चाणक्य नीति: बारहवां अध्याय | Chanakya Niti in Hindi: Twelfth Chapter
- वह गृहस्थ भगवान की कृपा को पा चुका है जिसके घर में आनंददायी वातावरण है. जिसके बच्चे गुणी है. जिसकी पत्नी मधुर वाणी बोलती है. जिसके पास अपनी ज़रूरतें पूरा करने के लिए पर्याप्त धन है. जो अपनी पत्नी से सुखपूर्ण सम्बन्ध रखता है. जिसके नौकर उसका कहा मानते है. जिसके घर में मेहमान का स्वागत किया जाता है. जिसके घर में मंगल दायी भगवान की पूजा रोज की जाती है. जहाँ स्वाद भरा भोजन और पान किया जाता है. जिसे भगवान के भक्तों की संगति में आनंद आता है.
He is a blessed grhasta (householder) in whose house there is a blissful atmosphere, whose sons are talented, whose wife speaks sweetly, whose wealth is enough to satisfy his desires, who finds pleasure in the company of his wife, whose servants are obedient, in whose house hospitality is shown, the auspicious Supreme Lord is worshiped daily, delicious food and drink is partaken, and who finds joy in the company of devotees.
सानन्दं सदनं सुतास्तु सधियः कांता प्रियालापिनी इच्छापूर्तिधनं स्वयोषितिरतिः स्वाज्ञापराः सेवकाः ।
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे साधोः सुड्गमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः ।।१।।
- जो एक संकट का सामना करने वाले ब्राह्मण को भक्ति भाव से अल्प दान देता है उसे बदले में विपुल लाभ होता है.
One who devotedly gives a little to a brahmana who is in distress is recompensed abundantly. Hence, O Prince, what is given to a good brahmana is got back not in an equal quantity, but in an infinitely higher degree.
आर्तेषु विप्रेषु दयान्वितश्चे- च्छ्रध्देण या स्वल्पमुपैति दानम् ।
अनन्तपारं समुपैति दानम् यद्दीयते तन्न लभेद् द्विजेभ्यः ।।२।।
- वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगों के प्रति सह्रदय है. अच्छे लोगों के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगों से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छिपाते. दुशमनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ो के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है.
Those men who are happy in this world, who are generous towards their relatives, kind to strangers, indifferent to the wicked, loving to the good, shrewd in their dealings with the base, frank with the learned, courageous with enemies, humble with elders and stern with the wife.
दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने
प्रीतिःसाधुजने स्मयः खलजने विद्वज्जने चार्जवम् ।
शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता
इत्थं ये पुरुषा कलासु कुशलास्तेष्वे लोकस्थितिः ।।३।।
- अरे लोमड़ी !!! उस व्यक्ति के शरीर को तुरंत छोड़ दे. जिसके हाथों ने कोई दान नहीं दिया. जिसके कानों ने कोई विद्या ग्रहण नहीं की. जिसके आँखों ने भगवान का सच्चा भक्त नहीं देखा. जिसके पाँव कभी तीर्थ क्षेत्रों में नहीं गए. जिसने अधर्म के मार्ग से कमाए हुए धन से अपना पेट भरा. और जिसने बिना मतलब ही अपना सर ऊँचा उठा रखा है. अरे लोमड़ी !! उसे मत खा. नहीं तो तू दूषित हो जाएगी.
O jackal, leave aside the body of that man at once, whose hands have never given in charity, whose ears have not heard the voice of learning, whose eyes have not beheld a pure devotee of the Lord, whose feet have never traversed to holy places, whose belly is filled with things obtained by crooked practices, and whose head is held high in vanity. Do not eat it, O jackal, otherwise you will become polluted.
हस्तौ दानविवर्जितौ श्रुतिपुटौ सारस्वतद्रोहिणौ
नेत्रे साधुविलोकनेन रहिते पादौ न तीर्थं गतौ ।।
अन्यायार्जितवित्त पूर्णमुदरं गर्वेण तुड्गं शिरो ।
रे रे जंबुक मुञ्चमुञ्च सहसा नीचं सुनिन्द्यं वपुः ।।४।।
- धिक्कार है उन्हें जिन्हें भगवान श्री कृष्ण जो माँ यशोदा के लाडले है उन के चरण कमलों में कोई भक्ति नहीं. मृदंग की ध्वनि धिक तम धिक तम करके ऐसे लोगों का धिक्कार करती है.
