Chhath Puja 2023 Date in Hindi, छठ पूजा कब है: छठ पूजा एक सांस्कृतिक पर्व है जिसमें घर परिवार की सुख समृद्धि के लिए व्रती सूर्य की उपासना करते हैं। छठ पूजा हिंदू धर्म का बहुत प्राचीन त्यौहार है, जो ऊर्जा के परमेश्वर के लिए समर्पित है जिन्हें सूर्य या सूर्य षष्ठी के रूप में भी जाना जाता है।
एक सर्वव्यापी प्राकृतिक शक्ति होने के कारण सूर्य को आदि काल से पूजा जाता रहा है। ॠगवेद में सूर्य की स्तुति में कई मंत्र हैं। दानवीर कर्ण सूर्य का कितना बड़ा उपासक था ये तो आप जानते ही हैं। किवंदतियाँ तो ये भी कहती हैं कि अज्ञातवास में द्रौपदी ने पांडवों की कुल परिवार की कुशलता के लिए वैसी ही पूजा अर्चना की थी जैसी अभी छठ में की जाती है।
छठ पूजा (Chhath Puja) मुख्यतः पूर्वी भारत में मनाया जाने वाला प्रसिद्द पर्व है। बिहार में प्रचलित यह व्रत अब पूरे भारत सहित नेपाल में भी मनाया जाने लगा है। इस पर्व को स्त्री व पुरुष समान रूप से मनाते हैं और छठ मैया से पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। कई लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर भी यह व्रत उठाते हैं और आजीवन या जब तक संभव हो सके यह व्रत करते हैं।
चार दिन के इस महापर्व में पंडित की कोई आवश्यकता नहीं। पूजा आपको ख़ुद करनी है और इस कठिन पूजा में सहायता के लिए नाते रिश्तेदारों से लेकर पास पडोसी तक शामिल हो जाते हैं। यानि जो छठ नहीं करते वो भी व्रती की गतिविधियों में सहभागी बन कर उसका हिस्सा बन जाते हैं।
छठ व्रत कोई भी कर सकता है। यही वज़ह है कि इस पर्व में महिलाओं के साथ पुरुष भी व्रती बने आपको नज़र आएँगे। भक्ति का आलम ये रहता है कि बिहार जैसे राज्य में इस पर्व के दौरान अपराध का स्तर सबसे कम हो जाता है। जिस रास्ते से व्रती घाट पर सूर्य को अर्घ्य देने जाते हैं वो रास्ता लोग मिल जुल कर साफ कर देते हैं और इस साफ सफाई में हर धर्म के लोग बराबर से हिस्सा लेते हैं।
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छठ पूजा 2023 तिथि, मुहूर्त – छठ पूजा कब है? (Chhath Puja 2023 Date in Hindi)
छठ पूजा 2023 का त्यौहार रविवार, 19 नवंबर को मनाया जाएगा। यह पवित्र त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
छठ पूजा 4 दिनों तक चलती हैं। इस त्योहार पर छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए व्रतधारी 36 घंटे का निर्जल व्रत रखते हैं। इस पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। छठ पर्व चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और अर्घ्य देना शामिल है।
Chhath Puja 2023 Date: | 19 नवंबर 2023, रविवार |
छठी तिथि शुरू | 09:20 (18 नवंबर 2023) |
छठी तिथि ख़त्म | 07:25 (19 नवंबर 2023) |
नहाय-खाय | 17 नवंबर 2023, शुक्रवार |
खरना | 18 नवंबर 2023, शनिवार |
डूबते सूर्य का अर्घ्य | 19 नवंबर 2023, रविवार |
उगते सूर्य का अर्घ्य | 20 नवंबर 2023, सोमवार |
छठ पूजा अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त – Chhath Puja Muhurat
- सूर्यास्त का समय (संध्या अर्घ्य): – 19 नवंबर 2023, 05:26 PM
- सूर्योदय का समय (उषा अर्घ्य) – 20 नवंबर 2023, 06:47 AM
छठ पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री
- दौरी या डलिया
- सूप – पीतल या बांस का
- नींबू
- नारियल (पानी सहित)
- पान का पत्ता
- गन्ना पत्तो के साथ
- शहद
- सुपारी
- सिंदूर
- कपूर
- शुद्ध घी
- कुमकुम
- शकरकंद / गंजी
- हल्दी और अदरक का पौधा
- नाशपाती व अन्य उपलब्ध फल
- अक्षत (चावल के टुकड़े)
- खजूर या ठेकुआ
- चन्दन
- मिठाई
- इत्यादि
छठ पूजा के चार दिन का वृतांत
चतुर्थी – नहाय खाय
छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। इस दिवस पर पूरे घर की सफाई कर के उसे पवित्र बनाया जाता है। उसके बाद छठ व्रत स्नान करना होता है। फिर स्वच्छ वस्त्र धारण कर के शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत का शुभआरंभ करना होता है।
पंचमी – लोखंडा और खरना
अगले दिन यानी कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि को व्रत रखा जाता है। इसे खरना कहा जाता है। इस दिवस पर पूरा दिन निर्जल उपवास करना होता है। और शाम को पूजा के बाद भोजन ग्रहण करना होता है। इस अनुष्ठान को खरना भी कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पड़ोस के लोगों को भी बुलाया जाता है। प्रसाद में घी चुपड़ी रोटी, चावल की खीर बना सकते हैं।
षष्ठी – संध्या अर्ध्य
सूर्य षष्ठी पर सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिवस पर छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद में चावल के लड्डू, फल, और चावल रूपी साँचा प्रसाद में शामिल होता है। शाम के समय एक बाँस की टोकरी या सूप में अर्ध्य सामग्री सजा कर व्रती, सपरिवार अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य अर्पण करने घाट की और प्रयाण करता है, किसी तालाब या नदी किनारे व्रती अर्ध्य दान विधि सम्पन्न करता है। इस दिवस पर रात्रि में नदी किनारे मेले जैसा मनोरम दृश्य सर्जित होता है।
सप्तमी – परना दिन, उषा अर्ध्य
व्रत के अंतिम दिवस पर उदयमान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। जिस जगह पर पूर्व रात्री पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य दिया था, उसी जगह पर व्रती (व्रतधारी) इकट्ठा होते हैं। वहीं प्रसाद वितरण किया जाता है। और सम्पूर्ण विधि स्वच्छता के साथ पूर्ण की जाती है।
छठ पूजा के अन्य नाम
- छठी माई की पूजा,
- डाला छठ,
- सूर्य सस्थी,
- डाला पूजा छठ पर्व
छठ पूजा का इतिहास और उत्पत्ति (Chhath Puja History)
- छठ पूजा हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखती है और ऐसी धारणा है कि राजा (कौन से राजा) द्वारा पुराने पुरोहितों से आने और भगवान सूर्य की परंपरागत पूजा करने के लिये अनुरोध किया गया था। उन्होनें प्राचीन ऋगवेद से मंत्रों और स्त्रोतों का पाठ करके सूर्य भगवान की पूजा की। प्राचीन छठ पूजा हस्तिनापुर (नई दिल्ली) के पांडवों और द्रौपदी के द्वारा अपनी समस्याओं को हल करने और अपने राज्य को वापस पाने के लिये की गयी थी।
- ये भी माना जाता है कि छठ पूजा सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा शुरु की गयी थी। वो महाभारत युद्ध के दौरान महान योद्धा था और अंगदेश (बिहार का मुंगेर जिला) का शासक था।
- छठ पूजा के दिन छठी मैया (भगवान सूर्य की पत्नी) की भी पूजा की जाती है, छठी मैया को वेदों में ऊषा के नाम से भी जाना जाता है। ऊषा का अर्थ है सुबह (दिन की पहली किरण)। लोग अपनी परेशानियों को दूर करने के साथ ही साथ मोक्ष या मुक्ति पाने के लिए छठी मैया से प्रार्थना करते हैं।
- छठ पूजा मनाने के पीछे दूसरी ऐतिहासिक कथा भगवान राम की है। यह माना जाता है कि 14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या वापस आकर राज्यभिषेक के दौरान उपवास रखकर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में भगवान सूर्य की पूजा की थी। उसी समय से, छठ पूजा हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण और परंपरागत त्यौहार बन गया और लोगों ने उसी तिथि को हर साल मनाना शुरु कर दिया।
छठ पूजा कथा (Chhath Puja Story)
