रामायण एक संस्कृत महाकाव्य है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। रामायण के महाकाव्य में 24000 छंद और 500 सर्ग हैं जो कि 7 भागों में विभाजित हैं। रामायण श्री राम, लक्ष्मण, सीता की एक अद्भुत अमर कहानी है जो हमें विचारधारा, भक्ति, कर्तव्य, रिश्ते, धर्म, और कर्म को सही मायने में सिखाता है।
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सम्पूर्ण रामायण हिंदी में
बालकांड
बहुत समय पहले की बात है सरयू नदी के किनारे कोशला नामक राज्य था जिसकी राजधानी अयोध्या थी। अयोध्या के राजा का नाम दशरथ था, जिन की तीन पत्नियां थी। उनके पत्नियों का नाम था कौशल्या, कैकई और सुमित्रा। राजा दशरथ बहुत समय तक निसंतान थे और वह अपने सूर्यवंश की वृद्धि के लिए अर्थात अपने उत्तराधिकारी के लिए बहुत चिंतित थे। इसलिए राजा दशरथ ने अपने कुल गुरु ऋषि वशिष्ठ की सलाह मानकर पुत्र कमेस्टि यज्ञ करवाया, उस यज्ञ के फलस्वरुप राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए।
उनकी पहली पत्नी कोशल्या से प्रभु श्री राम, कैकई से भारत और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। उनके चारों पुत्र दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण और यशस्वी थे। उन चारों को राजकुमारों की तरह पाला गया, और उनको शास्त्रों और युद्ध कला की कला सिखाई गई।
जब प्रभु श्री राम 16 वर्ष के हुए तब एक बार ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ के पास आए और अपने यज्ञ में विघ्न उत्पन्न करने वाले राछसों के आतंक के बारे में राजा दशरथ को बताया और उनसे सहायता मांगी। ऋषि विश्वामित्र की बात सुनकर राजा दशरथ उनकी सहायता करने के लिए तैयार हो गए और अपने सैनिक उनके साथ भेजने का आदेश दिया, पर ऋषि विश्वामित्र ने इस कार्य के लिए राम और लक्ष्मण का चयन किया।
राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम जाते हैं, और उनके यज्ञ मैं विघ्न डालने वाले राक्षसों का नाश कर देते हैं। इससे ऋषि विश्वामित्र प्रसन्न होकर राम और लक्ष्मण को अनेक दिव्यास्त्र प्रदान करते हैं जिनसे आगे चलकर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण अनेक दानवों का नाश करते हैं।
दूसरी ओर जनक मिथिला प्रदेश के राजा थे और वह भी निसंतान थे। और संतान प्राप्ति के लिए वह भी बहुत चिंतित थे, तब एक दिन उनको गहरे कुंड में एक बच्ची मिली, तब राजा जनक का खुशी का ठिकाना ना रहा, और राजा जनक उस बच्ची को भगवान का वरदान मानकर उसे अपने महल ले आए। राजा जनक ने उस बच्ची का नाम सीता रखा। राजा जनक अपनी पुत्री सीता को बहुत ही अधिक स्नेह करते थे।
सीता धीरे-धीरे बड़ी हुई, सीता गुण और अद्वितीय सुंदरता से परिपूर्ण थी। जब सीता विवाह योग्य हुई तब राजा जनक अपने प्रिय पुत्री सीता के लिए उनका स्वयंवर रखने का निश्चय किया। राजा जनक ने सीता के स्वयंवर में शिव धनुष को उठाने वाले और उस पर प्रत्यंचा चाहने वाले से अपनी प्रिय पुत्री सीता से विवाह करने की शर्त रखी। सीता के गुण और सुंदरता की चर्चा पहले से ही चारों तरफ फैल चुकी थी तो सीता के स्वयंवर की खबर सुनकर बड़े बड़े राजा सीता स्वयंवर में भाग लेने के लिए आने लगे। ऋषि विश्वामित्र भी राम और लक्ष्मण के साथ सीता स्वयंवर को देखने के लिए राजा जनक के नगर मिथिला पहुंचे।
जब सीता से शादी करने की इच्छा लिए दूर दूर से राजा और महाराजा स्वयंवर में एकत्रित हुए तो स्वयंबर आरंभ हुआ बहुत सारे राजाओं ने शिव धनुष को उठाने की कोशिश की लेकिन कोई भी धनुष को हिला भी नहीं पा रहा था उठाना तो बहुत दूर की बात है, यह सब देख कर राजा जनक चिंतित हो गए तब ऋषि विश्वामित्र ने राजा जनक की चिंता दूर करते हुए अपने शिष्य राम को उठने का अनुमति दिया। प्रभु राम अपने गुरु को प्रणाम कर उठे और उन्होंने उस धनुष को बड़ी सरलता से उठा कर जब उस पर प्रत्यंचा चलाने लगे तो धनुष टूट गया।
