अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया लेकिन सीता स्वयंवर में शिव के धनुष को क्यों नहीं उठा पाया? भगवान शिव का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था। इस धनुष को भगवान शिव ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान शिव जब इस धनुष को धारण करते थे और इसकी प्रत्यंचा चढ़ाते थे, तब उसकी एक ही टंकार से बादल फट जाते थे, पर्वत हिलने लगते थे और ऐसा लगता था मानो तीनो लोकों में भूकंप आ गया हो।
भगवान शिव के इस धनुष का नाम पिनाक था। इस धनुष के एक ही तीर से भगवान शिव ने त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया था। कहते हैं कि देवी देवताओं का काल जब समाप्त हुआ उसके बाद इस धनुष को देवराज इंद्र को सौंप दिया गया। देवताओं ने इस धनुष को बाद में राजा जनक के पूर्वज देवराज को सौंपा। उन्ही के धरोहर स्वरुप यह धनुष राजा जनक के पास सुरक्षित था। राजा जनक इसको अपने महल में पूर्ण रूप से संरक्षित करके रखते थे।
एक बार अचानक बाल्यावस्था में देवी सीता ने खेल खेल में उस धनुष को उठा लिया जिसको देखकर राजा जनक आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने मन ही मन प्रतिज्ञा कर ली कि सीता का विवाह उसी से होगा जो इस धनुष को उठाकर इस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा। चूंकि शिव धनुष को उठाने के लिए शक्ति की आवश्यकता नहीं थी बल्कि इसको उठाने के लिए निरहंकार और प्रेम की आवश्यकता थी। जब रावण इसको उठाने के लिए आया तो रावण के मन में बहुत ही अहंकार था। उसके मन में भगवान शिव के धनुष के प्रति सम्मान कम था और खुद के प्रति अहंकार ज्यादा था। इसलिए रावण इस शिव धनुष को उठा नहीं पाया। कहते हैं जितनी शक्ति रावण उस शिव धनुष को उठाने के लिए लगता था शिव धनुष उतना ही भारी होता जाता था। रावण के द्वारा उसको हिला भी नहीं पाया गया।
जब श्री राम चंद्र जी की बारी आयी तब भगवान श्री राम को अच्छे से पता था कि यह शिवजी का धनुष है। श्री राम ने सम्मान के साथ उस धनुष को प्रणाम किया, धनुष की परिक्रमा की और फिर उठा लिया, उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी और धनुष तोड़ दिया।
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