सिख संप्रदाय में 10 गुरु हुए हैं जिसमें से पहले गुरु नानक जी हैं तथा अंतिम गुरु गोविंद सिंह हुए हैं। नानक जी को सिखों के प्रथम आदि गुरु के रूप में जाना जाता है। सिख शब्द का शाब्दिक अर्थ है शिष्य अर्थात जो नानक जी की सीखों को एक शिष्य की भांति अपने जीवन में एवं अपने व्यवहार में लाते हैं वही सिख हैँ। गुरु नानक जी हमेशा मानवता के लिए समर्पित रहे हैं और अपने जीवन में उन्होंने मानवता को ही सबसे बड़ा धर्म बताया है।
गुरु नानक जो हिंदू अथवा मुस्लिम के सभी धर्म से पूरी तरह सहमत नहीं थे नाना जी मूर्ति पूजन को भी अनावश्यक ही मानते थे, भूखे रहकर खुद को कष्ट देना व्रत करना पूजा पाठ इत्यादि का कट्टर रुप से समर्थन नहीं करते थे। उनका मानना था इन सब चीजों से भी पहले हमें परोपकार तथा समाज कल्याण के कामों को प्राथमिकता देनी चाहिए और हमेशा दूसरों का दुख दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
Quick Links
गुरु नानक जी के बारे में (Guru Nanak Ji Biography in Hindi)
गुरु नानक जी ने सिख धर्म की स्थापना 15वीं सदी में की थी। यह वह दौर था जब लोगों को लगता था कि ईश्वर के समीप जाने के लिए उन्हें सांसारिक मोह छोड़कर ध्यान तपस्या या संन्यास में चले जाना चाहिए तभी उन्हें ईश्वर प्राप्त हो सकेंगे। सिख धर्म की स्थापना लोगों की इसी विरोधाभासी सोच पर एक प्रहार था, जिसमें गुरु नानक जी ने अपने भक्तों के माध्यम से इस बात पर जोर दिया के सांसारिक जीवन मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन की कोई बाधा नहीं है।
सांसारिक अथवा गृहस्थ जीवन जीते हुए भी मनुष्य आध्यात्मिक जीवन को अपना सकता है और ईश्वर के करीब जा सकता है। समय जब लोगों को लगता था कि ईश्वर प्राप्ति के लिए पहाड़ों अथवा जंगलों में खुद को कष्ट देकर अथवा तपस्या कर कर ही ईश्वर प्राप्त हो सकते हैं। वहां नानक जी ने बताया कि असल में ईश्वर खुद को कष्ट देने से नहीं बल्कि दूसरों के कष्टों को दूर करने से मिलते हैं सामाजिक जीवन जीते हुए भी ऐसा किया जा सकता है और हम दूसरों के कष्टों को दूर करने का एक साधन बन सकते हैं।
जहां लोगों का मानना था कि संसार एक माया है ईश्वर तक पहुंचने के लिए हमें इस माया को छोड़ना होगा वही नानक जी का विचार था कि संसार एक सत्य है और एक कर्मभूमि है जहां हम ईश्वर की इच्छा से कर्म करने के लिए आए हैं अर्थात हमें अपने मनुष्य रूपी कर्म को नहीं भूलना चाहिए अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।अतः कुल मिलाकर उन्होंने समाज को परोपकार दूसरों का दुख दूर करना एवं समाज के कल्याण हेतु कर्म करने की ही शिक्षा दी है।
गुरु नानक का जन्म एवं परिवार (Guru Nanak Ji Birth & Family)
गुरु नानक जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में हुआ था। गुरु नानक का जन्म कार्तिक की पूर्णिमा को हुआ था और एक खत्री कुल में पैदा हुए थे। इनका जन्म सन 1469 में हुआ था परंतु इनके जन्मतिथि का कोई उचित प्रमाण नहीं मिलता किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है जो अक्टूबर-नवंबर में दिवाली के 14 दिन बाद पड़ती है। अतः कुछ लोग मानते हैं कि इनका जन्म 15 अप्रैल 1469 में हुआ था। इनके पिता का नाम मेहता कालू चंद खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था।
गुरु नानक जी की शिक्षा (Education)
बचपन से ही यह एक विशेष बुद्धि के बालक रहे हैं परंतु इनका कभी भी पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था और यह हमेशा आध्यात्मिक जगत के प्रश्नों पर चर्चा किया करते थे इस वजह से इनके अध्यापक खुद इनको घर छोड़ने आए थे और करीब 7- 8 साल की उम्र में इनका स्कूल छूट गया। इसके पश्चात उन्होंने अपना सारा समय अध्यात्म परोपकार एवं सत्संग में व्यतीत किया और फिर इसी पथ पर अग्रसर हुए।