बहुत समय पहले, एक राजा था जिसका नाम प्रियब्रत था और उसकी पत्नी मालिनी थी। वे बहुत खुशी से रहते थे किन्तु इनके जीवन में एक बहुत बचा दुःख था कि इनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप की मदद से सन्तान प्राप्ति के आशीर्वाद के लिये बहुत बडा यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी गर्भवती हो गयी। किन्तु 9 महीने के बाद उन्होंने मरे हुये बच्चे को जन्म दिया। राजा बहुत दुखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया।
अचानक आत्महत्या करने के दौरान उसके सामने एक देवी प्रकट हुयी। देवी ने कहा, मैं देवी छठी हूँ और जो भी कोई मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है वह सन्तान अवश्य प्राप्त करता है। राजा प्रियब्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी के आशीर्वाद स्वरुप सुन्दर और प्यारी संतान की प्राप्ति हुई। तभी से लोगों ने छठ पूजा को मनाना शुरु कर दिया।
छठ पूजा का महत्व (Chhath Puja Significance)
छठ पूजा का सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान एक विशेष महत्व है। सूर्योदय और सूर्यास्त का समय दिन का सबसे महत्वपूर्ण समय है जिसके दौरान एक मानव शरीर को सुरक्षित रूप से बिना किसी नुकसान के सौर ऊर्जा प्राप्त हो सकती हैं। यही कारण है कि छठ महोत्सव में सूर्य को संध्या अर्घ्य और विहानिया अर्घ्य देने का एक मिथक है। इस अवधि के दौरान सौर ऊर्जा में पराबैंगनी विकिरण का स्तर कम होता है तो यह मानव शरीर के लिए सुरक्षित है। लोग पृथ्वी पर जीवन को जारी रखने के साथ-साथ आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान सूर्य का शुक्रिया अदा करने के लिये छठ पूजा करते हैं।
छठ पूजा का अनुष्ठान, (शरीर और मन शुद्धिकरण द्वारा) मानसिक शांति प्रदान करता है, ऊर्जा का स्तर और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जलन क्रोध की आवृत्ति, साथ ही नकारात्मक भावनाओं को बहुत कम कर देता है। यह भी माना जाता है कि छठ पूजा प्रक्रिया के उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करता है। इस तरह की मान्यताऍ और रीति-रिवाज छठ अनुष्ठान को हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार बनाते हैं।
छठ पूजा में अर्घ्य देने का वैज्ञानिक महत्व
सूरज की किरणों से शरीर को विटामिन डी मिलता है। इसीलिए सदियों से सूर्य नमस्कार को बहुत लाभकारी बताया गया है। वहीं, प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह की सूरज की रोशनी से मिलने वाले विटामिन डी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और स्किन से जुड़ी सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।
छठ पूजा के लाभ (Chhath Puja Benefits)
- यह शरीर और मन के शुद्धिकरण का तरीका है जो जैव रासायनिक परिवर्तन का नेतृत्व करता है।
- शुद्धिकरण के द्वारा प्राणों के प्रभाव को नियंत्रित करने के साथ ही अधिक ऊर्जावान होना संभव है।
- यह त्वचा की रुपरेखा में सुधार करता है, बेहतर दृष्टि विकसित करता है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है।
- छठ पूजा के भक्त शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में सुधार कर सकते हैं।
- विभिन्न प्रकार के त्वचा सम्बन्धी रोगो को सुरक्षित सूरज की किरणों के माध्यम से ठीक किया जा सकता है।
- यह श्वेत रक्त कणिकाओं की कार्यप्रणाली में सुधार करके रक्त की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।
- सौर ऊर्जा हार्मोन के स्राव को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करती है।
- रोज सूर्य ध्यान शरीर और मन को आराम देता है। प्राणायाम, योगा और ध्यान क्रिया भी शरीर और मन को नियंत्रित करने के तरीके है।
कौन हैं छठी मइया?
