सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने विचारों से लाखों लोगों को प्रेरित किया था। सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी में बेहद खास योगदान दिया था। नेताजी का जन्म (Subhash Chandra Bose Birthday) 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। सुभाष चंद्र बोस एक संपन्न परिवार से थे। नेता जी बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में तेज थे और देश की आजादी में अपना योगदान देना चाहते थे।
1921 में प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में उतरे सुभाष चंद्र बोस को उनके क्रांतिकारी विचारों के चलते देश के युवा वर्ग का व्यापक समर्थन मिला। जिसके बाद उन्होंने आजाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) का गठन किया। उन्होंने आजाद हिंद फौज में भर्ती होने वाले नौजवानों को ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” का ओजपूर्ण नारा दिया।
सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के कमांडर की हैसियत से भारत की अस्थायी सरकार बनायी, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी थी। साल 1942 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हिटलर से मुलाकात की थी। लेकिन हिटलर के मन में भारत को आजाद करवाने के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं थी। हिटलर ने सुभाष को सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया था।
आजाद हिंद सरकार की अपनी बैंक थी, जिसका नाम आजाद हिंद बैंक था। आजाद हिंद बैंक की स्थापना साल 1943 में हुई थी, इस बैंक के साथ दस देशों का समर्थन था। आजाद हिंद बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये का नोट जारी किया था। एक लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) की तस्वीर छपी थी।
साल 1945 में 18 अगस्त को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत हो गई थी। लेकिन भारत में बहुत बड़ा तबका ये मानता रहा कि सुभाष चंद्र बोस जीवित बच निकले थे और वहां से रूस चले गए थे। सुभाष चंद्र बोस की मौत आज तक एक रहस्य की तरह ही है।
भारत सरकार ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए कई बार अलग-अलग देश की सरकार से संपर्क किया लेकिन उनके बारे कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई। सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित है लेकिन उनकी मौत को लेकर अभी तक कोई साक्ष्य किसी के पास नहीं हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंडमान-निकोबार पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी की लड़ाई में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान को याद करते हुए रोज द्वीप का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप रखने का ऐलान किया। इसके अलावा उन्होंने नील द्वीप का नाम शहीद द्वीप रखने और हैवलॉक द्वीप का नाम स्वराज द्वीप रखने का ऐलान किया। साथ ही अंडमान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस डीम्ड यूनिवर्सिटी की स्थापना की घोषणा की।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि जापान की मदद से भारत से ब्रिटिश हुकूमत का खात्मा किया जा सकता है। इसलिए वे द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी सेना का सहयोग कर रहे थे और जापान भी आजादी की लड़ाई में नेताजी का समर्थन कर रहा था। जापान ने लड़ाई में अंग्रेजों से जीतकर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर कब्जा कर लिया था।
21 अक्टूबर, 1943 को नेताजी ने आजाद हिंद सरकार बना ली। चूंकि जापानियों के साथ नेताजी के संबंध बहुत खास थे। इसलिए उन्होंने 7 नवंबर, 1943 को अंडमान-निकोबार द्वीप नेताजी की सरकार को सौंप दिया। सुभाष चंद्र बोस ने 30 दिसंबर, 1943 को पहली बार अंडमान-निकोबार की धरती पर अपना झंडा फहराया।
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सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई थी?
