Eid Kab Hai 2023? ईद उल फितर/ईद उल अज़हा/बकरा ईद

Eid Kab Hai 2023, eid al fitr, eid al adha, bakrid: ईद का त्यौहार खुशी का त्यौहार है। हमारा देश भारत दुनिया भर में अपनी विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर प्रकार के धर्मों का हर वर्ग और समुदाय के लोगों का आदर किया जाता है। हमारे देश में पहले से ही सभी धर्मों से जुड़े हुए त्योहारों को भी बड़ी धूम धाम से मनाया जाता रहा है।

जिस प्रकार हिन्दुओं के प्रसिद्ध त्यौहार होली, दीपावली, रक्षा बंधन आदि हैं उसी प्रकार मुस्लिम अथवा इस्लाम धर्म में भी त्योहारों का अति महत्व है और इन्हें बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है।

इन्हीं त्योहारों में से एक है ईद-उल-फितर जिसे सामान्य भाषा में ईद (Eid) कहा जाता है। इस दिन लोग अल्लाह से अपने परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों के सुखी जीवन के लिए दुआ करते है। इस लेख में हम इन विषयों पर आपको जानकारी देंगे: Eid Kab Hai 2023, eid al fitr, eid al adha, bakrid

Eid Kab Hai 2023? रमजान 2023 में कब है?

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रमज़ान का पहला दिन:21 मार्च 2023, मंगलवार
रमज़ान का आखरी दिन:21 अप्रैल 2023, शुक्रवार
ईद 2023 (Eid 2023):22 अप्रैल 2023, शनिवार
बकरीद 2023 (Bakra Eid 2023):30 जून 2023, शुक्रवार

ईद क्यों मनाई जाती है?

ईद-उल-फितर नाम का यह त्यौहार मुस्लिम समुदाय द्वारा बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। ईद का यह त्यौहार इस्लाम धर्म में बहुत ही खास एवं अहम माना जाता है। इस्लामिक समुदाय में इसे अत्यंत ख़ुशी का दिन माना जाता है।

एक इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार साल भर में दो बार मनाया जाता है जिसमें की एक त्यौहार को ईद-उल-फितर कहा जाता है तथा दूसरे त्यौहार को ईद-उल-अज़हा कहा जाता है। ईद-उल-अज़हा को कहीं कहीं बकरा ईद भी कहा जाता है।

ईद-उल-फितर (Eid Ul-Fitr)

ईद-उल-फितर का त्यौहार रमज़ान माह के खत्म होने बाद मनाया जाता है। रमज़ान माह के बाद आने वाली ईद को मीठी ईद भी कहा जाता है। ईद-उल-फितर के दिन विश्व भर में चाँद को देखा जाता है। इस त्यौहार से ठीक पहले रमज़ान के महीने में इस्लामिक समुदाय में रोज़े रखने को बहुत ही विशेष माना गया है।

रमज़ान के पूरे महीने में सभी नियमों का पालन करते हुए रोज़े रखे जाते हैं और फिर रात को ईद-उल-फितर के दिन चाँद का दीदार किया जाता है। इसके आलावा यह त्यौहार भाई-चारे का भी प्रतीक है। इस दिन सभी लोग आपस में गले मिलते हैं और एक दूसरे के प्रति  नफरत या गिले  शिकवे भुलाकर आपस में प्यार प्रेम से रहते हैं।

अतः यह त्यौहार दुनिया भर में भाई चारे का और प्यार प्रेम से रहने का सन्देश देता है। इस त्यौहार में सभी लोग खुद तो खुश होते ही हैं साथ ही दुसरो की ख़ुशी का भी पूरा ख्याल रखते हैं एवं सभी एक दूसरे के बारे में सोचते हुए बड़े ही प्रेम भाव से इस त्यौहार को मनाते हैं।

इस त्यौहार में सभी लोग  उनकी ज़िन्दगी की आज तक की सभी उलब्धियों के लिए तथा उनके पास जो कुछ भी है सब अल्लाह की देन है ऐसा मान कर अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं और सामुदायिक रूप से नमाज़ अदा करते हैं जिसमें वो अल्लाह का इन सब के लिए तहे दिल से शुक्र अदा करते हैं।

इस दिन बाजार भी दुल्हन की तरह सजाये जाते हैं और सभी लोग अपने और अपने परिवार के लिए नए नए कपडे लेते हैं। इस दिन लोग सुबह में  फज़िर की सामूहिक नमाज अदा करके वो नये कपड़े पहनते हैं। नये कपडों पर ‘इत्र’ डाला जाता है तथा सिर पर टोपी ओढ़ी जाती है।

