एक बार राजा कॄष्णदेव राय तेनाली राम के किसी तर्क से बहुत प्रसन्न हुए और बोले, “तेनाली, तुमने आज मुझे प्रसन्न कर दिया, एसके बदले, मैं एक पूरा नगर तुम्हें उपहार स्वरुप देता हूँ।”
तेनाली ने झुककर उनको धन्यवाद कहा। इसके बाद कई दिन बीत गए, परन्तु राजा कॄष्णदेव राय ने अपना वचन पूरा नहीं किया। वे तेनाली को एक नगर उपहार में देने का अपना वचन भूल गए थे। राजा के इस प्रकार वचन भूल जाने से तेनाली बडा परेशान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। परन्तु फिर भी राजा को उनका वचन याद दिलवाना तेनाली को अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए वह एक उचित मौके की तलाश में था।
एक दिन एक अरबी व्यक्ति विजयनगर आया, उसके पास एक ऊँट था। लोगों की भारी भीड ऊँट को देखने के लिए इकट्ठी हो गई, क्योंकि उनके लिए वह एक अजूबा था । उन्होंने ऊँट के बारे में सुना था, पर कभी ऊँट देखा नहीं था। राजा एवं तेनाली भी ऊँट नामक इस अजीबो-गरीब जानवर को देखने आए।
दोनों एक साथ खडे हुए ऊँट को देख रहे थे। राजा बोले, तेनाली, निःसन्देह ऊँट एक विचित्र जानवर है। इसकी लम्बी गर्दन तथा कमर पर दो कूबड हैं। मैं हैरान हूँ कि भगवान ने ऐसा विचित्र तथा बदसूरत प्राणी पॄथ्वी पर क्यों भेजा?”
राजा कॄष्णदेव राय की इस बात पर तेनाली को जवाब देने का अवसर मिला और वह सदैव की तरह आज भी अपने उत्तर के साथ तैयार था । वह बोला, “महाराज, शायद …. शायद क्या बल्कि अवश्य ही यह ऊँट अपने पूर्वजन्म में कोई राजा रहा होगा और शायद इसने भी कभी किसी को उपहार स्वरुप नगर देने का वचन दिया होगा और फिर बाद में भूल गया होगा। अतः दण्ड के रूप में ईश्वर ने इसे इस प्रकार का रुप दिया होगा।”
पहले तो राजा को यह तेनाली की एक बुद्धिपूर्ण काल्पनिक कहानी लगी, परन्तु कुछ समय पश्चात ही उन्हे तेनाली को दिया हुआ अपना वचन याद आ गया।
अपने शाही महल में वापस आते ही राजा ने तुरन्त कोषाध्यक्ष को बुलाया और उसे निर्देश दिया कि वह लिखित रुप में प्रबन्ध करे जिसके अनुसार राजा ने तेनाली राम को पूरा एक नगर उपहार स्वरुप प्रदान किया है। पूरा एक नगर उपहार स्वरुप ग्रहण करने के पश्चात तेनाली ने राजा को धन्यवाद दिया। और इस प्रकार एक बार फिर तेनाली ने अपनी बुद्धिमानी से काम लेकर राजा को उसका भूला हुआ वचन याद दिलाया।
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