आज भी किसी को ये नहीं पता कि आखिर नेताजी की मृत्यु कैसे हुई थी? जैसा कि सभी जानते हैं कि नेताजी का जन्मदिन 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था और मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइवान में हुई।
बोस से जुड़ी कोई भी बात हो उनकी मृत्यु की गुत्थि का जिक्र जरूर होता है। आम थ्योरी कहती है कि बोस की मौत 1945 में एक प्लेन क्रैश में हो गई थी, लेकिन क्या ये सच्चाई है? उसके बाद भी कई लोगों ने ये दावा किया कि उन्होंने बोस को जिंदा देखा है। कुछ का कहना था कि बोस रशिया चले गए थे।
इसी तरह का दावा करती है एक किताब “Bose: The Indian Samurai – Netaji and the INA Military Assessment”. ये किताब सबसे पहले 2016 में पब्लिश की गई थी। ये किताब रिटायर्ड मेजर जनरल जी डी बक्शी ने लिखी है किताब कहती है कि नेताजी प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे बल्कि ये थ्योरी जापान की इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा फैलाई गई थी ताकि नेताजी सीधे तौर पर भाग सकें। नेताजी इसके बाद सोवियत यूनियन भाग गए थे।
जनरल बक्शी का कहना है कि उनके पास अखंडनीय सबूत हैं कि नेताजी 18 अगस्त 1945 को प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मन बॉम्बर्स से बचने के लिए उस समय की सोवियत सरकार ने अपना बेस सर्बिया में शिफ्ट कर लिया था और जेकब मलिक की मदद से एम्बेसी रशिया में सेट की गई थी।
एक RTI के जवाब में सरकार ने सीधी साधी थ्योरी बताई थी और कहा था कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु ताइवान के पास एक प्लेन क्रैश में हुई थी और तारीख 18 अगस्त 1945 थी।
सुभाष चंद्र बोस ने आईसीएस की जॉब क्यों छोड़ दी थी?
सुभाष चंद्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें। इसलिए उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैंड चले गए। उन्होंने 1920 में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए आईसीएस की परीक्षा पास कर ली। इसके बाद सुभाष ने अपने बड़े भाई शरतचन्द्र बोस को पत्र लिखा। पूछा कि उनके दिलो-दिमाग पर स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों ने कब्जा कर रखा है।
ऐसे में आईसीएस बनकर वह अंग्रेजों की गुलामी कैसे कर पाएंगे? इसके जवाब में उनकी मां प्रभावती का पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि पिता और परिवार के लोग या अन्य कोई कुछ भी कहे उन्हें अपने बेटे के इस फैसले पर गर्व है। 22 अप्रैल 1921 को भारत सचिव ईएस मान्टेग्यू को आईसीएस से त्यागपत्र देने का पत्र लिखा। बाद में वह जून 1921 में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान में ऑनर्स की डिग्री के साथ स्वदेश वापस लौट आए और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
इंडियन नैशनल कांग्रेस से सुभाष चंद्र बोस का क्या संबंध रहा?
कांग्रेस और सुभाष चंद्र बोस में सोच का रवैया जिम्मेदार है। सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा (रवैया) क्रांति के साथ सुधारवादी थी। जबकि, कोंग्रेस अनुनय मांग के साथ सुधारवादी थी। पर, तात्कालिक कारण कांग्रेस से इस्तीफा देने का सिर्फ कोंग्रेस अध्यक्ष का पद है। हुआ ये की, सुभाष चंद्र बोस 1938 (हरिपुरा, गुजरात) कॉंग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता 41 वर्ष की आयु में सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गये। सुभाष चंद्र बोष ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि स्वाधीनता की रास्ट्रीय मांग एक निश्चित समय के अंदर पूरी करने के लिए ब्रिटिश सरकार के सामने रखी जाए और ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्धारित अवधि में मांग पूरी नही करने पर सविनय अवज्ञा शुरू कर देनी चाहिए।
कोंग्रेस वर्किंग कमेटी में दक्षिण पंथी सदस्यों का बहुमत था , इन्होंने सुभाष बाबू के साथ असहयोग की नीति अपनाई। साथ ही, अगला कांग्रेस अधिवेशन 1939 में (त्रिपुरी,मध्य प्रदेश) में प्रस्तवित हुआ था जिसमे सुभाष बाबू पुनः अपने को कोंग्रेस अध्यक्ष के लिए पेश किया। सरदार पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी आदि ने उनके निर्णय का विरोध किया तथा पट्टाभि सीतारमैया को अपना उम्मीदवार घोषित किया। सीता रमैया को गांधीजी का भी समर्थन प्राप्त था। सीतारमैया से पूर्व मौलाना आजाद को नामित किया गया पर उन्होंने अपना फैसला वापिस ले लिया।
चुनाव में सुभाष चंद्र बोस ने 1377 के मुकाबले 1580 मत लेकर जीत दर्ज की । उनकी इस जीत पर गांधी जी ने कहा कि “यह सीतारमैया से अधिक मेरी हार है।” कोंग्रेस वर्किंग कमेटी के 14 में से 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा शरद बाबू केबल साथ बने रहे। ऐसी परिस्थिति में 29 अप्रैल, 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने त्याग पत्र दे दिया।
NetaJi Subhash Chandra Bose Quotes In Hindi
“तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आजादी दूंगा !”
“ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं. हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए.”
“आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके.”
“मुझे यह नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममे से कौन कौन जीवित बचेंगे ! परन्तु में यह जानता हूँ ,अंत में विजय हमारी ही होगी !”
“राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और सुन्दर से प्रेरित है .”
“भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुसुप्त पड़ी थी .”
“मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों जैसे गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है.”
“यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भांति झुकना !”
“समझोतापरस्ती बड़ी अपवित्र वस्तु है !”
“मध्या भावे गुडं दद्यात – अर्थात जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए !”
“संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया ! मुझमे आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ, जो पहले नहीं था !”
“कष्टों का निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है !”
“मुझमे जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी ,परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमे कभी नहीं रही !”
“जीवन में प्रगति का आशय यह है की शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे !”
“हम संघर्षों और उनके समाधानों द्वारा ही आगे बढ़ते हैं !”
“हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो ,हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक हो , फिर भी हमें आगे बढ़ना ही है ! सफलता का दिन दूर हो सकता है ,पर उसका आना अनिवार्य है !”
“श्रद्धा की कमी ही सारे कष्टों और दुखों की जड़ है !”
“अगर संघर्ष न रहे ,किसी भी भय का सामना न करना पड़े ,तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है !”
“मैं संकट एवं विपदाओं से भयभीत नहीं होता ! संकटपूर्ण दिन आने पर भी मैं भागूँगा नहीं वरन आगे बढकर कष्टों को सहन करूँगा !”
“इतना तो आप भी मानेंगे ,एक न एक दिन तो मैं जेल से अवश्य मुक्त हो जाऊँगा ,क्योंकि प्रत्येक दुःख का अंत होना अवश्यम्भावी है !”
“असफलताएं कभी कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं !”
“सुबह से पहले अँधेरी घडी अवश्य आती है ! बहादुर बनो और संघर्ष जारी रखो ,क्योंकि स्वतंत्रता निकट है ! “
“समय से पूर्व की परिपक्वता अच्छी नहीं होती, चाहे वह किसी वृक्ष की हो, या व्यक्ति की और उसकी हानि आगे चल कर भुगतनी ही होती है !”
“अपने कॉलेज जीवन की देहलीज पर खड़े होकर मुझे अनुभव हुआ ,जीवन का कोई अर्थ और उद्देश्य है !”
“निसंदेह बचपन और युवावस्था में पवित्रता और संयम अति आवश्यक है !”
“में जीवन की अनिश्चितता से जरा भी नहीं घबराता !”
“मैंने अमूल्य जीवन का इतना समय व्यर्थ ही नष्ट कर दिया ! यह सोच कर बहुत ही दुःख होता है ! कभी कभी यह पीड़ा असह्य हो उठती है ! मनुष्य जीवन पाकर भी जीवन का अर्थ समझ में नहीं आया ! यदि मैं अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाया ,तो यह जीवन व्यर्थ है ! इसकी क्या सार्थकता है ?”
“परीक्षा का समय निकट देख कर हम बहुत घबराते हैं ! लेकिन एक बार भी यह नहीं सोचते की जीवन का प्रत्येक पल परीक्षा का है ! यह परीक्षा ईश्वर और धर्म के प्रति है ! स्कूल की परीक्षा तो दो दिन की है ,परन्तु जीवन की परीक्षा तो अनंत काल के लिए देनी होगी ! उसका फल हमें जन्म-जन्मान्तर तक भोगना पड़ेगा !”
“मुझे जीवन में एक निश्चित लक्ष्य को पूरा करना है ! मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है ! मुझे नेतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है ! “
“भविष्य अब भी मेरे हाथ में है !”
