ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से सभी दुख और विघ्न दूर होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से भक्तों को अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है और व्रतियों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। विद्वानों के अनुसार अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि परनिंदा, झूठ, ठगी, छल ऐसे पाप हैं, जिनके कारण व्यक्ति को नर्क में जाना पड़ता है। इस एकादशी के व्रत से इन पापों के प्रभाव में कमी आती है और व्यक्ति नर्क की यातना भोगने से बच जाता है। इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप ग्यारह सौ बार अवश्य करना चाहिए।
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अपरा एकादशी पूजा विधि
- एकादशी से एक दिन पूर्व ही व्रत के नियमों का पालन शुरू करना चाहिए।
- अपरा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए।
- फिर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद भगवान विष्णु और उनके वामन अवतार वाली तस्वीर को गंगाजल से स्नान कराएं और सामने दीपक जलाएं।
- अब भगवान विष्णु की प्रतिमा को रोली-अक्षत से तिलक कर फूल, मौसमी फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं।
- विष्णु की पूजा करते वक्त तुलसी के पत्ते अवश्य रखें।
- इसके बाद धूप दिखाकर श्री हरि विष्णु की आरती उतारें और सूर्यदेव को जल अर्पित करें।
- एकादशी की कथा सुनें या सुनाएं. व्रत के दिन निर्जला व्रत करें।
- शाम के समय तुलसी के पास गाय के घी का एक दीपक जलाएं ।
- यदि संभव हो तो रातभर जागकर भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करें।
- इस दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करना काफी उत्तम माना गया है।
- इस व्रत में अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर फलाहार कर लें।
- व्रत रखने वाले को पूरे दिन गलत विचार मन में नहीं आने देने चाहिए
- अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दान-दक्षिणा दें।
- इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
अपरा एकादशी व्रत कथा
एक कथा के अनुसार किसी राज्य में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई महीध्वज से द्वेष रखता था और उसे मारने के षड़यंत्र रचता रहता था। एक दिन मौका पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे शव को गाड़ दिया। वज्रध्वज उस राज्य में खुद राज करने लग गया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती थी। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने तपोबल से प्रेत को देख लिया और उसके प्रेत बनने का कारण जान लिया।
ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
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