कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। इस व्रत को करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और विवाह संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है। ऐसी मान्यता भी है कि इस व्रत को रखने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है और साथ ही आर्थिक परेशानी भी नहीं होती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं। मान्यताओं के अनुसार रमा एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पद्पुराण में बताया गया है कि इस व्रत के प्रभाव से घोर पाप से भी मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से कामधेनु और चिंतामणि के समान फल की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में मुचुकंद नाम के एक प्रतापी राजा थे। वह बहुत ही धर्मात्मा, विष्णुभक्त और न्याय के साथ राज करते थे। उनकी इंद्र के साथ साथ यम, कुबेर, वरुण और विभीषण भी मित्रता थी। उनकी चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी। राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया। शोभन एक समय भी बिना खाए नहीं रह सकता था। शोभन एक बार कार्तिक मास के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया, तभी रमा एकादशी व्रत समीप आया। दशमी को राजा ने ढोल बजवाकर सारे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए
शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वह एक पल भी भूखा नहीं रह सकता है तो वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा। वह इसी परेशानी के साथ पत्नी के पास गया और उपाय बताने के लिए कहा। चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य के बाहर जाना पड़ेगा। क्योंकि राज्य में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो। यहां तक कि इस दिन राज्य के जीव-जंतु हाथी, घोड़ा, ऊंट, बिल्ली, गौ आदि भी भोजन नहीं करते हैं।
आखिरकार शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा और वह भूख व प्यास से अत्यंत पीडि़त होने लगा, जिससे पारण करने से पहले उसकी मृत्यु हो गयी। शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के बाद चंद्रभागा अपने पिता के घर में ही रहने लगी। उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ। एक बार मुचुकुंदपुर में रहने वाले एक ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे। उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया कि यह तो राजा का जमाई शोभन है।
शोभन भी उसे पहचान कर अपने आसन से उठकर उसके पास आया और प्रणामादि करके कुशल प्रश्न किया। तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई। चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी। उसने ब्राह्मण से शोभन के पास ले जाने आग्रह किया। ब्राह्मण चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर गया। वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक कर दिया। तब ऋषि के मंत्र के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य गति को प्राप्त हुई।
इसके बाद वह बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पति के निकट गई। अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ। तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
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