है इसलिये स्थानान्तंरित कृषि करते हें जिसे बेवार कहा जाता है.
- इनके मुख्य देवता बूढ़ा देव, खुडि़या रानी, ठाकुर देव, करम देव आदि प्रमुख हैं.
- मुख्य त्योहार करमा, नवाखनी, देवारी, सोहराई, होली आदि हैं. सिंगरी 5 साल में एक बार मनाया जाता है जिसमें महिलाएं भित्ति चित्र बनाती हैं.
- मृतक संस्कातर वनाघावी किया जाता है जिसमें कुमारी भात क्रियाकर्म होता है.
माड़िया जनजाति
- ये नारायणपुर, बस्तर, कोंडागांव एवं बिलासपुर जिले में रहते हैं.
- यह गोंडों की उपजाति है.
- भूमियां, भुईहार एवं पांडो इस जनजाति की प्रमुख उपजाति हैं. ‘भीमसेन’ इन लोगो का मुख्य देवता है.
- यह सिर पर सींग पहनकर नृत्य करते हैं इसलिए इन्हें बाइसन हार्न माड़िया भी कहा जाता है.
हल्बा जनजाति
- ये बस्तर, रायपुर, कोंडागांव, कांकेर, सुकमा, दंतेवाड़ा एवं दुर्ग जिले में निवास करते हैं.
- इनकी उपजातियों में बस्तरिया, भतेथिया, छत्तीसगढ़िया आदि मुख्य है.
- हलवाहक होने के कारण इस जनजाति का नाम हल्बा पड़ा है.
अबूझमाड़िया
- यह भी माड़िया की उपजाति है.
- यह अपनी उत्पत्ति कुर्सटुरंगा से मानते हैं, जिन्हें यह अपना पूर्वज मानते हैं.
- यह नारायणपुर के अबूझमाढ़ में रहते हैं.
- इन्हें विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है.
- इनका प्रिय पेय सल्फी है.
- यह स्थानान्तरित खेती करते हैं जिसे पेड्डा कहा जाता है.
- प्रमुख आराध्या भूमि देवी हैं.
- गायता, गुनिया और बड्डे गांव के प्रमुख माने जाते हैं.
- नवाखानी, बीदरी, मड़ई इनके प्रमुख त्योहार हैं.
- इनका सबसे प्रसिध्द नृत्य गौर नृत्य है.
- अबूझमाढ़ छत्तीसगढ़ का सबसे दूरस्थ और पिछड़ा क्षेत्र है.
- यहां पर अभी तक संचार के साधन नहीं पहुंचे हैं.
मुड़िया
- बस्तर की मुड़िया जनजाति अपने सौन्दर्यबोध, कलात्मक रुझान और कला परम्परा में विविधता के लिए ख्यात है.
- इस जनजाति के ककसार, मांदरी, गेंड़ी नृत्य अपनी गीतात्मक, अत्यंत कोमल संरचनाओं और सुन्दर कलात्मक विन्यास के लिए प्रख्यात है.
- मुड़िया जनजाति में आओपाटा के रूप में एक आदिम शिकार नृत्य-नाटिका का प्रचलन भी है, जिसमें उल्लेखनीय रूप से नाट्य के आदिम तत्व मौजूद हैं.
- गेंड़ी नृत्य किया जाता है गीत नहीं गाये जाते. यह अत्यधिक गतिशील नृत्य है. यह घोटुल का प्रमुख नृत्य है, इसमें स्त्रियां हिस्सा नहीं लेती.
- ककसार धार्मिक नृत्य-गीत है. नृत्य के समय युवा पुरुष नर्तक अपनी कमर में पीतल अथवा लोहे की घंटियां बांधे रहते है साथ में छतरी और सिर पर आकर्षक सजावट कर वे नृत्य करते है.
- मुड़िया परगने का प्रमुख मांझी कहलाता है.
- प्रत्येक गांव में एक युवागृह या घोटुल होता है.
- यह मुड़िया माता ठाकुर देव और महादेव की पूजा करते हैं.
- मृतक के कुछ कपड़े और पैसे उसके उपयोग के लिये साथ दफनाए जाते हैं. युवा मृतक के नाम से स्तंभ भी लगाया जाता है.
- मड़ई, नवाखानी, जात्रा, सेसा इनके प्रमुख त्योहार हैं.
- यह लकड़ी, बांस के शिल्प और चित्रकला में माहिर होते हैं.
- इनकी प्रमुख बोलियां गोंडी और हल्बी हैं.
कोरकू जनजाति
- कोरकू का शब्दिक अर्थ है – मनुष्यों का समूह.
- यह गांव के चारों ओर बांस की बाड़ लगाते हैं.
- यह अपने को राजपूतों का वंशज मानते हैं.
- यह महादेव और चंद्रमा की पूजा करते हैं.
