महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) का पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिवरात्रि आती है, लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।
साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है| कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में ‘हेराथ’ या ‘हेरथ’ भी कहा जाता हैं।
इस दिन श्रद्धालु भगवान शिव को फल-फूल अर्पित करते हैं और शिवलिंग पर दूध व जल अर्पित करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है।
यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। भारत, आस्थाओं से भरा एक ऐसा देश जहां थोड़े थोड़े समयांतराल में कोई ना कोई विशेष त्यौहार आस्था को व्यक्त करने के लिए भी मनाया जाता है। एक ऐसा ही त्यौहार है “शिवरात्रि” (Shivratri)।
शिवरात्रि/महाशिवरात्रि भगवान् शिव पर आस्था रखने वालों के एक बहुत बड़ा दिन होता है। शिवरात्रि ना सिर्फ भारत में, अपितु नेपाल, एवं बांग्लादेश में भी मनाई जाती है, श्री लंका को भगवान शिव की ही कृपा माना जाता है। आइये सबसे पहले जानते हैं भगवान् शिव के बारे में:
हिन्दू धर्म में तीन देवताओं को इस सृष्टि की रचना एवं विनाश अर्थात सञ्चालन के लिए उत्तरदायी माना जाता है, ब्रह्मा,विष्णु और महेश| इन तीनो ही देवताओं को एक साथ त्रिदेव की उपाधि दी गयी है| शंकर या महादेव सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं।
इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, नीलकंठ आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। वेद में इनका नाम रुद्र है। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं।
शिव के गले में नाग देवता वासुकी विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंकर जी सौम्य एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं।
शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव मनुष्य, राक्षस, देवता सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है।
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महाशिवरात्रि 2023 तिथि, मुहूर्त (Maha Shivratri 2023 Date, Time)
महाशिवरात्रि व्रत: | 18 फरवरी 2023, शनिवार |
निशीथ काल पूजा मुहूर्त: | सुबह 12 बजकर 9 मिनट से सुबह 01 बजे तक (19 फरवरी) |
अवधि: | 0 घंटे 51 मिनट |
महाशिवरात्री पारणा मुहूर्त: | सुबह 6 बजकर 56 मिनट से शाम 3 बजकर 24 मिनट तक, (19 फरवरी) |
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
महाशिवरात्रि के पावन उत्सव के लिए निम्न कथा प्रचलित है:
एक बार गुरुद्रुव नामक एक शिकारी वन में रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन काफी समय के बाद भी वह उसका ऋण वह समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। ‘शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।
संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है।
मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं।
अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी।
इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो।
मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’ उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।
देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए। इस प्रकार शिवरात्रि के दिन संयोग से होने वाले उस व्रत से शिकारी को मोक्ष प्राप्त हुआ, ठीक उसी प्रकार सभी बहकतों को शिवरात्रि के दिन आस्था एवं व्रत का पूर्ण पालन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिवरात्रि की मान्यताएं
शिवरात्रि के सन्दर्भ में दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं: एक उत्तर भारत में और एक दक्षिण भारत में।
पहली कथा है शिव पार्वती विवाह की:
इस कथा का वर्णन रामचरित मानस और श्रीमद भगवद पुराण में भी मिलता है। इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और सती ने दंडकारण्य में भगवान राम और लक्ष्मण को माता सीता को ढूंढते हुए देखा। भगवन शंकर को राम ने प्रणाम किया,
