महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु (Abhimanyu) एक ऐसा महान योद्धा था जिसने रणभूमि में अपने पराक्रम का लोहा मनवाया। बड़े से बड़ा योद्धा अभिमन्यु के सामने विवश नजर आया था। यही कारण है कि इस अकेले योद्धा को मारने के लिए सात महावीरों और अनगिनत सेना का सहारा लेना पड़ा। इस महावीर की मृत्यु के उपरांत कर्ण जैसा पराक्रमी योद्धा भी शव के सामने नतमस्तक खड़ा नजर आया।
अर्जुन एवं सुभद्रा का एकलौता पुत्र:
अर्जुन स्वयं देवेंद्र के पुत्र थे। अर्जुन जैसा पृथ्वी पर कोई धनुर्वीर नहीं था। कहते हैं महारथी कर्ण, एकलव्य, अर्जुन से श्रेष्ठ धनुर्धारी थे, किंतु यह सब अपवाद का विषय है। श्री कृष्ण के मार्गदर्शन से उन्होंने इतनी विद्या प्राप्त कर ली थी कि पृथ्वी पर उसका सानी कोई नहीं था। अर्जुन ने धनुर्विद्या के लिए पूरी पृथ्वी पर श्रेष्ठ गुरुओं का चयन किया। उन्होंने स्वर्ग जाकर भी दिव्य अस्त्र – शस्त्र का ज्ञान लिया।
सुभद्रा, श्री कृष्ण की बहन थी। सुभद्रा मन ही मन अर्जुन को अपना वर मान चुकी थी और उससे विवाह करना चाहती थी। अर्जुन के विषय में उसने पहले ही अनेकों कहानियां सुन चुकी थी। ऐसे क्षत्रिय से विवाह करना, किसी भी स्त्री के लिए सौभाग्य की बात थी।सुभद्रा ने सुयोग्य वर के रूप में अर्जुन का चयन किया। अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु हुआ। अभिमन्यु के रहस्य के विषय में श्री कृष्ण भली भांति परिचित थे। इसलिए उन्होंने अभिमन्यु का पालन – पोषण स्वयं अपनी देखरेख में की।वह सुभद्रा को निरंतर वीर अभिमन्यु के परवरिश में किसी भी प्रकार की कोई कमी ना होने की सलाह देते थे। वह बताते थे इस जैसा योद्धा महावीर फिर कभी जन्म नहीं लेगा , इसलिए अपनी सारी ममता अपने पुत्र अभिमन्यु पर न्योछावर करो। सुभद्रा ने अभिमन्यु का पालन – पोषण अर्जुन के वनवास के दिनों में किया था।
चक्रव्यूह ज्ञान:
अभिमन्यु (Abhimanyu) के चक्रव्यूह ज्ञान के विषय में माना जाता है। अभिमन्यु को चक्रव्यूह का ज्ञान उसके पिता अर्जुन के वचनों से मां सुभद्रा के गर्भ में ही प्राप्त हो गया था। सुभद्रा अपने पति के पराक्रम को भलीभांति जानती थी।उनके युद्ध कौशल और रण बहादुरी के किस्से सभ्य समाजों में सुना करती थी। एक दिन की बात है:
जब दोनों अकेले बैठे थे , तब सुभद्रा ने चक्रव्यूह के संदर्भ में जानना चाहा।अगर कोई योद्धा चक्रव्यूह में फँस जाए तो, वह किस प्रकार सुरक्षित वापस निकल सकता है, यह सुनने की इच्छा जाहिर की। अर्जुन ने चक्रव्यू के प्रत्येक चरण को सविस्तार सुभद्रा को कह सुनाया। सुभद्रा काफी थकी हुई थी और इस प्रकार के घटनाक्रम को वह पहली बार सुन रही थी। सुभद्रा चक्रव्यू के भेदन को सुनते – सुनते अचानक सो गई। गहरी नींद के कारण वहां से सुरक्षित वापस आने की कला को वह सुनने से वंचित रही। अर्जुन जिस समय इस चक्रव्यूह के ज्ञान को सुभद्रा के समक्ष प्रस्तुत कर रहे थे। उस समय अभिमन्यु सुभद्रा के गर्भ में था। वह अपनी माता के गर्भ से ही पिता द्वारा बताए गए, चक्रव्यू के समस्त ज्ञान को प्राप्त कर चूका था। किंतु माता के सो (निंद्रा) जाने के कारण, अभिमन्यु चक्रव्यू का उतना ही ज्ञान ले पाया जितना माता ने सुना था।