- मृतक संस्कार में सिडोली प्रथा है. मृतकों को दफनाया जाता है और मृतक की याद में लकड़ी का स्तंभ गाड़ते हैं.
- ये रायगढ़, सरगुजा, बलरामपुर और जशपुर जिलो में निवास करते हैं.
- मोवासी, बवारी, रूमा, नहाला, बोडोया आदि इनकी उपजातियां हैं.
- इस जनजाति में विवाह संबंध में वधु-धन चुकाना पड़ता हैं.
- इनमे तलाक़ प्रथा एवं विधवा विवाह का भी प्रचलन है.
बिंझवार जनजाति
- ये बिलासपुर, रायपुर,बलौदा बाजार जिले में निवास करते हैं.
- ये विन्ध्याचल वासिनी देवी की पूजा करते हैं.
- ये विंध्यवासिनी के पुत्र बारह भाई बेतकर को अपना पूर्वज मानते हैं.
- वीर नारायण सिंह इसी समुदाय के थे.
कमार जनजाति
- ये रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, दुर्ग, गरियाबंद, राजनांदगांव, जांजगीर-चाम्पा, जशपुर, कोरिया, सरगुजा के वन क्षैत्रों में रहते हैं.
- इनका मुख्य देवता दूल्हा देव है.
- ये अधिकतर कृषि मजदुर के रूप में खेतो में काम करते है.
- ये लकड़ी और बांस की चीजें बनाने में निपुण होते है.
- इन्हें विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है.
- पहाड़ पर रहने वाले कमार पहड़पटिया और मैदान में रहने वाले बंधरिजिया कहलाते हैं.
- कमार पुरुष लंबे बाल रखते हैं. धनुष-बाण और कंधे पर कुल्हाड़ी इनकी खास पहचान है.
- इनके घर बांस, लकड़ी, घास और मिट्टी के बने होते हैं. किसी की मृत्यु हो जाने पर यह नया घर बसा लेते हैं.
- यह स्थानांतरित कृषि करते हैं जिसे दाही या दहिया कहा जाता है.
- इनके लिये घोड़े को छूना मना है. यह ठाकुर देव, महादेव, दूल्हा देव और हनुमान की पूजा करते हैं.
- मृतकों को दफनाया जाता है.पुर्नजनम की मान्यता है.
नगेशिया जनजाति
- अम्बिकापुर (उत्तर-पुर्व) के डिपाडीह, लखनपुर, अनुपपुर, राजपुर, प्रतापपुर, सीतापुर क्षेत्र, में बसी हुई है.
- नगेशिया जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि कार्य एवं लकड़हारे का कार्य करना है, यह जनजाति जंगलों में निवास करने वाली जनजाति है.
कंवर जनजाति
- ये बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़, जांजगीर-चाम्पा एवं सरगुजा ज़िलों में रहते हैं.
- ये लोग अपनी उत्पत्ति महाभारत के कौरव से बताते हैं.
- इनमे सगोत्री विवाह और विधवा विवाह वर्जित है.
- सगराखंड इनकी प्रमुख देवता हैं.
- ये कृषक एवं कृषक मजदुर है.
- यह देशसेवा के लिए फौज में काम करने को अपना परंपरागत कार्य मानते हैं.
- यह कृषि, रस्सी बुनना, खाट बनाने आदि का काम करते हैं.
खैरवार जनजाति
- ये सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर तथा बिलासपुर जिले में रहते हैं.
- इन्हे कथवार भी कहा जाता है.
- कत्था का व्यवसाय करने के कारण इस जनजाति का यह नाम पड़ा है.
- गहिरा गुरूजी इसी समुदाय के थे.
- चेरवा कंवर, राठिया कंवर और तंवर इनकी शाखाएं हैं.
भैना जनजाति
- सतपुड़ा पर्वतमाला एवं छोटानागपुर पठार के बीच सधन वन क्षेत्र के मध्य बिलासपुर, जांजगीर चाम्पा, रायगढ़, रायपुर, बस्तर जिलो में रहते हैं.
- इस जनजाति की उत्पत्ति मिश्र संबंधो के कारण हुई प्रतीत होती है.
- किंवदन्ती के अनुसार ये बैगा और कंवर की वर्ण संकर संताने हैं.
बिरहोर
- बिरहोर का अर्थ है – वनचर.
- यह जशपुर ओर रायगढ़ जिलों में बसे हैं.
- यह मूलत: शिकार पर निर्भर हैं.
- इन्हें विशेष पिछड़ी जनजति का दर्जा प्राप्त है.
- इनका आर्थिक स्तर काफी पिछड़ा हुआ है.
अन्य जनजातियां
अन्य जनजातियों में कोल, परजा, पण्डों, गदबा, भतरा, अगरिया (लौह अयस्क गलाने वाले), धनवार, मझवार, परधान, पारधी आदि हैं.