इसके बाद लोग अपने-अपने घरों से ‘नमाजे दोगाना’ पढ़ने ईदगाह अथवा जामा मस्जिद जाते हैं। इस दिन खुशियां घर घर बांटी जाती हैं अर्थात लोग अपने अपने घरों में अनेक तरह के पकवान बनाते हैं और सभी एक दूसरे के घर इन व्यंजनों का आदान प्रदान करते हैं।

इस दिन मुख्य रूप से सिवइंयां  और शीर बनाई जाती है। शीर एक पकवान है जो लगभग चावलों की खीर जैसा होता है,जिसे इस्लाम में शीर कहा जाता है।  इस त्यौहार के दिन सभी लोग मिठाइयां बांटते हैं और बड़े ही धूम धाम से आपसी मतभेद भूलकर खुशियां मनाते हैं। इस प्रकार से यह त्यौहार मनाया जाता है।

ईद-उल-फितर क्यों मनाया जाता है?

वैसे तो इस पर्व को मनाये जाने के लेकर कई सारे मत प्रचलित है लेकिन जो इस्लामिक मान्यता सबसे अधिक प्रचलित है उसके अनुसार इसी दिन पैगम्बर मोहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में विजय प्राप्त की थी। तभी से इस पर्व का आरंभ हुआ और दुनियां भर के मुसलमान इस दिन के जश्न को बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाने लगे।

वास्तव में ईद-उल-फितर का यह त्योहार भाईचारे और प्रेम को बढ़ावा देने वाला त्योहार है क्योंकि इस दिन को मुस्लिम समुदाय के लोग दूसरे धर्म के लोगों के साथ भी मिलकर मनाते है और उन्हें अपने घरों पर दावत में आमंत्रित करते तथा अल्लाह से अपने परिवार और दोस्तों के सलामती और बरक्कत की दुआ करते है।

यहीं कारण है कि ईद-उल-फितर के इस त्योहार को इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

ईद-उल-फितर का महत्व

ईद-उल-फितर का त्योहार धार्मिक तथा समाजिक दोनो ही रुप से काफी महत्वपूर्ण है। रमजान के पवित्र महीने के बाद मनाये जाने वाले इस जश्न के त्योहार को पूरे विश्व भर के मुस्लिमों द्वारा काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

इस दिन को लेकर ऐसी मान्यता है कि सन् 624 में जंग ए बदर के बाद पैगम्बर मोहम्मद साहब ने पहली बार ईद-उल-फितर का यह त्योहार मनाया था। तभी से इस पर्व को मुस्लिम धर्म के अनुयायियों द्वारा हर साल काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाने लगा।

यह पर्व सामाजिक एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने में भी अपना एक अहम योगदान देता है। इस पर्व का यह धर्मनिरपेक्ष रुप ही सभी धर्मों के लोगों को इस त्योहार के ओर आकर्षित करता है।

इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा अपने घरों पर दावत का आयोजन किया जाता है। इस दावत का मुख्य हिस्सा होता है ईद पर बनने वाली विशेष सेवई, जिसे लोगों द्वारा काफी चाव से खाया जाता है।

इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा दूसरे धर्म के लोगों को भी अपने घरों पर दावत के लिए आमंत्रित किया जाता है। ईद के पर्व का यही प्रेम व्यवहार इस पर्व की खासियत है, जोकि समाज में प्रेम तथा भाई-चारे को बढ़ाने का कार्य करता है।

ईद-उल-अज़हा (Eid Ul Adha – Bakra Eid)

रमज़ान महीने के ख़त्म होने के लगभग 70 दिन या दो महीने के बाद ईद-उल-अज़हा अथवा बकरा ईद मनाई जाती है। यह एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है-क़ुर्बानी अर्थात जैसा की नाम से ही स्पष्ट है की बकरा ईद इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन मुस्लिम समुदाय द्वारा अल्लाह को बकरे की क़ुर्बानी दी जाती है।

इस दिन बकरे की क़ुर्बानी दिए जाने को इस्लाम धर्म में बलिदान का प्रतीक माना गया है। पूरे विश्व में मुस्लिम अथवा इस्लाम धर्म के लोग इस महीने में मक्का,सऊदी अरब में एकत्रित होते हैं तथा हज मनाते है इसीलिए इसे ईद-उल-अज़हा कहा जाता है जो इसी दिन मनाई जाती है।  

