आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन हम अपने गुरुओ की पूजा करते है जिन्होंने हमे जीवन में कुछ ना कुछ हासिल करने के काबिल बनाया और हमें एक सही राह दिखाई। यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। यह पूर्णिमा ‘व्यास पूर्णिमा’ के नाम से भी जानी जाती है। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। गुरु के ज्ञान और दिखाए गए मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। इसे हिन्दू एवं बौद्ध पूर्ण हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं। यह पर्व गुरु के नमन एवं सम्मान का पर्व है। मान्यता है कि इस दिन गुरु का पूजन करने से गुरु की दीक्षा का पूरा फल उनके शिष्यों को मिलता है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरुओं का सम्मान किया जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि यदि ईश्वर आपको श्राप दें तो इससे गुरु आपकी रक्षा कर सकते हैं परंतु गुरु के दिए श्राप से स्वयं ईश्वर भी आपको नहीं बचा सकते हैं। इस अवसर पर आश्रमों में पूजा-पाठ का विशेष आयोजन किया जाता है। इस पर्व पर विभिन्न क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विभूतियों को सम्मानित किया जाता है। इस दिन गुरु के नाम पर दान-पुण्य करने का भी प्राविधान है। इस दिन स्कूल, कॉलेजों में गुरुओ, शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। उनके सम्मान में सभी लोग भाषण देते है, गायन, नाटक, चित्र, व अन्य प्रतियोगितायें आयोजित की जाती है। पुराने विदार्थी स्कूल, कॉलेज में आकर अपने गुरुजन को उपहार भेंट करते है और उनका आशीर्वाद लेते है।
Guru Purnima 2021 Date – गुरु पूर्णिमा 2021 | 24 जुलाई, 2021 (शनिवार) |
पूर्णिमा तिथि शुरू: | 10:40 – 23 जुलाई 2021 |
पूर्णिमा तिथि ख़त्म: | 08:05 – 24 जुलाई 2021 |
भारतवर्ष की पहचान है उसकी आध्यात्मिक धरोहर। बदलते हुए समय व परिस्थितियों के अनुसार इस आध्यात्मिकता को जीवन में उतारने की अद्भुत कला भी भारतवर्ष के ऋषि मुनियों ने ही संसार को सिखाई है। स्वयं कष्ट सहकर भी जो समाज को उन्नति के मार्ग पर चलाते हैं, ऐसे ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का ही पर्व है गुरु पूर्णिमा। गुरु पूर्णिमा, गुरु की आराधना का दिन होता है। गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे यह कारण है कि इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। वेदव्यास को हम कृष्णद्वैपायन के नाम से भी जानते है। महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों और महाभारत की रचना की थी।
हिन्दू धर्म में वेदव्यास को भगवान के रूप में पूजा जाता है। इस दिन वेदव्यास का जन्म होने के कारण इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा और मुडिया पूनो के नाम से जाना जाता है। आषाढ़ की पूर्णिमा को यह पर्व मनाने का उद्देश्य है कि जब तेज बारिश के समय काले बादल छा जाते हैं और अंधेरा हो जाता है, तब गुरु उस चंद्र के समान है, जो काले बादलों के बीच से धरती को प्रकाशमान करते हैं। ‘गुरु’ शब्द का अर्थ ही होता है कि तम का अंत करना या अंधेरे को खत्म करना।
गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में ही मनाये जाने का कारण यह है कि इस समय न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है और यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए गुरुचरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने हेतु इस समय का चयन करते हैं।
कबीर ने गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए लिखा है-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
दक्षिणा देने के लिए आप तैयार रहें। अर्थात अपने समस्त अहंकार, घमंड, ज्ञान, अज्ञान, पद व शक्ति, अभिमान सभी गुरु के चरणों में अर्पित कर दें। यही सच्ची गुरु दक्षिणा होगी। आपको तय करना है कि आपको पुट्टल वाला शिष्य बनना है या जो गुरु को ज्ञान का देवता मानता था वैसा शिष्य बनना है।
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