Raksha Bandhan 2023 Date, Time, Shubh muhurat, kab hai, India – रक्षा बंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रक्षा बंधन पर्व का मतलब होता है कि “एक ऐसा बंधन जो रक्षा प्रदान करता हो”। यहाँ पर “रक्षा” का मतलब रक्षा प्रदान करना होता है और “बंधन” का मतलब होता है बाध्य। रक्षाबंधन हिन्दुओं का महत्वपूर्ण पर्व है जिसको भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है।
इस त्यौहार का आध्यात्मिक महत्व के साथ साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी है। राखी सामान्यतः बहन के द्वारा भाई को ही बाँधी जाती है लेकिन यह ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों के द्वारा सम्मानित सम्बंधियों जैसे कि पुत्री द्वारा पिता को भी बाँधी जाती है।
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रक्षा बंधन 2023 तिथि, समय (Raksha Bandhan 2023 Date, Time)
रक्षा बंधन 2023: | गुरूवार, 11 अगस्त 2023 |
पूर्णिमा तिथि शुरू: | 10:40 बजे – 11 अगस्त 2023 |
पूर्णिमा तिथि समाप्त: | 07:00 बजे – 12 अगस्त 2023 |
राखी बांधने का मुहूर्त: | 08:51 से 21:17 तक |
रक्षा बंधन अपराह्न मुहूर्त: | 17:17 से 18:18 तक |
रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है? (Why Raksha Bandhan is celebrated)
रक्षा बंधन का पर्व भाई-बहनों के बीच मनाया जाता है जो कि एक भाई का अपने बहन के प्रति कर्तव्य को जाहिर करता है। इस त्यौहार के दिन सभी भाई बहन एक साथ भगवान की पूजा आदि करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस अवसर पर बहन भाई को राखी बांधती है और भगवान से उसके खुशहाल रहने की प्रार्थना करती है तथा बदले में बही बहन को तौहफा प्रदान करता है और बहन की रक्षा करने की प्रार्थना करता है।
एक रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है। रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते हैं।
रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) एक ऐसा त्यौहार है जिसे मुख्य रूप से भारत के उत्तरी और पश्चिमी हिस्से के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह एक विशेष हिंदू त्यौहार है जिसे भारत और नेपाल जैसे देशों में भाई और बहन के बीच प्यार का प्रतीक बनाने के लिए मनाया जाता है। त्यौहार का वास्तविक आनंद पाने के लिए धर्म-परायण होना जरूरी है। इस पर्व में दूसरों की रक्षा के धर्म-भाव को विशेष महत्व दिया गया है।
राखी बांधने की पूजा विधि (Raksha Bandhan Puja Vidhi)
- सबसे पहले राखी की थाली को अच्छे से सजाएं।
- इस थाली में रोली, कुमकुम, अक्षत, पीली सरसों के बीज, दीपक और राखी रखें।
- इसके बाद भाई को तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र यानी कि राखी बांधें।
- राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें।
- फिर भाई को मिठाई खिलाएं।
- अगर भाई आपसे बड़ा है तो चरण स्पर्श कर उसका आशीर्वाद लें। अगर बहन बड़ी हो तो भाई को चरण स्पर्श करना चाहिए।
- राखी बांधने के बाद भाइयों को इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार बहनों को भेंट देनी चाहिए।
- ब्राह्मण या पंडित जी भी अपने यजमान की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं।
रक्षासूत्र या राखी कैसी होनी चाहिए?
