देश में किसान की स्थिति हमेशा से ही चर्चा का विषय बनी हुई है। ख़ास तौर पर राजनितिक दलों के द्वारा चुनाव के समय इस विषय पर काफी जोर दिया जाता है। भारत देश में अधिकांश आय का स्रोत कृषि ही है और किसान इसका अभिन्न अंग है। देश की आर्थिक व्यवस्था बनाये रखने में किसान की महत्वपूर्ण भूमिका है।
किसान इस देश की नींव हैं और जब इस नींव पर संकट आता है तो देश की आधार शिला तक हिल जाती है। इसलिए आज हम सबको किसान और कृषि के स्तर को और भी ज्यादा उठाने में एक साथ आगे आना चाहिए।
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राष्ट्रीय किसान दिवस 2023 (National Farmers Day 2023 in Hindi)
राष्ट्रीय किसान दिवस 2023 (Rashtriya Kisan Diwas) | शनिवार, 23 दिसम्बर 2023 |
राष्ट्रीय किसान दिवस कब मनाया जाता है? (National Farmers Day is celebrated on which date?)
राष्ट्रीय किसान दिवस हर साल 23 दिसम्बर को मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह के कार्यों को ध्यान में रखते हुए 23 दिसम्बर को भारतीय किसान दिवस की घोषणा की गई जो कि इनके जन्मदिवस के अवसर पर मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह ने किसानों और खेती को काफी महत्व दिया। इसके अलावा ग्रामीण लोगों के हित में भी उन्होंने कईं कार्य किये। इनके द्वारा किये गये कार्यों के कारण ही आज भी इनको याद किया जाता है।
राष्ट्रीय महिला किसान दिवस कब मनाया जाता है?
राष्ट्रीय महिला किसान दिवस प्रति वर्ष 15 अक्टूबर को मनाया जाता है। वर्ष 2016 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा हर साल इस दिवस को मनाने का निर्णय लिया गया था।कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि में महिलाओं की भागीदारी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1996 में भुवनेश्वर (ओडिशा) में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान (ICAR: Central Institute for Women in Agriculture) की स्थापना की थी।
राष्ट्रीय किसान दिवस की स्थापना कब की गयी?
राष्ट्रीय किसान दिवस की स्थापना भारतीय सरकार द्वारा साल 2001 में की गयी जिसके लिए चौधरी चरण सिंह जयंती से अच्छा मौका नहीं था। तब से ही हर साल इस दिवस को मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के साथ साथ देश को भी आगे बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
राष्ट्रीय किसान दिवस क्यों मनाया जाता है? (Why National Farmers Day is celebrated?)
वरिष्ठ किसान नेता चौधरी चरण सिंह के कार्यों को ध्यान में रखते हुए उनके जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा भी कहा जाता है। चूंकि देश का अधिकांश किसान उत्तर भारत से है, इसलिए यहाँ इस दिवस को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।
राष्ट्रीय किसान दिवस कैसे मनाया जाता है?