यह सब देख माता सीता को भ्रम हो गया कि ऐसा कैसे हो सकता है की निराकार साकार हो गए और अगर साकार हो भी गए तो उन्हें पता होना चाहिए कि माता सीता कहा हैं। माता सती से सहन नहीं हुआ तो उन्होंने स्वयं भगवान् शिव से ये प्रश्न कर लिया भगवन शिव ने माता सती को आज्ञा दी कि यदि वे चाहें तो राम की परीक्षा ले सकती हैं।
परीक्षा लेने हेतु माता सती ने माँ सीता का रूप धारण किया एवं राम के सामने उपस्थित हुयी। उन्हें देख राम ने तुरंत उन्हें पहचान लिया और माता सती को वापिस जाना पड़ा। वापिस जाने के बाद माता सती ने भगवन शिव ने झूठ कहा की उन्होंने भगवन राम की परीक्षा नहीं ली, परन्तु शंकर जी अन्तर्यामी थे इसलिए वे जान गए की वे माता सीता का रूप धारण करके श्री राम के पास गयी थी।
शंकर जी के लिए माता सीता माँ के सामान ही थी इसीलिए शिव ने मन ही मन माता सती का त्याग कर दिया था। और एक दिन माता सीता एक दिन अपने पिता दक्ष के घर भगवान् शिव का अपमान होने के कारण अग्निकुंड में प्रवेश कर जाती हैं।
माता सती के प्राण समपर्ण के बाद राम भगवान् शिव से अनुग्रह करते हैं कि वे माता पार्वती से विवाह कर लें, और इस प्रकार जब माता सती पार्वती के रूप में जन्म लेती हैं तो प्रण करती हैं कि या तो वे शिव शंकर जी से विवाह करेंगी या फिर आजीवन कुंवारी रहेंगी, और इस प्रकार माता पारवती का विवाह भगवान् शिव से हुआ। जिस दिन यह विवाह संपन्न हुआ उस दिन शिवरात्रि थी।
दूसरी कथा का प्रचलन दक्षिण भारत में है:
ऐसा माना जाता है की इस ब्रह्माण्ड में अनेकों पृथ्वी हैं, और हर पृथ्वी में एक ब्रह्मा एक एक शिव और एक विष्णु हैं। ऐसा माना जाता है की इन सभी ब्रह्मा, विष्णु और ब्रह्मा के परे एक महा विष्णु, महा ब्रह्मा और सदा शिव हैं, जैसे जैसे पृथ्वी का अंत होता है, उनके ब्रह्मा, विष्णु और शिव महा विष्णु, महाब्रह्मा और सदा शिव में लीन हो जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है एक बार ब्रह्मा और विष्णु में द्वन्द हुआ कि दोनों में से कौन महान है? अभी दोनों अपनी बातों में लीन ही थे कि अचानक एक बड़ा सा स्तम्भ दोनों के बीच में आ गया। दोनों ने अपनी महानता को सिद्ध करने के लिए उस स्तम्भ का आदि और अंत देखने का विचार किया,
परन्तु दोनों में से कोई भी न ही उस स्तम्भ का आदि धुंध पाया ना अंत। कहते हैं इसी दिन से महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
शिवरात्रि का महत्व
यह एक ऐसा उत्सव है जो भगवान् शिव के सम्मान में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि रात में मनाई जाती है जो भगवान् शिव और माता पार्वती के विवाह को समर्पित है। इस रात को हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक चिकित्सकों और शैव भक्तों के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। महाशिवरात्रि की रात को भक्त पौरालिक पात्रो का रूप ग्रहण कर शिव यात्रा में प्रतिभाग करते हैं।
भगवान् शिव के मदिर की अजावत भिन्न भिन्न प्रकार से की जाती है, और रात भर पवित्र मन्त्रों का जाप किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत एवं पूजा प्रार्थना करने से सौभाग्य और मोक्ष की प्रति होती है। इस व्रत को सुहागन अपने पति की लम्बी आयु और कुंवारी लड़कियां अपने लिए भगवान् शिव जैसा आदर्श पति की कामना के लिए करती हैं।
पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे।
यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।
प्रकाश आपके मन की एक छोटी सी घटना है। प्रकाश शाश्वत नहीं है, यह सदा से एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घट कर समाप्त हो जाती है। हम जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्त्रोत है। यहाँ तक कि आप हाथ से इसके प्रकाश को रोक कर भी, अंधेरे की परछाईं बना सकते हैं। परंतु अंधकार सर्वव्यापी है, यह हर जगह उपस्थित है।
संसार के अपरिपक्व मस्तिष्कों ने सदा अंधकार को एक शैतान के रूप में चित्रित किया है। पर जब आप दिव्य शक्ति को सर्वव्यापी कहते हैं, तो आप स्पष्ट रूप से इसे अंधकार कह रहे होते हैं, क्योंकि सिर्फ अंधकार सर्वव्यापी है। यह हर ओर है। इसे किसी के भी सहारे की आवश्यकता नहीं है।