- रक्षासूत्र तीन धागों का होना चाहिए।
- लाल पीला और सफेद।
- अन्यथा लाल और पीला धागा तो होना ही चाहिए।
- रक्षासूत्र में चंदन लगा हो तो बेहद शुभ होगा।
- कुछ न होने पर कलावा भी श्रद्धा पूर्वक बांध सकते हैं।
रक्षा बंधन का इतिहास (Raksha Bandhan History in Hindi)
सिकंदर और राजा पुरु:
जब 326 ई पू में सिकंदर ने अपनी पूरी सेना के साथ भारत में प्रवेश किया, सिकंदर की पत्नी रोशानक ने राजा पुरु को एक राखी भेजी और उनसे सिंकंदर पर जानलेवा हमला न करने का वचन लिया। वहीँ पुरु ने भी अपनी बहन का कहना माना और सिकंदर पर हमला नहीं किया था।
रानी कर्णावती और हुमायूँ:
यह उस समय की बात है जब अपना राज्य को बचाने के लिए राजपूतों को मुसलमान राजाओं से युद्ध करना पड़ रहा था। सन 1535 के आस पास, चित्तोड़ की रानी कर्णावती हुआ करती थी और वो एक विधवा रानी थी। रानी कर्णावती को यह लगने लगा कि उनका साम्राज्य गुजरात के सुलतान बहादुर शाह से नहीं बचाया जा सकता तो उन्होंने हुमायूँ, जो कि पहले चित्तोड़ का दुश्मन था, को राखी भेजी और एक बहन के नाते मदद माँगी। और हुमायूँ ने भी अपनी बहन की रक्षा के हेतु अपनी एक सेना की टुकड़ी चित्तोड़ भेज दी. जिससे बाद में बहादुर शाह की सेना को पीछे हटना पड़ा था।
सिखों का इतिहास:
18 वीं शताब्दी के दौरान सिख खालसा आर्मी के अरविन्द सिंह ने राखी नामक एक प्रथा का अविर्भाव किया, जिसके अनुसार सिख किसान अपनी उपज का छोटा सा हिस्सा मुस्लिम आर्मी को देते थे और इसके बदले में मुस्लिम आर्मी उन पर आक्रमण नहीं करती थी।
इन्द्रदेव से सम्बंधित कहानी:
भविस्य पुराण के अनुसार, असुरों के राजा बलि ने देवताओं के ऊपर आक्रमण किया तो देवताओं के राजा इंद्र को काफी क्षति पहुंची थी। तब इंद्र की पत्नी सची विष्णु जी के पास गयी और प्रभु विष्णु ने एक धागा सची को प्रदान किया और कहा कि वो इस धागे को जाकर अपने पति के कलाई पर बांध दें और जब उन्होंने ऐसा किया तब इंद्र के हाथों राजा बलि की पराजय हुई। इस प्रकार उन्होंने पुनः अमरावती पर अपना अधिकार कर लिया। यहाँ से इस पवित्र धागे का प्रचलन आरम्भ हुआ। इसके बाद युद्ध में जाने के पहले अपने पति को औरतें यह धागा बांधती थीं। इस तरह यह त्योहार सिर्फ भाइयों बहनों तक ही सीमित नहीं रह गया।
राजा बलि और माँ लक्ष्मी:
असुर सम्राट बलि भगवान विष्णु का बहुत ही बड़ा भक्त था। बलि की इतनी ज्यादा भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने बलि के राज्य की रक्षा स्वयं करनी शुरू कर दी। ऐसे में माता लक्ष्मी इस चीज़ से परेशान होने लगी क्योकि विष्णु जी अब और वैकुंठ पर नहीं रहते थे। अब लक्ष्मी जी ने एक ब्राह्मण औरत का रूप लेकर बलि के महल में रहने लगी. वहीँ बाद में उन्होंने बलि के हाथों में राखी भी बांध दी और बदले में उनसे कुछ देने को कहा।
अब बलि को ये नहीं पता था की वो औरत और कोई नहीं माता लक्ष्मी है इसलिए उन्होंने उसे कुछ भी मांगने का अवसर दिया। इस पर माता ने बलि से विष्णु जी को उनके साथ वापस वैकुंठ लौट जाने का आग्रह किया। इसलिए उन्हें भगवान विष्णु को वापस लौटना पड़ा।
कृष्ण और द्रौपदी:
जब लोगों की रक्षा करने के लिए दुष्ट राजा शिशुपाल का भगवान कृष्ण ने वध किया तो इस युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण के अंगूठे में गहरी चोट आई थी। तब द्रौपदी ने अपने वस्त्र का उपयोग कर उनकी खून बहने को रोक दिया था। भगवान कृष्ण द्रौपदी के इस कृत्य से काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने उनके साथ एक भाई बहन का रिश्ता निभाया।
वहीं उन्होंने उनसे ये भी वादा किया कि समय आने पर वो उनका जरुर से मदद करेंगे। बहुत वर्षों बाद जब कौरवों का राजकुमार दुःशासन द्रौपदी का चीर हरण करने लगा। इस पर कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की थी और उनकी लाज बचायी थी।
संतोषी माँ से सम्बंधित कहानी:
भगवान गणेश के दोनों पुत्र सुभ और लाभ इस बात को लेकर परेशान थे कि उनकी कोई बहन नहीं है। इसलिए इन दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से एक बहन की मांग की। कुछ समय के बाद भगवान नारद ने भी गणेश से पुत्री के विषय में कहा। इस पर भगवान गणेश राज़ी हो गए। भगवान गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि, की दिव्य ज्योति से माँ संतोषी का अविर्भाव हुआ। इसके बाद माँ संतोषी के साथ शुभ लाभ रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) मना सके।
