एक बार एक प्रसिध्द योद्धा उत्तर भारत से विजयनगर आया। उसने कई युद्ध तथा पुरस्कार जीत रखे थे। इसके अतिरिक्त वह आज तक अपनी पूरी जिन्दगी में मल्ल युध्द में पराजित नहीं हुआ था। उसने युद्ध के लिए विजयनगर के योध्दाओं को ललकारा। उसके लम्बे, गठीले व शक्तिशाली शरीर के सामने विजयनगर का कोई भी योद्धा टिक न सका। अब विजयनगर की प्रतिष्ठा दॉव पर लग चुकी थी । इस बात से नगर के सभी योद्धा चिन्तित थे। बाहर से आया हुआ एक व्यक्ति पूरे विजयनगर को ललकार रहा था और वे सब कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। अतः सभी योद्धाइस समस्या के हल के लिए तेनाली राम के पास गए।
उनकी बात बडे ध्यान से सुनने के बाद तेनाली राम बोला, ” सचमुच, यह एक बडी समस्या है। परन्तु उस योद्धा को तो कोई योद्धा ही हरा सकता है। मैं कोई योद्धा तो हूँ नहीं, बस एक विदुषक हूँ। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ?”
तेनाली राम की यह बात सुन सभी योद्धा निराश हो गए, क्योंकि उनकी एकमात्र आशा तेनाली राम ही था । जब वे निराश मन से जाने लगे तो तेनाली राम ने उन्हें रोक कर कहा, ” मैं उत्तर भारत के उस वीर योद्धा से युद्ध करुँगा और उसे हराऊँगा, परन्तु तुम्हें वचन देना कि जैसा मैं कहुँगा, तुम सब वैसा ही करोगे।” उन लोगों ने तुरन्त वचन दे दिया। वचन लेने के बाद तेनाली राम बोला, “शक्ति परीक्षण के दिन तुम सभी पदक पहना देना और उस योद्धा से मेरा परिचय अपने गुरु के रूप में कराना, और मुझे अपने कंधे पर बैठा कर ले जाना ।”
विजयनगर के योद्धाओं ने तेनाली राम को ऐसा ही करने आ आश्वासन दिया। निश्चित दिन के लिए तेनाली राम ने योद्धाओं को एक नारा भी याद करने को कहा जो कि इस प्रकार था, ‘ममूक महाराज की जय, मीस ममूक महाराज की जय। ‘ तेनाली राम ने कहा, “जब तुम मुझे कंधों पर बैठा कर युद्धभूमि में जाओगे, तब सभी इस नारे को जोर-जोर से बोलना।”
अगले दिन युद्धभूमि में जोर-जोर से नारा लगाते हुए योद्धाओं की ऊँची आवाज सुनकर उत्तर भारत के योध्दा ने सोचा कि अवश्य ही कोई महान योद्धा आ रहा है। नारा कन्नड भाषा का साधारण श्लोक था, जिसमें ‘ममूक’ का अर्थ था- ‘धूल चटाना” जब कि ‘मीस’ क अर्थ भी लगभग यही था। उत्तर भारत के योद्धा को कन्नड भाषा समझ में नहीं आ रही थी। अतः उसने सोचा कि कोई महान योद्धा आ रहा है।
तेनाली राम उत्तर भारत के योद्धा के पास आया और बोला, “इससे पहले कि मैं तुम्हारे साथ युध्द करुँ, तुम्हें मेरे हाव-भावों का अर्थ बताना होगा। दर असल प्रत्येक महान योध्दा को इन हाव-भावों का अर्थ ज्ञात होना चाहिए। अगर तुम मेरे हाव-भावों का अर्थ बता दोगे, तभी मैं तुम्हारे साथ युद्ध करुँगा। यदि तुम अर्थ नहीं बता सके तो तुम्हें अपनी पराजय स्वीकार करनी पडेगी।”
इतने बडे-बडे योद्धाओं को देख, जो कि तेनाली राम को कन्धों पर उठाकर लाए थे और उसे अपना गुरु बता रहे थे व जोर-जोर से नारा भी लगा रहे थे, वह योद्धा सोचने लगा कि अवश्य ही तेनाली राम कोई बहुत ही महान योद्धा है। अतः उसने तेनाली की बात स्वीकार कर ली।
इसके बाद तेनाली राम ने संकेत देने आरम्भ किए। तेनाली राम ने सर्वप्रथम अपना दायॉ पैर आगे करके योद्धा की छाती को अपने दाएँ हाथ से छुआ। फिर अपने बाएँ हाथ से उसने स्वयं को छुआ। तत्पश्चात उसने अपने दाएँ हाथ को बाएँ हाथ पर रखकर जोर से उसने दबा दिया । इसके बाद उसने अपनी तर्जनी से दक्षिण दिशा की ओर संकेत किया।
फिर उसने अपने दोनों हाथों की तर्जनी उँगलियों से एक गॉठ बनाई। तत्पश्चात एक मुट्ठी मिट्टी उठाकर अपने मुँह में डालने का अभिनय किया।
इसके पश्चात उसने उत्तर भारत के योद्धा से इन हाव-भावों को पहचानने के लिए कहा। परन्तु वह योद्धा कुछ समझ नहीं पाया, इसलिए उसने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। वह विजयनगर से चला गया और जाते-जाते अपने सभी पदक व पुरस्कार तेनाली राम को दे गया।
विजयनगर के राजा व प्रजा परिस्थिति के बदलते ही अचम्भित से हो गए। सभी योद्धा बिना युध्द किए ही जीतने से प्रसन्न थे। राजा ने तेनाली राम को बुलाकर पूछा, “तेनाली, उन हाव-भावों से तुमने क्या चमत्कार किया?”
तेनाली राम बोला, “महाराज, इसमें कोई चमत्कार नहीं था। यह मेरी योद्धा को मूर्ख बनाने की योजना थी। मेरे हाव-भावों के अनुसार वह योद्धा उसी प्रकार शक्तिशाली था, जिस प्रकार किसी का दायॉ हाथ शक्तिशाली होता है और मैं उसके सामने बाएँ हाथ की तरह निर्बल था। यदि दाएँ हाथ के समान शक्तिशाली योद्धा बाएँ हाथ के समान निर्बल योद्धा को युद्ध के लिए ललकारेगा, तो निर्बल योद्धा तो बादाम की तरह कुचल दिया जाएगा। सो यदि मैं युद्ध हारता, तो दक्षिण दिशा में बैठी मेरी पत्नी को अपमान रुपी धूल खानी पडती। मेरे हाव-भावों का केवल यही अर्थ था, जिसे वह समझ नहीं पाया।”
तेनाली का यह जवाब सुनकर राजा व सभी एकत्रित लोग ठहाका लगाकर हँस पडे।
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