गुरु नानक जी का अध्यात्म पूर्ण रूप से आडंबर मुक्त था एवं बिल्कुल सरल था वह मानवता और परोपकार को विशेष महत्व देते थे जिसका प्रमाण उनकी बाल्यकाल की एक घटना में भी देखने को मिलता है जब गुरु नानक जी मात्र 9 वर्ष के थे तब उनका जनेऊ संस्कार होना था। समय गुरु नानक जी ने जनेऊ पहनने से साफ मना कर दिया उन्होंने कहा कि जब मनुष्य इस संसार को छोड़कर जाएगा तोकापाल से बना यह धागा जनेऊ तो यहीं रह जाता है मुझे जनेऊ पहन आना ही है तो वह जनेऊ पहनाओ जो मेरे साथ परलोक में भी जाए इस पर जब उनसे पूछा गया कि ऐसा जनेऊ किस प्रकार का होता है तो उन्होंने कहा –
“दया कपाह संतोख सूत जत गंदी सत बट
एह जनेऊ जीअ का हई तां पाडें घत”
अर्थात इस जनेऊ को बनाने के लिए जब दया रुपी कपास संतोष रूपी सूत जत रुपी गांठ और शत्रु रुपी बल का प्रयोग किया गया हो कभी यहां आत्मा का जनेऊ बनता है और इस जनों को पहनकर मनुष्य अच्छा कर्म करता है नेकी करता है तो वह स्वतः ही स्वर्ण जाति का बन जाता है और वह जनेऊ परमात्मा तक भी परलोक तक भी हमारे साथ रहता है।
इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि गुरु नानक जी बचपन से ही सच्चाई नेकी परोपकार और मानवता के पथ पर अग्रसर रहे हैं। जिन्होंने आगे चलकर सिख धर्म की स्थापना की।
गुरु नानक का वैवाहिक जीवन (Guru Nanak Ji Marriage)
गुरु नानक का विवाह बाल्य काल में ही हो गया था। 16 वर्ष की आयु में इनका विवाह गुरदासपुर जिले की लाखौकी नामक स्थान में रहने वाली कन्या सुलखनी के साथ हुआ। जब यह 32 वर्ष के थे तब इनके प्रथम पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम श्री चंद रखा गया। यही श्रीचंद आगे चलकर उदासी संप्रदाय के प्रवर्तक हुए; श्रीचंद के जन्म के 4 वर्ष पश्चात इन के दूसरे पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम लखमीदास रखा गया।
कुछ समय पश्चात यह अपने परिवार का भार अपने ससुर पर छोड़कर अपने चार साथियों के साथ तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़े थे। इसके पश्चात यह चारों ओर घूमकर उद्देश देने लगे मुख्य रूप से उन्होंने भारत अफगानिस्तान पारस और अरब के मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इनके इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियां कहा जाता है।
गुरु नानक जी की मृत्यु (Death of Guru Nanak Ji)
गुरु नानक जी जीवन के अंतिम क्षणों तक भी मानवता का प्रचार करते रहे और लोग भी उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए उन्होंने समाज को एक नई राह दिखाई गृहस्थ जीवन बिताते हुए उन्होंने अध्यात्म को अपने जीवन में धारण किया और मानवता का पूर्ण रुप से पालन किया इन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला उसमें बनवाई इसी स्थान पर 22 सितम्बर 1539 ईस्वी को इनका निधन हो गया और यह परलोक चले गए।
गुरु नानक जी के उपदेश
गुरु नानक जी ने समाज में विद्यां बुराइयों को दूर करने के अनेक प्रयास किये जो कि उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से पता चलता है। उनके द्वारा दिए गए कुछ मुख्य उपदेश निम् प्रकार हैं:
- हिन्दू समाज से छुआछुत अर्थात जातिवाद का नाश होना चाहिए।
- मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
- मूर्ति पूजा आदि अन्धविश्वास एवं धर्म के नाम पर पाखंड का नाश होना चाहिए।
- धुम्रपान, मासांहार आदि नशों से सभी को दूर रहना चाहिए।
- बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
- सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
- देश, जाति और धर्म पर आने वाले संकटों का सभी संगठित होकर मुकाबला करे।
यह भी देखें