प्रकाश सदा किसी ऐसे स्त्रोत से आता है, जो स्वयं को जला रहा हो। इसका एक आरंभ व अंत होता है। यह सदा सीमित स्त्रोत से आता है। अंधकार का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्त्रोत है। यह सर्वत्र उपस्थित है।
तो जब हम शिव कहते हैं, तब हमारा संकेत अस्तित्व की उस असीम रिक्तता की ओर होता है। इसी रिक्तता की गोद में सारा सृजन घटता है। रिक्तता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं।
भारतीय संस्कृति में, सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ केवल आपको बचाने या आपकी बेहतरी के संदर्भ में नहीं थीं। सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ कहती हैं, “हे ईश्वर, मुझे नष्ट कर दो ताकि मैं आपके समान हो जाऊँ।“
तो जब हम शिवरात्रि कहते हैं जो कि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिन है, तो यह एक ऐसा अवसर होता है कि व्यक्ति अपनी सीमितता को विसर्जित कर के, सृजन के उस असीम स्त्रोत का अनुभव करे, जो प्रत्येक मनुष्य में बीज रूप में उपस्थित है।
महाशिवरात्रि पूजा, विधि-विधान (Maha Shivaratri puja vidhi)
महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिव की पूजा को विधि विधान से करने का महत्व है। माना जाता है जो भी इस दिन पूर्ण आस्था से व्रत रखता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। ऐसी मान्यता है की इस दिन यदि पुरुष व्रत करें तो धन दौलत की और यदि महिलाएं व्रत करें सो सौभाग्य एवं संतान की प्राप्ति होती है।
नियमित व्रत करने से भगवान् शिव शीघ्र ही प्रस्सन होते है और इसके फलस्वरूप मनोकामना की पूर्ती करते हैं। भगवान् क्र व्रत की विधि गरुड़ पुराण के अनुसार: शिवरात्रि से एक रात पहले (त्रयोदशी) को व्रत का प्रारम्भ किया जाता है और संकल्प लिया जाना चाहिए।
शिवरात्रि के दिन सुबह में पानी के साथ काले तिल मिलकर स्नान करना चाहिए। इससे तन और मन दोनों के शुद्धिकरण की बात मानी जाती है। साफ़ वस्त्र पहनने के बाद भगवान् शिव को पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर और शहद) से स्नान कराना चाहिए, फिर इत्र स्नान कराएं और उसके बाद गंगा जल से स्नान कराना चाहिए।
इसके बाद भगवान शिव को वस्त्र एवं जनेऊ चढ़ाएं। फिर अक्षत, पुष्प माला और बेल पत्र चढ़ाएं। इसके पश्चात भगवान् शिव को सुगन्धित पुष्प चढ़ाएं और दिया जलाएं। इसके बाद पान एवं नारियल चढ़ाकर व्रत कथा करें।
शिवरात्रि के दिन भगवान् शिव को जल चढाने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। पूरी पूजन विधि के लिए “ॐ नमः शिवाय” के जप के साथ पूजन करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा को चार प्रहारों में करने का विधान है, मन्त्रों के जाप को हर प्रहर के साथ बढ़ाना चाहिए।
भगवान शिव को बेल पत्र बहुत प्रिय है| शिव पुराण के अनुसार भगवा न शिव को भांग, बेल पत्र, काशी, रुद्राक्ष और शिवलिंग अति प्रिय हैं। शिवरात्रि के व्रत को व्रत राज के नाम से भी जाना जाता है और चारों पुरुषार्थ धर्म, काम , अर्थ और मोक्ष देने वाला है।
भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंग
माना जाता है भगवन शिव से 64 ज्योतिर्लिंग उत्पन्न हुए थे, जिनमें से १२ का ही प्रमाण मिलता है| बारह ज्योतिर्लिंग जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है “स्वयं उत्पन्न”। बारह स्थानों पर बारह ज्योर्तिलिंग स्थापित हैं।
1. सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।
2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।
3. महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
4. ॐकारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदाने देने हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
6. बैजनाथ बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
8. त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
9. घुमेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग।
10. केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।
11. काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
12. रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।
भारत व अन्य देशों में महाशिवरात्रि
कश्मीर में
कश्मीरी पंडित महाशिवरात्रि को एक महापर्व के रूप में मनाते हैं, पूजा का सबसे महत्वपूर्ण प्रसाद अखरोट को माना जाता है| इस दिन अग्नि लिंग के उत्सर्जन और सृष्टि की संरचना की पृष्टभूमि रखी जाती है|
मध्य भारत में
कश्मीर के बाद मध्य भारत में शिव अनुयायियों की एक बड़ी संख्या देखने को मिलती है साथ की कांवड़ियों के रूप में भी शिव भक्तों की बड़ी टोली यहाँ देखने को मिलती है| महाकालेश्वर मंदिर, (उज्जैन) सबसे सम्माननीय भगवान शिव का मंदिर है,
जहाँ हर वर्ष शिव भक्तों की एक बड़ी मण्डली महा शिवरात्रि के दिन पूजा-अर्चना के लिए आती है। जेओनरा, सिवनी के मठ मंदिर में व जबलपुर के तिलवाड़ा घाट नामक दो अन्य स्थानों पर यह त्योहार बहुत धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है।
नेपाल पशुपति नाथ में महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि को नेपाल में व विशेष रूप से पशुपति नाथ मंदिर में व्यापक रूप से मनाया जाता है। पशुपतिनाथ मंदिर एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो बागपत नदी के किनारे स्थित है, नेपा की राजधानी काठमांडू में।
महाशिवरात्रि के अवसर पर काठमांडू के पशुपतिनाथ मन्दिर पर भक्तजनों की भीड़ लगती है। इस अवसर पर भारत समेत विश्व के विभिन्न स्थानों से जोगी, एवम् भक्तजन इस मन्दिर में आते हैं। शिव जिनसे योग परंपरा की शुरुआत मानी जाती है को आदि (प्रथम) गुरु माना जाता है।
परंपरा के अनुसार, इस रात को ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है जिससे मानव प्रणाली में ऊर्जा की एक शक्तिशाली प्राकृतिक लहर बहती है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है इसलिए इस रात जागरण की सलाह भी दी गयी है जिसमें शास्त्रीय संगीत और नृत्य के विभिन्न रूप में प्रशिक्षित विभिन्न क्षेत्रों से कलाकारों पूरी रात प्रदर्शन करते हैं।
शिवरात्रि को महिलाओं के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। विवाहित महिलाएँ अपने पति के सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं व अविवाहित महिलाएं भगवान शिव, जिन्हें आदर्श पति के रूप में माना जाता है जैसे पति के लिए प्रार्थना करती हैं।
बांग्लादेश में शिवरात्रि
बांग्लादेश में हिन्दू एक बड़ी संख्या में रहते हैं, और साथ ही साथ अपने सारे त्यौहार भी मनाते हैं|बांग्लादेश में हिंदू महाशिवरात्रि मनाते हैं। वे भगवान शिव के दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने की उम्मीद में व्रत रखते हैं। कई बांग्लादेशी हिंदू इस खास दिन चंद्रनाथ धाम जाते हैं।
बांग्लादेशी हिंदुओं की मान्यता है कि इस दिन व्रत व पूजा करने वाले स्त्री/पुरुष को अच्छा पति या पत्नी (भारत में भी मान्य) मिलती है। इस वजह से ये पर्व यहाँ खासा प्रसिद्ध है।
धर्म की दूरियों को मिटाता हुआ उत्सव: शिवरात्रि
भारत के भोपाल में शिवरात्रि सबसे ज़्यादा खूबसूरत रूप में मनाई जाती है, यह एक ऐसी मजार की कहानी जहां महाशिवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। मुस्लिम समुदाय की मजार में हिंदू धर्मावलंबियों का विशाल मेला आयोजित किया जाता है।
मध्यप्रदेश के सतना जिले में एक ऐसी भी मजार है जहां महाशिवरात्रि के पावन मौके पर हर साल मेला लगता है। महाशिवरात्रि पर यहां मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी तादाद में आस्था एवं उल्लास के साथ अपनी भागीदारी दर्ज कराते हैं, वहीं प्रत्येक वर्ष उर्स के दौरान हिंदू भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है।
मान शहीद और भाई चांद शहीद की मजार: सतना जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर के फासले पर पूर्व में टमस एवं सतना नदी के संगम तट पर स्थित इस पाक स्थल पर वस्तुत: मान शहीद और उनके भाई चांद शहीद की मजार है।
इस स्थल पर हर साल महाशिवरात्रि के मौके पर भव्य मेले की परम्परा लगभग डेढ़ हजार साल पुरानी है। दूर-दूर के लोग यहां मत्था टेकने पहुंचते हैं। यहां मेला तीन दिन लगातार चलता है।
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