चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) में धरती की पूर्ण या आंशिक छाया चांद पर पड़ती है। चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) को नंगी आंखों से देखा जा सकता है जबकि सूर्यग्रहण को नंगी आंखों से देखने पर नुकसान पहुंच सकता है। इसे देखने के लिए किसी तरह के चश्मे की जरुरत नहीं पड़ती है। पृथ्वी, सूरज और चंद्रमा की गतियों की वजह से ग्रहण होते हैं।
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चन्द्र ग्रहण क्यों और कैसे लगता है?
चन्द्रग्रहण वह घटना होती है जब चन्द्रमा और सूर्य के बीच में धरती आ जाती है। जब चंद्रमा धरती की छाया से निकलता है तो चंद्र ग्रहण होता है। चंद्रग्रहण पूर्णिमा के दिन ही होता है लेकिन हर पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण नहीं होता है। हर बार चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश नहीं करता बल्कि उसके ऊपर या नीचे से निकल जाता है। चंद्र ग्रहण की स्थिति में धरती की छाया चंद्रमा के मुकाबले काफी बड़ी होती है। लिहाजा इससे गुजरने में चंद्रमा को ज्यादा वक्त लगता है।
चंद्र ग्रहण के प्रकार
चन्द्र ग्रहण तीन प्रकार का होता है:
पूर्ण चंद्र ग्रहण (Total Lunar Eclipse)
जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वीं आ जाती है और पृथ्वीं चंद्रमा को पूरी तरह से ढक लेती है तो उस समय पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है। इस समय चंद्रमा पूरी तरह से लाल नजर आता है। लाल होने के साथ ही उस समय चंद्रमा पर धब्बे भी साफ देखे जा सकते हैं। यह स्थिति सिर्फ पूर्णिमा के दिन ही बनती है। पूर्णिमा के दिन ही पूर्ण चंद्र ग्रहण होने की पूरी संभावना होती है।
आंशिक चंद्र ग्रहण (Partial Lunar Eclipse)
जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा के कुछ हिस्सों पर ही पड़ती है। पृथ्वीं की यह छाया सूर्य और चंद्रमा के कुछ खंड पर ही पड़ती है। इसलिए इसे आंशिक चंद्र ग्रहण कहा जाता है। यह ग्रहण काल ज्यादा लंबे समय का नहीं होता है। इस चंद्र ग्रहण की अवधि कुछ घंटो की ही होती है।
खंडच्छायायुक्त चंद्र ग्रहण (Penumbral Lunar Eclipse)
खंडच्छायायुक्त चंद्र ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वीं की छाया से धुंधला नही होता है। बल्कि यहां पर उपछाया उपस्थित होती है। इसी कारण खंडच्छायायुक्त चंद्र ग्रहण हमेशा आंशिक चंद्र ग्रहण से ही शुरु होता है। इस खंडच्छायायुक्त चंद्र ग्रहण में चंद्रमा का लगभग 65% हिस्सा पृथ्वी से ढक जाता है।
चंद्रग्रहण की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और दैत्यों के बीच विवाद हुआ, तब सुलह करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बिठा दिया। लेकिन राहु छल से देवताओं की पंक्ति में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया। चंद्रमा और सूर्य ने राहु को ऐसा करते हुए देख लिया।
इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु को दी। क्रोध में आकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहु ने अमृत पान किया हुआ था, जिसके कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी कारण राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पर ग्रहण लगा लेते हैं। इसलिए चंद्रग्रहण होता है।
चंद्र ग्रहण पर क्या रखें सावधानियां
ज्योतिषाचार्यों की सलाह के अनुसार:
- ग्रहण के दौरान नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव अधिक होता है, इसलिए हमेशा इस दौरान ईश्वर का ध्यान करना चाहिए
- माना जाता है कि गर्भवती महिलाओं को इस दौरान कोई भी काम नहीं करना चाहिए
- सूर्य ग्रहण के दौरान खाना भी नहीं बनाना चाहिए
- जब ग्रहण लगा हो, तो उस दौरान कपड़े नहीं सीलने चाहिए, न ही सूई का इस्तेमाल करना चाहिए
- ग्रहण के दौरान कुछ भी खाना नहीं चाहिए
- ग्रहण के दौरान नुकीली चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए
- ग्रहण के बाद मन की शुद्धी के लिए दान-पुण्य भी करना चाहिए
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