Karwa Chauth 2023 Date, Time in Hindi: करवा चौथ (Karwa Chauth) का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने का दिन होता है, एक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। छान्दोग्य उपनिषद के अनुसार करवा चौथ के दिन व्रत रखने से सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है। इससे आयु में वृद्धि होती है और इस दिन गणेश तथा शिव-पार्वती और चंद्रमा की पूजा की जाती है।
विवाहित महिलाएँ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक किया जाता है।
करवा चौथ (Karwa Chauth) के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण, जो कि अर्घ कहलाता है, किया जाता है। पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान में भी दिया जाता है। करवा चौथ दक्षिण भारत की तुलना में उत्तरी भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है। करवा चौथ के चार दिन बाद पुत्रों की दीर्घ आयु और समृद्धि के लिए अहोई अष्टमी व्रत किया जाता है।
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करवा चौथ कब होता है? (Karwa Chauth Kab Hai)
करवा चौथ (karwa chauth) का व्रत कार्तिक हिन्दू माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दौरान किया जाता है। अमांत पञ्चाङ्ग जिसका अनुसरण गुजरात, महाराष्ट्र, और दक्षिणी भारत में किया जाता है, के अनुसार करवा चौथ अश्विन माह में पड़ता है। हालाँकि यह केवल माह का नाम है जो इसे अलग-अलग करता है और सभी राज्यों में करवा चौथ एक ही दिन मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन चौथ माता की पूजा अर्चना और व्रत वैसे तो पुरे ही भारत में रखा जाता है लेकिन मुख्य रूप से उत्तर भारतीय लोग वृहद स्तर पर करवा चौथ का व्रत रखते हैं और विधिविधान से पूजा करते हैं।
उत्तर भारत में विशेष कर राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश और पंजाब में भी बहुत ही हर्ष के साथ व्रत रखकर करवा चौथ की कहानी सुनी जाती है। इस पावन अवसर पर दिन में कहानी सुनी जाती है और रात्रि के समय चाँद को देखने के उपरान्त स्त्रियाँ अपने पति के हाथो से पानी पीकर / खाना ग्रहण करके व्रत खोलती हैं। करवा चौथ का यह व्रत पति की लम्बी आयु, स्वास्थ्य और सुखद वैवाहिक जीवन के उद्देश्य से किया जाता है।
करवा चौथ व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन कर सकती हैं।
करवा चौथ 2023 तिथि व मुहूर्त (Karwa Chauth 2023 Date, Time in Hindi)
Karwa Chauth 2023 Date, Time – करवा चौथ की चतुर्थी तिथि मंगलवार 31 अक्टूबर 2023 को रात 9 बजकर 30 मिनट से बुधवार 1 नवंबर 2023 को रात 9 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। 1 नवंबर को ही करवा चौथ मनाया जायेगा।
करवा चौथ 2023 | बुधवार, 1 नवंबर, 2023 |
करवा चौथ पूजा मुहूर्त | 17:44 से 19:02 (01 घंटे 17 मिनट) |
चंद्रोदय | 20:26 |
चतुर्थी तिथि आरंभ | 09:30 PM (31 अक्टूबर 2023) |
चतुर्थी तिथि समाप्त | 09:19 PM (1 नवंबर 2023) |
करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Vrat Katha)
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।
जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।
सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये।
वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है। अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
करवा चौथ व्रत विधि (Karva Chauth ki vidhi)
नैवेद्य : आप शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य के रूप में उपयोग में ले।
करवा : काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे उपयोग किया जा सकता है।
करवो की संख्या : 13 करवे
करवा चौथ पूजन के लिए मंत्र : ‘ॐ शिवायै नमः’ से पार्वती का, ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिव का, ‘ॐ षण्मुखाय नमः’ से स्वामी कार्तिकेय का, ‘ॐ गणेशाय नमः’ से गणेश का तथा ‘ॐ सोमाय नमः’ से चन्द्रदेव का पूजन करें।
करवा चौथ की थाली : करवा चौथ की रात्रि के समय चाँद देखने के लिए आप पहले से ही थाली को सजाकर रख लेवे। थाली में आप निम्न सामग्री को रखें।
- दीपक
- करवा चौथ का कलश (ताम्बे का कलश इसके लिए श्रेष्ठ होता है )
- छलनी
- कलश को ढकने के लिए वस्त्र
- मिठाई या ड्राई फ्रूट
- चन्दन और धुप
- मोली और गुड/चूरमा
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’
- पूरे दिन निर्जला रहें।
- दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
- आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
- पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
- गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
- जल से भरा हुआ लोटा रखें।
- वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
- रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
- गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’
- करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
- कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
- तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
- रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
- इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
करवा चौथ में सरगी
पंजाब में करवा चौथ का त्यौहार सरगी के साथ आरम्भ होता है। यह करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन होता है। जो महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं उनकी सास उनके लिए सरगी बनाती हैं। शाम को सभी महिलाएँ श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं।
इस रस्म में महिलाएँ एक घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस रस्म के दौरान एक बुज़ुर्ग महिला करवा चौथ की कथा गाती हैं। भारत के अन्य प्रदेश जैसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है।
करवा चौथ से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
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क्या अविवाहित करवा चौथ व्रत रख सकते हैं?
करवा चौथ का व्रत शादीशुदा स्त्रियों के द्वारा ही रखा जाता है। इसके लिए आप अपने घर में बड़ी बुजुर्ग स्त्रियों की सलाह जरूर लेवे क्यों की कुछ अंचल में अच्छे वर के लिए कुंवारी लड़किया भी यह व्रत रखती हैं।
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करवा चौथ व्रत में हम क्या खा सकते हैं?
कुछ अंचल में अल्पाहार के लिए फल का उपयोग किया जाता है लेकिन इस व्रत को निर्जला करना अधिक लाभदायी होता है।
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क्या आप करवा चौथ पर पानी पी सकते हैं?
नहीं, क्योंकि यह निर्जला व्रत होता है इसलिए इस दिन ना तो कुछ खाया जाता है और नाही पानी हीग्रहण किया जाता है।
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सरगी खाने का सही समय क्या है?
वैसे तो इस व्रत को आप निर्जला करे तो उचित रहेगा, अन्यथा अपनी परम्पराओं के अनुसार सरगी का उपयोग करे जिसके लिए सूर्योदय से पूर्व ( प्रातः चार से पांच बाते ) तक का समय अनुकूल होता है।
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क्या हम करवा चौथ पर बाल धो सकते हैं?
नहीं, मान्यता नहीं है।
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करवा चौथ पर किस भगवान की पूजा की जाती है?
चौथ माता की पूजा के साथ आप माता पार्वती जी की पूजा करें और शिव, गणेश, और कार्तिकेय की भी पूजा अर्चना करे।
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