“मेरे जीवन के अनुभवों में एक यह भी है ! मुझे आशा है की कोई-न-कोई किरण उबार लेती है और जीवन से दूर भटकने नहीं देती !”
“मैंने जीवन में कभी भी खुशामद नहीं की है ! दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता ! “
“मैं चाहता हूँ चरित्र ,ज्ञान और कार्य…..”
“चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है !”
“हमें केवल कार्य करने का अधिकार है ! कर्म ही हमारा कर्तव्य है ! कर्म के फल का स्वामी वह (भगवान) है ,हम नहीं !”
“कर्म के बंधन को तोडना बहुत कठिन कार्य है !”
“व्यर्थ की बातों में समय खोना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता !”
“मैंने अपने छोटे से जीवन का बहुत सारा समय व्यर्थ में ही खो दिया है !”
“माँ का प्यार सबसे गहरा होता है ! स्वार्थ रहित होता है ! इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता !”
“जिस व्यक्ति में सनक नहीं होती ,वह कभी भी महान नहीं बन सकता ! परन्तु सभी पागल व्यक्ति महान नहीं बन जाते ! क्योंकि सभी पागल व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते ! आखिर क्यों ? कारण यह है की केवल पागलपन ही काफी नहीं है ! इसके अतिरिक्त कुछ और भी आवश्यक है !”
“भावना के बिना चिंतन असंभव है ! यदि हमारे पास केवल भावना की पूंजी है तो चिंतन कभी भी फलदायक नहीं हो सकता ! बहुत सारे लोग आवश्यकता से अधिक भावुक होते हैं ! परन्तु वह कुछ सोचना नहीं चाहते !”
“मेरी सारी की सारी भावनाएं मृतप्राय हो चुकी हैं और एक भयानक कठोरता मुझे कसती जा रही है !”
“हमें अधीर नहीं होना चहिये ! न ही यह आशा करनी चाहिए की जिस प्रश्न का उत्तर खोजने में न जाने कितने ही लोगों ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ,उसका उत्तर हमें एक-दो दिन में प्राप्त हो जाएगा !”
“एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा निष्ठा कर्तव्य और बलिदान। जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है. अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो.”
“याद रखें अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है.
“एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है .”
“स्वामी विवेकानंद का यह कथन बिलकुल सत्य है ,यदि तुम्हारे पास लोह शिराएं हैं और कुशाग्र बुद्धि है ,तो तुम सारे विश्व को अपने चरणों में झुक सकते हो !”
नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर संक्षिप्त निबंध
नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और माँ का नाम ‘प्रभावती’ था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे।
नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।
1921 में बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और भारत लौट आए। सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए।
1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गाँधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी। 1939 में बोस पुन एक प्रतिद्वंदी को हराकर विजयी हुए। गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया। उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है । गाँधी जी के विरोध के चलते बोस ने त्यागपत्र देने की आवश्यकता महसूस की। गांधी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी।
इस बीच दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। बोस का मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आज़ादी हासिल की जा सकती है। उनके विचारों के देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता में नज़रबंद कर लिया लेकिन वह वहां से भाग निकले। वह अफगानिस्तान और सोवियत संघ होते हुए जर्मनी जा पहुंचे।
नेताजी हिटलर से मिले। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत और देश की आजादी के लिए कई काम किए। उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया। वहां से वह जापान पहुंचे। जापान से वह सिंगापुर पहुंचे। जहां उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह द्वारा स्थापित आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले ली। उस वक्त रास बिहारी बोस आज़ाद हिंद फ़ौज के नेता थे। उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज का पुनर्गठन किया। महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया जिसकी लक्ष्मी सहगल कैप्टन बनी।
‘नेताजी’ के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ की स्थापना की तथा ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ का गठन किया इस संगठन के प्रतीक चिह्न पर एक झंडे पर दहाड़ते हुए बाघ का चित्र बना होता था। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” दिया।
18 अगस्त 1945 को तोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है।
यह भी देखें
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु