Meerabai Jayanti 2023, Biography in Hindi: मीराबाई के नाम से कोई भी अनजान नहीं होगा। वह (1498-1547 लगभग) एक महान हिंदू कवि होने के साथ भगवान श्री कृष्ण की भक्त थी। जब भी भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों का जिक्र होता है तो उसमें सबसे पहले मीराबाई का नाम ही लिया जाता है।
इन्होंने अपने पूरे जीवन काल में सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति ही की थी। उन्हें वैष्णव भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण संतों में से एक माना जाता है। भगवान कृष्ण की भावुक स्तुति में लिखी गई लगभग 1300 कविताओं की रचना का श्रेय उन्हें दिया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण के भक्तों में मीराबाई का सबसे उच्च स्थान माना जाता है। श्री कृष्ण के प्रति मीराबाई के प्रेम से पूरी दुनिया परिचित है। जब हम धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं तो उन्हें पता चलता है कि एकमात्र यह ही ऐसी थी जिन्होंने पूरे जीवनकाल श्रीकृष्ण की भक्ति की।
उनके लिए दुनिया के सभी रंग फीके थे उन पर केवल श्रीकृष्ण की भक्ति का रंग चढ़ा हुआ था। इस भक्ति में लीन रहते हुए उन्होंने श्रीकृष्ण के नाम से कई भजनों और दोनों की रचना की जो आज जनता के बीच लोकप्रिय है। हमारे द्वारा आज आपको मीराबाई के बारे में कुछ उपयोगी जानकारी प्रदान की जा रही है, आशा है कि आपको यह पसंद आएगी।
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मीराबाई जयंती 2023 (Meerabai Jayanti 2023)
हर साल अश्विन पक्ष की शरद पूर्णिमा को मीराबाई जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 28 अक्टूबर 2023 को रविवार के दिन मीराबाई जयंती मनाई जाएगी।
मीराबाई जयंती 2023 (Meerabai Jayanti 2023): | शनिवार, 28 अक्टूबर 2023 |
मीराबाई का जीवन परिचय एक नजर में (Meerabai Biography in Hindi)
पूरा नाम | मीराबाई |
जन्म | 1498 ईस्वी |
जन्म स्थान | कुड़की |
माता | वीर कुमारी |
पिता | रतन सिंह |
दादा | राव दुदा |
पति | भोजराज [1516–1521] |
मृत्यु | 1560 ईस्वी |
मृत्यु स्थान | द्वारका |
मीराबाई का जन्म व परिवार (Meerabai Birthplace & Family)
मीराबाई राजस्थान के जोधपुर के कुड़की गाँव के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। इनके पिता का नाम रतन सिंह और माता का नाम वीर कुमारी था, और मीराबाई उनकी इकलौती संतान थी। जब इनकी आयु केवल 2 वर्ष की थी उस समय इनकी माता का निधन हो गया था। इसके बाद उनके दादा राव दूदा उन्हें मेड़ता लेकर आ गए और उनका पालन पोषण किया। उन्हें धर्म, राजनीति और संगीत सिखाया गया। उनका पालन-पोषण उनके दादा राव दुदा की देखरेख में हुआ जो भगवान विष्णु के गंभीर उपासक और योद्धा भी थे, इसके साथ ही उनके यहां संतों और ऋषियों के दर्शन होते थे। इस तरह मीरा बचपन से ही साधु-संतों की संगति के संपर्क में आई।
कहा जाता है कि मीराबाई का जन्म 1498 ईस्वी के आसपास हुआ था लेकिन उनके जन्म को लेकर कोई भी प्रमाणित दस्तावेज नहीं है, परंतु हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन को मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
कैसे बचपन से ही मीराबाई कृष्ण भक्त बनी
ऐसा कहा जाता है कि मीराबाई के कृष्ण भक्त बनने के पीछे एक कथा है। एक बार उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां विवाह हो रहा था। सभी स्त्रियां छत पर चढ़कर बरात को देख रही थी। उस समय मीराबाई बाल्यकाल अवस्था में थी। उन्होंने बारात को देखकर अपनी माता से पूछा कि माता मेरा दूल्हा कौन है। उनकी माता ने उपहास में भगवान श्री कृष्ण की तरफ इशारा करके कहा कि यही तुम्हारे वर है। उसी समय से मीराबाई ने उन्हें अपना वर मान लिया और उनकी भक्ति में लीन हो गई।
मीराबाई का विवाह (Meerabai Marriage)
मीराबाई बाल्यकाल से ही श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गई थी और उनकी छवि को अपने मन मे बसाकर उन्हें ही अपना वर मान लिया था इसलिए उन्होंने सदैव अविवाहित रहने का प्रण लिया। परंतु उनके पिता ने उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह 1516 में मेवाड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र राजकुमार भोज राज के साथ कर दिया।
मीराबाई के पति की मृत्यु के बाद वह पूरी तरह से कृष्ण भक्ति मे लीन
मीराबाई के यौवन काल में ही उनके पति राजा भोज राज की मृत्यु हो गई। वह मुगलों के साथ युद्ध में घायल हो गए और वर्ष 1521 में मृत्यु हो गई, जिसके बाद वह कृष्ण भक्ति मे और अधिक लीन हो गई। जब उनके पति की मृत्यु हुई तब उनके ससुराल वालों ने उन्हें सती करना चाहा, लेकिन वह इस बात के लिए नहीं मानी क्योंकि उन्होंने हमेशा से श्री कृष्ण को ही अपना पति माना था, जिस कारण उन्होंने कभी भी अपना श्रृंगार नहीं उतारा। तब मीराबाई की अनुपस्थिति में उनके पति का दाह संस्कार कर दिया गया।
राजा भोज राज की मृत्यु के बाद विक्रम सिंह मेवाड़ का शासक बना। मीराबाई की कृष्ण के प्रति भक्ति और इस तरह नाच-गाना विक्रम सिंह और उनके अन्य ससुराल वालों को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया इसलिए उन्होंने अनेक बार मीराबाई को मारने का प्रयत्न किया। कभी वह विष का प्याला भेजते थे तो कभी वह जहरीले सांप से कटवा कर उन्हें मारना चाहते थे, परंतु श्री कृष्ण ने सदैव उनका साथ दिया और उनकी कृपा से मीराबाई को कुछ भी नहीं हुआ।
कहा जाता है कि एक बार फूलों की टोकरी में एक जहरीला सांप रखा गया था जिसमें से वह भगवान कृष्ण के लिए फूल उठा रही थी। हालांकि जब उन्होंने सांप को उठाया तो वह एक माला में बदल गया। ऐसी ही एक अन्य किवदंती यह भी है कि उसे विक्रम सिंह द्वारा खुद डूबने के लिए कहा गया तब मीराबाई ने डूबने की कोशिश की लेकिन वह पानी पर तैरने लगी।
मीराबाई को उस समय के समाज में विद्रोही माना जाता था इसका कारण था कि उनकी धार्मिक गतिविधियाँ एक राजकुमारी और एक विधवा के लिए बनाए गए नियमों के अनुरूप नहीं थीं, क्योंकि वह अपना अधिकांश समय कृष्ण के मंदिर में और ऋषियों और तीर्थयात्रियों से मिलने और भक्ति पदों की रचना में बिताया करती थी।
मीराबाई द्वारा रचित ग्रंथ (मीराबाई की रचनाएँ)
मीराबाई ने श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहते हुए अनेक ग्रंथों की रचना की थी जिसमें उन्होंने अपने श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भाव को दर्शाया था।
- राग गोविंद
- गीत गोविंद
- गोविंद टीका
- राग सोरठ
- मीरा की मल्हार
- नरसी का मायरा
- मीरा पदावली
मीराबाई की वाणी के लगभग 45 राग
- राग झिंझोटी
- राग काहन्ड़ा
- राग केदार
- राग कल्याण
- राग खट
- राग गुजरी
- राग गोंड
- राग छायानट
- राग ललित
- राग त्रिबेणी
- राग सूहा
- राग सारंग
- राग तोड़ी
- राग धनासरी
- राग आसा
- राग बसंत
- राग बिलाबल
- राग बिहागड़ो
- राग भैरों
- राग मल्हार
- राग मारु
- राग रामकली
- राग पीलु
- राग सिरी
- राग कामोद
- राग सोरठि
- राग प्रभाती
- राग भैरवी
- राग जोगिया
- राग देष
- राग कलिंगडा़
- राग देव गंधार
- राग पट मंजरी
- राग काफी
- राग मालकौंस
- राग जौनपुरी
- राग पीलु
- राग श्याम कल्याण
- राग परज
- राग असावरी
- राग बागेश्री
- राग भीमपलासी
- राग पूरिया कल्याण
- राग हमीर
- राग सोहनी
किंवदंतियों के अनुसार मीराबाई वृंदावन की एक गोपी थी
ऐसा कहा जाता है कि मीराबाई अपने पूर्व जन्म में राधा की सखी व वृंदावन की गोपी थी। वह मन ही मन श्री कृष्ण से प्रेम करती थी। उनका विवाह गोपा से हुआ था परंतु उसके बाद भी उनका श्री कृष्ण के प्रति लगाव कम नहीं हुआ और उन्होंने उनके प्रेम के वशीभूत होकर अपनी जान दे दी। यही गोपी अपने अगले जन्म में मीराबाई बनी।
मीराबाई श्री कृष्ण की मूर्ति में समा गई
जब मीराबाई के ससुराल वालों ने उन्हें मारने के अनेक प्रयत्न किए तब वह वृंदावन में तीर्थ यात्रा के लिए चली गई। उन्होंने भगवान कृष्ण को समर्पित कुछ अमर गीतात्मक कविताओं की रचना की। वृंदावन में वह कई कृष्ण भक्तों से भी मिलीं। वहां वह साधु संतों की संगति में आई और श्रीकृष्ण की भक्ति में रमती चली गई। ऐसा माना जाता है कि वह गुरु रविदास तुलसीदास के साथ-साथ रूप गोस्वामी की भी शिष्या थीं।
मीराबाई की मृत्यु के बारे में यह कहां जाता है कि अपने अंतिम समय में वह वर्ष 1546 में द्वारका गईं। किंवदंतियों के अनुसार, 1560 में मीराबाई चमत्कारिक रूप से भगवान कृष्ण की एक मूर्ति के साथ विलय करके एक मंदिर के अंदर गायब हो गईं। हालाँकि उनकी मृत्यु से सम्बंधित भी कोई प्रमाण नहीं है।
मीराबाई जयंती पर समारोह और अनुष्ठान
मीराबाई को कोई मंदिर समर्पित नहीं है, लेकिन उन्हें भक्ति की प्रतिमूर्ति माना जाता है। मीराबाई की जयंती के शुभ अवसर पर हर साल चित्तौड़गढ़ जिले के अधिकारी मीरा स्मृति संस्थान या मीरा मेमोरियल ट्रस्ट के साथ मिलकर तीन दिवसीय मीराबाई जयंती महोत्सव का आयोजन करते है जिसमें प्रख्यात संगीतकार और गायक भाग लेते है।
इन तीन दिनों के दौरान पूजा, अनुष्ठान, चर्चा व संगीत कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। देश के अन्य हिस्सों में भगवान कृष्ण के मंदिर मीराबाई के सुंदर गीतात्मक भजनों की विशेषता वाली विशेष पूजा और कीर्तन का आयोजन करते है। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष मीराबाई जयंती भक्ति भाव के साथ मनाई जाती है।
मीराबाई से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
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मीराबाई कौन है?
हिन्दू कवि और कृष्ण भक्त
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मीराबाई का जन्म कब हुआ?
1498 ईस्वी
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मीराबाई का जन्म कहाँ हुआ?
कुड़की गाँव (मेवाड़ रियासत)
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मीराबाई के माता-पिता का नाम क्या था?
माता का नाम वीर कुमारी और पिता का नाम राव रतन सिंह
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मीराबाई का विवाह कब हुआ?
1516 में
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मीराबाई का विवाह किसके साथ हुआ?
मेवाड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र राजकुमार भोज राज के साथ
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मीराबाई की मृत्यु कब हुई?
1560 ईस्वी
यह भी देखें
महर्षि वाल्मीकि जयंती, महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय
मध्वाचार्य जयंती, मध्वाचार्य का जीवन परिचय
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