एक बार राजा कॄष्णदेव राय के दरबार में एक महान विद्वान आया। उसने वहॉ दरबार में उपस्थित सभी विद्वानो को चुनौती दी कि पूरे विश्व में उसके समान कोई बुध्दिमान व विद्वान नहीं है। उसने दरबार में उपस्थित सभी दरबारियों से कहा कि यदि उनमें से कोई चाहे तो उसके साथ किसी भी विषय पर वाद-विवाद कर सकता है। परन्तु कोई भी दरबारी उससे वाद-विवाद करने का साहस न कर सका। अन्त में सभी दरबारी सहायता के लिए तेनाली राम के पास गए । तेनाली राम ने उन्हें सहायता का आश्वासन दिया और दरबार में जाकर तेनाली ने विद्वान की चुनौती स्वीकार कर ली। दोनों के बीच वाद-विवाद का दिन भी निश्चित कर दिया गया।
निश्चित दिन तेनाली राम एक विद्वान पण्डित के रुप में दरबार पँहुचा। उसने अपने एक हाथ में एक बडा सा गट्ठर ले रखा था, जो देखने में भारी पुस्तकों के गट्ठर के समान लग रहा था। शीघ्र ही वह महान विद्वान भी दरबार में आकर तेनाली राम के सामने बैठ गया। पण्डित रुपी तेनाली राम ने राजा को सिर झुकाकर प्रणाम किया और गट्ठर को अपने और विद्वान के बीच में रख दिया, तत्पश्चात दोनों वाद-विवाद के लिए बैठ गए।
राजा जानते थे कि पण्डित का रुप धरे तेनाली राम के मस्तिष्क में अवश्य ही कोई योजना चल रही होगी इसलिए वह पूरी तरह आश्वस्त थे। अब राजा ने वाद-विवाद आरम्भ करने का आदेश दिया।
पण्डित के रुप में तेनाली राम पहले अपने स्थान पर खडा होकर बोला, “विद्वान महाशय! मैंने आपके विषय मैं बहुत कुछ सुना है। आप जैसे महान विद्वान के लिए मैं एक महान तथा महत्वपूर्ण पुस्तक लाया हूँ, जिस पर हम लोग वाद-विवाद करेंगे।”
“महाशय! कॄपया मुझे इस पुस्तक का नाम बताइए।” विद्वान ने कहा।
तेनाली राम बोले, “विद्वान महाशय, पुस्तक का नाम है, ‘तिलक्षता महिषा बन्धन’
विद्वान हैरान हो गया। अपने पूरे जीवन में उसने इस नाम की कोई पुस्तक न तो सुनी थी न ही पढी थी। वह घबरा गया कि बिना पढीव सुनी हुई पुस्तक के विषय में वह कैसे वाद्-विवाद करेगा। फिर भी वह बोला, “अरे, यह तो बहुत ही उच्च कोटि की पुस्तक है। इस पर वाद-विवाद करने में बहुत ही आनन्द आएगा । परन्तु आज यह वाद-विवाद रहने दिया जाए। मेरा मन भी कुछ उद्विनहै और इसके कुछ महत्वपूर्ण तथ्यूं को मैं भूल भी गया हूँ। कल प्रातः स्वस्थ व स्वच्छ मस्तिष्क के साथ हम वाद-विवाद करेगें।”
तेनाली राम के अनुसार, वह विद्वान तो आज के वाद-विवाद के लिए पिछले कई दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था परन्तु अतिथि की इच्छा का ध्यान रखना तेनाली का कर्तव्य था। इसलिए वह सरलता से मान गया। परन्तु वाद-विवाद में हारने के भय से वह विद्वान नगर छोडकर भाग गया। अगले दिन प्रातः जब विद्वान शाही दरबार में उपस्थित नहीं हुआ, तो तेनाली राम बोला, “महाराज, वह विद्वान अब नहीं आएगा। वाद-विवाद में हार जाने के भय से लगता है, वह नगर छोडकर चला गया है।”
“तेनाली, वाद-विवाद के लिय लाई गई उस अनोखी पुस्तक के विषय में कुछ बताओ जिससे कि डर कर वह विद्वान भाग गया ?” राजा ने पूछा ।
“महाराज, वास्तव में, ऐसी कोई भी पुस्तक नहीं है। मैंने ही उसका यह नाम रखा था। ‘तिलक्षता महिशा बन्धन ‘, इसमें ‘तिलक्षता का अर्थ है, ‘शीशम की सूखी लकडियॉ’ और ‘महिषा बन्धन का अर्थ है, ‘वह रस्सी जिससे भैसों को बॉधा जाता है।’ मेरे हाथ में वह गट्ठर वास्तव में शीशम की सूखी लकडिओं का था, जो कि भैंस को बॉधने वाली रस्सी से बन्धी थीं। उसे मैंने मलमल के कपडे में इस तरह लपेट दिया था ताकी वह देखने में पुस्तक जैसी लगे।”
तेनाली राम की बुद्धिमता देखकर राजा व दरबारी अपनी हँसी नहीं रोक पाए। राजा ने प्रसन्न होकर तेनाली राम को ढेर सारे पुरस्कार दिया।
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