जन्माष्टमी 2023 तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि – जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?

भारतवर्ष अपने भिन्न भिन्न प्रकार के त्यौहारों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। देश में होली, दिवाली, दहशरा, ईद, मकर संक्रांति एवं ओणम जैसे हज़ारों त्यौहार धूम धाम से मनाए जाते हैं। इन सभी त्यौहारों में से एक त्यौहार ऐसा भी है जिसे न सिर्फ दिन में अपितु मध्यरात्रि तक बड़े ही हर्षो-उल्लास से मनाया जाता है, जिसमें न सिर्फ लोग अपने घरों को सजाते हैं अपितु मंदिरों को इस प्रकार सजाया जाता है जैसे वास्तव में एक नए शिशु का जन्म हो रहा हो। हम बात कर रहे हैं “जन्माष्टमी” की, जिसे “कृष्ण जन्माष्टमी” (Krishna Janmashtami) भी कहा जाता है।

जैसा कि श्री कृष्ण द्वारा महाभारत में दिए गए गीता के उपदेशों में भी इस बात का वर्णन मिलता है की जब जब इस धरती पर धर्म की हानि और अधर्म का विकास होता है तो तब तब धरती पर अधर्म को मिटने के लिए स्वयं नारायण अवतरित होते हैं।

इसी प्रकार अधर्म को मिटाने के लिए अथवा विशेष कार्य सिद्धि के लिए नारायण अर्थात भगवान् विष्णु ने धरती पर कृष्ण अवतार के रूप में जन्म लिया था। श्री कृष्ण का जन्म द्वापरयुग में भाद्रपद मास के कृष्णा पक्ष की अष्टमी को हुआ था एवं इन्हें सोलह कलाओं में परिपूर्ण माना जाता है। श्री कृष्ण का नाम सुनते ही उनके बड़े भाई बलराम जिन्हे दाऊ के नाम से भी जाना जाता रहा है,का स्मरण भी हमें होता है। तो पहले हम जन्माष्टमी 2023 तिथि और मुहूर्त जानते हैं, उसके बाद श्री कृष्ण एवं बलराम के जन्म की पूरी कहानी जानेंगे।

जन्माष्टमी 2023 तिथि, मुहूर्त (Janmashtami 2023 Date & Timing)

janmashtami

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, अष्टमी तिथि 18 अगस्त, गुरुवार को रात करीब 09 बजकर 25 मिनट पर लग जाएगी और 19 अगस्त को रात 11 बजे तक रहेगी। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। ज्योतिषियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय रात 12 बजे अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र था।

कृष्ण जन्माष्टमी 2023 तिथि:बुधवार, 06 सितम्बर, 2023
जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त:06 सितम्बर रात 11:57 PM बजे से 00:42 AM बजे तक
अष्टमी तिथि शुरू:6 सितम्बर 2023, 15:37 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त:7 सितम्बर 2023, 16:14 बजे तक
दही हाण्डी:गुरुवार, 7 सितम्बर, 2023

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास (Janmashtami History)

इस कहानी का प्रारम्भ होता है,देवकी एवं वासुदेव के विवाह से। देवकी का भाई कंस अपनी बहन से बहुत प्रेम करता था, परन्तु अपनी प्रजा के प्रति वह उतना ही क्रूर एवं निर्दयी था। संपूर्ण मथुरा नगरी को इस विवाह के उपलक्ष में कंस ने दुल्हन की ही भांति सजवाया था।

विवाह के उपरान्त स्वयं कंस ने ही देवकी और वासुदेव का रथ हाँका था, जब कंस देवकी और वासुदेव को देवकी के ससुराल अर्थात वासुदेव जी के यहां अपने रथ पर लेकर जा रहे थे कि तभी अचानक आकाशवाणी हुई की ” ऐ मूर्ख कंस! सावधान हो जा, देवकी का आठवां पुत्र ही तेरी मृत्यु का कारण बनेगा”। आकाशवाणी सुनते ही कंस ने तत्काल रथ रोक दिया, तथा देवकी और वासुदेव की ओर अत्यंत क्रोध से देखा।

कंस किसी भी हाल में अपनी मृत्यु नहीं चाहता था, इसलिए कंस ने देवकी को मारने का निश्चय किया। कंस ने देवकी से कहा कि “मैं तुझे तत्काल मारकर मैं इस आकाशवाणी को असत्य साबित कर दूंगा”।