“Shame upon those who have no devotion to the lotus feet of Sri Krsna, the son of mother Yasoda; who have no attachment for the descriptions of the glories of Srimati Radharani; whose ears are not eager to listen to the stories of the Lord’s lila.” Such is the exclamation of the mrdanga sound of dhik-tam dhik-tam dhigatam at kirtana.
येषां श्रीमद्यशोदा सुतपदकमले नास्ति भक्तिर्नराणां
येषामाभीरकन्याप्रियगुणकथने नानुरक्ता रसज्ञा ।
येषां श्रीकृष्णलीलाललितरसकथा सादरौनैव कर्णौ
धिक्तांधिक्तांधिगेतांकथ यति सततं कीर्तनस्थोमॄदंगः ।।५।।
- बसंत ऋतु क्या करेगी यदि बास पर पत्ते नहीं आते. सूर्य का क्या दोष यदि उल्लू दिन में देख नहीं सकता. बादलों का क्या दोष यदि बारिश की बूँदें चातक पक्षी की चोंच में नहीं गिरती. उसे कोई कैसे बदल सकता है जो किसी के मूल में है.
What fault of spring that the bamboo shoot has no leaves? What fault of the sun if the owl cannot see during the daytime? Is it the fault of the clouds if no raindrops fall into the mouth of the chatak bird? Who can erase what Lord Brahma has inscribed upon our foreheads at the time of birth?
पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किं
नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणं ।
वर्षा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणं
यत्पूर्व विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं कः क्षमः ।।६।।
- एक दुष्ट के मन में सद्गुणों का उदय हो सकता है यदि वह एक भक्त से सत्संग करता है. लेकिन दुष्ट का संग करने से भक्त दूषित नहीं होता. जमीन पर जो फूल गिरता है उससे धरती सुगन्धित होती है लेकिन पुष्प को धरती की गंध नहीं लगती.
A wicked man may develop saintly qualities in the company of a devotee, but a devotee does not become impious in the company of a wicked person. The earth is scented by a flower that falls upon it, but the flower does not contact the odour of the earth.
सत्सङ्गाद भवति हि साधुता खलानां ।
साधूनां न हि खलसंगतेः खलत्वम् ।।
आमोदं कुसुमभवं मृदेव धत्ते
मृदगन्धं नहि कुसुमानि धारयन्ति ।।७।।
- उसका सही में कल्याण हो जाता है जिसे भक्त के दर्शन होते है. भक्त में तुरंत शुद्ध करने की क्षमता है. पवित्र क्षेत्र में तो लम्बे समय के संपर्क से शुद्धि होती है.
One indeed becomes blessed by having darshan of a devotee; for the devotee has the ability to purify immediately, whereas the sacred tirtha gives purity only after prolonged contact.
साधूनां दर्शनं पुण्यं तीर्थीभूता हि साधवः ।
कालेन फलते तीर्थं सद्यः साधुसमागमः ।।८।।
- एक अजनबी ने एक ब्राह्मण से पूछा. “बताइए, इस शहर में महान क्या है?”. ब्राह्मण ने जवाब दिया की खजूर के पेड़ का समूह महान है.
अजनबी ने सवाल किया की यहाँ दानी कौन है? जवाब मिला के वह धोबी जो सुबह कपड़े ले जाता है और शाम को लौटाता है.
प्रश्न हुआ यहाँ सबसे काबिल कौन है. जवाब मिला यहाँ हर कोई दूसरे का द्रव्य और दारा हरण करने में काबिल है.
प्रश्न हुआ की आप ऐसी जगह रह कैसे लेते हो? जवाब मिला की जैसे एक कीड़ा एक दुर्गन्ध युक्त जगह पर रहता है.
A stranger asked a brahmana, “Tell me, who is great in this city?” The brahmana replied, “The cluster of palmyra trees is great.” Then the traveller asked, “Who is the most charitable person?” The brahmana answered, “The washer man who takes the clothes in the morning and gives them back in the evening is the most charitable.” He then asked, “Who is the ablest man?” The brahmana answered, “Everyone is expert in robbing others of their wives and wealth.” The man then asked the brahmana, “How do you manage to live in such a city?” The brahmana replied, “As a worm survives while even in a filthy place so do I survive here!”
विप्राऽस्मिन्नगरे महान् कथयकस्तालद्रुमाणां गणः
को दाता रजको ददाति वसनं प्रातर्गृ हीत्वा निशि ।
को दक्षः परवित्तदारहरणे सर्वोऽपि दक्षो जनः
कस्माज्जीवसि हे सखे विष कृमिन्यायेन जीवाम्यहम् ।।९।।
- वह घर जहाँ ब्राह्मणों के चरण कमल को धोया नहीं जाता, जहाँ वैदिक मंत्रो का जोर से उच्चारण नहीं होता. और जहाँ भगवान को और पितरो को भोग नहीं लगाया जाता वह घर एक स्मशान है.