राजा दशरथ ने शर्त के अनुसार प्रभु श्रीराम से सीता का विवाह करने का निश्चय किया और साथ ही अपनी अन्य पुत्रियों का विवाह भी राजा दशरथ के पुत्रों से करवाने का उन्होंने विचार किया। इस प्रकार एक साथ ही राम का विवाह सीता से, लक्ष्मण का विवाह उर्मिला से, भरत का विवाह मांडवी से और शत्रुधन का विवाह श्रुतकीर्ति से हो गया। मिथिला में विवाह का एक बहुत बड़ा आयोजन हुआ और उनमें प्रभु राम और उनके भाइयों की विवाह संपन्न हुआ, विवाह के बाद बारात अयोध्या लौट आई।
अयोध्याकांड
राम और सीता के विवाह को 12 वर्ष बीत गए थे और अब राजा दशरथ वृद्ध हो गए थे। वह अपने बड़े बेटे राम को अयोध्या के सिहासन पर बिठाना चाहते थे। तब एक शाम राजा दशरथ की दूसरी पत्नी का कैकई अपनी एक चतुर दासी मंथरा के बहकावे में आकर राजा दशरथ से दो वचन मांगे.. “जो राजा दशरथ ने कई वर्ष पहले कई कई द्वारा जान बचाने के लिए कैकई को दो वचन देने का वादा किया था” कैकई ने राजा दशरथ से अपने पहले वचन के रूप में राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरे वचन के रूप में अपने पुत्र भरत को अयोध्या के राज सिहासन पर बैठाने की बात कही।
कैकई की इन दोनों वचनों को सुनते ही राजा दशरथ का दिल टूट गया और वह कैकई को अपने इन वचनों पर दोबारा विचार करने के लिए बोले, और बोले कि हो सके तो अपने यह वचन वापस ले ले। पर कैकई अपनी बात पर अटल रही, तब ना चाहते हुए भी राजा दशरथ मे अपने प्रिय पुत्र राम को बुलाकर उन्हें 14 वर्ष के लिए वनवास जाने को कहा।
राम ने अपने पिता राजा दशरथ का बिना कोई विरोध किए उनकी आदेश स्वीकार कर लिया। जब सीता और लक्ष्मण को प्रभु राम के वनवास जाने के बारे में पता चला तो उन्होंने भी राम के साथ वनवास जाने की आग्रह किया, जब राम ने अपनी पत्नी सीता को अपने साथ वन ले जाने से मना किया तब सीता ने प्रभु राम से कहा कि जिस वन में आप जाएंगे वही मेरा अयोध्या है, और आपके बिना अयोध्या मेरे लिए नरक सामान है।
लक्ष्मण के भी बहुत आग्रह करने पर भगवन राम ने उन्हें भी अपने साथ वन चलने की अनुमति दे दी। इस प्रकार राम सीता और लक्ष्मण अयोध्या से वन जाने के लिए निकल गए। अपने प्रिय पुत्र राम के वन जाने से दुखी होकर राजा दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए।
इस दौरान भरत जो अपने मामा के यहां (ननिहाल) गए हुए थे,वह अयोध्या की घटना सुनकर बहुत ही ज्यादा दुखी हुए। भारत ने अपनी माता कैकई को अयोध्या के राज सिंहासन पर बैठने से मना कर दिया और वह अपने भाई राम को ढूंढते हुए वन में चले गए। वन में जाकर भरत राम लक्ष्मण और सीता से मिले और उनसे अयोध्या वापस लौटने का आग्रह किया तब राम ने अपने पिता के वचन का पालन करते हुए अयोध्या वापस नहीं लौटने का प्रण किया।
तब भारत ने भगवान राम की चरण पादुका अपने साथ ले कर अयोध्या वापस लौट आए, और राम की चरण पादुका को अयोध्या के राजसिंहासन पर रख दिया, भरत राज दरबारियों से बोले कि जब तक भगवान राम वनवास से वापस नहीं लौटते तब तक उन की चरण पादुका अयोध्या के राज सिंहासन पर रखा रहेगा और मैं उनका एक दास बनकर यह राज चलाऊंगा।
अरण्यकांड