इतना कहकर कंस जैसे ही देवकी को मारने लगा वासुदेव कंस के सामने आ गए और कंस से कहा कि “हे कंस! देवकी तुम्हारी बहन है, तुम इतने क्रूर कैसे हो सकते हो? आकाशवाणी के अनुसार देवकी का पुत्र तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा देवकी तो नहीं। तुम देवकी को जीवित रहने दो और मैं वचन देता हूँ कि देवकी की होने वाली हर संतान को मैं स्वयं तुम्हारे पास लेकर आऊंगा, फिर तुम जो चाहो उसके साथ कर सकते हो।” कंस जानता था की वासुदेव अपने द्वारा दिए गए वचन को हर प्रकार से पूर्ण करेंगे, इसलिए उसने देवकी को जीवित छोड़ दिया।

धीरे धीरे समय बीतता गया और आखिर वो दिन आ ही गया जब देवकी ने अपने पहले पुत्र को जन्म दिया। अपने वचन का पालन करने हेतु वासुदेव अपनी पहली संतान को लेकर कसं के पास गए और अपने बालक को उन्हें देते हुए कहा ” हे कंस! यह देवकी का पहला पुत्र है, अपने वचन के अनुसार मैं इसे तुम्हें सौंपता हूँ”।

यह देखकर कंस ने कहा वासुदेव क्या तुमने आकाशवाणी नहीं सुनी थी, देवकी के आठवें पुत्र द्वारा मेरी मृत्यु होगी मुझे इस प्रथम संतान की कोई आवश्यकता नहीं। यह सुन वासुदेव प्रसन्न हुए और अपने महल वापिस लौट आये, परन्तु वासुदेव को अब भी कंस की बात पर कोई विश्वास नहीं था। कंस के मंत्रियों ने कंस के इस कदम को मूर्खता का परिचय बताया जिससे क्रोधित होकर कंस ने देवकी एवं वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उन्हीं के सामने उनकी प्रथम संतान की हत्या कर दी।

कंस ने तत्काल ही अपने पिता महाराज उग्रसेन को भी कारागार में डाल दिया और स्वयं उनका राज्य हड़प लिया। कंस की क्रूरता से सारी प्रजा परेशान थी, दिन प्रतिदिन कंस का प्रजा पर अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। जैसे जैसे समय बीतता गया कंस देवकी के पुत्रों की हत्या करता गया और धीरे धीरे कंस ने देवकी के छ:(6) पुत्रों की हत्या कर दी। देवकी के सातवें गर्भ में स्वयं शेषनाग अवतरित थे, इसलिए देवकी के उस गर्भ को माता रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया| रोहिणी गोकुल में नन्द बाबा के घर में ही शरणागत थी। माता रोहिणी के इस पुत्र का नाम बलराम रखा गया, जिन्हे दाऊ के नाम से भी जाना जाता है।

कुछ समय बीतने के पश्चात देवकी अब अपनी आठवीं संतान को जन्म देने लिए तैयार थी। मध्यरात्रि का समय था, बाहर आंधी तूफ़ान अपनी चरम सीमा पर था, इसी समय देवकी ने एक पुत्र को जन्म दिया, श्री नारायण अपना अवतार ले चुके थे।

उनके जन्म लेते ही सारे प्रहरी एक अचेत निंद्रा में चले गए, कारागार के सारे ताले अपने आप खुल गए, देवकी एवं वासुदेव के शरीर में पड़ी बेड़ियाँ स्वतः ही खुल गयी और पुनः एक आकाशवाणी हुयी “हे वासुदेव! श्री नारायण अपना अवतार ले चुके हैं, कारागार खुल गया है, जाइये और इस शिशु को गोकुल में नन्द बाबा के यहाँ छोड़ आइये।” वासुदेव ने एक छोटी सी टोकरी में श्री कृष्ण को रखा और मध्य रात्रि में ही गोकुल के लिए प्रस्थान कर गए। मार्ग में यमुना नदी को पार करने हेतु वासुदेव ने टोकरी को अपने सर पर रख दिया।

आकाश से भयंकर वर्षा हो रही थी, यमुना नदी का पानी अपने उफान पर था, ऐसा माना जाता है कि यमुना माता श्री कृष्ण के चरण स्पर्श करना चाहती थी। श्री कृष्ण के चरण स्पर्श करते ही यमुना नदी ने अपना जल स्तर कम कर दिया। इस घनघोर वर्षा से श्री कृष्ण और वासुदेव की रक्षा करने का दायित्व शेषनाग का था।

कुछ समय बाद ही वासुदेव गोकुल पहुँच गए और श्री कृष्ण को माता यशोदा के पास लेटा दिया। जब श्री कृष्ण को सुरक्षित गोकुल पहुंचाकर वासुदेव वापस मथुरा लौटे और करागार पहुंचे तो स्वतः ही सारे प्रहरी अपने आप जाग गए, कारागार फिर से बंद हो गया और माता देवकी और वासुदेव का शरीर फिर से बेड़ियों में बंद हो गया| और इस प्रकार कंस की पुरजोर कोशिशों के बाद भी वो श्री नारायण के अवतार को धरती पर अवतरित होने से नहीं रोक पाया।