The house in which the lotus feet of brahmanas are not washed, in which Vedic mantras are not loudly recited, and in which the holy rites of svaha (sacrificial offerings to the Supreme Lord) and swadha (offerings to the ancestors) are not performed, is like a crematorium.
न विप्रपादोदकपंकजानि न वेदशास्त्रध्वनिगर्जितानि ।
स्वाहास्वधाकारविवर्जितानि श्मशानतुल्यानिगृहाणि तानि ।।१०।।
- सत्य मेरी माता है. अध्यात्मिक ज्ञान मेरा पिता है. धर्माचरण मेरा बंधु है. दया मेरा मित्र है. भीतर की शांति मेरी पत्नी है. क्षमा मेरा पुत्र है. मेरे परिवार में ये छह लोग है.
(It is said that a sadhu, when asked about his family, replied thusly): truth is my mother, and my father is spiritual knowledge; righteous conduct is my brother, and mercy is my friend, inner peace is my wife, and forgiveness is my son: these six are my kinsmen.
सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा
शांतिः पत्नी क्षमा पुत्रः षडेते ममबान्धवाः ।।११।। - हमारे शारीर नश्वर है. धन में तो कोई स्थायी भाव नहीं है. मृत्यु हरदम हमारे निकट है. इसीलिए हमें तुरंत पुण्य कर्म करने चाहिए.
Our bodies are perishable, wealth is not at all permanent and death is always nearby. Therefore we must immediately engage in acts of merit.
अनित्यानि शरिराणि विभवो नैव शाश्वतः ।
नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्तव्यो धर्मसंग्रहः ।।१२।।
- ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन में आनंद आता है. गायों को ताज़ी कोमल घास खाने में. पत्नी को पति के सान्निध्य में. क्षत्रियों को युद्ध में आनंद आता है.
Arjuna says to Krsna. “Brahmanas find joy in going to feasts, cows find joy in eating their tender grass, wives find joy in the company of their husbands, and know, O Krsna, that in the same way I rejoice in battle.
निमन्त्रणोत्सवा विप्रा गावो नवतृणोत्सवाः ।
पत्युत्साहयुता भार्या अहं कृष्ण ! रणोत्सवः ।।१३।।
- जो दूसरे के पत्नी को अपनी माता मानता है, दूसरे को धन को मिट्टी का ढेला, दूसरे के सुख दुःख को अपने सुख दुःख. उसी को सही दृष्टि प्राप्त है और वही विद्वान है.
He who regards another’s wife as his mother, the wealth that does not belong to him as a lump of mud, and the pleasure and pain of all other living beings as his own — truly sees things in the right perspective, and he is a true pandit.
मातृवत्परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत् ।
आत्मवत्सर्वभूतानि यः पश्यति स पंडितः ।।१४।।
- भगवान राम में ये सब गुण है. १. सद्गुणों में प्रीति. २. मीठे वचन ३. दान देने की तीव्र इच्छा शक्ति. ४. मित्रों के साथ कपट रहित व्यवहार. ५. गुरु की उपस्थिति में विनम्रता ६. मन की गहरी शास्ति. ६. शुद्ध आचरण ७. गुणों की परख ८. शास्त्र के ज्ञान की अनुभूति ८. रूप की सुन्दरता ९. भगवत भक्ति.
O Raghava, the love of virtue, pleasing speech, and an ardent desire for performing acts of charity, guileless dealings with friends, humility in the guru’s presence, deep tranquillity of mind, pure conduct, discernment of virtues, realised knowledge of the sastras, beauty of form and devotion to God are all found in you.” (The great sage Vasistha Muni, the spiritual preceptor of the dynasty of the sun, said this to Lord Ramachandra at the time of His proposed coronation).
धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता
मित्रेऽवंचकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिगम्भीरता ।
आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञातृता
रूपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्तिभी राघवः ।।१५।।
- कल्प तरु तो एक लकड़ी ही है. सुवर्ण का सुमेर पर्वत तो निश्छल है. चिंता मणि तो एक पत्थर है. सूर्य में ताप है. चन्द्रमा तो घटता बढ़ता रहता है. अमर्याद समुद्र तो खारा है. काम देव का तो शरीर ही जल गया. महाराज बलि तो राक्षस कुल में पैदा हुए. कामधेनु तो पशु ही है. भगवान राम के समान कौन है.
