जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास की सबसे क्रूरतम घटना है। 13 अप्रैल, 1919 बैसाखी के दिन 20 हजार भारत के वीरपुत्रों ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में स्वाधीनता का यज्ञ रचा गया। वहाँ आबाल वृद्ध सभी उपस्थित थे, सबने एक स्वर से स्वाधीनता की मांग की। इस पर अंग्रेजों को यह सहन न हुआ। अपने बल का प्रदर्शन करने बाग की ओर गए। वहां जाकर लगातार 15 मिनट तक गोली वर्षा की। इस बाग के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें विद्यमान थी। प्रवेश के लिए एक छोटा-सा द्वार था, उसी द्वार पर उस नीच डायर ने मशीनगन लगवा दी। जब तक गोली थी तब तक चलवाता रहा। वहां रक्त की धारा बह चली। सरकारी समाचार के अनुसार 400 व्यक्ति मृत तथा 2000 के लगभग घायल थे।
कर्ण-परंपरा से सुना जाता है कि नीच डायर ने यह कुकृत्य हिंदुओं के द्वारा करवाया था। हिन्दू फौज आगे और इसके पीछे गोरखा फौज थी। इस गोलीकांड में नीच कर्म यह किया गया कि मृत व घायलों को बाग में ही रातभर तड़पने दिया गया। इनकी मरहमपट्टी तो दूर की बात किसी को पीने के लिए जल तक न दिया। वहां पास में कुंआ था उसमें अनेक व्यक्ति अपनी जान बचाने के लिए कूद पड़े। गोलीकांड समाप्त हुआ तो उस कुंए में से लगभग सवासौ शव निकले गए। इस प्रकार इस कुंए की मृतकूप संज्ञा पड़ गयी।
हत्यारे डायर ने हंटर कमीशन के सामने स्वयं बड़े गर्व से कहा था कि मैंने बड़ी भीड़ पर 15 मिनट तक धुआधार गोलियां चलाई। मैंने भीड़ हटाने का प्रयास नहीं किया, मैं बिना गोलियां चलाये भीड़ को हटा सकता था परंतु इसमें लोग मेरी हंसी करते। कुल गोलियां 1650 चलाई थी। गोली बरसाना तब तक किया जब तक कि वह समाप्त न हो गई हो और साथ ही यह भी स्वीकार किया कि मृतकों को उठाने व उनकी मदद करने का कोई प्रबंध नहीं किया। इसका कारण बताते हुए कहा – उस समय उन घायलों की मदद करना मेरा कर्तव्य नहीं था। डायर की इस क्रूरता को पंजाब के शासक सर माइकेल ओ डायर ने न केवल उचित ही ठहराया अपितु तार द्वारा प्रशंसा की सूचना दी कि आपका कार्य ठीक था। लैफ्टिनैन्ट गवर्नर उसकी सहायता करते है।
सन 1857 के बाद गोरी सरकार का सबसे बड़ा अत्याचार यह गोलीकांड ही था। इस दुखद घटना के बाद भारतीयों को बर्बरतापूर्ण तथा अमानुषिक सजायें दी गयी। अमृतसर का पानी बंद कर दिया गया, बिजली के तार काट दिये। खुली सड़कों पर कोड़ो से भारतीयों को मारा गया। यहाँ तक की रेल का तीसरी श्रेणी का टिकट बंद कर भारतीय यात्रियों का आना-जाना बंद कर दिया ।
इसी बाग में सबके साथ उधमसिंह जी का पिता भी शहीद हो गया था। इसका बदला लेने के लिए वह इंग्लैंड गया। वहां एक सभा में एक दिन वह नीच डायर भाषण दे रहा था। भाषण में वह कह रहा था कि मैंने भारतवर्ष में इस प्रकार के अत्याचार ढाये है । इतने में ही वीर उधमसिंह जी ने अपनी पिस्तौल का निशाना बनाकर उसका काम तमाम कर दिया। इस प्रकार इस वीर ने अपने पिता व भारत पर किए गए अत्याचारों का बदला ले लिया। अंत में अदालत में वीर उधमसिंह जी के इस अपराध के लिए फांसी पर लटका दिया गया। उनका इस अमर बलिदान का भारत सदैव ऋणी रहेगा।
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