अपने बाल्य काल में श्री कृष्ण बहुत ही नटखट थे और माखन चोर के रूप में जाने जाते थे। श्री कृष्ण अपना अधिकतर समय अपने सखाओं तथा गोपियों संग बिताते थे। श्री कृष्ण एवं राधा के नृत्य को रास की स्नज्ञा प्रदान की गयी है। बाल्यकाल से किशोरावस्था तक आते आते श्री कृष्ण द्वारा बहुत से दुराचारियों का संहार किया गया जैसे पूतना, कागासुर,शिशुपाल, कंस इत्यादि। कालिया नाग को भी मोक्ष की प्राप्ति श्री कृष्ण द्वारा ही प्राप्त हुयी।

भविष्यवाणी को सार्थक सिद्ध करते हुए श्री कृष्ण द्वारा कंस का वध किया गया तथा उसके पश्चात उन्होंने अपना राज्य संभाला। श्री कृष्ण ने महाभारत में भी एक विशेष भूमिका निभाई है। महाभारत में गीता का उपदेश भी श्री कृष्ण द्वारा ही दिया गया है, जिसका पूर्ण वृत्तांत “श्रीमद भागवत गीता” में मिलता है।

श्री कृष्णा की जन्म कहानी के बाद आइये जानते हैं कि कैसे कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) को मनाया जाये:

कृष्ण जन्माष्टमी पूजन विधि विधान

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन प्रातः काल स्नान कर, संकल्प लेकर व्रत रखना लाभदायक माना गया है। भगवान के आगे ये संकल्प लिया जाना आवश्यक है कि आप श्री कृष्ण की कृपा प्राप्ति के लिए, रोग – शोक निवारण के लिए और मनोकामना की पूर्ति के लिए विधि विधान से व्रत का पालन करेंगे। इसके साथ ही श्री कृष्ण के नाम का उसके अर्थ के साथ बार बार चिंतन कीजिये।

“कृष्” का अर्थ है आकर्षित करना और “ण” का अर्थ है परम आनंद या पूर्ण मोक्ष| इस प्रकार “कृष्ण” का अर्थ है, वह जो परमानन्द या पूर्ण मोक्ष की तरफ ले जाये। इसके पश्चात संध्या के समय झूला बनाकर भगवान श्री कृष्ण को उसमें झुलाएं। आरती के बाद उसमें दही, माखन, पंजीरी और उसमें सूखे मेवे, पंचामृत का प्रसाद भोग लगाकर भक्तों में बाटें। रात्रि में १२ बजे भगवान का जन्मोत्सव मनाएं। जन्माष्टमी का व्रत कर गौ-दान करने से सहस्त्रों एकादशियों के व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है।

जन्माष्टमी व्रत कैसे करें?

  • उपवास के दिन सुबह ब्रह्ममुहू्र्त में उठकर स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाइये।
  • इस व्रत आप फलाहार भी कर सकते हैं।
  • हाथ में जल, फल, कुश और गंध लें और व्रत का संकल्प करें।
  • भगवान कृष्ण के लिए झूला बनाएं और उनकी प्रतिमा को उस पर रखें।
  • प्रतिमा को स्थापित करने से पहले बाल-गोपाल को गंगाजल से स्नान कराया जाता है और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। इसके बाद ही उन्हें स्थापित किया जाता है।
  • अगर आपके पास मूर्ति नहीं है तो आप चित्र से भी पूजा कर सकते हैं।
  • पूजा के दौरान कृष्ण के साथ देवकी, वासुदेव, बलराम, नंदबाबा, यशोदा और राधाजी को पूजा जाता है।
  • कृष्ण जी को पुष्प अर्पित करें।
  • रात 12 बजे चंद्र को देखकर कृष्ण जी झूला झुलाएं और उनका जन्मोत्सव मनाएं।
  • कृष्ण जी की आरती करें और मंत्रोच्चारण करें।
  • श्री कृष्ण को माखन-मिश्री का भोग जरूर लगाएं।
  • अंत में प्रसाद वितरण करें।

श्री कृष्ण का श्रृंगार

यदि जन्माष्टमी पर अपनी राशि के अनुसार भगवान का श्रृंगार किया जाये तो भगवान श्री कृष्ण के साथ साथ गृह नक्षत्र एवं राशि के स्वामी की प्रसन्नता भी सफलता प्रदान करती है।