यम और यमुना से सम्बंधित कहानी:
एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार, मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये, तो यमुना दुखी हुई और माँ गंगा से इस बारे में बात की। तब गंगा माता के परामर्श पर यम जी ने अपने बहन के पास जाने का निश्चय किया। यम को देख कर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाये।
यम को इससे बेहद ख़ुशी हुई और उन्होंने यमुना से कहा कि वे मनचाहा वरदान मांग सकती हैं। इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान माँगा कि यम जल्द पुनः अपनी बहन के पास आयें। यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गद गद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया।
भारत के दूसरे धर्मों में रक्षा बंधन कैसे मनाया जाता है? (Raksha Bandhan in Different Religions)
हिंदू धर्म में
ख़ास तौर पर रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार हिंदू धर्म में काफी हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे भारत के उत्तरी प्रान्त और पश्चिमी प्रान्तों में ज्यादा मनाया जाता है। इसके अलावा भी दूसरे देशों में भी इसे मनाया जाता है जैसे कि कनाडा, नेपाल, पाकिस्तान, मॉरिशस।
नेपाल में सुबह से ही लोग रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) के दिन वहां के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में जाकर घर में बनाए हुए व्यंजनों का भोग लगाते हैं। नदी तटों पर बच्चों का मुंडन भी करवाया जाता है। इस दिन नेपाल में गायों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। रात के समय में लोक नृत्यों का आयोजन कर बौद्ध भिक्षुओं से प्रवचन सुनते हैं।
जैन धर्म में
जैन धर्म में रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के दिन उनके जैन पंडित भक्तों को पवित्र धागा प्रदान करते हैं।
सिख धर्म में
सिख धर्म में भी रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार भाई और बहन के बीच मनाया जाता है और इसे राखाड़ी या राखरी कहा जाता है।
भारत के दूसरे प्रान्तों में रक्षा बंधन कैसे मनाया जाता है? Raksha Bandhan in other States
जिस तरह से भारत के दूसरे प्रांतों में मकर संक्राति और दीपावली को अलग-अलग नाम से और अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, उसी तरह रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार भी दूसरे प्रांतों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।
पश्चिमी घाट सहित समुद्री क्षेत्रों में
रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) के दिन दिन वर्षा के देवता इंद्र और समुद्र के देवता वरुण देव की पूजा की जाती है। मछुआरे भी मछली पकड़ने की शुरुआत इसी दिन से करते हैं। इस दिन समुद्र के देवता भगवान वरुण को श्रावण मास की पूर्णिमा को नारियल प्रदान किए जाते हैं। समुद्र में नारियल फेंके जाते हैं ताकि समुद्र देव हमारी हर प्रकार से रक्षा करें। इसीलिए इस राखी पूर्णिमा को वहां नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं।
दक्षिण भारत में
दक्षिण भारत में रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) को अबित्तम कहा जाता है क्योंकि इस दिन मन्त्रों के उच्चारण करने के साथ पवित्र धागे जनेऊ को बदला जाता है। ये पर्व ब्राह्मणों के लिए ज्यादा महत्व रखता है।इसे श्रावणी या ऋषि तर्पण भी कहते हैं। ग्रंथों में रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) को पुण्य प्रदायक, पाप नाशक और विष तारक या विष नाशक भी माना जाता है जो कि खराब कर्मों का नाश करता है।
उत्तरी भारत में
उत्तर भारत में रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) त्यौहार को कजरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दौरान खेत में गेहूं और अन्य अनाज बिछाया जाता है और वहीं ऐसे मौके में माता भगवती की पूजा की जाती है और माता से अच्छी फसल की कामना की जाती है।
