कैलाश पर्वत को दुनिया के सबसे रहस्यमयी पर्वत के रूप में जाना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि हिमालय जैसा कोई दूसरा पर्वत नहीं है। यहां भगवान का निवास है क्योंकि यहां कैलाश और मानसरोवर स्थित हैं। कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं।
कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग को मोक्ष का रास्ता भी कहा जाता रहा है। स्कंध पुराण में भी इस यात्रा का वर्णन मिलता है। हिंदुओं की आस्था है कि कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थल है और उसकी परिक्रमा करने तथा मानसरोवर झील में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
‘‘परम रम्य गिरवरू कैलासू, सदा जहां शिव उमा निवासू’’
Quick Links
कैलाश पर्वत कहां है? (Kailash Parvat Kahan Hai)
कैलाश पर्वत हिमालय से उत्तरी क्षेत्र तिब्बत में बसा है, चूंकि तिब्बत चीन की सीमा में आता है इसलिए कैलाश भी चीन में आता है। कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्त्रोतों से घिरा है सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं:
- “मानसरोवर” जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है व जिसका आकार सूर्य के सामान है
- “राक्षस झील” जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है व जिसका आकार चन्द्र के सामान है।
खास बात ये है कि एक ही स्थान पर होने के बावजूद मानसरोवर झील का पानी मीठा है और राक्षस ताल का पानी नमकीन है।
कैलाश पर्वत की ऊंचाई (Kailash Parvat Height)
कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6600 मीटर से अधिक है, जो दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट से लगभग 2200 मीटर कम है। कैलाश पर्वत समुद्र तल से लगभग 20 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इसलिए तीर्थयात्रियों को कई पर्वत-ऋंखलाएं पार करनी पड़ती हैं।
यह यात्रा अत्यंत कठिन मानी जाती है हिन्दू धर्मं के अनुसार कहते है की जिसको भोले बाबा का बुलावा होता है वही इस यात्रा को कर सकता है। भारत सरकार के सौजन्य से हर वर्ष मई-जून में सैकड़ों तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते हैं।
इसके लिए उन्हें भारत की सीमा लांघकर चीन में प्रवेश करना पड़ता है, क्योंकि यात्रा का यह भाग चीन में है। सामान्यतया यह यात्रा 28 दिन में पूरी होती है। भारतीय भू भाग में चोथे दिन से पैदल यात्रा शुरू होती है। भारतीय सीमा में कुमाउ मंडल विकास निगम इस यात्रा को संपन्न कराती है।
कैलाश परिक्रमा
कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यदि आप इसकी परिक्रमा करना चाहते हैं, तो यह परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी दारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है।
यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को हिमरत्न भी कहा जाता है।
गौरीकुंड
कैलाश पर्वत की परिक्रमा के दौरान आपको एक किलोमीटर परिधि वाला गौरीकुंड भी मिलेगा। यह कुंड हमेशा बर्फ से ढंका रहता है, लेकिन तीर्थयात्री बर्फ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि गौरीकुंड में स्नान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पवित्र झील ‘मानसरोवर’
यह पवित्र झील समुद्र तल से लगभग 4 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है और लगभग 320 बर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। यहीं से एशिया की चार प्रमुख नदियां-ब्रह्मपुत्र, करनाली, सिंधु और सतलज निकलती हैं।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है।
जनश्रुतियां हैं कि ब्रह्मा ने अपने मन-मस्तिष्क से मानसरोवर बनाया है। दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्क) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त में देवता गण यहां स्नान करते हैं।
शक्त ग्रंथ के अनुसार, सती का हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। इसलिए इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है। गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती है।
श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज है। मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले, तो वह रुद्रलोक पहुंच सकता है।
राक्षस ताल
मानसरोवर के बाद आप राक्षस ताल की यात्रा करेंगे। यह लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। प्रचलित है कि रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोड़ती है।
हिंदू के अलावा, बौद्ध और जैन धर्म में भी कैलाश मानसरोवर को पवित्र तीर्थस्थान के रूप में देखा जाता है। बौद्ध समुदाय कैलाश पर्वत को कांग रिनपोचे पर्वत भी कहते हैं। उनका मानना है कि यहां उन्हें आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है।
कहा जाता है कि मानसरोवर के पास ही भगवान बुद्ध महारानी माया के गर्भ में आये। जैन धर्म में कैलाश को अष्टपद पर्वत कहा जाता है। जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि जैन धर्म गुरु ऋषभनाथ को यहीं पर आध्यात्मिक ज्ञान मिला था।
कैलाश पर्वत का इतिहास (Kailash Parvat History)
कैलाश पर्वत पर साक्षात भगवान शंकर विराजे हैं और मान्यता है कि इसके ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्युलोक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी के पास कुबेर की नगरी है।
यहीं से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।
शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश पर्वत का उल्लेख देखने को मिलता है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है।