  • मेष राशि वाले भगवान श्री कृष्ण का लाल वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में लाल रंग का प्रयोग करें।
  • वृष राशि वाले भगवान श्री कृष्ण का सफेद वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में सफेद रंग का प्रयोग करें।
  • मिथुन राशि वाले भगवान श्री कृष्ण का हरे वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में हरे रंग एवं हरियाली का प्रयोग करें।
  • कर्क राशि वाले भगवान् श्री कृष्ण का सफेद वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में सफेद रंग का प्रयोग करें।
  • सिंह राशि वाले भगवान श्री कृष्ण का लाल-गुलाबी वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में लाल-गुलाबी रंग का प्रयोग करें।
  • कन्या राशि वाले भगवान् श्री कृष्ण का हरे वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में हरे रंग का प्रयोग करें।
  • तुला राशि वाले भगवान् श्री कृष्ण का सफेद वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में सफेद रंग का प्रयोग करें।
  • वृश्चिक राशि वाले भगवान् श्री कृष्ण का लाल वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में लाल रंग का प्रयोग करें।
  • धनु राशि वाले भगवान् श्री कृष्ण का पीले वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में लाल रंग का प्रयोग करें।
  • मकर राशि वाले भगवान् श्री कृष्ण का श्याम वर्ण वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में श्याम रंग का प्रयोग करें।
  • कुम्भ राशि वाले भगवान् श्री कृष्ण का श्याम वर्ण वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में श्याम रंग का प्रयोग करें।
  • मीन राशि वाले भगवान् श्री कृष्ण का पीले वस्त्रों से श्रृंगार करें और झांकी में पीले रंग का प्रयोग करें।

दही-हांडी/मटकी फोड़ प्रतियोगिता

जन्माष्टमी के दिन भारतवर्ष में कईं जगह दही-हांडी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है जिसमे सभी जगह के बाल-गोविंदा भाग लेते हैं। छाछ-दही आदि से भरी एक मटकी रस्सी की सहायता से आसमान में लटका दी जाती है और बाल-गोविंदाओं द्वारा मटकी फोड़ने का प्रयास किया जाता है। दही-हांडी प्रतियोगिता में विजेता टीम को उचित इनाम दिए जाते हैं। जो विजेता टीम मटकी फोड़ने में सफल हो जाती है वह इनाम की हकदार होती है।

संतान की कामना

संतान की कामना के लिए कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अति उत्तम है। श्रद्धा और विश्वास के साथ दम्पति इस दिन उपवास रखते हुए अर्धरात्रि में भगवन श्री कृष्ण के बाल रूप “लड्डू गोपाल” का पूजन करते हैं।

जन्माष्टमी पर पंचामृत से भगवान का स्नान और पंचामृत ग्रहण करने से पांच गृहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। दूध, दही, घी, शक्कर, निर्मित पंचामृत, पूजन के बाद अमृत के सामान हो जाता है, जिसके सेवन से हानिकारक विषाणुओं का नाश होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इस बार की जन्माष्टमी पर देवगुरु बृहस्पति अपनी धनु राशि में हैं और शनि अपनी मकर राशि में।

शनि और गुरु का प्रभाव मानव जीवन को विशेष रूप से प्रभावित करता है। आत्मिक उन्नति, मानसिक शांति, संतान सुख आदि के लिए श्री कृष्ण पूजन और जन्माष्टमी के व्रत का विधान है। मौसन परिवर्तन के कारण भाद्रपद में रोगों की बहुलयता के समापन के लिए जन्माष्टमी के व्रत को लाभदायक माना गया है।

भगवान् श्री कृष्णा के जन्म के साथ साथ जन्माष्टमी सृष्टि के अनेक रहस्यों को अपने में समाये हुए है। कृष्णा संग राधा की भक्ति की अलौकिक ऊर्जा सुख-दुःख, सकारात्मक-नकारात्मक तत्वों के बीच जीवन का संतुलन बनाती है। श्री कृष्ण संग राधा का रास, और मीरा की भक्ति संसार में अतुलनीय रही है। मीरा एक ऐसी भक्त जिसने श्री कृष्ण को कभी नहीं देखा परन्तु उतनी भक्ति में इतनी लीन की विष का प्याला और काँटों के बिस्तर में जाने पर भी उन्हें लेश मात्र भी पीड़ा नहीं हुई।

श्री कृष्ण की भक्ति और जन्माष्टमी के व्रत से अनेकों प्रकार के फल प्राप्त होते हैं। वृन्दावन में तो ये तक माना जाता है की श्री कृष्ण आज भी हर रात्रि वहां रास लीला रचाते हैं, हालांकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता ना ही इस बात का कोई साक्ष्य है। वो कहते हैं ना भक्ति के सामने सारे तर्क असफल होते हैं ठीक उसी प्रकार भक्तों के लिए कृष्ण लीला भी एक ऐसा ही सत्य है जिसके होने का कोई प्रमाण तो नहीं मिलता पर फिर भी जन्माष्टमी के दिन उनकी नगरी को उसी प्रकार सजाया जाता है जैसे कि वो स्वयं आज वहां जन्म लेने वाले हों।

यह भी देखें: होली तिथि व मुहूर्त – होली क्यों मनाई जाती है?