अभिमन्यु (Abhimanyu) युद्ध भूमि में जब शत्रुओं द्वारा रचे गए चक्रव्यूह का भेदन करते हुए अंदर तक घुस आया। उसने एक–एक करके अनेकों महारथियों को अपने बाहुबल और शौर्य का परिचय देते हुए उनका विनाश किया। आक्रोशित वीर योद्धाओं ने मिलकर एक साथ अभिमन्यु पर वार किया किंतु वह तब भी तनिक विचलित नहीं हुआ और दुगनी रफ़्तार से उन सभी महारथियों पर टूट पड़ा। पिता द्वारा मिला ज्ञान यही तक था, वह चक्रव्यूह से निकलने की कला नहीं जानता था। अंततोगत्वा शत्रु के बड़े – बड़े महान योद्धाओं ने एक साथ मिलकर अभिमन्यु पर आक्रमण किया और रणभूमि में हमेशा हमेशा के लिए सुला दिया।
श्री कृष्ण एवं अभिमन्यु का सम्बन्ध:
श्री कृष्ण पृथ्वी पर विष्णु के अंश अवतार थे। उन्होंने धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अवतार लिया था। उनके साथ इस लीला में सहयोग करने के लिए अनेकों देवी-देवताओं ने पृथ्वी पर जन्म लिया।
- अभिमन्यु चंद्रमा के पुत्र वर्चा का अवतार था।
- चंद्रमा द्वारा तय शर्तों के अनुसार अभिमन्यु का पृथ्वी पर जन्म हुआ था।
- अभिमन्यु, श्रीकृष्ण की छोटी बहन सुभद्रा तथा पाण्डु पुत्र अर्जुन का पुत्र था। इस नाते श्री कृष्ण, अभिमन्यु के मामा कहलाए। श्री कृष्ण ने अपने मामा धर्म का निर्वाह, भली-भांति किया।
- अर्जुन के वनवास तथा अज्ञातवास के समय उन्होंने अभिमन्यु का पालन पोषण पुत्र,भांजे तथा शिष्य के रूप में किया।
अभिमन्यु (Abhimanyu) और उत्तरा पुत्र:
महाभारत के युद्ध उपरांत पांचो पांडव ने अपना राज सुख भोगा। पांडवों ने प्रायश्चित स्वरूप अपना संपूर्ण राज्य अभिमन्यु-उत्तरा के पुत्र परीक्षित को सौंप कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया।यह समय द्वापर युग के अंत का था।काल द्वारा कलयुग ने राजा परीक्षित के शासनकाल में आने का आदेश पाकर राजा परीक्षित के सामने प्रकट हुआ। राजा परीक्षित धर्मपालक और वीर थे उन्होंने कलयुग को अपने सीमा में घुसने से रोक दिया। कलयुग ने अपने पांव पसारने के लिए राजा परीक्षित से वैर मोल लेना उचित ना समझ कर। राजा का शरणागत हो गया। शरण में आए हुए लोगों की रक्षा करना किसी भी छत्रिय का प्रथम धर्म है। उस धर्म का निर्वाह करते हुए राजा परीक्षित ने कलयुग को चार स्थलों पर रहने का आदेश दिया –जुआ स्थल ,मद्यपान स्थल ,वेश्यालय ,हिंसा स्थल।
कलयुग ने चाल चलते हुए राजा परीक्षित को कहा यह सभी सीमित दायरे हैं , कृपया आप मुझे इन सीमित दायरों में ना बांधे। राजा परीक्षित ने काल के वशीभूत होकर कलयुग को स्वर्ण में रहने का आदेश दिया। राजा परीक्षित यह भूल गए थे कि उनके सिर पर लगा मुकुट भी स्वर्ण का था। कलयुग ने तत्काल आदेश पाते हुए राजा परीक्षित के मस्तिष्क पर विराजमान हो गया।इस प्रकार राजा परीक्षित कलयुग के वशीभूत होकर सभी कार्य करने लगे। कलयुग उनसे ऐसे अनेक कार्य करवाता जो धर्म विरुद्ध होते , राजा परीक्षित विवश होकर उन कार्य को अज्ञानता वश करने को बाध्य रहते।जिससे उनके पुण्यकर्म धीरे – धीरे नष्ट होते गए। इस प्रकार धीरे-धीरे कलयुग ने राजा परीक्षित के कार्यकाल में अपने पांव पसार लिए।
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