जब इन्द्र ने देवी सीता को दी दिव्य खीर

जब भगवान राम, देवी सीता और लक्ष्मण जी अपने वनवास के दौरान चित्रकूट नामक वन को छोड़कर किसी दूसरे वन की तरफ चल दिए थे तो वह तीनो जंगल में चलते हुए महर्षि अत्रि के आश्रम में पहुंचे। वहां जाकर महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया के दर्शन किये। अनुसूया ने अपने आश्रम में अतिथि के रूप में आयी देवी सीता को ऐसे वस्त्र भेंट किये जो कभी भी मैले नहीं होते थे। अशोक वाटिका में कैद देवी सीता के शरीर पर देवी अनुसूया के दिए हुए वही वस्त्र थे। इसी कारण देवी सीता के वह दिव्य वस्त्र कभी मैले नहीं हुए।

रावण के द्वारा देवी सीता का हरण करने के बाद वह देवी सीता को अपनी धन दौलत और वैभव से लुभाने का प्रयास करता रहता था। इस पर देवी सीता ने रावण के सारे वैभव को ठुकरा दिया और उससे कहा कि श्री राम के हाथों तेरा विनाश होना निश्चित है। तब रावण ने क्रोध में देवी सीता को दो माह का समय दिया कि यदि इतने दिनों में मेरी इच्छा स्वीकार नहीं की तो मैं तुम्हारा वध कर दूंगा। इसके बाद सीता को अशोक वाटिका में ले जाया गया। शोक में डूबी हुई देवी सीता ने अपने प्राण त्यागने के लिए खाना पीना त्याग दिया था।

यह देखकर ब्रह्मा जी घबरा गए और उन्होंने इंद्र को देवी सीता के खाने का प्रबंध करने को कहा। ब्रह्मदेव के आदेश से देवराज इंद्र खीर से भरा हुआ कटोरा और निद्रा देवी को साथ लेकर लंका पहुंचे। तब निद्रा देवी सभी राक्षसियों को मोह निद्रा में डाल देती हैं, जिसके कारण वह सभी सो जाती हैं। तब देवराज इंद्र देवी सीता को अपना परिचय देकर उनसे खीर खाने को कहते हैं कि इस खीर को खाने से आपको हज़ारो वर्षों तक भूख प्यास नहीं लगेगी। तब देवी सीता ने इंद्र के कहने पर इंद्र के द्वारा लायी उस खीर को खा लिया था। इसी कारण देवी सीता दो माह तक उस अशोक वाटिका में भूखी प्यासी रह पायी थी।

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