गुजरात में
रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) में गुजरात में रुई को पंचगव्य में भिगोकर उसे शिवलिंग के चारों ओर बांध देते हैं। इस पूजा को पवित्रोपन्ना भी कहा जाता है। गुजरात के लोग इस पूरे महीने के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग के ऊपर पानी चढाते हैं। हालांकि वहां पर भी बहनें भाई को राखी बांधती हैं।
ग्रंथो में रक्षाबंधन
अनेक पुराणों में श्रावणी पूर्णिमा को पुरोहितों द्वारा किया जाने वाला आशीर्वाद कर्म भी माना जाता है। ये ब्राह्मणों द्वारा यजमान के दाहिने हाथ में बाँधा जाता है। इस दिन अच्छे कार्य करने वालों को पुण्य प्राप्त होता है।
रक्षा बंधन का महत्व (Importance of Raksha Bandhan)
रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत प्रेम पूर्ण आधार देता है। रक्षाबंधन पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्व है।
- रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) भाई एवं बहन के भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व है।
- इस दिन बहन भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधती है तथा उसके दीर्घायु जीवन एवं सुरक्षा की कामना करती है।
- बहन के इस स्नेह बंधन से बंधकर भाई उसकी रक्षा के लिए कृत संकल्प होता है।
- अब राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, धर्म की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
- विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ने इस पर्व पर बंग भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था।
- ये महीना सभी किशानों, मछवारे और सामुद्रिक यात्रा करने वाले व्यवसायों के लिए भी काफी महत्व रखता है।
- मछवारे भी अपने मछली पकड़ने की शुरुवात इसी दिन से करते हैं क्योंकि इस समय समुद्र शांत होता है और उन्हें पानी में जाने में कोई खतरा नहीं होता है।
- रक्षा बंधन (Raksha Bandhan) में प्रकृति की रक्षा के लिए वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी शुरू हो चुकी है।
- रक्षा सूत्र सम्मान और आस्था प्रकट करने के लिए भी बांधा जाता है।
- यह पर्व आत्मीय बंधन को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ हमारे भीतर सामाजिकता का विकास करता है।
- यह त्यौहार परिवार, समाज, देश और विश्व के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति हमारी जागरूकता भी बढ़ाता है।
- रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) को विष तारक यानी विष को नष्ट करने वाला और पुण्य प्रदायक यानी पुण्य देने वाला भी माना जाता है।
- श्रावणी पूर्णिमा या संक्रांति तिथि को राखी बांधने से बुरे ग्रह कटते हैं।
Raksha Bandhan 2023 Date, Time, Shubh Muhurat FAQs
रक्षा बंधन कितने बजे है?
रक्षा बंधन के दिन पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त को सुबह 10:40 बजे से 12 अगस्त सुबह 7 बजे तक है। रक्षा बंधन का समय 11:37 AM से 12:29 PM और 2:14 PM से 3:07 PM तक है।
भारत में राखी कब शुरू हुई?
इतिहास को देखें तो रक्षा बंधन की शुरुआत लगभग 6 हजार साल पहले हुई।
क्या रक्षा बंधन भारत में सार्वजनिक अवकाश है?
रक्षा बंधन के दिन पूरे भारत में सार्वजनिक अवकाश रहता है। भारत के विद्यालय, कॉलेज, दफ्तरों में इस दिन अवकाश रहता है।
रक्षाबंधन कब है 2022 और शुभ मुहूर्त क्या है?
रक्षाबंधन के दिन 11 अगस्त को सुबह 11 बजकर 37 मिनट से 12 बजकर 29 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त और दोपहर 02 बजकर 14 मिनट से 03 बजकर 07 मिनट तक विजय मुहूर्त के समय राखी बाँध सकते हैं।
रक्षाबंधन के दिन भाई क्या संकल्प लेता है?
रक्षाबंधन के दिन भाई के द्वारा सम्पूर्ण जीवन में बहन की रक्षा करने का संकल्प लिया जाता है।
राखी कौन से हाथ में बांधी जाती है?
राक्षी दाएँ हाथ में बाँधी जाती है, जिसके पीछे कारण यह है कि शरीर की दाहिने हिस्से को धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पवित्र माना गया है।
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