Kalpataru (the wish fulfilling tree) is but wood; the golden Mount Meru is motionless; the wish-fulfilling gem chintamani is just a stone; the sun is scorching; the moon is prone to wane; the boundless ocean is saline; the demigod of lust lost his body (due to Shiva’s wrath); Bali Maharaja, the son of Diti, was born into a clan of demons; and Kamadhenu (the cow of heaven) is a mere beast. O Lord of the Raghu dynasty! I cannot compare you to any one of these (taking their merits into account).
काष्ठं कल्पतरुः सुमेरुरचलश्चिन्तामणिः प्रस्तरः
सूर्यस्तीव्रकरः शशीक्षयकरः क्षारोहि वारां निधिः ।
कामो नष्टतनुर्बलिदितिसुतो नित्यं पशुः कामगाः
नैस्तांस्ते तुलयामि भो रघुपते कस्योपमादीयते ।।१६।।
- विद्या सफ़र में हमारा मित्र है. पत्नी घर पर मित्र है. औषधि रुग्ण व्यक्ति की मित्र है. मरते वक्त तो पुण्य कर्म ही मित्र है.
Realised learning (vidya) is our friend while travelling, the wife is a friend at home, medicine is the friend of a sick man, and meritorious deeds are the friends at death.
विद्या मित्रं प्रवासे च भार्या मित्र गृहे च ।
व्याधिस्तस्यौषधं मित्रं धर्मा मित्रं मृतस्य च ।।१७।।
- राज परिवारों से शिष्टाचार सीखे. पंडितों से बोलने की कला सीखे. जुआरियो से झूठ बोलना सीखे. एक औरत से छल सीखे.
Courtesy should be learned from princes, the art of conversation from pandits, lying should be learned from gamblers and deceitful ways should be learned from women.
विनयं राजपुत्रेभ्यः पंडितेभ्यः सुभाषितम् ।
अनृतं द्यूतकारेभ्यः स्त्रीभ्यः शिक्षेत कैतवम् ।।१८।।
- बिना सोचे समझे खर्च करने वाला, नटखट बच्चा जिसे अपना घर नहीं, झगड़े पर आमादा आदमी, अपनी पत्नी को दुर्लक्षित करने वाला, जो अपने आचरण पर ध्यान नहीं देता है. ये सब लोग जल्दी ही बर्बाद हो जायेंगे.
The unthinking spender, the homeless urchin, the quarrel monger, the man who neglects his wife and is heedless in his actions — all these will soon come to ruination.
अनालोक्य व्ययं कर्ता अनाथः कलहप्रियः ।
आर्तः स्त्रीसर्वक्षेत्रेषु नरः शीघ्र विनश्यति ।।१९।।
- एक विद्वान व्यक्ति ने अपने भोजन की चिंता नहीं करनी चाहिए. उसे सिर्फ अपने धर्म को निभाने की चिंता होनी चाहिए. हर व्यक्ति का भोजन पर जन्म से ही अधिकार है.
The wise man should not be anxious about his food; he should be anxious to be engaged only in dharma (Krsna consciousness). The food of each man is created for him at his birth.
नाऽऽहारं चिन्तयेत्प्राज्ञो धर्ममेकं हि चिन्तयेत् ।
आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते ।।२०।।
- जिसे दौलत, अनाज और विद्या अर्जित करने में और भोजन करने में शर्म नहीं आती वह सुखी रहता है.
He who is not shy in the acquisition of wealth, grain and knowledge, and in taking his meals, will be happy
धनधान्यप्रयोगेषु विद्यासंग्रहणे तथा ।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखीभवेत् ।।२१।।
- बूंद-बूंद से सागर बनता है. इसी तरह बूंद-बूंद से ज्ञान, गुण और संपत्ति प्राप्त होते है.
As centesimal droppings will fill a pot so also are knowledge, virtue and wealth gradually obtained.
जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
स हेतु सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ।।२२।।
- जो व्यक्ति अपने बुढ़ापे में भी मूर्ख है वह सचमुच ही मूर्ख है. उसी प्रकार जिस प्रकार इन्द्र वरुण का फल कितना भी पके मीठा नहीं होता.
The man who remains a fool even in advanced age is really a fool, just as the Indra-Varuna fruit does not become sweet no matter how ripe it might become.
वयसः परिणामेऽपि यः खलः खलः एव सः ।
सम्पक्वमपि माधुर्यं नापयातीन्द्रवारुणम् ।।२३।।