भगवान राम के वनवास को 13 बरस बीत गए थे और वनवास का अंतिम वर्ष था। भगवान राम, सीता और लक्ष्मण गोदावरी नदी के किनारे जा रहे थे, गोदावरी के निकट एक जगह सीता जी को बहुत पसंद आई उस जगह का नाम था पंचवटी। तब भगवान राम अपनी पत्नी की भावना को समझते हुए उन्होंने वनबास का शेष समय पंचवटी में ही बिताने का निर्णय लिया और वहीं पर वह तीनों कुटिया बनाकर रहने लगे। पंचवटी के जंगलों में ही एक दिन शूर्पणखा नाम की राक्षस औरत मिली और वह लक्ष्मण को अपने रूप रंग से लुभाना चाहती थी, जिसमें वह असफल रही तो उसने सीता को मारने का प्रयास किया,
तब लक्ष्मण ने सूर्पनखा को रोकते हुए उसके नाक और कान काट दिए। जब इस बात की खबर शूर्पणखा के राक्षस भाई खर को पता चली तो वह अपने राक्षस साथियों के साथ राम, लक्ष्मण सीता जिस पंचवटी में कुटिया बनाकर रह रहे थे वहां पर उसने हमला कर दिया, भगवान राम और लक्ष्मण ने खर और उसके सभी राक्षसों का बद्ध कर दिया।
जब इस घटना की खबर सूर्पनखा के दूसरे भाई रावण तक पहुंची तो उसने राक्षस मारीचि की मदद से भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण करने की योजना बनाई। रावण के कहने पर राक्षस मरीचि ने स्वर्ण मृग बनकर सीता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। स्वर्ण मिर्ग की सुंदरता पर मोहित होकर सीता ने राम को उसे पकड़ने को भेज दिया। भगवान राम रावण की इस योजना से अनभिज्ञ थे क्योंकि भगवान राम तो अंतर्यामी थे, फिर भी अपनी पत्नी सीता की इच्छा को पूरा करने के लिए वह उस स्वर्ण मिर्ग के पीछे जंगल में चले गए और माता सीता की रक्षा के लिए अपने भाई लक्ष्मण को बोल दिए।
कुछ समय बाद माता सीता ने भगवान राम की करुणा भरी मदद की आवाज सुनाई पड़ी तो माता सीता ने लक्ष्मण को भगवान राम की सहायता के लिए जबरदस्ती भेजने लगी। लक्ष्मण ने माता सीता को समझाने की बहुत कोशिश की कि भगवान राम अजय हैं, और उनका कोई भी कुछ नहीं कर सकता, इसलिए लक्ष्मण अपने भ्राता राम की आज्ञा का पालन करते हुए माता सीता की रक्षा करना चाहते थे।
लक्ष्मण और माता सीता में बात इतनी बढ़ गई कि सीताजी ने लक्ष्मण को वचन देकर भगवान राम की सहायता करने के लिए लक्ष्मण को आदेश दे दिया। लक्ष्मण माता सीता की आज्ञा मानना तो चाहते थे लेकिन वह सीता को कुटिया में अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे इसलिए लक्ष्मण कुटिया से जाते वक्त कुटिया के चारों ओर एक लक्ष्मण रेखा बनाई, ताकि कोई भी उस रेखा के अंदर नहीं प्रवेश कर सके और माता सीता को इस रेखा से बाहर नहीं निकलने का आग्रह किया। और फिर लक्ष्मण भगवान राम की खोज में निकल पड़े।
इधर रावण जो घात लगाए बैठा था जब उसने से रास्ता साफ देखा तब वह एक साधु का वेश बनाकर माता सीता की कुटिया के आगे पहुंच गया और भिक्षा मांगने लगा। माता सीता रावण जो कि एक साधु के वेश में था उसकी कुटिलता को नहीं समझ पाई और उसके भ्रमजाल में आकर लक्ष्मण की बनाई गई लक्ष्मण रेखा के बाहर कदम रख दिया और रावण माता सीता को बलपूर्वक उठाकर ले गया।
जब रावण सीता को बलपूर्वक अपने पुष्पक विमान में ले जा रहा था तो जटायु नाम का गिद्ध ने उसे रोकने की कोशिश की, जटायु ने माता सीता की रक्षा करने का बहुत प्रयास किया और जिसमें वह प्राणघातक रूप से घायल हो गया। रावण सीता को अपने पुष्पक विमान से उड़ा कर लंका ले गया और उन्हें राक्षसीयो की कड़ी सुरक्षा में लंका के अशोक वाटिका में डाल दिया। फिर रावण ने माता सीता के सामने उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की, लेकिन माता सीता अपने पति भगवान राम के प्रति समर्पण होने के कारण रावण से विवाह करने के लिए मना कर दिया।