कार्तिक मास की षष्टी को छठ मनाई जाती है। छठे दिन पूजी जाने वाली षष्ठी मइया को बिहार में छठी मइया कहकर पुकारते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पूजी जाने वाली यह माता सूर्य भगवान की बहन हैं। इसीलिए लोग सूर्य को अर्घ्य देकर छठी मैया को प्रसन्न करते हैं।
वहीं, पुराणों में मां दुर्गा के छठे रूप कात्यायनी देवी को भी छठ माता का ही रूप माना जाता है। छठ मइया को संतान देने वाली माता के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि छठ पर्व संतान के लिए मनाया जाता है, खासकर वो जोड़े जिन्हें संतान का प्राप्ति नही हुई। वो छठ का व्रत (Chhath Vrat) रखते हैं, बाकि सभी अपने बच्चों की सुख-शांति के लिए छठ मनाते हैं।
छठ पूजा से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
छठ या सूर्यषष्ठी व्रत में किन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है?
इस व्रत में सूर्यदेव और छठ मैया दोनों की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ मैया संतानों की रक्षा करती है और उनको लंबी उम्र देती है। छठ पूजा पर सूर्यदेव के साथ-साथ उनकी पत्नी उषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है।
छठ मैया कौन-सी देवी होती हैं?
सृष्टि की अधिष्ठाेत्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। पुराणों में पष्ठी देवी का एक नाम कात्यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी को होती है। षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है, छठ मैया नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं और उनको दीर्घायु बनाती है।
छठ पूजा मनाने की कैसे हुई शुरूआत?
प्राचीन समय में एक राजा थे। उनका नाम राजा प्रियव्रत था। राजा की कोई संतान नहीं थी। इसके कारण वह बेहद दुखी और चिंतित रहते थे। फिर एक दिन राजा की महर्षि कश्यप से भेंट हुई. राजा ने अपना सारा दुख महर्षि कश्यरप को बताया। महर्षि कश्यप ने राजा को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने को कहा। राजा ने यज्ञ कराया, जिसकी बाद उनकी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन दुर्भाग्य से शिशु मरा पैदा हुआ था। राजा को जब यह अशुभ समाचार मिला तो वह बहुत ही दुखी हुआ। तभी राजा के सामने अचानक एक देवी प्रकट हुई। देवी ने राजा के पुत्र को जीवित कर दिया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने षष्ठी देवी की स्तुति की। तभी से छठ पूजा मनाई जाती है।
नदी और तालाब किनारे ही क्यों की जाती है छठ पूजा?
मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व पर सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देने का विधान है। इस पर्व पर सूर्य को अर्घ्यज देने और स्नान करने का विशेष महत्व है। इसलिए यह पूजा साफ सुथरी नदी या तालाब के किनारे की जाती है।
ज्यादातर महिलाएं ही छठ पूजा में बढ़-चढ़कर हिस्सा क्यों लेती हैं?
महिलाएं हमेशा अनेक कष्ट सहकर भी परिवार के लिए मजबूती से खड़ी रहती हैं। महिलाओं को त्याग और तप की भावना से जोड़कर देखा जाता है। साथ ही महिलाएं अपनी संतान से बेहद प्यार करती है। यही वजह है कि वह छठ मैया से संतान के स्वास्थ्य और उनके दीर्घायु होने की पूजा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।
क्या यह पूजा किसी भी धर्म या जाति के लोग कर सकते हैं?
सूर्यदेव सभी के ईष्ट होते हैं। वह सभी प्राणियों को समान नजर से देखते हैं। छठ पूजा में किसी जाति या धर्म का कोई भेद नहीं होता है। इस पावन पर्व हर जाति-धर्म के लोग मना सकते हैं।
ज्यादातर बिहार के लोग ही छठ पूजा क्यों मनाते हैं?
बिहार में सूर्य पूजा और छठ मैया की पूजा का विशेष महत्व है। यहां के लोगों को इस पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता है। बिहार में सूर्य देव की पूजा सदियों से प्रचलित है। सूर्य पुराण में यहां के देव मंदिरों की महिमा का वर्णन मिलता है। यहां सूर्यपुत्र कर्ण की जन्मस्थली भी है। अत: स्वाभाविक रूप से इस प्रदेश के लोगों की आस्था सूर्य देवता में ज्यादा है।
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