बौद्ध धर्मावलंबियों अनुसार, इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। कहते हैं ऋषभदेव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी।
हिन्दू धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि कैलाश पर्वत मेरू पर्वत है जो ब्राह्मांड की धूरी है और यह भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। यहां देवी सती के शरीर का दायां हाथ गिरा था।
इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि गुरु नानक ने भी यहां कुछ दिन रुककर ध्यान किया था। इसलिए सिखों के लिए भी यह पवित्र स्थान है।
कैलाश पर्वत के दर्शन
लोग देवभूमि उत्तराखंड से भी कैलाश पर्वत के दर्शन कर सकते हैं। ITBP के डीआईजी एपीएस निंबाडिया ने कहा है कि भारत से ही लोग पवित्र कैलाश के दर्शन कर सकते हैं। ओल्ड लिपुलेख से यह पर्वत दिखाई देता है और उत्तराखंड से श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं।
ओल्ड लिपुलेख, मुख्य लिपुलेख से तीन किलोमीटर पहले है। मुख्य लिपुलेख से तीन किलोमीटर पहले ओल्ड लिपुलेख से कैलाश पर्वत दिखाई देता है। जो लोग कैलाश नहीं जा सकते है उन्हें यहां ले जाया जा सकता है और दर्शन करवाए जा सकते हैं।
कैलाश पर्वत का रहस्य (Kailash Parvat Mystery)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कैलाश पर्वत जो कि मानसरोवर के पास स्थित है, वहां पर भोलेनाथ शिव का धाम है। मान्यता है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं और माना जाता है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत है जहां अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डार है।
वेदों में कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का अक्ष और विश्व वृक्ष कहा गया है एवं इसी बात का जिक्र रामायण में भी किया गया है। अक्ष मुंडी / एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) को ब्रह्मांड का केंद्र या दुनिया की नाभि (केंद्र) या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र के रूप में समझा जाता है।
यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं। और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बंधित हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान है जहाँ अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं, रशिया के वैज्ञानिक ने वह स्थान कैलाश पर्वत बताया है।
रूस और अमेरिका द्वारा किए गए कई शोध और अध्ययन में ये बात सामने आई है कि इस पर्वत शिखर पर ही दुनिया का केंद्र है और इसे अक्ष मुंडी के नाम से जाना जाता है।
कैलाश पर्वत पर आज तक कोई भी पर्वतारोही नहीं चढ़ पाया है। पर्वतारोही ऊँचाई की वजह से नहीं बल्कि डर से कैलाश पर नहीं चढ़ते हैं। कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला था कि कैलाश पर्वत अत्यंत ही रेडियो एक्टिव जगह है। यह रेडिओ एक्टिविटी हर तरफ एक जैसी थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस पर्वत पर कोई भी अपवित्र आत्मा नहीं जा सकती है।
कैलाश पर्वत पर हेलीकॉप्टर
हर वर्ष उत्तराखंड से होते हुए भारत और चीन सीमा से कैलाश मानसरोवर यात्रा गुजरती है। इसके लिए कैलाश मानसरोवर के दर्शन करने वाले दल को हेलीकॉप्टर के माध्यम से सीधे गुंजी पहुँचाया जाता है। मानसरोवर यात्री गुंजी पैदल पड़ाव में होमस्टे भी कर सकते हैं।
भारत सरकार के प्रयासों से 2015 में सिक्किम के नाथूला दर्रे से भी यात्रा शुरू की गई है, लेकिन लिपुलेख दर्रे को पार कर की जाने वाली यात्रा को ही धार्मिक रूप से मान्यता है।
कैलाश पर्वत जाने का रास्ता
- भारत से सड़क मार्ग: भारत सरकार सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर यात्रा प्रबंधित करती है। यहां तक पहुंचने में करीब 28 से 30 दिनों तक का समय लगता है। यहां के लिए सीट की बुकिंग एडवांस भी हो सकती है और निर्धारित लोगों को ही ले जाया जाता है, जिसका चयन विदेश मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
- वायु मार्ग: वायु मार्ग द्वारा काठमांडू तक पहुंचकर वहां से सड़क मार्ग द्वारा मानसरोवर झील तक जाया जा सकता है।
- कैलाश तक जाने के लिए हेलीकॉप्टर की सुविधा भी ली जा सकती है। काठमांडू से नेपालगंज और नेपालगंज से सिमिकोट तक पहुंचकर वहां से हिलसा तक हेलीकॉप्टर द्वारा पहुंचा जा सकता है। मानसरोवर तक पहुंचने के लिए लैंडक्रूजर का भी प्रयोग कर सकते हैं।
- काठमांडू से ल्हासा के लिए ‘चाइना एयर’ वायुसेवा उपलब्ध है, जहां से तिब्बत के विभिन्न कस्बों- शिंगाटे, ग्यांतसे, लहात्से, प्रयाग पहुंचकर मानसरोवर जा सकते हैं।
कैलाश पर्वत – फोटो
कैलाश पर्वत से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
कैलाश पर्वत कौन से देश में है?
कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है।
कैलाश पर्वत पर अभी तक कौन गया है?
कहा जाता है कि 11वीं सदी में एक बौद्ध भिक्षु योगी मिलारेपा ने अभी तक माउंट कैलाश पर चढ़ाई की है। वह इस पवित्र और रहस्यमयी पर्वत पर जाकर जिंदा वापस लौटने वाले दुनिया के पहले इंसान थे। इसका जिक्र पौराणिक कहानियों में भी मिलता है।
कैलाश पर्वत के ऊपर क्या है?
मान्यता है कि कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक है।
कैलाश मानसरोवर जाने में कितना खर्चा लगता है?
कैलाश मानसरोवर यात्रा को दो अलग मार्गों से कर सकते हैं जिसमे एक लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) भारत से है जहां से यात्रा करने पर लगभग 24 दिन लगते हैं और यात्रा का प्रति व्यक्ति अनुमानित खर्च 1.6 लाख रुपये आता है।
कैलाश पर्वत की ऊंचाई कितनी है?
6638 मीटर
कैलाश मानसरोवर यात्रा का अंतिम भारतीय स्थान कौन सा है?
लिपुपास
यह भी देखें
चारमीनार कहाँ स्थित है? चार मीनार का इतिहास