इधर भगवान राम और लक्ष्मण माता सीता के अपहरण के बाद उनकी खोज करते हुए जटायु से मिले, तब उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी सीता को लंकापति रावण उठाकर ले गया है। तब वह दोनों भाई सीता को बचाने के लिए निकल पड़े, भगवान राम और लक्ष्मण जब माता सीता की खोज कर रहे थे तब उनकी मुलाकात राक्षस कबंध और परम तपस्वी साध्वी शबरी से हुई। उन दोनों ने उन्हें सुग्रीव और हनुमान तक पहुंचाया और सुग्रीव से मित्रता करने की सुझाव दिया।
किष्किंधा कांड
दोस्तों रामायण में वर्णित किष्किंधाकांड वानरों के गढ़ पर आधारित है। भगवान राम वहां पर अपने सबसे बड़े भक्त हनुमान से मिले। महाबली हनुमान वानरों में से सबसे महान नायक और सुग्रीव के पक्षपाती थे जिनको की किसकिंधा के सिहासन से भगा दिया गया था। हनुमान की मदद से भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता हो गई और फिर सुग्रीव ने भगवान राम से अपने भाई बाली को मारने में उनसे मदद मांगी। तब भगवान राम ने बाली का वध किया और फिर से सुग्रीव को किसकिंधा का सिहासन मिल गया, और बदले में सुग्रीव ने भगवान राम को उनकी पत्नी माता सीता को खोजने में सहायता करने का वचन दिया।
हालांकि कुछ समय तक सुग्रीव अपने वचन को भूल कर अपनी शक्तियों और राजसुख का मजा लेने में मग्न हो गया, तब बाली की पत्नी तारा ने इस बात की खबर लक्ष्मण को दी, और लक्ष्मण ने सुग्रीव को संदेशा भेजवाया कि अगर वह अपना वचन भूल गया है तो वह वानर गढ़ को तबाह कर देंगे। तब सुग्रीव को अपना वचन याद आया और वह लक्ष्मण की बात मानते हुए अपने वानर के दलों को संसार के चारों कोनों में माता सीता की खोज में भेज दिया।
उत्तर, पश्चिम और पूर्व दल के वानर खोजकर्ता खाली हाथ वापस लौट आए। दक्षिण दिशा का खोज दल अंगद और हनुमान के नेतृत्व में था, और वह सभी सागर के किनारे जाकर रुक गए। तब अंगद और हनुमान को जटायु का बड़ा भाई संपाती से यह सूचना मिली कि माता सीता को लंकापति नरेश रावण बलपूर्वक लंका ले गया है।
सुंदरकांड
जटायु के भाई संपाती से माता सीता के बारे में खबर मिलते ही हनुमान जी ने अपना विशाल रूप धारण किया और विशाल समुद्र को पार कर लंका पहुंच गए। हनुमान जी लंका पहुंच कर वहां माता सीता की खोज शुरू कर दी लंका में बहुत खोजने के बाद हनुमान को सीता अशोक वाटिका में मिली। जहां पर रावण के बहुत सारी राक्षसी दासियां माता सीता को रावण से विवाह करने के लिए बाध्य कर रही थी।
सभी राक्षसी दासियों के चले जाने के बाद हनुमान माता सीता तक पहुंचे और उनको भगवान राम की अंगूठी दे कर अपने राम भक्त होने का पहचान कराया। हनुमान जी ने माता सीता को भगवान राम के पास ले जाने को कहा, लेकिन माता सीता ने यह कहकर इंकार कर दिया कि भगवान राम के अलावा वह किसी और नर को स्पर्श करने की अनुमति नहीं देगी, माता सीता ने कहा कि प्रभु राम उन्हें खुद लेने आएंगे और अपने अपमान का बदला लेंगे।
फिर हनुमान जी माता सीता से आज्ञा लेकर अशोक वाटिका में पेड़ों को उखाड़ना और तबाह करना शुरू कर देते हैं इसी बीच हनुमान जी रावण के 1 पुत्र अक्षय कुमार का भी बद्ध कर देते हैं। तब रावण का दूसरा पुत्र मेघनाथ हनुमान जी को बंदी बनाकर रावण के समक्ष दरबार में हाजिर करता है। हनुमान जी रावण के दरबार में रावण के समक्ष भगवान राम की पत्नी सीता को छोड़ने के लिए रावण को बहुत समझाते हैं।
रावण क्रोधित होकर हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश देता है, हनुमान जी की पूंछ में आग लगते हैं वह उछलते हुए एक महल से दूसरे महल, एक छत से दूसरी छत पर जाकर पूरी लंका नगरी में आग लगा देते हैं। और वापस विशाल रूप धारण कर किष्किंधा पहुंच जाते हैं, वहां पहुंचकर हनुमान जी भगवान राम और लक्ष्मण को माता सीता की सारी सूचना देते हैं।