- किसान दिवस के दिन उत्तर प्रदेश राज्य में अवकाश रहता है।
- इस दिन नेताओं द्वारा देश के किसान के विकास के लिए किये गए उचित कार्य के लिए उन नेताओं को सम्मानित किया जाता है।
- कृषि संबंधी कई वर्कशॉप, सेमिनार का आयोजन किया जाता है जिसके जरिये किसानों को आधुनिक कृषि और आने वाली आपदाओं से कैसे राहत मिले इस तरह की जानकारी विस्तार से दी जाती है।
- कृषि वैज्ञानिक किसानों से मिलते हैं और बातचीत करते हैं, तथा किसानों की समस्या को सुन उसका हल देते हैं।
- किसानों को एक बेहतर और आधुनिक कृषि का ज्ञान दिया जाता है और इस ओर प्रेरित किया जाता है।
- इस दिन किसानों को उनके हक़ और उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी विस्तार से बताया जाता है।
किसानों का महत्व (Importance of farmers)
देश की प्रगति में किसान का महत्वपूर्ण योगदान होता है। चूंकिं देश की कृषि में काफी निर्भरता है इसलिए वह किसान ही है जिसके बल पर देश अपने खाद्यान्नों की खुशहाली को समृद्ध कर सकता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के अनुसार किसान ही देश के सरताज हैं।
लेकिन देश की आज़ादी के बाद ऐसे नेता कम ही देखने में आए जिन्होंने किसानों के विकास के लिए निष्पक्ष रूप में काम किया। ऐसे नेताओं में सबसे अग्रणी थे देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह। पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को किसानों के अभूतपूर्व विकास के लिए याद किया जाता है।
ऐसे में किसान दिवस से किसानों का देश के विकास में योगदान को याद किया जाता है और बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग भी किसानों के इस योगदान को याद करते हैं। किसान दिवस देश के किसानों में एक उम्मीद का दीपक जलाता है कि पूरा देश उनके साथ खड़ा है। ऐसे में किसान दिवस का महत्त्व बहुत ही ज्यादा हो जाता है।
किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह कौन हैं? (Who is Chaudhary Charan Singh?)
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को उत्तर प्रदेश, भारत के मेरठ जनपद में हुआ था। उनके पिता का नाम चौधरी मीर सिंह था जो कि एक गरीब किसान थे। चौधरी चरण सिंह जी की प्रारम्भिक शिक्षा नूरपुर में ही हुई थी। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गए थे। चरण सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद 1928 में चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद आकर वकालात का कार्यभार सभांला था।
चौधरी चरण सिंह का विवाह सन 1929 में गायत्री देवी के साथ हुआ था। इसके बाद चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य से प्रभावित होकर गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। चौधरी चरण सिंह जी ने “सविनय अवज्ञा आन्दोलन” में ‘नमक कानून’ में महात्मा गांधी का साथ दिया था। इसी दौरान चौधरी चरण सिंह जी को छ: माह के लिए जेल भी जाना पड़ा था। चौधरी चरण सिंह जी ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया।
चौधरी चरण सिंह पहली बार वर्ष 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए थे। चौधरी चरण सिंह जी ने वर्ष 1938 में कृषि उत्पाद बाजार विधेयक पेश किया जिसे सबसे पहली बार पंजाब के द्वारा अपनाया गया था। चौधरी चरण सिंह आजादी के बाद वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री बने थे। चौधरी चरण सिंह जी वर्ष 1967 में कांग्रेस पार्टी छोड़कर एक नये राजनैतिक दल ‘भारतीय क्रांति दल’ की स्थापना की थी।