वास्तव में यह हज की एक अंशीय अदायगी और मुसलमानों के भाव का दिन है। दुनिया भर में सभी मुस्लिम धर्म के लोगों का एक समूह मक्का में हज करता है तथा नमाज़ अदा करता है। उन दिनों हज की यात्रा पर अनेकों मुस्लिम जाति के लोग सऊदी अरब जाते हैं और हज में शामिल होते हैं।

इस्लाम धर्म में इस यात्रा को भी विशेष महत्व दिया जाता है। जो भी व्यक्ति इस यात्रा को कर पाते हैं वो अल्लाह को शुक्राना अदा करते हैं और उनको उच्च दर्जा प्राप्त होता है। इस प्रकार से इस्लाम धर्म में इस त्यौहार को मनाया जाता है।

ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) कब मनाई जाती है?

ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद), ईद-उल-फितर (मीठी ईद) के लगभग 70 दिन  बाद आती जिसे इस्लामिक कैलेंडर के 12वे  महीने धू-अल-हिज्जा की 10वी तारीक को मनाया जाता है। बकरीद का त्यौहार हिजरी के आखिरी महीने जुल हिज्ज में मनाया जाता है।

ईद-उल-अज़हा (Bakra Eid) मे चाँद दस दिन पहले दिखता है जबकि  ईद-उल-फितर (मीठी ईद) में चाँद एक दिन पहले दिखाई देता। इस्लाम धर्म में त्यौहार चाँद देखकर ही मनाये जाते हैl

बकरी ईद के महीने में सभी देशो के मुसलमान एकत्र होकर मक्का मदीना में (जो की सऊदी  अरब में है ) हज (धार्मिक यात्रा) करते हैl इसलिए इसे हज का मुबारक महीना भी कहा जाता है।

ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) क्यों मनाई जाती है?

इस दिन को मनाने के पीछे भी एक कथा भी प्रचलित है। ऐसा माना जाता है की एक दिन अल्लाह हज़रत इब्राहिम जी के सपने में आये थे जिसमें की अल्लाह ने हजरत इब्राहिम जी से सपने में उनकी सबसे प्यारी जो की उन्हें अपने प्राणो से भी अधिक प्रिय हो ऐसी वस्तु  की कुर्बानी मांगी।

हजरत इब्राहिम को अपने पुत्र जिनका नाम इस्माइल था,से सबसे अधिक स्नेह था और वो अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे। वो अल्लाह को सर्वोपरि मानते थे इसलिए अल्लाह की आज्ञा मानते हुए  उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला लिया।

अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने उनके पुत्र की जगह एक बकरे की क़ुर्बानी दिलवा दी और वो हज़रत इब्राहिम जी से बहुत प्रसन्न हुए। हज़रत इब्राहिम जी के पुत्र इस्माइल फिर आगे चल कर पैगम्बर बने।

उसी दिन से मुस्लिम समुदाय में यह त्यौहार मनाया जाने लगा जिसे बकरा ईद अथवा ईद-उल-अज़हा कहा गया। हज़रत इब्राहिम जी के पुत्र इस्माइल फिर आगे चल कर पैगम्बर बने। यह दोनों प्रकार की ईद, ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा (Bakra Eid) इस्लामिक धर्म में बड़े ही उत्साह के साथ मनाई जाती है। ये दोनों ही त्यौहार इस्लाम धर्म में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

FAQs about “Eid Kab Hai 2023”

Eid Kab Hai 2023?

भारत में ईद 22 अप्रैल 2023 को शनिवार के दिन मनाई जाएगी।

Eid क्यों मनाई जाती है?

ईद का त्यौहार रमज़ान माह के खत्म होने बाद मनाया जाता है। ईद को इस्लाम धर्म में बहुत ही खास एवं अहम माना जाता है। यह दुनियाभर में भाई चारे का और प्यार प्रेम से रहने का सन्देश देता है।

Disclaimer

यहां पर कुर्बानी से सम्बंधित जो भी लेख लिखा गया गया है, ऐसी सिर्फ मान्यताएं ही हैं। हम इसकी सच्चाई की पुष्टि बिलकुल भी नहीं करते हैं। हम किसी भी प्रकार से आपकी भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते हैं, यह लेख सिर्फ आपको जानकारी देने के लिए लिखा गया है।

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