लंका कांड
लंका कांड (युद्ध कांड) में भगवान राम की सेना और रावण की सेना के बीच युद्ध को दर्शाया गया है। भगवान राम को जब अपनी पत्नी माता सीता की सूचना हनुमान से प्राप्त होती है तब भगवान राम और लक्ष्मण अपने साथियों और वानर दल के साथ दक्षिणी समुंद्र के किनारे पर पहुंचते हैं। वहीं पर भगवान राम की मुलाकात रावण के भेदी भाई विभीषण से होती है, जो रावण और लंका की पूरी जानकारी वह भगवान राम को देते हैं।
नल और नील नामक दो वानरों की सहायता से पूरा वानर दल मिलकर समुद्र को पार करने के लिए रामसेतु का निर्माण करते हैं, ताकि भगवान राम और उनकी वानर सेना लंका तक पहुंच सके। लंका पहुंचने के बाद भगवान राम और लंकापति रावण का भीषण युद्ध हुआ, जिसमें भगवान राम ने रावण का वध कर दिया। इसके बाद प्रभु राम ने विभीषण को लंका का सिहासन पर बिठा दिया।
भगवान राम माता सीता से मिलने पर उन्हें अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्निपरीक्षा से गुजरने को कहते हैं, क्योंकि प्रभु राम माता सीता की पवित्रता के लिए फैली अफवाहों को गलत साबित करना चाहते हैं। जब माता सीता ने अग्नि में प्रवेश किया तो उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ वह अग्नि परीक्षा में सफल हो गई। अब भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण वनवास की अवधि समाप्त कर अयोध्या लौट जाते हैं। और अयोध्या में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ भगवान राम का राज्यभिषेक होता है। इस तरह से रामराज्य की शुरुआत होती है।
उत्तरकांड
दोस्तों उत्तरकांड महर्षि बाल्मीकि की वास्तविक कहानी का वाद का अंश माना जाता है। इस कांड में भगवान राम के राजा बनने के बाद भगवान राम अपनी पत्नी माता सीता के साथ सुखद जीवन व्यतीत करते हैं। कुछ समय बाद माता सीता गर्भवती हो जाती हैं, लेकिन जब अयोध्या के वासियों को माता सीता की अग्नि परीक्षा की खबर मिलती है तो आम जनता और प्रजा के दबाव में आकर भगवान राम अपनी पत्नी सीता को अनिच्छा से बन भेज देते हैं।
वन में महर्षि बाल्मीकि माता सीता को अपनी आश्रम में आश्रय देते हैं, और वहीं पर माता सीता भगवान राम के दो जुड़वा पुत्रों लव और कुश को जन्म देती है। लव और कुश महर्षि वाल्मीकि के शिष्य बन जाते हैं और उनसे शिक्षा ग्रहण करते हैं।
महर्षि बाल्मीकि ने यही रामायण की रचना की और लव कुश को इस का ज्ञान दिया। बाद में भगवान राम अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करते हैं जिसमें महर्षि बाल्मीकि लव और कुश के साथ जाते हैं। भगवान राम और उनकी जनता के समक्ष लव और कुश महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण का गायन करते हैं। जब गायन करते हुए लव कुश को माता सीता को वनवास दिए जाने की खबर सुनाई जाती है तो भगवान राम बहुत दुखी होते हैं। तब वहां माता सीता आ जाती हैं।
उसी समय भगवान राम को माता सीता लव कुश के बारे में बताती हैं.. भगवान राम को ज्ञात होता है कि लव कुश उनके ही पुत्र हैं। और फिर माता सीता धरती मां को अपनी गोद में लेने के लिए पुकारती हैं, और धरती के फटने पर माता सीता उसमें समा जाती हैं। कुछ वर्षों के बाद देवदूत आकर भगवान राम को यह सूचना देते हैं कि उनके रामअवतार का प्रयोजन अब पूरा हो चुका है, और उनका यह जीवन काल भी खत्म हो चुका है। तब भगवान राम अपने सभी सगे-संबंधी और गुरुजनों का आशीर्वाद लेकर सरयू नदी में प्रवेश करते हैं। और वहीं से अपने वास्तविक विष्णु रूप धारण कर अपने धाम चले जाते हैं।
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