चौधरी चरण सिंह 3 अप्रैल 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 17 अप्रैल, 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। 17 फरवरी 1970 को चरण सिंह दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। सन 1977 में चुनाव के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो किंग मेकर जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृहमंत्री बनाया गया। केंद्र सरकार में गृहमंत्री बनने पर उन्होंने मंडल व अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। उन्होंने वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री रहते हुऐ 1979 में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की थी।
इंदिरा गांधी द्वारा लगाये आपात काल के समय चरण सिंह जी को जेल जाना पड़ा था। चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को देश के प्रधानमंत्री बने थे। चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक रहा। चौधरी चरण सिंह जी का निधन 29 मई 1987 ई० को 84 वर्ष की उम्र में हुआ था। चौधरी चरण के नाम पर चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट, लखनऊ आदि हैं।
प्रमुख किसान आंदोलन (Peasant Movements)
ताना भगत आंदोलन:
इस आन्दोलन की शुरुआत सन् 1914 में बिहार में हुई। यह आन्दोलन लगान की ऊंची दर तथा चौकीदारी कर के विरुद्ध किया गया था। इस आन्दोलन के प्रवर्तक ‘जतरा भगत’ थे, जो कि इस आन्दोलन से सम्बद्ध थे। ‘मुण्डा आन्दोलन’ की समाप्ति के करीब 13 वर्ष बाद ‘ताना भगत आन्दोलन’ शुरू हुआ। यह ऐसा धार्मिक आन्दोलन था, जिसके राजनीतिक लक्ष्य थे। यह आदिवासी जनता को संगठित करने के लिए नए ‘पंथ’ के निर्माण का आन्दोलन था। इस मायने में यह बिरसा मुण्डा आन्दोलन का ही विस्तार था। मुक्ति-संघर्ष के क्रम में बिरसा मुण्डा ने जनजातीय पंथ की स्थापना के लिए सामुदायिकता के आदर्श और मानदंड निर्धारित किए थे।
चंपारण का किसान आंदोलन:
चंपारण में नीलहों के द्वारा ‘तिनकठिया प्रणाली’ के अंतर्गत किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवा कर उनका शोषण किया जाता था। किसानों के उत्पीड़न का समाचार पाकर महात्मा गांधी 1917 में चंपारण गए और उन्होंने किसानों की शिकायतों की जांच की एवं किसानों को सत्याग्रह करने को कहा। भारत में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग गांधी जी ने चंपारण में ही किया। ‘चंपारण एग्रेरियन कमेटी’ की अनुशंसा पर 1918 में ‘चंपारण एग्रेरियन एक्ट’ के द्वारा निलहों का अत्याचार रोक दिया गया एवं तिनकठिया प्रणाली समाप्त कर दी गई।
खेड़ा का किसान आंदोलन:
1918 में खेड़ा (गुजरात) में वर्षा नहीं होने से फसल नष्ट हो गई। ऐसी स्थिति में किसानों ने लगान में माफी की मांग की, जिसे सरकारी अधिकारियों ने ठुकरा दिया। इतना ही नहीं लगान चुकाने के लिए किसानों को परेशान भी किया। चंपारण में गांधी जी के कार्यों से प्रभावित होकर खेड़ा के किसानों ने भी उन्हें अपने यहां बुलाया। गांधी जी ने किसानों को संगठित होकर सत्याग्रह करने को कहा। सरकारी धमकी के बावजूद किसानों ने लगान बंदी की। बाध्य होकर सरकार को किसानों से समझौता कर उन्हें राहत देनी पड़ी।
बारदोली सत्याग्रह:
1928 में बारदोली (सूरत, गुजरात) में किसानों ने लगान में बढ़ोतरी के विरोध में व्यापक आंदोलन किया। किसानों ने लगा चुकाने से इंकार कर दिया। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। अगस्त 1928 में महात्मा गांधी भी बारदोली गए। समझौते के बाद सरकार ने लगान की राशि 30% से घटाकर 6.3% कर दी।
एका आंदोलन:
किसानों का यह आंदोलन उत्तर प्रदेश के हरदोई, बहराइच और सीतापुर जिलों में हुआ। लगान की उचित दर और जमीनदारी शोषण के विरुद्ध किसान संगठित होने लगे। इस आंदोलन में निचले तबके के किसानों और स्थानीय छोटे जमींदारों की प्रमुख भूमिका थी। 1922 तक सरकार ने इस आंदोलन को दबा दिया।
मोपला विद्रोह:
दक्षिण मालाबार में जमींदारों को सरकार द्वारा संरक्षण दिए जाने से मोपला आक्रोशित थे। वे धार्मिक आधार पर भी भूमिपत्तियों का विरोध कर रहे थे। 19वी शताब्दी में मोपलाओं ने अनेकों बार विद्रोह किए। उनका सबसे बड़ा और व्यापक विद्रोह 1921 में हुआ। मोपला खिलाफत आंदोलन से संबंद्ध होकर विद्रोह पर उतारू हो गया हो गए। इन लोगों ने हिंसा का सहारा लिया। सरकार ने सेना की सहायता से इस विद्रोह को कुचल दिया।
अखिल भारतीय किसान सभा और किसान आंदोलन:
वामपंथियों के प्रभाव में आकर श्रमिकों के समान किसान भी संगठित होने लगे। जगह-जगह पर किसान सभाओं का गठन किया गया। 1928 में स्वामी सहजानंद ने बिहटा (बिहार) में किसान सभा का गठन किया। उनके नेतृत्व में बिहार में किसान आंदोलन सशक्त रूप से चलाया गया। 1936 में उनकी अध्यक्षता में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ। किसान सभा के नेतृत्व में किसानों ने अपने हितों के लिए संघर्ष किया।
महाकवि घाघ की कुछ कहावतें व उनका अर्थ
सावन मास बहे पुरवइया।
बछवा बेच लेहु धेनु गइया।।
अर्थ: यदि सावन महीने में पुरवैया हवा बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है। किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
अर्थ: यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
अर्थ: यदि रोहिणी पूरा बरस जाए, मृगशिरा में तपन रहे और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
अर्थ: उत्तरा और हथिया नक्षत्र में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज ठीक ठाक ही होती है।
पुरुवा रोपे पूर किसान।
आधा खखड़ी आधा धान।।
अर्थ: पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है।
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।
अर्थ: जो किसान आद्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है।
किसान दिवस पर कविता (Poem on Farmers Day)
जिनके अनाज के भंडार हैं
पर खाने को दाना नहीं
जिनके आँगन में दुग्ध बहे
पर उसने कभी चखा नही
मेहतन ही उसकी ताकत है
फिर भी वो आज भिखारी है
अनाज का हैं वो दाता
फिर भी सोता भूखा है
वह मेहनत की ही खाता है
पर पृकृति का गुलाम है
आस लगाये वो आसमान निहारे
लेकिन भाग्य में उसके शाम है
साहूकार ने रही सही
सांसे भी उससे छीन ली
सियासी और कालाबजारी ने
उसकी जिन्दगी दूभर करी
फिर भी वो उठता है
मेहनत करते जाता है
एक दिन आएगा फिर से
जब किसान ही लहरायेगा
कब तक रूठेगी तू पृथ्वी
तुझे वो मेहनत से ही मनायेगा
किसान दिवस से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
किसान दिवस कब मनाया जाता है?
23 दिसम्बर
किसान दिवस 23 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है?
23 दिसम्बर देश के पांचवे प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्म दिवस है और यह किसान के मसीहा के रूप में जाने जाते हैं।
किसान दिवस की स्थापना कब की गयी?
वर्ष 2001
किसान दिवस कैसे मनाया जाता है?
उत्तर प्रदेश में इस दिन छुट्टी होती है।
किसान के प्रति जनता एवम सरकार को जागरूक किया जाना लक्ष्य होता है।
किसानों को आधुनिकता के प्रति प्रेरित किया जाता है।
चौधरी चरण सिंह कौन थे?
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसान नेता
चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री कब बने?
28 जुलाई 1979
चौधरी चरण सिंह का निधन कब हुआ?
29 मई 1987 ई०
निष्कर्ष
देश के हर एक व्यक्ति को किसानो के महत्त्व को समझना चाहिए। देश केवल स्वहित से ही आगे नहीं बढ़ सकता बल्कि देश के विकास के लिए नींव का मजबूत होना जरुरी हैं इसलिए सभी देशवासियों को किसान की स्थिती बेहतर करने के लिये अपना योगदान देना चाहिए और किसान परिवार को भी अपने आने वाली पीढ़ी को शिक्षित करने का प्रण लेना चाहिये। भारत सरकार भी किसानों को साक्षर और आधुनिक तकनीक ज्ञान देने के क्षेत्र में काफी सक्रिय हो गई है। अब भारतीय किसान की दशा सुधरती जा रही है। वह अज्ञान-रूपी अंधकार से ज्ञान-रूपी प्रकाश की ओर बढ़ रहा है।
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